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Friday 29 July 2016

THE HISTORICAL CONTRIBUTION OF JOURNALIST & JOURNALISM


THE HISTORICAL CONTRIBUTION OF JOURNALIST & JOURNALISM
AND
SOME EMINENT JOURNALIST
राजा राममोहन राय
(22 May, 1772- 27 September, 1833 )
(जन्‍म- राधा नगर, बंगाल, मृत्‍यु- ब्रिस्‍टल इंगलेंड   )
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारतीय समाजका जन्‍मदाता कहा जाता है। वे ब्रह़म समाज के संस्‍थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता और बंगाल में नव जागरण युग के पितामह थे।  
पत्रकारिता जगत की यात्रा
1.      ब्रह्मौनिकल पत्रिका (Brahmonical Magazine)- इसी पत्रिका के माध्‍यम से राजा राममोहन राय ने पत्रकारिता जगत में पदार्पण किया था। उस समय ईसाई मत का प्रचार-प्रसार करने के लिए ईसाई मिशनरी ने अंगेजी भाषा में फ्रेंड आफ इंडिया नामका समाचार पत्र प्रकाशित किया था। उसके प्रतिउत्‍तर में राजा साहब ने अंग््रेजी भाषा में ब्रहमौनिकल पत्रिका का प्रकाशान प्रारंभ किया था।
2.      संवाद कौमुदी- वर्ष 1821 में ताराचंद्र दत्‍त व भवानी चरण बंधोपाध्‍याय ने बंगाली भाषा में साप्‍ताहिक पत्र संवाद कौमुदी का प्रकाशन प्रारंभ किया। दिसंबर 1821 में भवानी चरण बंधोपाध्‍याय ने पत्र के संपादक पद से त्‍यागपत्र दे दिया और पत्र का कार्यभार राजा राममोहन राय ने ग्रहण किया। कुछ विद्वावनों का यह भी मत है कि संवाद कौमुदी का प्रकाशन राज साहब ने प्रारंभ किया था और लगभग 33 वर्ष तक इसका प्रकाशन जारी रहा।
3.      मिरात-उल-अखबार- 1822 ई. में राजा राममोहन राय ने फारसी भाषा में मिरात-उल-अखबार नाम से भी साप्‍ताहिक अखबार का प्रकाशन किया था। यह भारत में पहला फारसी भाषा का अखबार था। लेकिन ब्रिटिश सरकार की दमन नीति के कारण के कारण 4 अप्रैल 1823 को उसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।
4.      बंगदूत- राजा साहब ने बंगाल हेरल्‍ड के साथ देशी भाषा में 9 मई, 1829 को बंगदूत नाम से भी एक समाचार पत्र प्रकाशित  किया था। जिसके संपादक नीलरत्‍न  हालदार थे। साप्‍ताहिक (रविवार) बंगदूत में बंगला, हिंदी व फारसी का एक साथ प्रयोग किया जाता था।
पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान
·         समाचारपत्रों की स्‍वतंत्रता के लिए संघर्ष- तत्‍कालीन ब्रिटिश गवर्नर आदम ने प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगाने के उददेश्‍य से वर्ष 1823 में एक अध्‍यादेश जारी कर सरकारी लाइसेंस के बिना समाचारपत्र प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था। राजा राममोहन राय ने अध्‍यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया, किंतु अनुकूल परिणाम प्राप्‍त  नहीं हुए। इसी संदर्भ में उन्‍होंने सर्वोच्‍च न्‍यायालय को भी एक पत्रलिख था। जिसमें उन्‍होंने समाचारपत्रों की स्‍वतंत्रता के लाभ पर अपनेविचार व्‍यक्‍त किए थे। समाचारपत्रों की स्‍वतंत्रता के लिए चलाएगए उनके आन्‍दोलनके कारणही 1835 में समाचार पत्रों की आजादीके लिए मार्ग प्रशस्‍त हुआ था।
 अध्‍यादेश का विरोध करते हुए राजा साहब ने फारसी भाषा में प्रकाशित मिरात-उल-अखबार प्रकाशन बंद कर दिया था और 4 अप्रैल 1823 के अंतिम अंक में लिखा था- जो परिस्थिति उत्‍पन्‍न हो गई हैं। उस में पत्र का प्रकाशन रोक देना ही एकमात्र मार्ग रह गया है। जो नियम बने हैं, उनके अनुसार किसी युरोपियन सज्‍जन के लिए, जिन की पहुंच सरकार के चीफ सेक्रेटरी तक सरलता से हो जाती है, सरकार से लाइसेंस  लेकर पत्र निकाल देना आसान है, पर भारत के किसीनिवासी के के लिए, जो सरकार भवन की देहरी लांघ्‍ने में भी समर्थ नहीं हो पाता, पत्र-प्रकाशन के लिए सरकारी आज्ञा प्राप्‍त करना दुस्‍तर कार्य हो गया है। फिर खुली अदालत में हलफना दाखिल करना भी कम अपमानजनक  नहीं है। लाइसेंस के जानेका भी खतरा भी सदा सिर पर झूला करता है। ऐसी दशा में पत्र प्रकाशन रोक देना ही उचित है।
·         मिशन की पत्रकारिता- राजा राममोहन राय मूलरूप से समाज सुधारक थे। राजा साहब का साप्‍ताहिक पत्र संवाद कौमुदी इसका स्‍पष्‍ट उदाहरण है। वास्‍तव में संवाद कौमुदी राजनैतिक नहीं सामाजिक समस्‍याओं से जूझने वालीपत्रिका थी। जिसका मुख उददेश्‍य सती प्रथा जैसी रूढि़यों का विरोध करना था। सती प्रथा  विरोध के कारण उनके विरोधियों ने उनके जीवन के लिए भी खतरे पैदा किए थे। यह उनके विरोध की प्रबलता ही थी कि लार्ड विलियम बैण्‍टक 1829 में सतीप्रथा बंद करनेमें समर्थक हो सके।



पं. युगल किशोर शुक्‍ल
(1788- 1853)
हिंदी पत्रकारिता के जनक पं. युगल किशोर शुक्‍ल का जन्‍म 1788 को उत्‍तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था और कलकत्‍ता में वर्ष 1853 में उनका निधन हो गया था।
पत्रकारिता जगत की यात्रा
1.      उदन्‍त मार्तण्‍ड-  पं. युगल किशोर शुक्‍ल ने हिंदी भाषा का प्रथम साप्‍ताहिक समाचार पत्र उदन्‍त मार्तण्‍ड 30 मई 1826 को कलकत्‍ता से प्रकाशित किया था। इस पत्र में देश-विदेश के समाचार, सरकारी अधिकारियों की नियुक्तियां, पब्लिक इश्‍तहार, जहाजों के आने का समय, कलकत्‍ते का बाजार भाव के साथ ही हास्‍य-व्‍यंग्‍य की सामग्री भी प्रकाशित की जाती थी। शुक्‍ल जी साधन संपन्‍न नहीं थे। उन्‍हें आशा थी कि सरकार व हिंदी भाषी जनता का सहयोग उन्‍हें प्राप्‍त होगा, किंतु अपेक्षित सहयोग प्राप्‍त नहीं हुआ। और, अर्थिक विपन्‍नता के चलते एक वर्ष सात मास के अल्‍पकाल में ही उदन्‍त मार्तण्‍ड का प्रकाशन चार दिसंबर 1827 को बंद हो गया।
2.      साम्‍यदण्‍ड मार्तण्‍ड - अर्थिक विपन्‍नता व सरकार और जनता का अपेक्षित सहयोग न मिलने के दुष:परिणाम स्‍वरूप उदन्‍त मार्तण्‍ड के अस्‍त हो जाने के उपरान्‍त भी शुक्‍लजी का मनोबल टूटा नहीं था। उदन्‍त मार्तण्‍ड के बंद हो जाने के 23 वर्ष बाद शुक्‍लजी ने पुन: हिंदी व पत्रकारिताके प्रति अपना प्रेम दर्शाते हुए 1850 में एक साम्‍यदण्‍ड मार्तण्‍ड नाम से एक अन्‍य समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया था। इस पत्रको भी शुक्‍लजी लगभग दो वर्ष तक ही चला पाए और साम्‍यदण्‍ड मार्तण्‍ड के प्रकाशन के लगभग तीन वर्ष बाद 1853 ई. में कलकत्‍ता में उनका निधन हो गया। 
पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान
हिंदी पत्रकारिता के उन्‍नायक- प्रतिकूल परिस्थितियों के उपरांत भी पं. युगल किशोर शुक्‍ल ने  हिंदी में समाचार पत्र प्रकाशन का साहसिक कार्य कर हिंदी पत्रकारिता जगत में अविस्‍मर्णीय कार्य किया है। पत्रकारिता का वह प्रारंभिक युग हिंदी पत्रकारिता के लिए अनुकूल न था। हिंदी समाचार पत्रों को नतो सरकारी संरक्षण और प्रोत्‍साहन प्राप्‍त था और न ही हिंदी भाषी समाज का सहयोग। प्रचार-प्रसार के साधनभी सीमित थे। इस प्रकार शुक्‍लजी को प्रत्‍येक कदम पर प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझना पड़ा। हिंदी भाषी जनता का ही हिंदी भाषा के प्रति उपेक्षित भाव से निराश हो कर उन्‍होंने उदन्‍त मार्तण्‍ड के एक संपादकीय लेख में कटु शब्‍दों में लिखा था, ‘’ शूद्र लोग चाकरी जैसे नीच काम करते हैं, पढ़ने-लिखनेसेउन्‍हें कोई मतलबनहीं है। कायस्‍थ लोग फारसी तथा उर्दू पढ़ते हैं, वैश्‍य समुदाय के लोग बही खाता चलाने लायक अक्षर-ज्ञान होते ही पठन-पठन से अलग हो जाते हैं और ब्राह़मण तो ऐसे कलयुगी हो गए हैं कि पढ़ने-पढ़ाने को तिलांजलि दे चुके हैं। ऐसी हालत में हिन्‍दी का समाचार-पत्र कोई पढ़े  भी क्‍यों ? ’’

श्याम सुंदर सेन
श्याम सुंदर सेन हिंदी के प्रथम दैनिक समाचार पत्र सुधावर्षण के संपादक थे। सुधावर्षण समाचारपत्र का प्रकाशन कलकत्‍ता के बड़े बाजार से 1854 में हुआ था। सुधावर्षण प्रेस के मालिक  बाबू महेंद्र सेन थे और वे ही व्‍यवस्‍थापक भी थे। पत्रकारिता के इतिहास वेत्‍ताओं का   अनुमान है कि श्‍याम सुंदर सेन व बाबू महेंद्र सेन भाई-भाई थे।
 श्याम सुंदर सेन व उनके समाचार पत्र सुधावर्षण के संबंध में अन्‍य प्रमाणिक जानकारी उपलब्‍ध नहीं है। पं. अम्बिका प्रसाद वाजपेयी के अनुसार ‘‘ उपलब्‍ध सामग्री में कहीं ऐसी विज्ञप्ति नहीं है जिसके आधार पर कुछ प्रमाणिक ढंग से कहा जा सके किंतु प्रकाशन संबंधी केवल इतनी ही सूचना है कि यह समाचार सुधावर्षण पत्रिका रविवार को छोड़कर हर रोज प्रकाशित होती है। इस पत्रिका के लेनेवाले लोग एक बरिस की सही पहिले लिख देंगे तो पत्रिका मिलेगी। इसका दाम एक रुपया है।‘’
     यह द्विभाषी पत्र था। आरंभिक दो पृष्‍ठ हिन्‍दी के रहते थे और शेष दो बंगला के। पहले पृष्‍ठ पर प्राय: सुप्रिम कोर्ट के विज्ञापन रहते थे।   व्‍यापारिक जहाजों तथा देशी समाचारों के साथ ही चमत्‍कारी अनेक  सूचनाएं भी इसमें उपलब्‍ध थी। समाज-सुधार के प्रयत्‍नों पर भी इस में टीका टिप्‍पणी होती थी। 1868 ई. तक सुधावर्षण के प्रकाशन के प्रमाण प्राप्‍त होते हैं।
भारतेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र
(9 सितंबर, 1850- 6 जनवरी 1885)
भारतेंन्‍दु इतिहास प्रसिध्‍द सेठ अमीचन्‍द के पौत्र थे। सेठ अमीचन्‍द काशी के धनिक समाज के प्रतिष्ठित व्‍यक्तित्‍व थे। इसी प्रकार के संस्‍कार उनके पुत्र बाबू गोपाल चन्‍द्र को विरासत में प्राप्‍त हुए थे। उपरांत इसके उनके पुत्र भारतेन्‍दु कुछ अलग स्‍वभाव के थे। कुलीन परिवार से संबंध्‍द होते हुए भी भारतेन्‍दु को बंधन  पसंद न था और 11 वर्ष की अवस्‍था में ही देश की दशा का प्रत्‍यक्ष अनुभव करने के लिए निकल पड़े थे। देश की दुर्दशा देख कर अत्‍यन्‍त दुखी हुए और दुर्दशा शब्‍दों में कुछ  इस प्रकार बयां की-  अब जहां देखहूं तहा दु:खहि दु:ख दिखाई। हा हा ! भारत दुर्दशा न देख जाई।। वे मूलत: कवि थे और हिंदी साहित्‍य का वह युग भारतेन्‍दु युग के नाम से जाना जाता है।
पत्रकारिता जगत की यात्रा
हिंदी पत्रकारिता के दूसरे दौर का प्रारंभ 1877 ई. से माना जाता है और यह दौर भारतेन्‍दु युग के नाम से विख्‍यात है। पत्रकारिता जगत की यात्रा का शुभारंभ उन्‍होंने हरिश्‍चन्‍द्र पत्रिका से 1868 में किया था। उसके बाद 1873 में कविवचन सुधा और वर्ष 1874 में बाल बोधिनी नामक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन व संपादन किया।
पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान
हिन्‍दी व स्‍वदेशी के प्रति समर्पण- भारतेन्‍दु ने पत्रकारिता को हिन्‍दी के उत्‍थान और जनमानस को स्‍वदेशी के प्रति जागरूक करने का माध्‍यम बनाया। स्‍वदेशी अपनाने के संबंध में 23 मार्च 1874 के कविवचन सुधा के अंक में भारतेन्‍दु का एक प्रतिज्ञा पत्र  प्रकाशित हुआ था। जिसमें उन्‍होंने कहा था, ‘‘हम लोग सर्वान्‍तदासी सत्र स्‍थल में वर्तमान सर्वद्रष्‍टा और नित्‍य सत्‍य परमेश्‍वर को साक्षी दे कर यह नियम मानते हैं और लिखते हैं कि हम लोग आज के दिन से कोई विलायती कपड़ा नहीं पहिनेंगे और जो कपड़ा पहिले से मोल ले चुके हैं और आज की मिती तक हमारे पास है दन को तो उन के जीर्ण हो जाने तक काम में लावेंगे पर नवीन मोल ले कर किसी भांति का विलायती कपड़ा  न पहिरेंगे हिन्‍दुस्‍तान का ही बना कपड़ा पहिरेंगे। हम आशा रखते हैं कि इसको बहुत ही क्‍या प्राय: सब लोग स्‍वीकार करेंगे और अपना नाम इसी श्रेणी में होने के लिए श्रीयुत बाबू हरिश्‍चन्‍द्र को अपनी मनीषा  प्रकाशित करेंगे और सब हितैषी इस उपाय के वृध्दि में अवश्‍य उध्‍योग।’’
भारतेन्‍दु युग के साहित्यिक अधिकारी विद्वान डॉ. रामविलाश शर्मा के अनुसार, कांग्रेस ने अभी स्‍वदेशी आन्‍दोलन विधिपूर्वक न आरम्‍भ किया था, न बंग भंग आन्‍दोलन ने जन्‍म लिया था। केवल हिन्‍दी में भारतेन्‍दु ने स्‍वदेशी वस्‍त्रों का व्‍यवहार उन्‍होंने अनिवार्य रखा था।  
पंडित बालकृष्‍ण भटट
(प्रयाग, 3 जून 1844- 20 जुलाई, 1914)

हिन्‍दी पत्रकारिता के क्षेत्र में भारतेन्‍दु युग के पत्रकार पंडित बालकृष्‍ण भटट का नाम भारतेन्‍दु बाबू से बड़ा और ॅूूॅऊंचा माना जाता है। भटट जी न केवल पत्रकारिता में अपितु राजनीति व साहित्‍य क्षेत्र में भी अपनेकार्य से भारत के जनमानस को जागृत किया है। महामना मदन मोहन मालवीय और राजर्षि पुरूषोत्‍तम दास टण्‍डन जैसे व्‍यक्तित्‍व भटट जी का ही गुरूत्‍व प्राप्‍त कर अपनी  ऊंचाई तक पंहुचे थे। 
पत्रकारिता जगत की यात्रा
यह कहना अनुचित न होगा कि भटट जी ने पत्रकारिता  का प्रारंभिक ज्ञान रामानन्‍द चटटोपाध्‍याय से प्राप्‍त किया था। श्री चटटोपाध्‍याय कायस्‍थ पाठशाला इण्‍टर कालिज में के प्रिंसिपल थे और भटट जी इसी कालिज में संस्‍कृत के शिक्षक नियुक्‍त हुए। प्रिंसिपल रहते हुए ही श्री चटटोपाध्‍याय अंग्रेजी मासिक मार्डन रिव्‍यू का संपादन किया करते थे और भटट जी के साथ उनकी निकटता बनी रही।
हिन्‍दी प्रदीप- शिक्षण कार्य करते हुए ही भटट जी ने सितंबर 1877 में हिन्‍दी प्रदीप नाम से मासिक पत्र का शुभारंभ किया। इस पत्र का विमोचन भारतेन्‍दु हरिशचन्‍द्र ने केया था। प्रयाग से प्रकाशित होने वाला यह हिन्‍दी प्रदीप और पटना से प्रकाशित हिंदी साप्‍ताहिक पत्र बिहार बंधु भारतेन्‍दु युग के सर्वाधिक दीर्घजीवी पत्र हुए। वबहार बंधु का प्रकाशन 1873 में हुआ था और नियमित रूप से 1912 तक व पुन: 30 अप्रैल 1922 से 21 मार्च, 1924 तक प्रकाशित होता रहा।  हिन्‍दी प्रदीप लगभग 33 वर्ष तक प्रकाशित होता रहा और प्रकाशन की संपूर्ण अवधि तक पं. भटट जी ही संपदक बे रहे। तत्‍कालीन विषम परिस्थितियों में इतनी लंबी अवधि तक पत्र का प्रकाशन स्‍वयं में एक उपलब्धि थी।
हिन्‍दी प्रदीप एक साहित्यिक,सामाजिक, राजनैतिक और संस्‍कृतिक मासिक पत्रथा। इसमें राजनैतिक वयस्‍कता थी, समाज के प्रति दायित्‍व-बोध प्रचुर मात्रा में था। राजनैतिक वयस्‍कता की परिपक्‍वता की झलक हिन्‍दी प्रदीप में प्रकाशित विभिन्‍न नाटकों और संपादकीय अग्रलेखों से स्‍पष्‍ट होती थी। पुस्‍तक समीक्षा प्रकाशन की पहल हिन्‍दी प्रदीप ने ही की थी।
भटट जी हिन्‍दुवादी भारतीय थे। उनके उग्र और स्‍पष्‍ट विचारों से अंग्रेज शासकों को सदैव कठिनाई का सामना करना पड़ता था। अन्‍तत: 1812 के हिन्‍दी प्रेस एक्‍ट के तहत उनसे तीन हजार रुपए की जमानत मंगी गई, तब खिन्‍न और लाचार होकर भटट जी को हिन्‍दी प्रदीप का प्रकाशन 1909 ई. में बन्‍द कर देना पड़ा।
पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान
·         समाचार पत्रों की स्‍वतंत्रता की हिमायत- लार्ड लिटन के शासनकाल (1876-80) में प्रेस और पत्रकारिता पर अत्‍यंत कड़े प्रतिबंध लगाए गए। 14 मार्च 1878 को वर्नाक्‍यूलर प्रेस एक्‍ट परित हुआ। जिसके तहत भारतीय प्रेस  की स्‍वतंत्रता समाप्‍त कर दी गई। इस अधिनियम की निर्भिकव तीखी आलोचना कर हिन्‍दी प्रदीप ने संपूर्णभारतीयपत्रकारिताका मार्गदर्शनकिया था। हिन्‍दी प्रदीप में हम चुप न रहें शीर्षक से अग्रलेख प्रकाशित हुआ था। जिसमें पाठकों से वर्नाक्‍यूलरप्रेस एक्‍ट के विरुध्‍द आंदोलन करने का आग्रह किया गया था। तत्‍पश्‍चात अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने अधिनियम का विरोध किया और परिणाम स्‍वरूप लॉर्ड रिपन को 19 जनवरी 1882 को वर्नाक्‍यूलर प्रेस एक्‍ट वापिस लेना पड़ा।
·         देवनागरी लिपि के समर्थन में संघर्ष –देवनागरी लिपि को न्‍यायालय-लिपि और कार्यालय-लिपि की मान्‍यता प्रदान कराने की दिशा में हिन्‍दी प्रदीप का बहुमूल्‍य योगदान रहा है। अपने प्रकाशन के दसवें माह से ही इस पत्र ने इस विषय में जोरदार आंदोलन किया और संपूर्ण हिन्‍दी भाषी जनता को जागरूक किया। भटट जी ने हिन्‍दी प्रदीप के माध्‍यम से 1878 में कहा था, खैर हिन्‍दी भाषा का प्रचारन हो सके तो नागरी अक्षरों का बरताव ही सरकारी कामों में हो, तब भी हम लोग अपनेकोकृतार्थ मानें। 1896-97 के दौरान हिन्‍दी प्रदीप ने देशी अक्षर अर्थात देवनागरी लिपि और हिन्‍दी भाषा का संयुक्‍त प्रश्‍न खड़ा कर दिया। उस समय कहा गया था कि हमारे अक्षर और हमारी भाषा अदालतों में पदास्‍थापित नहीं हैं। इसलिए हमारा सर्वाधिक पिछड़ापन है। अतएव हिन्‍दी का उध्‍दार कर जनता को नवजीवन दान के औचित्‍य का प्रतिपादन हिन्‍दी प्रदीप के माध्‍यम से बार-बार किया गया।
पं. बालकृष्‍ण भटट यदयपि हिन्‍दी के मुददे को भी बार-बार उठाते रहे। उपरांत इसके उर्दू भाषा व उसके अपनाने वालों की भावनाका खयाल रखते हुए उनका अधिक जोर देवनागरी लिपि पर ही था। सन् 1898 उन्‍होने हिन्‍दी प्रदीप के माध्‍यम से कहा था, ‘‘भाषा उर्दू रहे। अक्षर हमारे हो जाएं, तो हम और वे दोनों मिलकर एक साथ अपनी तरक्‍की कर सकते हैं और यह बात कब जब वे उर्दू को अपनी भाषा मानते हों और सच पूछे तो जिसे वे हिन्‍दी कहते हैं, वह भी उनकी भाषा है। वही हिन्‍दी जो सर्व साधारण में प्रचलित है। अस्‍तु भाषा का तो कोई जिक्र ही नहीं है उर्दू हो या हिन्‍दी डिप्‍यूटेशन हिन्‍दी अक्षरों के लिए दिया गया है न भाषा के लिए। इस प्रकार पत्रकारिता के माध्‍यम से उन्‍हें ने हिन्‍दी भाषा को भी सम्‍मान देने का प्रश्‍न तो बार-बार खड़ा किया, लेकिन उनकी प्रमुखता देवनागरी लिपि को लेकर ही थी।

NATIONAL PRESS & REGIONAL PRESS

NATIONAL PRESS & REGIONAL PRESS
DEFINITIONS-  
·         NEWSPAPERS AND MAGAZINES, AND THOSE PARTS OF TELEVISION AND RADIO THAT BROADCAST NEWS OR REPORTERS AND PHOTOGRAPHERS WHO WORK FOR THEM.
·         ITS COLUMNS HAVE NEVER BEEN CONFINED TO ANY ONE DISTRICT OR LOCALITY. THEY HAVE BEEN EVER OPEN TO THE STATEMENT OF THE WRONGS AND GRIEVANCES- THE VIEWS AND FEELING OF THE PEOPLE IN ALL PARTS OF THE COUNTRY.
·         NEWSPAPERS WHICH CONCERN NATIONAL EVENTS OF A COLLECTIVELY.
·         NEWSPAPERS WHICH SELL IN ALL PARTS OF THE COUNTRY.
·         INVOLVING OR RELATING TO A NATION AS A WHOLE IS CALLED NATIONAL NEWSPAPER.
HISTORY OF PRESS-
·         FIRST MAJOR N.P. ‘THE BENGAL GAZETTE’ BY JAMES AUGUSTS HICKEY IN 1780. THE CALCUTTA GAZETTE, THE MADRAS COURIER. THE CIRCULATION OF PAPERS DURING THIS EARLY PERIOD NEVER EXCEEDED A HUNDRED  OR TWO HUNDRED. THESE JOURNALS .
·         TOI 1838 DAILY EDITION STARTED 1850 NAMED BOMBAY TIMES RENAMED 1861 TOI.
·         THE HIDU ESTD. 1878, BUT PUBLISHED DAILY 1889.   
·         HINDUSTAN TIMES- 1924.

LANGUAGE OR REGINOL PREES.
·         During the Independence struggle and after, the Indian newspapers had flourished and expanded,
·         Gaining wider circulation and extensive readership. Compared to many other developing countries,
·         The growth of the regional Press has been impressive. Apart from English language, newspapers.

·         According to the Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry (FICCI) and KPMG 2013 , Hindi will grow at a Compound Annual Growth Rate  (CAGR) of 10.8 per cent from 201`2-2017.  Other language will grow at 10.9 %.

·         The regional press is one of the foremost challenges for national press.
·         So that national press changed their strategy according to regional press.
·         The first newspaper in an Indian language was the Samachar Darpan in Bengali. The first issue of this daily was published on May 1818,
·         The first Hindi newspaper The Samachar Sudha Varshan started its circulation in 1854.

FACTORS OF CHALLENGES
India is one of the fastest growing media markets in the world. It is not only newspapers but
Other media forms which are also growing at a fast pace like radio, television channels and internet.
Let us now look into some factors that have contributed to this boom of languages newspapers in India.
·         Increased the literacy rate: According to Census 2011 the literacy rate of India is 74.04% from 12% at the end of British rule in 1974. There is a steady rise in the literacy rates in all the states of our country. More and more people are being initiated into the world of reading and writing. They gradually learn to read newspapers and periodicals.  That the fastest growth rates in newspaper circulation were in states which showed the strongest growth rates of literacy.
·         Regional language awareness: Due to the growth of literacy rate people trend has increased towards the regional language. In this way the regional newspapers growth increased.
·         Change the mindset of people:  As people become more and more aware about political developments. But Along with this people be aware of local grievances and wants their solution from the administration. So they want to high lights the local grievances in press, and regional press are implementing this task well.
·         Expansion of the middle class: As the Indian middle class expands; it leads to an increase in the circulation of newspapers. When a household makes economic and educational progress, they consider it as a status symbol to subscribe to a newspaper.
·         Education of women: Male literacy rate is 82.14% and female literacy rate is 65.46% (20011 Census. ). The growth of literacy rate in female is 11.8% in comparison of 2001. And in mail the growth is only 6.9%it is often said that if you educate a woman you are educating the next generation. In India women are getting more and more educated and this in turn leads to education of children. Awareness also increases along with this. It contributes a lot to the growth of readership.
·         Technological advancement: In earlier days, starting a newspaper publication or establishment of a new edition was a costly affair. As technology has improved, it became easier for newspapers to start new editions. This hassled to an expansion of newspapers even into small cities and towns.
·         Better purchasing power: Improvement in the purchasing power of the common man is another factor which helped in the growth of newspapers. Coupled with this, newspapers also started reducing their prices. So it became affordable for the common man.

·         Aggressive marketing:  The regional Newspapers and periodicals are adopting aggressive marketing Strategies to attract more readers. They offer various schemes with gifts to attract subscribers. They also offer concessions for long term subscriptions. All these have resulted in an increase of newspaper sales.