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Friday, 10 August 2018

रेखाचित्र

रेखाचित्र का अर्थ
 ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो।

रेखाचित्र कहानी से मिलता-जुलता साहित्य रूप है। यह नाम अंग्रेज़ी के 'स्केच' शब्द की नाप-तोल पर गढ़ा गया है। स्केच चित्रकला का अंग है। इसमें चित्रकार कुछ इनी-गिनी रेखाओं द्वारा किसी वस्तु-व्यक्ति या दृश्य को अंकित कर देता है-स्केच रेखाओं की बहुलता और रंगों की विविधता में अंकित कोई चित्र नहीं है, न वह एक फ़ोटो ही है, जिसमें नन्हीं से नन्हीं और साधारण से साधारण वस्तु भी खिंच आती है।

रेखाचित्र आधुनिक युग में विकसित एक गद्य विधा है जो अन्य आधुनिक विधा की तरह ही पश्चिम से आई है और अंग्रेजी के ‘स्केच’ के समानार्थी है। रंगविहीन रेखाओं के दायरे को घटाना-बढ़ाना, सूक्ष्म अन्तर्दर्शी कला-चेतना को मांजकर कलाकार जब अपनी आत्मा को रेखाओं की वृतों में घेरकर आकार देता है, वह रेखाचित्र के रूप में हमारे सामने आता है। साहित्यिक क्षेत्र में यही रेखाएं शब्दों में परिवर्तित हो जाती है। 

वैसे तो रेखाचित्र की कई परिभाषाएँ प्रस्तुत की गयी हैं, परन्तु सबसे सटीक और व्यापक परिभाषा डॉ. भगीरथ मिश्र की लगती है जिनके अनुसार –
 “संपर्क में आये किसी विलक्षण व्यक्ति अथवा संवेदनाओं को जगानेवाली सामान्य विशेषताओं से युक्त किसी प्रतिनिधि चरित्र के मर्मस्पर्शी स्वरुप को, देखी-सुनी या संकलित घटनाओं की पृष्ठभूमि में इस प्रकार उभारकर रखना कि उसका हमारे हृदय पर एक निश्चित प्रभाव अंकित हो जाए रेखाचित्र या शब्दचित्र कहलाता है।”

जिस प्रकार चित्रकार चित्र बनाने के लिए आड़ी-तिरछी रेखाओं का प्रयोग करता है, उसी प्रकार रेखाचित्र लिखने वाला चित्र-शब्दों द्वारा जीवन की विविध घटनाओं, व्यक्तियों और दृश्य का ऐसा सजीव चित्र उपस्थित करता है कि पाठक के सम्मुख वह व्यक्ति, स्थान, वातावरण या प्रसंग साकार हो उठता है। गद्य में लिखे गए इसी चित्र को रेखाचित्र कहते हैं। रेखाचित्रकार अपने मन पर छाई हुई स्मृति रेखाओं और विगत अनुभवों को कला की तूलिका से स्वानुभूति के रंग में रंगकर सजीव शब्द-चित्र का रूप देता है।

प्रकाशचन्द्र गुप्त ने अपने रेखाचित्रों के सम्बन्ध में लिखा है –
 “मैं शब्दों की रेखाओं से अपने अनुभव के चित्र उतारने का प्रयास कर रहा था और निरंतर सोचता था कि मैं इन रेखाओं को तूलिका या पेंसिल से खींच सकता तो कितना अच्छा होता।”

इस वक्तव्य से स्पष्ट है कि शब्दचित्र छोटे, चलते और जीवंत होते हैं। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार – “रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी भावपूर्ण एवं सजीव अंकन है।”

रेखाचित्र कहानी से मिलता-जुलता साहित्य रूप है। यह नामअंग्रेज़ी के 'स्केच' शब्द की नाप-तोल पर गढ़ा गया है। स्केच चित्रकला का अंग है। इसमें चित्रकार कुछ इनी-गिनी रेखाओं द्वारा किसी वस्तु-व्यक्ति या दृश्य को अंकित कर देता है-स्केच रेखाओं की बहुलता और रंगों की विविधता में अंकित कोई चित्र नहीं है, न वह एक फ़ोटो ही है, जिसमें नन्हीं से नन्हीं और साधारण से साधारण वस्तु भी खिंच आती है।

साहित्य में रेखाचित्र
साहित्य में जिसे रेखाचित्र कहते हैं, उसमें भी कम से कम शब्दों में कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य का अंकन किया जाता है। इसमें साधन शब्द है, रेखाएँ नहीं। इसीलिए इसे शब्दचित्र भी कहते हैं। कहीं-कहीं इसका अंग्रेज़ी नाम 'स्केच' भी व्यवहृत होता है।

रेखाचित्र का स्वरूप
रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्म-स्पर्शी, भावपूर्ण एवं सजीव अंकन है। कहानी से इसका बहुत अधिक साम्य है- दोनों में क्षण, घटना या भाव विशेष पर ध्यान रहता है, दोनों की रूपरेखा संक्षिप्त रहती है और दोनों में कथाकार के नैरेशन और पात्रों के संलाप का प्रसंगानुसार उपयोग किया जाता है। इन विधाओं के साम्य के कारण अनेक कहानियों को भी रेखाचित्र कह दिया जाता है और इसके ठीक विपरीत अनेक रेखाचित्रों को कहानी की संज्ञा प्राप्त हो जाती है। कहीं-कहीं लगता है, कहानी और रेखाचित्र के बीच विभाजन रेखा खींचना सरल नहीं है। उदाहरण के लिए रायकृष्णदास लिखित 'अन्त:पुर का आरम्भ' कहानी है, पर वह आदिम मनुष्य की अन्त:वृत्ति पर आधारित 'रेखाचित्र' भी है। रामवृक्ष बेनीपुरी की पुस्तक 'माटी की मूरतें' में संकलित 'रज़िया', 'बलदेव सिंह', 'देव' आदि रेखाचित्र कहानियाँ भी हैं। श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित 'रामा', 'घीसा' आदि रेखाचित्र भी कहानी कह जाते हैं। कहानी और रेखाचित्र में साम्य है अवश्य, पर जैसा कि 'शिप्ले' के 'विश्व साहित्य कोश' में कहा गया है, रेखाचित्र में कहानी की गहराई का अभाव रहता है। दूसरी बात यह भी है कि कहानी में किसी न किसी मात्रा में कथात्मकता अपेक्षित रहती है, पर रेखाचित्र में नहीं।

आत्मकथा और संस्मरण से भिन्न
व्यक्तियों के जीवन पर आधारित रेखाचित्र लिखे जाते हैं, पर रेखाचित्र जीवनचरित नहीं है। जीवनचरित के लिए यथातथ्यता एवं वस्तुनिष्ठता अनिवार्य है। इसमें कल्पना के लिए अवकाश नहीं रहता, लेकिन रेखाचित्र साहित्यिक कृति है- लेखक अपनी भावना एवं कल्पना की तूलिका से ही विभिन्न चित्र अंकित करता है। जीवनचरित में समग्रता का भी आग्रह रहता है, इसमें सामान्य एवं महत्त्वपूर्ण सब प्रकार की घटनाओं के चित्रण का प्रयत्न रहता है, लेकिन रेखा चित्रकार गिनी-चुनी रेखाओं, गिनी-चुनी महत्त्वपूर्ण घटनाओं का ही उपयोग करता है। इन बातों से यह भी स्पष्ट है कि रेखाचित्र आत्मकथा और संस्मरण से भी भिन्न अस्तित्व रखता है।

रेखाचित्र की विशेषता
रेखाचित्र की विशेषता विस्तार में नहीं, तीव्रता में होती है। रेखाचित्र पूर्ण चित्र नहीं है-वह व्यक्ति, वस्तु, घटना आदि का एक निश्चित विवरण की न्यूनता के साथ-साथ तीव्र संवेदनशीलता वर्तमान रहती है। इसीलिए रेखाचित्रांकन का सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण है, उस दृष्टिबिन्दु का निर्धारण, जहाँ से लेखक अपने वर्ण्य विषय का अवलोकन कर उसका अंकन करता है। इस दृष्टि से व्यंग्य चित्र और रेखाचित्र की कलाएँ बहुत समान हैं। दोनों में दृष्टि की सूक्ष्मता तथा कम से कम स्थान में अधिक से अधिक अभिव्यक्त करने की तत्परता परिलक्षित होती है। रेखाचित्र के लिए संकेत सामर्थ्य भी बहुत आवश्यक है- रेखाचित्रकार शब्दों और वाक्यों से परे भी बहुत कुछ कहने की क्षमता रखता है। रेखाचित्र के लिए उपयुक्त विषय का चुनाव भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसकी विषय वस्तु ऐसी होती है, जिसे विस्तृत वर्णन और रंगों की अपेक्षा न हो और जो कुछ ही रेखाओं के संघात से चमक उठे।

रेखाचित्र एवं संस्मरण का सम्बन्ध
पाश्चात्य साहित्य विशेषकर अंग्रेजी साहित्य के स्केचों से प्रभावित रेखाचित्र वस्तुतः कहानी और निबंध के मध्य झूलती विधा है। हिंदी में निबंध तथा कहानी पर लिखी गयी आलोचना पुस्तकों में रेखाचित्र को कहानी या निबंध-कला की सहायक शैली मान लिया गया है अथवा कहानी और निबंध की रचना-सीमाओं को फैलाकर रेखाचित्र को उन्हीं के अंतर्गत समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है। रेखाचित्र में कहानी से अधिक मार्मिकता, निबंध से अधिक मौलिकता एवं रोचकता होती है। इसमें कहानी का कौतूहल है तो निबंध की गहराई भी है। वस्तुतः रेखाचित्र विभिन्न विधाओं की विशेषताओं का विचित्र समुच्चय है।

यशपाल के अनुसार –
“रेखाचित्र कहानी की कला से प्रेरणा पाकर उत्पन्न हुई कला की नव विकसित स्वतंत्र शाखा है।”

संस्मरण रेखाचित्र के अत्यधिक निकट है। दोनों ही संवेदनशील स्मृतियों का प्रत्यक्षीकरण है जिसके सूत्र किसी साधारण अथवा विशिष्ट व्यक्ति से जुड़े होते हैं। रेखाचित्र और संस्मरण के ऊपरी खोल एक से प्रतीत होते हैं, किन्तु एक ही सतह से जुड़ी इन विधाओं में भी थोड़ा अंतर है। संस्मरण संस्मरणकार का अनुभूत यथार्थ होता है जिसका सम्बन्ध अतीत से होता है। उसमें कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं होता। वह विवेच्य व्यक्ति, घटना या प्रसंग की यथातथ्यता को बनाए रखकर उनमें संचरित भीतरी संवेदना को पकड़ता है। रेखाचित्र संस्मरण के इन गुणों का अनुपालन नहीं करता। वह तो चित्रकला से उत्प्रेरित एक साहित्यिक विधा है। जिस प्रकार चित्रकार रेखाओं में अपने विवेच्य विषय को पूर्ण और सूक्ष्म आकार न देकर केवल आकार का आभास प्रदान करता है, ठीक उसी प्रकार साहित्यिक रेखाचित्रकार शब्दों में अपने विवेच्य विषय के स्वरुप का आकारात्मक आभास देता है। इस तरह रेखाचित्र और संस्मरण में स्पष्ट अंतर है।

कहानी अथवा निबंध से कहीं अधिक रेखाचित्र और संस्मरण के बीच की निकटता पर विद्वानों ने अपनी राय व्यक्त की है। दरअसल संस्मरण और रेखाचित्र दोनों एक दूसरे के इतना निकट है कि कभी-कभी तो दोनों को अलग करना कठिन हो जाता है। संस्मरण संवेदनशील स्मृतियों का प्रत्यक्षीकरण है जिसके सूत्र किसी साधारण अथवा विशिष्ट व्यक्ति से जुड़े होते हैं। रेखाचित्र के केंद्र में भी यही संवेदनशील स्मृति है, जो शब्दचित्र के रूप में वर्णित होता है। किन्तु इतना साम्य होने पर भी ये दोनों दो भिन्न विधाएँ हैं।