मानव संसाधन (ह्यूमन
रिसोर्सेस) वह अवधारणा है जो जनसंख्या कोअर्थव्यवस्था पर दायित्व से अधिक
परिसंपत्ति के रूप में देखती है। शिक्षाप्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश के
परिणाम स्वरूप जनसंख्या मानवसंसाधन के रूप में बदल जाती है। मानव संसाधन उत्पादन में
प्रयुक्त हो सकनेवाली पूँजी है। यह मानव पूँजी कौशल और उन्में निहित उत्पादन के
ज्ञान काभंडार है। यह प्रतिभाशाली और काम पर लगे हुए लोगों और संगठनात्मक सफलता
केबीच की कड़ी को पहचानने का सूत्र है। यह उद्योग/संगठनात्मक मनोविज्ञान औरसिद्धांत
प्रणालीसंबंधित अवधारणाओं से संबद्ध है। मानव संसाधन
की संदर्भ के आधार पर दो व्याख्याएं मिलती हैं।
इसका मूल अर्थराजनीतिक अर्थव्यवस्थाऔरअर्थशास्त्रसे लिया गया है, जहां पर इसे
पारंपरिक रूप सेउत्पादन के
चार कारकोंमें से एकश्रमिककहा जाता था, यद्धपि यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्तर पर नए और योजनाबद्ध
तरीकों में अनुसन्धान के चलते बदल रहा है। पहला तरीका अधिकतर 'मानव संसाधन विकास' शब्द के रूप में प्रयुक्त होता हैऔर यह सिर्फ
संगठनों से शुरू हो कर राष्ट्रीय स्तर तक हो सकता है।पारम्परिक रूप से यह
कारपोरेशन व व्यापार के क्षेत्र में व्यक्ति विशेष (जोउस फर्म या एजेन्सी में
कार्य करता है) के लिए, तथा कंपनी के
उस हिस्से कोजो नियुक्ति करने, निकालने, प्रशिक्षण देने तथा दूसरे व्यक्तिगत मुद्दोंसे
सम्बंधित है व जिसे साधारणतयाः "मानव संसाधन प्रबंधन" के नाम से
जानाजाता है, के लिए होता
प्रयुक्त होता है। यह लेख दोनों परिभाषाओं सेसम्बंधित है।
मानव संसाधन प्रबंधननिम्न महत्वपूर्ण कार्य करता है:
- नियुक्ति व चयन
- प्रशिक्षण और विकास (लोग अथवा संगठन)
- प्रदर्शन का मूल्यांकन तथा प्रबंधन
- पदोन्नति / स्थानांतरण
- फालतू कर्मचारियों को हटाना
- औद्योगिक और कर्मचारी संबंध
- सभी व्यक्तिगत आंकड़ों का रिकार्ड रखना.
- वेतन तथा उस से संबंधित मुआवजा, पेंशन,
बोनस इत्यादि
- कार्य से सम्बंधित समस्याओं के बारे में 'आंतरिक कर्मचारियों'
को गोपनीय सलाह देना.
- कैरियर का विकास
- योग्यता परखना
- मानव संसाधन क्रियाओं से संबंधित समय की गति का अध्ययन
करना.
- प्रदर्शन मूल्यांकन
फेयॉल के प्रबंध के सिद्धांत
फेयॉल के
प्रबंध के 14 सिद्धांत नीचे
दिए गए हैं-
कार्य विभाजन
कार्य विभाजन
को करने के लिए कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभक्त कियाजाता है। प्रत्येक कार्य
हेतु एक योग्य व्यक्ति जो, प्रशिक्षित
विशेषज्ञ हैकी आवश्यकता होती है। इस प्रकार से कार्य विभाजन से विशिष्टीकरण होता
है।फेयॉल के अनुसार,
कार्य विभाजन का उद्देश्य एक बार के परिश्रम से अधिक
उत्पादन एवंश्रेष्ठ कार्य करना है। विशिष्टीकरण मानवीय शक्ति के उपयोग करने का
कुशलतमतरीका है।
अधिकार एवं उत्तरदायित्व
फेयॉल के
अनुसार ‘अधिकार आदेश
देने एवं आज्ञा पालन कराने का अधिकार है, जबकि उत्तरदायित्व अधिकार का उप-सिद्धांत है। अधिकार दो
प्रकार का होता हैअधिकृत जो कि आदेश देने का अधिकार है एवं व्यक्तिगत अधिकार जो कि
प्रबंधकका व्यक्तिगत अधिकार है।’
अधिकार
औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों होता है। प्रबंधक को अधिकार और उसकेसमान उत्तरदायित्व
की आवश्यकता होती है। अधिकार एवं उत्तरदायित्व मेंसमानता होनी चाहिए। संगठन को
प्रबंधकीय शक्ति के दुरुपयोग से बचाव कीव्यवस्था करनी चाहिए। इसके साथ-साथ प्रबंधक
के पास उत्तरदायित्वों कोनिभाने के लिए आवश्यक अधिकार होने चाहिए। उदाहरण के लिए, एक विक्रय प्रबंधकको क्रेता से सौदा करना होता
है। वह देखता है कि ग्राहक को 60 दिन के उधारकी
सुविधा दे दें तो शायद सौदा हो जाए और कंपनी को शुद्ध 50 करोड़ रुपए कालाभ होगा। माना कंपनी प्रबंधक को 40 दिन के उधार देने का अधिकार देती है।इससे
स्पष्ट होता है कि अधिकार एवं दायित्व में समानता नहीं है। इस मामलेमें कंपनी के
हित को ध्यान में रखते हुए प्रबंधक को 60 दिन के उधार देने काअधिकार मिलना चाहिए। इस उदाहरण में
प्रबंधक को 100 दिन के लिए
उधार देनेका अधिकार भी नहीं मिलना चाहिए क्योंकि यहाँ इसकी आवश्यकता ही नहीं है।
एकप्रबंधक को वैध आदेश का जानबूझ कर पालन न करने पर अधीनस्थ को सजा देने काअधिकार
होना चाहिए लेकिन साथ ही अधीनस्थ को भी अपनी स्थिति स्पष्ट करने कापर्याप्त अवसर
मिलना चाहिए।
अनुशासन
अनुशासन से
अभिप्राय संगठन के कार्य करने के लिए आवश्यक नियम एवं नौकरीकी शर्तों के पालन करने
से है। फेयॉल के अनुसार अनुशासन के लिए प्रत्येकस्तर पर अच्छे पर्यावेक्ष, स्पष्ट एवं संतोषजनक समझौते एवं दंड
केन्यायोचित विधान की आवश्यकता होती है। माना कि, प्रबंध एवं श्रमिक संघ केबीच समझौता हुआ है
जिसके अनुसार कंपनी को हानि की स्थिति से उबारने के लिएकर्मचारियों ने बिना
अतिरिक्त मजदूरी लिए अतिरिक्त घंटे कार्य करने कासमझौता किया है। प्रबंध ने इसके
बदले में उद्देश्य के पूरा हो जाने परकर्मचारियों की मजदूरी वृद्धि का वायदा किया
है। यहाँ अनुशासन का अर्थ हैकि श्रमिक एवं प्रबंधक दोनों ही अपने-अपने वायदों को
एक दूसरे के प्रतिकिसी भी प्रकार के द्वेष भाव के पूरा करेंगे।
आदेश की एकता
फेयॉल के
अनुसार प्रत्येक कर्मचारी का केवल एक ही अधिकारी होना चाहिए।यदि कोई कर्मचारी एक
ही समय में दो अधिकारियों से आदेश लेता है तो इसे आदेशकी एकता के सिद्धांत का
उल्लंघन माना जाएगा। आदेश की एकता के सिद्धांत केअनुसार किसी भी औपचारिक संगठन में
कार्यरत व्यक्ति को एक ही अधिकारी सेआदेश लेने चाहिए एवं उसी के प्रति उत्तरदायी
होना चाहिए। फेयॉल ने इससिद्धांत को काफी महत्त्व दिया। उसको ऐसा लगा कि यदि इस
सिद्धांत काउल्लंघन होता है तो ‘अधिकार
प्रभावहीन हो जाता है, अनुशासन संकट
में आ जाताहै, आदेश में
व्यवधान पड़ जाता है एवं स्थायित्व को खतरा हो जाता है।’ यहफेयॉल के सिद्धांतों से मेल खाता है। इससे जो
कार्य करना है उसके संबंध मेंकिसी प्रकार की भ्रांति नहीं रहेगी। माना कि एक
विक्रयकर्ता को एक ग्राहकसे सौदा करने के लिए कहा जाता है तथा उसे विपणन प्रबंधक 10 प्रतिशत की छूटदेने का अधिकार देता है। लेकिन
वित्त विभाग का आदेश है कि छूट 5 प्रतिशत
सेअधिक नहीं दी जाए। यहाँ आदेश की एकता नहीं है। यदि विभिन्न विभागों मेंसमन्वयन
है तो इस स्थिति से बचा जा सकता है।
निदेश की एकता
संगठन को सभी
इकाईयों को समन्वित एवं केंद्रित प्रयत्नों के माध्यम सेसमान उद्देश्यों की ओर
अग्रसर होना चाहिए। गतिविधियों के प्रत्येक समूहजिनके उद्देश्य समान हैं उनका एक
ही अध्यक्ष एवं एक ही योजना होनी चाहिए।यह कार्यवाही की एकता एवं सहयोग को
सुनिश्चित करेगा। उदाहरणार्थ एक कंपनीमोटर साईकल एवं कार का उत्पादन कर रही है।
इसके लिए उसे दो अलग-अलग विभागबनाने चाहिए। प्रत्येक विभाग की अपनी प्रभारी योजना
एवं संसाधन होने चाहिए।किसी भी तरह से दो विभागों के कार्य एक दूसरे पर आधारित
नहीं होने चाहिए।
सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों
का समर्पण
फेयॉल के
अनुसार संगठन के हितों को कर्मचारी विशेष के हितों की तुलनामें प्राथमिकता देनी
चाहिए। कंपनी में कार्य करने में प्रत्येक व्यक्ति काकोई न कोई हित होता है। कंपनी
के भी अपने उद्देश्य होते हैं। उदाहरण केलिए, कंपनी अपने कर्मचारियों से प्रतियोगी लागत
(वेतन) पर अधिकतम उत्पादनचाहेगी। जबकि कर्मचारी यह चाहेगा कि उसे कम-से-कम कार्य
कर अधिकतम वेतनप्राप्त हो। दूसरी परिस्थिति में एक कर्मचारी कुछ न कुछ छूट चाहेगा
जैसे वहकम समय काम करे, जो किसी भी
अन्य कर्मचारी को नहीं मिलेगी। सभीपरिस्थितियों में समूह/कंपनी के हित, किसी भी व्यक्ति के हितों का अधिक्रमणकरेंगे।
क्योंकि कर्मचारियों एवं हितोधिकारियों के बड़े हित किसी एकव्यक्ति के हितों की
तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिएविभिन्न हिताधिकारी जैसे कि
स्वामी, अंशधारी, लेनदार, देनदार, वित्तप्रदाता, कर अधिकारी, ग्राहक एवं समाज के हितों का, किसी एक व्यक्तिअथवा व्यक्तियों के एक छोटे
समूह, जो कंपनी पर
दवाब बनाना चाहते हैं किहितों के लिए कुर्बानी नहीं दी जा सकती। एक प्रबंधक इसे
अपने अनुकरणीयव्यवहार से सुनिश्चित कर सकता है। उदाहरण के लिए उसे
कंपनी/कर्मचारियों केबड़े सामान्य हितों की कीमत पर व्यक्ति/परिवार के लाभ के लिए
अपने अधिकारोंके दुरुपयोग के प्रलोभन में नहीं पड़ना चाहिए। इससे कर्मचारियों कीनिगाहों
में उसका सम्मान बढ़ेगा एवं कर्मचारी भी समान व्यवहार करेंगे।
कर्मचारियों को प्रतिफल
कुल प्रतिफल
एवं क्षतिपूर्ति कर्मचारी एवं संगठन दोनों के लिए हीसंतोषजनक होना चाहिए।
कर्मचारियों को इतनी मजदूरी अवश्य मिलनी चाहिए किकम-से-कम उनका जीवन स्तर तर्क
संगत हो सके। लेकिन साथ ही यह कंपनी कीभुगतान क्षमता की सीमाओं में होनी चाहिए।
दूसरे शब्दों में प्रतिफलन्यायोचित होना चाहिए। इससे अनुकूल वातावरण बनेगा एवं
कर्मचारी तथा प्रबंधके बीच संबंध भी सुमधुर रहेंगे। इसके परिणाम स्वरूप कंपनी का
कार्य सुचारूरूप से चलता रहेगा।
केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण
निर्णय लेने
का अधिकार यदि केंद्रित है तो इसे केंद्रीकरण कहेंगे जबकिअधिकार यदि एक से अधिक
व्यक्तियों को सौंप दिया जाता है तो इसे ‘विकेंद्रीकरण’ कहेंगे। फेयॉल के शब्दों में अधीनस्थों का विकेंद्रीकरण
केमाध्यम से अंतिम अधिकारों को अपने पास रखने में संतुलन बनाए रखने कीआवश्यकता है।
केंद्रीकरण की सीमा कंपनी की कार्य परिस्थितियों पर निर्भरकरेगी। सामान्यतः बड़े
संगठनों में छोटे संगठनों की तुलना में अधिकविकेंद्रीकरण होता है। उदाहरण के लिए, हमारे देश में पंचायतों को गाँवों केकल्याण के
लिए सरकार द्वारा प्रदत्त निधि के संबंध में निर्णय लेने एवंउनको व्यय करने के
अधिक अधिकार दिए हैं। यह राष्ट्रीय स्तर पर विकेंद्रीकरणहै।
सोपान शृंखला
किसी भी संगठन
में उच्च अधिकारी एवं अधीनस्थ कर्मचारी होते हैं। उच्चतमपद से निम्नतम पद तक की
औपचारिक अधिकार रेखा को ‘सोपान शृंखला’ कहते हैं।फ्रेयॉल के शब्दों में संगठनों में
अधिकार एवं संप्रेषण की शंृखला होनीचाहिए जो ऊपर से नीचे तक हो तथा उसी के अनुसार
प्रबंधक एवं अधीनस्थ होनेचाहिए।
फेयॉल के
अनुसार औपचारिक संप्रेषण मेंसामान्यतः इस शृंखला का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यदि
कोई आकस्मिक स्थितिहै तो घ सीधे ञ से समतल संपर्क के द्वारा संपर्क साधे सकता है
जैसा चित्रमें दर्शाया गया है। यह छोटा मार्ग है तथा इसका प्रावधान इसीलिए किया
गयाहै कि संप्रेषण में देरी न हो। व्यवहार में आप देखते हैं कि कंपनी में
कोईश्रमिक सीधा मुख्य कार्यकारी अधिकारी से संपर्क नहीं कर सकता। यदि उसेआवश्यकता
है भी तो सभी औपचारिक स्तर अर्थात् फोरमैन अधीक्षक, प्रबंधक, निदेशक आदि को विषय से संबंधित ज्ञान होना
चाहिए। केवल आकस्मिकपरिस्थितियों में ही एक श्रमिक मुख्य कार्यकारी अधिकार से
संपर्क कर सकताहै।
व्यवस्था
फेयॉल के अनुसार, अधिकतम कार्य कुशलता के लिए लोग एवं सामान उचित
समय परउचित स्थान पर होने चाहिए। व्यवस्था का सिद्धांत कहता है कि फ्प्रत्येकचीज
(प्रत्येक व्यक्ति) के लिए एक स्थान तथा प्रत्येक चीज (प्रत्येकव्यक्ति) अपने
स्थान पर होनी चाहिए। य् तत्वतः इसका अर्थ है व्यवस्था। यदिप्रत्येक चीज के लिए
स्थान निश्चित है तो तथा यह उस स्थान पर है तो व्यवसायकारखाना की क्रियाओं में कोई
व्यवधान नहीं पैदा होगा। इससे उत्पादकता एवंक्षमता में वृद्धि होगी।
समता
फेयॉल के
शब्दों में, फ्सभी
कर्मचारियों के प्रति निष्पक्षता कोसुनिश्चित करने के लिए सद्बुद्धि एवं अनुभव की
आवश्यकता होती है। इनकर्मचारियों के साथ जितना संभव हो सके निष्पक्ष व्यवहार करना
चाहिए।प्रबंधकों के श्रमिकों के प्रति व्यवहार में यह सिद्धांत दयाभाव एवं न्यायपर
जोर देता है। फेयॉल यदा-कदा बल प्रयोग को अनियमित नहीं मानता है। बल्किउसका कहना
है कि सुस्त व्यक्तियों के साथ सख्ती से व्यवहार करना चाहिएजिससे कि प्रत्येक
व्यक्ति को यह संदेश पहुँचे कि प्रबंध की निगाहों मेंप्रत्येक व्यक्ति बराबर है।
किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, धर्म, भाषा, जाति, विश्वास अथवा
राष्ट्रीयता आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होनाचाहिए। व्यवहार में हम अवलोकन
करते हैं कि आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियों मेंविभिन्न राष्ट्रीयता के लोग भेदभाव
रहित वातावरण में साथ-साथ काम करते हैं।इन कंपनियों में प्रत्येक व्यक्ति को
उन्नति के समान अवसर प्राप्त होतेहैं। तभी तो हम पाते हैं कि रजत गुप्ता जैसी
भारतीय मूल के मुख्य कार्यकारीअधिकारी मैकिन्से इन्कोर्पाेरेशन जैसी बहुराष्ट्रीय
कंपनी के मुखिया बने।अभी हाल ही में ‘भारत में जन्मे अमेरिकावासी अरुण सरीन ब्रिटेन की
बड़ीटेलीकॉम कंपनी के वोडाफोन लि- के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने हैं।
कर्मचारियों की उपयुक्तता
फेयॉल के
अनुसार फ्संगठन की कार्यकुशलता को बनाए रखने के लिएकर्मचारियों की आवर्त को
न्यूनतम किया जा सकता है। य् कर्मचारियों का चयनएवं नियुक्ति उचित एवं कठोर
प्रक्रिया के द्वारा की जानी चाहिए। लेकिन चयनहोने के पश्चात् उन्हें न्यूनतम
निर्धारित अवधि के लिए पद पर बनाए रखनाचाहिए। उनका कार्यकाल स्थिर होना चाहिए।
उन्हें परिणाम दिखाने के लिएउपयुक्त समय दिया जाना चाहिए। इस संदर्भ में किसी भी
प्रकार की तदर्थताकर्मचारियों में अस्थिरता असुरक्षा पैदा करेगी। वह संगठन को
छोड़नाचाहेंगे। भर्ती, चयन एवं
प्रशिक्षण लागत ऊँची होगी। इसीलिए कर्मचारी केकार्यकाल की स्थिरता व्यवसाय के लिए
श्रेष्ठकर रहती है।
पहल क्षमता
फेयॉल का
मानना है कि, फ्कर्मचारियों
को सुधार के लिए अपनी योजनाओं केविकास एवं उनको लागू करने के लिए प्रोत्साहित करना
चाहिए। पहल क्षमता काअर्थ है- स्वयं अभिप्रेरणा की दिशा में पहला कदम उठाना। इसमें
योजना परविचार कर फिर उसको क्रियांवित किया जाता है। यह एक बुद्धिमान व्यक्ति
केलक्षणों में से एक है। पहल-क्षमता को प्रोत्साहित करना चाहिए लेकिन इसका यहअर्थ
नहीं कि अपने आपको कुछ भिन्न दिखाने के लिए कंपनी की स्थापितरीति-नीति के विरुद्ध
कार्य करें। एक अच्छी कंपनी वह है जिसमें कर्मचारीद्वारा सुझाव पद्धति हैं जिसके
अनुसार उस पहल-क्षमता सुझावों को पुरस्कृतकिया जाता है जिनके कारण लागत/समय में
ठोस कमी आए।
सहयोग की भावना
फेयॉल के
अनुसार, फ्प्रबंध को
कर्मचारियों में एकता एवं पारस्परिक सहयोगकी भावना को बढ़ावा देना चाहिए। प्रबंध
के सामूहिक कार्य को बढ़ावादेना चाहिए, विशेष रूप से बड़े संगठनों में। क्योंकि ऐसा न होने
परउद्देश्यों को प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। इससे समन्वय की भी हानि होगी।सहयोग
की भावना के पोषण के लिए प्रबंधक को कर्मचारियों से पूरी बातचीत में ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ का प्रयोग
करना चाहिए। इससे समूह के सदस्यों मेंपारस्परिक विश्वास एवं अपनेपन की भावना पैदा
होगी। इससे जुर्माने कीआवश्यकता भी न्यूनतम हो जाएगी।
उपर्युक्त
चर्चा से यह स्पष्ट है कि फेयॉल के प्रबंध के 14 सिद्धांतप्रबंध की समस्याओं पर विस्तृत रूप से
लागू होते हैं तथा आज इनका प्रबंध कीसोच पर गहरा प्रभाव पड़ा है। लेकिन जिस बदले
हुए पर्यावरण में आज व्यवसायकिया जा रहा है, उसमें इन सिद्धांतों की व्याख्या बदल गई है।
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