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Friday, 7 October 2016

INDIA TODAY magazine



INDIA TODAY was launched in 1975. And in just a few years, it became the leading news magazine in the country. Now, with editions in five languages, it has become the most widely read publication in India-a position it has held for over a decade-with a circulation of 1.1 million every week and a readership of more than 15 million.

The magazine's leadership is unquestioned, so much so that INDIA TODAY is what Indian journalism is judged by, for integrity and ability to bring unbiased and incisive perspective to arguably the most dynamic, yet perplexing, region in the world. Breaking news and shaping opinion, it is now a household name and the flagship brand of India's leading multi-dimensional media group. INDIA TODAY asks the most difficult questions and provides the clearest answers.

The success of INDIA TODAY in English led to an idea: good journalism should not be restricted by language. In a country with 12 major languages, the non-English readership of hundreds of millions could not and should not be ignored. It was decided to publish INDIA TODAY in the major Indian languages, effectively melding national news with local needs. At present, INDIA TODAY is published in four major Indian languages: Hindi, Tamil, Telugu and Malayalam.

These editions deliver news with the same credibility, incisiveness and authority that has become the hallmark of INDIA TODAY. The international editions were born of the same reasoning.the Diaspora's need for credible information about India. Its four international editions ensure that every week, India reaches out to influential readers in 104 countries around the globe.

80 के दशक में इंडिया टुडे का हिंदी संस्करण बाजार में आ चुका था और उसने हिंदी पट्टी में जबर्दस्त पैठ बनाई थी। वैसे मौलिक विश्लेषण के बजाय अनुवाद आधारित पत्रिका होने की वजह से इंडिया टुडे हिंदी की लगातार आलोचना भी हुई, लेकिन चमक-दमक भरे प्रेजेंटेशन के साथ-साथ अनुवाद में भी मौलिक विश्लेषण का मुलम्मा चढ़ाकर इंडिया टुडे ने हिंदी पट्टी के पाठक वर्ग पर ऐसा कब्जा कर लिया जिसे तोड़ना किसी भी दूसरी समाचार पत्रिका के लिए मुश्किल रहा ।

 80 के दशक में इलाहाबाद से प्रकाशित समाचार पत्रिका माया की भी हिंदी पट्टी पर जबर्दस्त पकड़ थी, लेकिन इंडिया टुडे सबको पीछे छोड़कर आगे निकल गई। इसी की तर्ज पर काफी आगे चलकर अंग्रेजी आउटलुक का भी हिंदी संस्करण प्रख्यात पत्रकार आलोक मेहता के संपादन में 90 के दशक में शुरु हुआ था, लेकिन वो भी वैसी पहचान न बना सका। हालांकि इंडिया टुडे हिंदी के उद्भव ने हिंदी पट्टी में उसके आकार-प्रकार की और भी पत्रिकाओं के प्रकाशन की बुनियाद खड़ी की, जिनमें से बहुतेरी आज भी प्रकाशित हो रही हैं और नई पत्रिकाएं भी आने लगी हैं, लेकिन इंडिया टुडे की जगह लेना उसके जैसी पत्रिकाओं के लिए मुमकिन नहीं हो सका। सरस सलिल और प्रतियोगिता दर्पण जैसी पत्रिकाओं ने इंडिया टुडे और उसके जैसी समाचार पत्रिकाओं को रीडरशिप सर्वे में भले ही पछाड़ा हो, लेकिन ये तो बिल्कुल साफ है कि उनका कंटेंट अलग है और उसके मुताबिक पाठक वर्ग भी अलग है। ऐसे में समाचार पत्रिकाओं से उनकी कोई तुलना हो ही नहीं सकती।

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