सबसे अधिक पढ़ी गई पोस्ट

Showing posts with label वेब. Show all posts
Showing posts with label वेब. Show all posts

Friday, 29 July 2016

नेतृत्व (leadership)

नेतृत्व (leadership)
"नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति सामाजिक प्रभाव के द्वारा अन्य लोगों की सहायता लेते हुए एक सर्वनिष्ट (कॉमन) कार्य सिद्ध करता है।
शासन करना, निर्णय लेना, निर्देशन करना आज्ञा देना आदि सब एक कला है, एककठिन तकनीक है। परन्तु अन्य कलाओं की तरह यह भी एक नैसर्गिक गुण है।प्रत्येक व्यक्ति में यह गुण या कला समान नहीं होती है। उद्योग में व्यक्तिके समायोजन के लिए पर्यवेक्षण (supervision), प्रबंध तथा शासन का बहुतमहत्व होता है। उद्योग में असंतुलन बहुधा कर्मचारियों के स्वभाव दोष से हीनहीं होता बल्कि गलत और बुद्धिहीन नेतृत्व के कारण भी होता है। प्रबंधकअपने नीचे काम करने वाले कर्मचारियों से अपने निर्देशानुसार ही कार्यकरवाता है। जैसा प्रबंधक का व्यवहार होता है, जैसे उसके आदर्श होते हो, कर्मचारी भी वैसा ही व्यवहार निर्धारित करते हैं। इसलिए प्रबंधक का नेतृत्व जैसा होगा, कर्मचारी भी उसी के अनुरूप कार्य करेंगे।
नेतृत्व संगठनात्मक संदर्भों के सबसे प्रमुख पहलुओं में से एक है। हालांकि, नेतृत्व को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण रहा है।

नेतृत्व का अर्थ

कभी-कभी यदि कोई व्यक्ति शक्ति के आधार परदूसरों से मनचाहा व्यवहार करवा लेने की क्षमता रखते हो तो उसे भी नेतृत्वके अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। वास्तविकता यह है कि नेतृत्व कातात्पर्य इनमें से किसी एक व्यवहार से नहीं है बल्कि नेतृत्व व्यवहार का वहढंग होता है जिसमें एक व्यक्ति दूसरों के व्यवहार से प्रभावित न होकर अपनेव्यवहार से दूसरों को अधिक प्रभावित करता है। भले ही यह कार्य दबाव द्वाराकिया गया है अथवा व्यक्तिगत सम्बंधी गुणों को प्रदर्शित करके किया गया हो।

नेतृत्व की विशेषताएं

नेतृत्व की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
  • 1. नेतृत्व वह विशेष व्यवहार है जिसमें प्रभुत्व, सुझाव तथा आग्रह का सम्मिश्रण होता है।
  • 2. नेतृत्व के लिए दो पक्ष नेता और अनुयायी का होना अनिवार्य है। नेता अनुयायियों के व्यवहार को अधिक सीमा तक प्रभावित करता है।
  • 3. नेतृत्व सम्बंधित प्रभाव दबाव युक्त नहीं होता। इसे साधारण तथास्वेच्छापूर्वक ग्रहण किया जाता है। दबाव केवल नेता के नैतिक प्रभाव काहोता है।
  • 4. नेतृत्व अनियोजित न होकर विचारपूर्वक अनुयायियों के व्यवहारों को निश्चित दिशा में मोड़ दिया जाता है।
  • 5 नेतृत्व के द्वारा व्यवहारों में किया जाने वाला परिवर्तन उत्तेजना से प्रभावित होता है।
  • 6. नेतृत्व की एक विशेष परिस्थिति (क्षेत्र) होती है। इस प्रकार एक हीव्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से नेतृत्व से प्रभावित हो सकताहै।

नेतृत्व का महत्त्व

प्रत्येक समूह के लिए नेतृत्व की आवश्यकता होती है। चाहे वह राजनैतिक होया सामाजिक, धार्मिक हो या औद्योगिक। कोई भी समूह बिना नेतृत्व केआस्तित्वहीन होता है। औद्योगिक क्षेत्र में मालिक या कर्मचारी ही नेता काचयन करते है। होना यह चाहिए कि मालिक और कर्मचारी दोनों मिलकर नेता काचुनाव करें। इस प्रकार की आदर्श चयन प्रणाली के द्वारा मालिक और कर्मचारीके बीच के छोटे-छोटे झगड़ों को रोका जा सकता है। इससे समस्याओं का समाधानभी जल्दी हो सकता है। मालिकों तथा प्रबंधकों द्वारा चुना व्यक्ति अधिकस्वामि-भक्ति रखता है और कर्मचारियों के हितों को उपेक्षित कर सकता है।इसके विपरीत कर्मचारियों द्वारा चुना व्यक्ति कर्मचारियों के प्रतिउत्तरदायी होता है। इस प्रकार नीति संघर्ष बढ़ने लगता है। इसलिए प्रभावशालीनेतृत्व के लिए आवश्यक है कि मालिक और कर्मचारी दोनों मिलकर योग्य, अनुभवीऔर व्यवहार कुशल व्यक्ति को नेता चुनें। नेतृत्व को तीन स्तर पर तीन वर्गोमें बांटा गया है-
() उच्चतम स्तर का प्रबंध (Top management),
() मध्यम स्तर का प्रबंध (Middle management),
() सम्मुख व्यक्ति का प्रबंध (Front line management)
प्रथम स्तर के प्रबंध में उच्च श्रेणी के बिग बॉस (Big Boss), मध्यमस्तर में केवल बॉस (Boss) तथा तीसरी श्रेणी में फोरमैन या सुपरवाइजर आतेहै। ये तीनों प्रकार के नेता भिन्न-भिन्न स्तरों पर कार्य करते है। इनकेउत्तरदायित्व व कर्त्तव्य भी भिन्न होते है। नेता को अपने पद पर बने रहनेके लिए आवश्यक होता है कि वह अपने समूह के प्रत्येक पक्ष पर संबंध बनाएरखने में समर्थ हो। इसलिए सुचारू कार्य के लिए यह आवश्यक होता है कि नेताअपने समूह के कर्मचारियों से हमेशा निकट के संबंध बनाए रखें, इससे नेता औरकर्मचारियों के बीच तनाव की स्थिति नहीं आएगी और न ही कोई अन्य समस्याएंउत्पादन को प्रभावित करेंगी।

नेतृत्व-प्रशिक्षण

यदि निरीक्षक प्रशिक्षित होता है तो कर्मचारियों से समायोजन स्थापितकरने में आसानी होती है। इसलिए नियुक्ति पद निरीक्षक को प्रशिक्षित कियाजाना चाहिए। प्रशिक्षित और अनुभवी निरीक्षक एक कुशल नेता ही नहीं वरन् वहकठिन परिस्थितियों में भी समस्या का समाधान किर सकता है। ऐसा कुशलजनतांत्रिक नेता कर्मचारियों के साथ समझौते या मन-मुटाव के समय अपनीप्रतिष्ठा को आगे नहीं आने देता। वह अपने संवेगों पर नियंत्रण करता है औरनिष्पक्ष व्यवहार करता है। सज्जन, ईमानदार व मेहनती कर्मचारियों को महत्वदेता है, उन कर्मचारियों को उत्पीड़न से बचाता है। कर्मचारियों को अधिक सेअधिक सुविधाएं प्रदान करता है तथा
  • उसे आवश्यकता से अधिक भावुक, संवेदनशील और संवेगात्मक नहीं होना चाहिए।
  • विचार-विमर्श में निपुणता तथा तर्कपूर्ण ढंग से कर्मचारियों से अपने विचारों को स्वीकार करा लेने की क्षमता हो।
  • कर्मचारी और मालिक के बीच तनाव की स्थिति पैदा होने पर उसे दोनों कीमध्यस्थता करते हुए समस्याओं के समाधान हेतु पर्याप्त योग्यता होनी चाहिए।
  • कर्मचारियों के विचारों में तालमेल बिठाने की योग्यता हो।
  • अधीनस्थ कर्मचारियों को यह महसूस कराने में सक्षम हो कि कर्मचारी उसे अपना ही एक भाग समझे।

उद्योग में सफल नेता के गुण

क्रेग एवं चार्ट्स ने एक सफल नेता ने निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक माना है-
1. समर्थता अर्थात् नेता में यह कौशल हो कि वह कर्मचारी से काम ले सके।
2. नेता में ऐसे गुण होने चाहिए जिससे कर्मचारी उसको सम्मान दे सके।
3. नेता का कर्मचारियों से पक्षपात रहित व्यवहार होना चाहिए।
4. नेता को प्रशिक्षित होना चाहिए, अनुभवी होना चाहिए जिससे वह कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित कर सके।
5. कर्मचारियों के साथ वादिता रखने वाला हो तथा किसी भी कर्मचारी से दूसरे कर्मचारी की बुराई न करें।
6. उसमें सरल आत्मविश्वास होना चाहिए, ताकि विषय प्रतिस्थितियों में भी वह अपने को कमजोर न समझे।
7. नेता में अपने क्रोध को नियंत्रित करने की क्षमता होनी चाहिए।
8. उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कर्मचारी उसके आदेशों का पालन कर रहे है या नहीं।
9. अथीनस्थ कर्मचारियों के उचित को भी मानने वाला तथा अपनी योग्यता और सुझावों द्वारा कर्मचारियों से कार्य लेने की क्षमता हो।
10. बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से कर्मचारियों को डांटने की क्षमता तथा समय आने पर उनकी प्रशंसा करने की योग्यता हो।
11. परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता हो।
ब्लम (Blum) ने पांच सिद्धातों का वर्णन किया है। उनके अनुसार सफल नेता को निम्न पाँच सिद्धातों अन्तर्गत कार्य करना चाहिए-
1. कार्य का उचित मूल्याकंन
2. अधिकारियों का पर्याप्त मात्रा में प्रतिनिधित्व।
3. समस्त कर्मचारियों के साथ समान व उचित व्यवहार।
4. जब कभी कर्मचारी मिलना चाहे तो उसे अपना समय देना।
5. कर्मचारियों की समस्याओं का प्रबंधकों और मालिकों से विस्तार में विचार-विमर्श करना।

नेतृत्व के नियम

उद्योग में नेता की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने व्यवहारमें कुछ मूलभूत नियमों को भी शामिल करे। इससे कर्मचारी और नेता के बीचसन्तुलन बना रहता है। कुछ नियम इस प्रकार हैं-
समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुनना- कर्मचारियों की अपनी समस्याएंहोती हैं जिन्हें नेता के सम्मुख रखते हैं। ऐसे में यदि नेता उत्तेजित होजाता है तो कर्मचारी अपनी बात को पूरा नहीं बता पाता है। इससे कर्मचारीहतोत्साहित हो जाता है। इसलिए कर्मचारी को बात करते समय बीच में भी नहींटोकना चाहिए या उसे रोकना नहीं चाहिए। इससे कर्मचारी के मन में उपेक्षा काभाव पैदा होता है। इसके विपरीत कर्मचारी की बातों को शांतिपूर्वक एवंधैर्यता से सुनना चाहिए। इससे कर्मचारी का विश्वास अपने नेता के प्रति बनारहता है। वे नेता की अवहेलना भी नहीं करते हैं।
सोच समझकर निर्णय लेना - नेता को चाहिए कि वह कोई भी निर्णय लेनेमें जल्दबाजी न करे। सोच-समझकर लिया हुआ निर्णय बाधक नहीं बनता है। इससेकई समस्याओं को उचित तरीके से सुलझाया जा सकता है।
कर्मचारियों को हतोत्साहित न करना - यदि नेता कर्मचारियों कोहतोत्साहित करेगा तो निश्चित ही उसका प्रभाव उद्योग में पड़ेगा।कर्मचारियों को समय-समय पर उत्साहित करना चाहिए ताकि कर्मचारी अपने कार्यके प्रति जागरूक रह सकें। यदि कर्मचारी अपनी समस्या लेकर आता है तो भी उसेडांट-फटकार नहीं देनी चाहिए। वरन् उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए।
नेता कम से कम संवेदनशील व संवेगशील हो - उद्योग में प्रायः नेताके सामने सम तथा विषम परिस्थिति आती रहती है। यदि नेता इन परिस्थितियोंमें ही अपने को समाहित कर ले तो वह उद्योग के लिए अच्छा नहीं होगा। नेता कीशिकायत अधिकतर संवेगपूर्ण होती है। ऐसे में यदि नेता स्वयं पर नियंत्रण नरखकर कर्मचारियों के साथ संवेगपूर्ण ढंग से व्यवहार करे तो समस्या और भीउलझ सकती है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी पर आवश्यकता से अधिक संवेदना करताहै तो भी कर्मचारी इसका लाभ उठा सकते हैं। इसलिए नेता को विवेकपूर्णव्यवहार करना चाहिए।
नेता स्वयं वाद-विवाद से बचा रहे - प्रायः देखा जाता है किवाद-विवाद वैमनस्यता पैदा करता है। इसलिए नेता को कर्मचारियों के साथवाद-विवाद से बचना चाहिए। अधिक वाद-विवाद से कर्मचारी भी अपने को असुरक्षितमहसूस करने लगते हैं। कर्मचारियों को आज्ञाएं दी जा सकती हैं। उन्हेंथोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इससे कर्मचारी एक अतिरिक्त बोझ समझनेलगता है।

कर्मचारियों की प्रशंसा करना- कर्मचारी उद्योग में अपनीमहत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। नेता को चाहिए कि वह समय आने पर उसकीप्रशंसा करे। प्रशंसा सबके सामने हो। इससे कर्मचारी प्रसन्नता का अनुभवकरता है। उसका मनोबल इससे बढ़ता है। वह अपने कार्य को मेहनत तथा लगन सेकरने लगता है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी की बुराइयों को सबके सामने कहा जायतो कर्मचारी की स्थिति तनावपूर्ण होगी। उसका प्रभाव उद्योग पर पड़ेगा।इसलिए नेता कर्मचारी की बुराइयों को एकान्त में कहे इससे कर्मचारी का अहमसुरक्षित रहता है।

Thursday, 25 February 2016

भारत में साइबर पत्रकारिता का विकास




सूचना से अधिक महत्वपूर्ण सूचनातंत्र है। माध्यम ही संदेश है नामक पुस्तक में प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैक्लूहन की लिखी उक्त उक्ति आज के दौर में नितान्त प्रासंगिक और समसामयिक है। यह सार्वकालिक सत्य है कि सूचना में शक्ति है। पत्रकारिता तो सूचनाओं का जाल है, जिसमें पत्रकार सूचनाएँ देने के साथ-साथ सामान्य जनता को दिशा निर्देश देता है। उनका पथ प्रदर्शन करता है। एक प्रकार से कहा जाए तो पत्रकारिता वह ज्ञान चक्षु है जिसके माध्यम से पत्रकार अपने विचारों को व्यक्त करता है।
 
प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों के बारे में जानने की खास दिलचस्पी होती है और इसके लिए माध्यम सदा ही उपलब्ध रहे हैं। पहले अखबार, फिर टी. वी. और अब इंटरनेट। आज खबरों को जानने का टेस्ट बदल गया है। पहले सिर्फ खबरें जान लेना महत्वपूर्ण होता था, बाद में उनके बहुआयामी पक्ष को जानने की ललक बढ़ी और आज तो खबरों का पोस्टमार्टम ही शुरु हो गया है। निश्चित रुप से इस प्रवृत्ति ने कहीं न कहीं लीक से हटकर कुछ नया करने को बाध्य किया है। इसका एक ताजातरीन उदाहरण है- वेब पत्रकारिता। एक उंगली की क्लिक और पूरी दुनिया आपके सामने। वह भी आपकी अपनी क्षेत्रीय भाषा में। एक जिज्ञासु मन को और क्या चाहिए। उसमें भी अगर टी. वी. और अखबार का आनंद बिना रिमोट का बटन दबाए मिल जाए या फिर अखबारों के पन्ने पलटकर शेष अगले पृष्ठ पर देखने से मुक्ति मिल जाए तो उपभोगवादी समाज के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। शायद आरामतलबी के आदी हो चुके अभिजात्य वर्ग के लिए यह एक वरदान है। वेब पत्रकारिता आज मीडिया का सबसे तेजी से विकसित होने वाला माध्यम बन गया है। अखबारों की तरह वेब पत्र और पत्रिकाओं का जाल अंतर्जाल पर पूरी तरह बिछ चुका है। छोटे बड़े हर शहर से वेब पत्रकारिता संचालित हो रही है। छोटे बड़े सभी शहरों के प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी वेब पर हैं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है। हालांकि इसे अभी और आगे जाना है।
 
आज मीडिया के पूरे बाजार की नजर हिंदी वेब पत्रकारिता पर है। एक अध्ययन के अनुसार योरोप के लोग सही खबरों के लिए समाचार चैनलों और समाचार पत्रों पर कम, ब्लॉगरों पर अधिक विश्वास करते हैं क्योंकि ब्लॉग के माध्यम से आप न सिर्फ दूसरों की विचारधारा से परिचित होते हैं वरन उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं और अपने ब्लॉग के माध्यम से विश्व के कोने-कोने तक अपनी विचारधारा और लेखनी से लोगों को परिचित करा सकते हैं।
इसमें दोराय नहीं कि जितना अधिक पढ़ा जाए उतनी ही बहतर लेखन क्षमता का विकास होता जाता है। अंतरजाल और चिट्ठे इसमें भरपूर योगदान कर रहे हैं। हर विषय पर सामग्री प्राय: मुफ्त में उपलब्ध है।
 
मुद्रित पत्रिकाओं और साहित्य का दायरा आज अंतरजाल के सामने बहुत सीमित हो गया है क्योंकि इनका एक विशिष्ट पाठक वर्ग है किंतु अंतरजाल की कोई भौगोलिक सीमाएँ नहीं हैं और यह विश्व के कोने कोने में लगभग छपते ही तुरंत उपलब्ध हो जाता है। शायद यही इसकी जीत का मार्ग भी प्रशस्त कर रहा है। हर क्षण कुछ न कुछ नया जुड़ रहा है। अनेक पत्रिकाएँ हैं जो एक स्तरीय सामग्री संयोजित कर पठकों तक ला रही हैं। अंतरजाल पर हिंदी सामग्रियों की संख्या और स्तर दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं। हिंदी साहित्य में सूचनाओं का यह माघ्यम प्राण फूँक सकता है। इस भागती दौड़ती दुनिया में सभी के पास समय का अभाव है। किसी को इतनी फुर्सत नहीं कि वह पहले बाजार जाकर पसंद की पत्रिका जगह जगह ढूँढे और फिर उसे खरीदे। आज इंटरनेट पर अभिव्यक्ति, अनुभूति, प्रवक्ता और सृजन गाथा जैसी ऑनलाइन पत्रिकाएँ हैं जिनसे कविताएँ, गज़लें, काहानियाँ आदि सभी विषयों पर प्रचीनतम और नवीनतम दोनों प्रकार की सामग्री बहुतायत में मिल जाती है।
तेजी से बदलती दुनिया, तेज होते शहरीकरण और जड़ों से उखड़ते लोगों व टूटते सामाजिक ताने बाने ने इंटरनेट को तेजी से लोकप्रिय किया है। कभी किताबें, अखबार और पत्रिकाएँ दोस्त हुआ करती थीं किन्तु आज का दोस्त इंटरनेट है क्योंकि यह दुतरफा संवाद का भी माध्यम है। लिखे हुए की तत्काल प्रक्रिया ने इसे लोकप्रिय बना दिया है। आज का पाठक सब कुछ इंन्स्टेंट चाहता है। इंटरनेट ने उसकी इस भूख को पूरा किया है। वेबसाइट्स ने दुनिया की तमाम भाषाओं में हो रहे काम और सूचनाओं का रिश्ता और संपर्क भी आसान बना दिया है। एक क्लिक पर हमें साहित्य और सूचना की एक वैश्विक दुनिया की उपलब्धता क्या आश्चर्य नहीं है। नयी पीढ़ी आज ज्यादातर सूचना या पाठय सामग्री की तलाश में वेबसाइट्स पर विचरण करती है।
 
भारत जैसे देश में जहाँ साहित्यिक पत्रिकाओं का संचालन बहुत कठिन और श्रमसाध्य काम है वहीं वेब पर पत्र-पत्रिका का प्रकाशन सिर्फ आपकी तकनीकी दक्षता और कुछ आर्थिक संसाधनों के माध्यम से जीवित रह सकता है। यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि वेब पत्रिका का टिका रहना उसकी सामग्री की गुणवत्ता पर निर्भर करता है, न कि विपड़न रणनीति पर। जबकि मुद्रित पत्रिकाएँ और अखबार अपनी विपड़न रणनीति और अर्थ प्रबंधन के बल पर ही जीवित रह पाते हैं।
अखबारों के प्रकाशन में लगने वाली बड़ी पूंजी के कारण उसके हित और सरोकार निरंतर बदल रहे हैं। इस दृष्टिकोण से भी इंटरनेट ज्यादा लोकतांत्रिक दिखता है। वेबसाइट बनाने और चलाने का खर्चा भी कम है और ब्लॉग तो नि:शुल्क है ही। यहाँ एक पाठक खुद संपादक और लेखक बनकर इस मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। स्वभाव से ही लोकतांत्रिक माध्यम होने के नाते संवाद यहाँ सीधा और सुगम है। भारतीय समाज में तकनीक को लेकर हिचक के कारण वेब माध्यम अभी इतने प्रभावी नहीं दिखाई देते परंतु यह तकनीक सही अर्थों में निर्बल का बल है। इस तकनीक के इस्तमाल ने एक अंजाने से लेखक को भी ताकत दी है जो अपनी रचनाशीलता के माध्यम से अपने दूरस्थ दोस्तों को भी उससे जोड़ सकता है। वेब पत्रकारिता करने वालों का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है। उनकी खबर एक पल में सारी दुनिया में पहुंच जाती है, जो कि अन्य समाचार माध्यमों के द्वारा संभव नहीं है। मीडिया का लोकतंत्रीकरण करने में वेब पत्रकारिता की मुख्य भूमिका दिखई देती है। विकसित तकनीक की उपलब्धता के कारण वेब पत्रकारिता को नित नये नये आयाम मिल रहे हैं। पहले केवल टेक्स्ट ही उपलब्ध हो पाता था परंतु अब चित्र, वीडियो व ऑडियो आदि भी बड़ी आसानी से विश्व के किसी भी कोने में भेजे जा सकते हैं।
 
एक सीमित संसाधन वाला व्यक्ति भी हाई स्पीड सेवाओं को आसानी से प्राप्त कर लेता है। अंतर्जाल पर उपलब्ध साहित्य और पत्रिकाओं को कहीं भी देखा जा सकता है। यहाँ तक कि काम के बीच बचे खाली समय का इस्तेमाल भी इस तरह से बखूबी हो सकता है जबकि मुद्रित पत्रिकाओं को साथ में लेकर चलना हर वक्त संभव नहीं होता।
 
जहाँ तक वेब पत्रकारिता में चुनौतियाँ और संभावनाओं का सवाल है, तो इसका भविष्य उज्ज्वल है और इसमें विकास की प्रबल संभावनाएँ हैं। देश में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है और शहरीकरण तेजी से हो रहा है। साथ ही तकनीक के विकास ने आज शहरों में हर घर में अपनी पहुंच बना ली है। तकनीक के लिए रोने वाला देश अब भारत नहीं रहा। कंप्यूटर, लैपटॉप, पामटौप घर घर की मूल आवश्यकता हो गयी है। तकनीक का रोना कहीं नहीं है। रोना उस पहल का है जहाँ अंतर्जाल भी हिंदी पत्रकारिता का इस्तंभ बन कर निकले।
 
आज अखबारों की तरह वेब पत्र और पत्रिकाओं का जाल अंतर्जाल पर पूरी तरह बिछ चुका है। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता हे कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है, हालांकि समय अभी शेष है और इसे अभी बहुत दूर जाना है। भारत में अभी भी वेब पत्रकारिता की पहुंच प्रथम पंक्ति में खड़े लोगों तक ही सीमित है। धीरे धीरे मध्यम वर्ग भी इसमें शामिल हो रहा है। जहाँ तक अंतिम कतार में खड़े लोगों तक पहुंचने की बात है तो अभी यह बहुत दूर है।
भारत में वेब पत्रकारिता का विकास तो हो रहा है लेकिन कुछ समस्याएँ इसके तेजी से विकसित होने में आड़े आ रही हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके लिए एक कंप्यूटर और इंटरनेट सेवा का होना आवश्यक है और इन पर कए अच्छी खासी लागत आती है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गाँवों में रहता है। शहरी बाजार की तुलना में ग्रामीण बाजार बहुत बड़ा है लेकिन गाँवों के समुचित विकास और पिछड़ेपन की वजह यहाँ का आर्थिक संकट है। साथ ही भारत में बिजली की समस्या गंभीर है। इसकी वजह से साइबर कैफे ठीक से कार्य नहीं कर पाते और लोग इसका समुचित लाभ नहीं ले पाते। वेब पत्रकारिता का सबसे ज्यादा फायदा विदेशों में रहने वाले लोग उठा रहे हैं। हिंदी फॉन्ट की समस्या भी हिंदी वेब पत्रकारिता के विकास को धीमा कर रही है। इसी समस्या की वजह से हिंदी ऑनलाइन वेब पत्रकारिता देर से शुरु हो पायी। हालांकि अब लगभग सभी ई अखबार अपने अपने संसकरण के साथ डाउनलोड करने के लिए फॉन्ट भी देने लगे हैं।
 
वेब पत्रकारिता के मार्ग में एक समस्या अलग से टीम न होने की भी है जिसकी वजह से मौलिकता का ईभाव रहता है और खबरें अपडेट नहीं हो पातीं। वेब पत्रकारिता को व्यापक बनाने के लिए आवश्यक है कि इसके लिए अलग से रिपोर्टर रखे जाएँ जो ऑनलाइन रिपोर्ट फाइल तैयार करें। वेब पत्रकारिता को स्थायी रूप से स्थापित करने के लिए इसमें मौलिकता का होना अति आवश्यक है।
इन कतिपय कमियों के बावजूद इतना निश्चित है कि आने वाले दिनों में वेब पत्रकारिता को वह सम्‍मान हासिल होगा जो प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने पाया है। वेब पत्रकारिता जो व्यवहार में प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक दोनों पत्रकारिताओं को समेटे हुए है और जिसकी गति के आगे बाकी सारी तकनीकें कहीं नहीं ठहरतीं, अन्य पत्रकारिताओं के लिए एक चुनौती से कम नहीं है। इसके विकास की गति बताती है कि जल्दी ही यह बाकी माध्यमों को पीछे छोड़ देगी। हाँ, इतना अवश्य है कि जहाँ कंप्यूटर या इंटरनेट की सुविधा ही न हो, बिजली या वैसी उर्जा की व्यवस्था न हो, मॉडम न हो वहाँ यह प्रणाली नहीं जा सकती। पर जहाँ ये सुविधाएँ हैं वहाँ वेब पत्रकारिता के लिए अलग से कुछ ज्यादा करने की जरुरत नहीं होती। एक बार ये सुविधाएँ मिल जाने पर काम इतना सस्ता, सुविधाजनक ओर तेज होता है कि अन्य माध्यमों पर जाने की इच्छा ही नहीं होती।

 वेब पत्रकारिता में संभावनाएँ इस दृष्टि से और भी प्रबल हो जाती हैं कि प्रिन्ट मीडिया की किसी भी खबर के लिए अखबार में कम से कम आठ घन्टे तक समाचारों के लिए इंतजार करना पड़ता है, दूसरी ओर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में समय को लेकर कोइ पाबंदी नहीं है। ऐसे में समय और उपलब्धता के साथ ही तात्कालिकता के लिहाज से मीडिया का यह माध्यम ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।
 
और, अभी चाहे मात्र प्रसार पाने की अभिलाषा हो या इस नये धंधे में उतरने की संभावनाएँ परखने की इच्छा हो, आज शायद ही कोइ अखबार, पत्रिका, रेडियो या टी. वी. चैनल होगा जो वेब पर उपलब्ध न हो और वह भी लगभग मुफ्त। टी. वी. पर विचार पक्ष कमजोर पड़ जाता है और प्रिन्ट में दृश्य श्रव्य की अनुपस्थिति जैसी कमियाँ खटकती हैं लेकिन वेब माध्यम इन दोनों ही कमियों को एक साथ पूरा करता है। यह पढ़ने की सामग्री भी दे सकता है और चलती तस्वीरें और आवाज भी। इसमें पाठक या दर्शक की भगीदारी किसी भी अन्य माध्यम की तुलना में ज्यादा होती है। इसमें काइ संदेह नहीं कि वेब पत्रकारिता समाचार माध्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आ रही है, खासकर मुद्रित माध्यमों के लिए। हो सकता है कि इलेक्ट्रोनिक माध्यम मुद्रित माध्यमों को बहुत अधिक नुकसान न पहुंचा पाये हों लेकिन यह माध्यम मुद्रित व इलेक्ट्रोनिक दोनों के लिए चुनौती साबित हो रहा है। जिस तरह से वेब पत्रकारिता में राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ निवेश कर रही हैं और वेब पत्रकारिता ने जिस तरह अपनी प्ररंभिक अवस्था में ही अपनी खबरों को विशिष्ट रूप देना प्ररंभ कर दिया है वह परंपरागत माध्यमों के लिए खतरे की घंटी है। इसका उदाहरण तहलका डॉट कॉम की मैच फिक्सिंग और रक्षा सौदों में घूसखोरी की कवरेज को कहा जा सकता है। अभी तक विशिष्ट समाचारों के लिए इलेक्ट्रोनिक माध्यम भी अखबारों आदि पर निर्भर थे लेकिन अब विशेष खबरों के लिए आम पाठक वर्ग तथा परंपरागत माध्यम वेब पत्रकारिता के मोहताज हो जायेंगे।
 
संक्षेप में आज के आपाधापी के युग में रफ्तार का बहुत महत्व है और वेब पत्रकारिता उस पैमाने पर खरी उतर रही है। वो पाठकों को हर जानकारी उस जगह और उस वक्त सुलभ कराती है जिस जगह और जिस वक्त वे उसकी मांग करते हैं। इस प्रकार वेब पत्रकारिता अन्य माध्यमों को सशक्त चुनौती दे रही है। उसके विकास की अपार संभावनाएँ हैं। वस्तुत: वेब पत्रकारिता ने वसुधैव कुटुम्बकम्के नारे को चरितार्थ कर दिया है।