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Tuesday 10 May 2016

फोटो फीचर

फीचर का एक रूप फोटो फीचर भी है, जिसमें फीचर अपने असली रूप में प्रकट होता है. यहाँ शब्द कम होते हैं, उनकी जगह सुन्दर छायाचित्र होते हैं. लेकिन चित्रों को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त भी करना होता है. जहां हम फीचर से यह अपेक्षा करते हैं कि उसमें शब्दों के जरिये किसी व्यक्ति, स्थान या परिस्थिति का चित्रण किया गया हो, वहीं फोटो फीचर में चित्र पहले से ही उपलब्ध होते हैं. जो रिक्त स्थान रह जाते हैं, उन्हें ही शब्दों के जरिये भरना होता है. इसलिए यहाँ अत्यंत सुन्दर और प्रासंगिक शब्दों की जरूरत होती है. यहाँ हमारे पास शब्दों के लिए जगह बहुत ही कम होती है. कई बार कैप्शन या चित्र परिचय की तरह से विवरण प्रस्तुत करना होता है. इसलिए यहाँ भाषा-शैली की विशेष महत्ता है. सुन्दर चित्रों के बीच असुंदर शब्द नहीं चल सकते.

फोटो खींचते समय ध्यान रखें ये बातें:

(1) Clean The Lens :-
आपका स्‍मार्टफोन कभी हाथ में रहता है, तो कभी पॉकेट में. जिसके चलते यह काफी गंदा हो जाता है. हालांकि इसका सबसे ज्‍यादा असर कैमरे के लेंस पर पड़ता है. फोन को बार-बार हाथ में लेने पर लेंस में कुछ फिंगरप्रिंट आ जाते हैं, जोकि फोटो क्‍वॉलिटी को इफेक्‍ट करता है. अब अगर आप एक अच्‍छी और बेहतरीन फोटो खींचना चाहते हैं, तो लेंस को पहले साफ कर लें. लेंस गंदा रहने पर यह लाइट को ब्‍लॉक कर देता है. जिसके चलते फोटो ब्‍लर हो सकती है.

(2) Set The Focus :-
किसी फोटो को खींचने में फोकस का रोल सबसे अहम होता है. सब्‍जेक्‍ट की फोटो लेते समय, आपको यह सुनिश्‍िचत करना होगा कि कैमरा शॉर्प फोकस में रहे. इसके लिए स्‍क्रीन पर एक येलो स्‍क्‍वॉयर दिखाई देगा, जिसे टैप करते ही फोकस प्‍वॉइंट कंफर्म हो जाएगा. हालांकि अगर आपका सब्‍जेक्‍ट मूव कर रहा है, तो आपको शॉअ लेने से तुरंत पहले ही फोकस प्‍वॉइंट सेट करना होगा.

(3) Adjust Exposure Manually :-
एक बार फोकस प्‍वॉइंट सेट कर देने के बाद किसी सब्‍जेक्‍ट की फोटो आसानी से खींची जा सकती है. वहीं आप एक्‍सपोजर चाहते हैं, तो इसका ऑप्‍शन भी स्‍क्रीन पर उपलब्‍ध होता है. एक्‍सपोजर का सीधा मतलब यह होता है, कि इमेज कितनी ब्राइट और डॉर्क होगी. बताते चलें कि एक्‍सपोजर सेट करने से पहले फोकस प्‍वॉइंट क्‍लीयर करना कभी भी अच्‍छा नही माना जाता है. इससे फोटो खराब हो सकती है.

(4) Don’t Use The Zoom :-
आपने अक्‍सर देखा होगा कि, जब सब्‍जेक्‍ट दूर होता है तो उसकी फोटो लेने पर कुछ लोग स्‍क्रीन पर अपनी दो अंगुलियों से जूम करके फोटो खींच लेते हैं. यह तरीका गलत होता है. आपको बता दें कि यह डिजिटल जूम होता है न कि ऑप्‍टिकल जूम. इसके चलते जब इमेज क्रॉप की जाती है, तो उसकी इमेज क्‍वॉलिटी खराब हो जाती है. अब ऐसे में कभी भी दूर स्‍िथत सब्‍जेक्‍ट की फोटो लेना हो, तो उसके नजदीक चले जाएं और अगर नहीं जा सकते तो नॉर्मल मोड में ही फोटो खींच लें.

(5) Keep Your Camera Steady :-
फोटोग्राफी करने का यह नियम सबसे महत्‍वपूर्ण माना जाता है. किसी भी सब्‍जेक्‍ट की फोटो लेते समय आपका कैमरा स्‍िथर होना चाहिए. खासतौर पर लो लाइट या रात में फोटो खींचना हो, तो इस बात का ज्‍यादा ध्‍यान रखना होता है. कैमरे में अगर जरा भी मूवमेंट हुई तो फोटो ब्‍लर हो सकती है. ऐसे में फोटो खींचते समय हड़बड़ाहट न करें, शांत और स्‍िथर होकर सब्‍जेक्‍ट पर फोकस्‍ड रहें.

(6) Use The Rule Of Thirds :-
जितने भी प्रोफेशनल फोटोग्राफर्स होते हैं, उनके लिए Rule Of Third सबसे महत्‍वपूर्ण होता है. इस नियम के मुताबिक, जिसमें दो horizontal लाइनें और दो vertical लाइनें होती हैं और यह फ्रेम को 9 बॉक्‍सेस में डिवाइड कर देती हैं. ऐसे में सब्‍जेक्‍ट को इन्‍हीं दोनों लाइनों के पास रखना होता है, जहां यह दोनों लाइनें मिलती हैं. यह एक प्रोफेशनली तरीका होता है, जिससे फोटो की खूबसूरती बढ़ जाती है.

(7) Use Leading Lines :-
अच्‍छी फोटोग्राफी के लिए लीडिंग लाइन बहुत ही यूजफुल टूल है. लीडिंग लाइन किसी भी फोटो के सब्‍जेक्‍ट को उभार देती है. इमेज में जो मेन सब्‍जेक्‍ट होता है, उसको हाईलाइट करने में लीडिंग लाइन काफी मददगार साबित होती हैं.

(8) Shoot From Different Perspectives :-
कई बार ऐसा होता है कि, एक प्रोफेशनल कैमरे से उतनी अच्‍छी फोटो नहीं आ सकती, जितनी कि स्‍मार्टफोन से. ऐसे में स्‍मार्टफोन से आप डिफरेंट एंगल से फोटो खींच सकते हैं. जोकि काफी खास होता है.

(9) Watch Out For Distracting Backgrounds :-
किसी फोटो की खूबसूरती तब बढ़ती है, जब उसके आस-पास की चीजें बेहतर ढ़ंग से व्‍यवस्‍िथत हों. अगर आपके सब्‍जेक्‍ट का बैकग्राउंड डिस्‍ट्रेक्‍िटव हो, तो इमेज क्‍वॉलिटी उतनी बेहतर नहीं बन पाएगी.

(10) Take Multiple Shots :-
किसी सब्‍जेक्‍ट की फोटो लेने पर उसके मल्‍टीपल शॉट लेने चाहिए, ताकि बाद में सेलेक्‍शन में आसानी रहे. अगर आप एक ही सब्‍जेक्‍ट के अलग-अलग तरीके से शॉट लेंगे, तो फोटो क्‍वॉलिटी बेहतर हो जाएगी.

Wednesday 4 May 2016

सीडी-रोम

सीडी-रोम दिखने में ऑडियो सीडी के समान लगती है।
सीडी-रोम में भण्डारण किये गए डेटा को आसानी से बदला या अलग से प्रोग्राम नहीं किया जा सकता ।
सीडी-रोम शुरू में कंप्यूटर बूट करने के लिए आवश्यक कार्यक्रम संग्रहीत करता है। यह केवल पढ़ने की अनुमति देता है|
इसकी सामग्री कंप्यूटर के बंद होने पर भी सहेज कर रखी रहती है, यानी यह स्थिर मेमोरी है।
इसे लेज़र किरणों के प्रयोग से पढ़ा जाता है।

A CD-ROM  is a pre-pressed optical compact disc which contains data. The name is an acronym which stands for "Compact Disc Read-Only Memory". Computers can read CD-ROMs, but cannot write to CD-ROMs which are not writable or erasable.

संपादन

संपादन के निम्नलिखित चरण माने जा सकते हैं –

1. सामग्री चयन व सामग्री विश्लेषण
2. सामग्री का भाषा संपादन
3. प्रस्तुतिकरण

अच्छे संपादन के लिए यह भी बहुत जरूरी है कि अपने विचारों‚ उनके स्रोतों और उनके निर्माण की प्रक्रिया के बारे में सजगता हो।

उल्टा पिरामिड सिद्धांत : 
समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन।

मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक-दो ककार दिये जा सकते हैं।

बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।

निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।

 समाचार आकर्षक होना चाहिए।
भाषा सहज और सरल हो।
समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास  हो जाए।
2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5.  अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या   उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो  उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से  शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।

2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।

3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।
 समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
  1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
  2.  समाचार नीति के अनुरूप हो।
  3.  समाचार तथ्याधारित हो।
  4.  समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
  5.  समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे   पुष्ट बनाएँ।
  6.  समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस   कर दें।
  7.  समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
  8.  अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
  9.  ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
 13.  समाचार की भाषा में एकरूपता होना चाहिए।
 14.    समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।

सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द

सम्पादन की आवश्यकताएँ
1. व्यापक अध्ययन व अभिरुचि: राजनीति‚ समाज‚ इतिहास‚ संस्कृति‚ सिनेमा‚ खेल‚ साहित्य आदि जीवन और समाज से जुड़ी ढेरों चीजों का अध्ययन करना और उनमें रुचि लेना ही बेहतर संपादन के लिए तैयार कर सकता है‚ यही वह कच्चा माल है‚ जिससे संपादन के कौशल को विकसित किया जाता है। इसे और सरल ढंग से समझ लें। कोई भी कॉपी किसी न किसी विषय से संबंधित होती है‚ वह कॉपी समाचार के रूप में हो या फीचर के रूप में आलेख के रूप में हो या साक्षात्मकार के रूप में। उस विषय की जानकारी ही यह बता पाएगी कि तथ्य कितने सही हैं‚ उनका विश्लेषण या प्रस्तुतीकरण कितना संगत है।

2. भाषा का समुचित ज्ञान: जिस भाषा में संपादन किया जाना है‚ उसके समुचित ज्ञान का मतलब है कि उसके विराम चिंहों‚ व्याकरण‚ वाक्यरचना‚ मुहावरों‚ शब्द-संपदा‚ अभिव्यक्ति शैली तथा भाषा व संप्रेषण के विविध रूपों व स्तरों का ठीक ज्ञान‚ अनुभव और अभ्यास ही वह दक्षता विकसित कर सकता है कि अच्छा संपादन किया जा सके

3. विधा की समझ: समाचार‚ फीचर‚ आलेख‚ इंटरव्यू ऐसी ही अनेक विधाएं या रूप हैं जिनमें पत्रकारिता संबंधी लेखन होता है‚ हर विधा की अपनी विशिष्टता है। कोई समाचार आलेख की तरह नहीं लिखा जा सकता‚ न ही कोई फीचर समाचार की शैली में लिखा जा सकता है। विधा की जरूरत के अनुसार कॉपी होनी चाहिए। यदि नहीं है तो कितने और किस तरह के परिवर्तन से वह वैसी हो सकती है‚ यह समझ होनी चाहिए।

4. प्रस्तुति का विवेक: इसमें हेडिंग‚ सबहेडिंग लगाना‚ पैराग्राफस में कॉपी को बांटना‚ कौन सा पैरा पहले आना चाहिए कौन सा बाद में‚ कौन से वाक्य पहले आने चाहिए कौन से बाद में‚ शब्दों‚ वाक्यों‚ पैरा का परस्पर संबद्ध होना। इंट्रो‚ हाइलाइटर‚ कैप्शन आदि से कॉपी को सज्जित करना‚ और आकर्षक बनाना यह आज बहुत महत्व रखता है। यह सारा काम भी विधा के अनुरूप होना चाहिए‚ यानी समाचार‚ फीचर‚ आलेख…. आदि की प्रस्तुति में भिन्नता होगी‚ फिर यह प्रस्तुति अखबार‚ पत्रिका आदि के अपने विशिष्ट स्वरूप और पाठक वर्ग के अनुसार होगी। संपादन के लिए सबसे जरूरी चीज है – अभिरुचि का विकास। यह अभिरुचि भाषा, कंटेंट‚ विचार‚ समाज‚ पत्रकारिता के विविध माध्यम और विधा के अनेक रूपों में में गतिशील होनी चाहिए।

Tuesday 3 May 2016

फोटो जर्नलिज्म

फोटोग्राफी का शौक और दुनिया की खबर रखने की आदत, ये दोनों ही चीजें एक फोटो जर्नलिस्ट के काम को बेहद आसान कर देती हैं। यह प्रोफेशन एक अच्छी कमाई के साथ भरपूर रोमांच का भी वादा करता है।

फोटो जर्नलिज्म
फोटोग्राफी संचार का ऐसा माध्यम है, जिसमें भाषा की आवश्यकता नहीं होती है। तस्वीरों के माध्यम से ही घटना का वर्णन हो जाता है। इसका प्रभाव भी सबसे ज्यादा होता है। यही कारण है कि कम्युनिकेशन के विभिन्न माध्यमों में विजुअल्स को सबसे प्रभावी माना जाता है। मीडिया में फोटो जर्नलिज्म की उपयोगिता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ती रहेगी। यदि किसी में कल्पनाशीलता है और घटना के महत्व को तुरंत समझ सकते हैं, तो उसके लिए फोटो जर्नलिज्म का कोर्स करना बेहतर हो सकता है।
कार्यकोई विशेष घटना, प्राकृतिक आपदा, युद्ध, ग्लैमर न्यूज, कठिन से कठिन परिस्थितियों में घटनास्थल की पूरी कहानी अपने कैमरे में कैद कर लाखों करोड़ों लोगों तक तस्वीरों को पहुंचाना ही फोटो जर्नलिस्ट का कार्य है।

फोटो जर्नलिज्म में चित्रों के जरिए कहानी कही जाती है। इसका संदर्भ प्रिंट पत्रकारिता में स्थिर तस्वीरों से है, जबकि ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म में अधिकतर वीडियो फिल्म के जरिए खबर बताई जाती है। एक फोटो पत्रकार रिपोर्टर भी होता है, लेकिन उसे जल्द फैसला लेना होता है। उसे कई अड़चनों जैसे शारीरिक खतरा, मौसम और भीड़भाड़ से भी जूझना पड़ता है।

कैमरा एंगल,लाइट,लेंस आदि की बेहतर जानकारी के साथ साथ खबरों की समझ हो, तो आप कैमरे से मीडिया कैरियर की राह बना सकते हैं।

विजुअल्स की दुनिया में तस्वीर के माध्यम से ही घटना का वर्णन हो जाता है और ऐसे में फोटो जर्नलिस्ट की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। यदि आप में कल्पनाशीलता है और आप घटना के महत्व को समझते हैं यानी खबर की गंभीरत से परिचित हैं तो फोटो जर्नलिज्म आपके लिए बड़े काम का कैरियर है।

फोटो जर्नलिस्ट विशेष कवरेज, बड़ी रैलियों, प्राकृतिक आपदा, जंग, ग्लैमर वर्ल्ड, और ऐसी ही मीनिंगफुल घटनाक्रम को पूरी कहानी समेत अपने कैमरे में कैद करता है। ऐसे कवरेज को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बहुत सम्मान मिलता है।

जब तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का युग नहीं आया था, फोटो जर्नलिस्ट एक कैमरा पर्सन की तरह काम करता था। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया के आने के बाद इनकी एक अलग पहचान बनी है।

किसी भी खबर के लिए फोटो की भूमिका प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में है। कुशल व प्रशिक्षित फोटो जर्नलिस्ट मीडिया इंडस्ट्री में हाथों हाथ लिए जाते हैं। अखबार और चैनलों के अलावा मैगजीनों आदि में भी फोटो जर्नलिस्ट की काफी मांग रहती है।

वैसे देखा जाए तो फोटो जर्नलिस्ट बनने के लिए विजुअल्स की जानकारी के साथ साथ घटनाक्रम की समझ और कल्पनाशीलता होनी चाहिए। आजकल फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर पहचान बनाने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति को पुरस्थितियों और समसामयिक घटनाक्रम की जानकारी भी हो।

व्यक्तिगत गुण

इसमें सफल होने के लिए जरूरी है कि तुलनात्मक रूप से नजर पारखी हो तथा कल्पनाशक्ति मजबूत हो। इसके अलावा कठिन परिस्थितियों में भी हमेशा बेहतर करने की कला हो। नित नई-नई तकनीक के साथ-साथ विज्ञान में हो रहे फेरबदल की भी पल-पल की जानकारी जरूरी है।