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Monday 28 November 2016

समाचार संपादन

समाचार संपादन के तत्व

संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास  हो जाए।
2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5.  अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या   उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो  उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से  शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।
 
2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।
 
3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।

 समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
  1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
  2.  समाचार नीति के अनुरूप हो।
  3.  समाचार तथ्याधारित हो।
  4.  समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
  5.  समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे   पुष्ट बनाएँ।
  6.  समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस   कर दें।
  7.  समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
  8.  अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
  9.  ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
 13.  समाचार की भाषा में एकरूपता होना चाहिए।
 14.    समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।

समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द

Wednesday 23 November 2016

फोटोग्राफी के गुर

फोटोग्राफी के गुर

फोटोग्राफी या छायाचित्रण संचार का ऐसा एकमात्र माध्यम है जिसमें भाषा की आवश्यकता नहीं होती है। यह बिना शाब्दिक भाषा के अपनी बात पहुंचाने की कला है। इसलिए शायद ठीक ही कहा जाता है ‘‘ए पिक्चर वर्थ ए थाउजेंड वर्ड्स’’ यानी एक फोटो दस हजार शब्दों के बराबर होती है। फोटोग्राफी एक कला है जिसमें फोटो खींचने वाले व्यक्ति में दृश्यात्मक योग्यता यानी दृष्टिकोण व फोटो खींचने की कला के साथ ही तकनीकी ज्ञान भी होना चाहिए। और इस कला को वही समझ सकता है, जिसे मूकभाषा भी आती हो।

फोटोग्राफी की प्रक्रियाः
मनुष्य की संचार यात्रा शब्दों से पूर्व इशारों, चिन्हों और चित्रों से शुरू हुई है। छायाचित्र कोयला, चाक पैंसिल या रंगों के माध्यम से भी बनाए जा सकते हैं, लेकिन जब इन्हें कैमरा नाम के यंत्र की मदद से कागज या डिजिटल माध्यम पर उतारा जाता है, तो इसे फोटोग्राफी कहा जाता है। फोटोग्राफी की प्रक्रिया में मूलतः किसी छवि को प्रकाश की क्रिया द्वारा संवेदनशील सामग्री पर उतारा जाता है। इस प्रक्रिया में सामान्यतया चश्मे या दूरबीन के जरिए पास या दूर की वस्तुओं की छवि को देखे जाने के गुण का लाभ ही लिया जाता है, और एक कदम आगे बढ़ते हुए कैमरे के जरिए भौतिक वस्तुओं से निकलने वाले विकिरण को संवेदनशील माध्यम (जैसे फोटोग्राफी की फिल्म, इलेक्ट्रानिक सेंसर आदि) के ऊपर रिकार्ड करके स्थिर या चलायमान छवि या तस्वीर बना ली जाती है, ऐसी तस्वीरें ही छायाचित्र या फोटोग्राफ कहलाते हैं। इस प्रकार फोटोग्राफी लैंस द्वारा कैमरे में किसी वस्तु की छवि का निर्माण करने की व्यवस्थित तकनीकी प्रक्रिया है।

कैमरे का चयनः 
फोटोग्राफी एक बहुत ही अच्छे व लाभदायक व्यवसाय के रूप में साबित हो सकता है। फोटोग्राफी करना निजी पसंद का कार्य है इसलिए जिस चीज का आपको शौक हो उसके अनुरूप कैमरे का चयन करना चाहिये। अगर घर और कोई छोटे मोटे स्टूडियो में काम करना हो तो सामान्य डिजिटल कैमरे से भी काम चलाया जा सकता है, लेकिन अगर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी या फैशन फोटोग्राफी जैसी प्रोफेशनल फोटोग्राफी करनी हो तो एसएलआर या डीएसएलआर कैमरे इस्तेमाल करने पड़ते हैं। डिजिटल कैमरे मोबाइल फोनों के साथ में तथा चार-पांच हजार से लेकर 15-20 हजार तक में आ जाते हैं, जबकि प्रोफेशनल कैमरे करीब 25 हजार से शुरू होते हैं, और ऊपर की दो-चार लाख तथा अपरिमित सीमा भी है। कैमरे के चयन में सामान्यतया नौसिखिया फोटोग्राफर मेगापिक्सल और जूम की क्षमता को देखते हैं, लेकिन जान लें कि मेगापिक्सल का फर्क केवल बड़ी या छोटी फोटो बनाने में पड़ता है। बहुत अधिक जूम का लाभ भी सामान्यतया नहीं मिल पाता, क्योंकि कैमरे में एक सीमा से अधिक जूम की क्षमता होने के बावजूद फोटो हिल जाती है। कैमरा खरीदने में अधिक आईएसओ, अधिक व कम अपर्चर तथा शटर स्पीड तथा दोनों को मैनुअल मोड में अलग-अलग समायोजित करने की क्षमता तथा सामान्य कैमरे में लगी फ्लैश या अतिरिक्त फ्लैश के कैमरे लेने का निर्णय किया जा सकता है।

लगातार बढ़ रहा है क्रेजः
सामान्यतया फोटोग्राफी यादों को संजोने का एक माध्यम है, लेकिन रचनात्मकता और कल्पनाशीलता के प्रयोग से यह खुद को व्यक्त करने और रोजगार का एक सशक्त और बेहतर साधन भी बन सकता है। अपनी भावनाओं को चित्रित करने के लिए शौकिया फोटोग्राफी करते हुए भी आगे चलकर इस शौक को करियर बनाया जा सकता है। तकनीकी की तरक्की और संचार के माध्यमों में हुई बेहतरी के साथ फोटोग्राफी का भी विकास हुआ है। सस्ते मोबाइल में भी कैमरे उपलब्ध हो जाने के बाद हर व्यक्ति फोटोग्राफर की भूमिका निभाने लगा है। छोटे-बड़े आयोजनों, फैशन शो व मीडिया सहित हर जगह फोटोग्राफी कार्यक्रम का एक अभिन्न अंग बन गया है, मीडिया में तो कई बार फोटोग्राफरों की पत्रकारों से अधिक पूछ होती है, लोग पत्रकारों से पहले फोटोग्राफरों को ही घटना की पहले सूचना देते हैं। समाचार में फोटो छप जाए, और खबर भले फोटो कैप्सन रूप में ही, लोग संतुष्ट रहते हैं, लेकिन यदि खबर बड़ी भी छप जाए और फोटो ना छपे तो समाचार पसंद नहीं आता। मनुष्य के इसी शौक का परिणाम है कि इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता का क्रेज भी प्रिंट पत्रकारिता के सापेक्ष अधिक बढ़ रहा है।

फोटोग्राफी कला व विज्ञान दोनोंः 
फोटोग्राफी सबसे पहले आंखों से शुरू होती है, तथा आंख, दिल व दिमाग का बेहतर प्रयोग कर कैमरे से की जाती है, एक सफल फोटोग्राफर बनने के लिए वास्तविक खूबसूरती की समझ होने के साथ ही तकनीकी ज्ञान भी होना चाहिए। आपकी आँखें किसी भी वस्तु की तस्वीर विजुलाइज कर सकती हों कि वह अमुख वस्तु फोटो में कैसी दिखाई देगी। तस्वीर के रंग और प्रकाश की समझ में अंतर करने की क्षमता होनी भी जरूरी होती है। इसलिए फोटोग्राफी एक कला है।
वहीं, डिजिटल कैमरे आने के साथ फोटोग्राफी में नए आयाम जुड़ गए हैं। आज हर कोई फोटो खींचता है और खुद ही एडिट कर के उपयोग कर लेता है। लेकिन इसके बावजूद पेशेवर कार्यों के लिए एसएलआर व डीएसएलआर कैमरे इस्तेमाल किये जाते है जिन्हें सीखने के लिए काफी मेहनत करनी पड सकती है। इसलिए फोटोग्राफी विज्ञान भी है, जिसमें प्रशिक्षण लेकर और लगातार अभ्यास कर ही पारंगत हुआ जा सकता है। देशभर में कई ऐसे संस्थान हैं जो फोटोग्राफी में डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करवाते हैं। लेकिन यह भी मानना होगा कि बेहतर फोटोग्राफी सीखने के लिए किताबी ज्ञान कम और प्रयोगात्मक ज्ञान ज्यादा होना चाहिए। शैक्षिक योग्यता के साथ-साथ आपकी कल्पना शक्ति भी मजबूत होनी चाहिए। लेकिन यह भी मानना होगा कि यह पेशा वास्तव में कठिन मेहनत मांगता है। किसी एक फोटो के लिए एवरेस्ट और सैकड़ों मीटर ऊंची मीनारों या टावरों पर चढ़ने, कई-कई दिनों तक बीहड़ बीरान जंगलों में पेड़ या मचान पर बैठे रहने और मीलों पैदल भटकने की स्थितियां भी आ सकती हैं, इसलिए यह भी कहा जाता है कि फोटो और खबरें हाथों से नहीं वरन पैरों से भी लिखी या खींची जाती हैं।

फोटोग्राफी की तकनीकः
सामान्यतया फोटोग्राफी किसी भी कैमरे से ऑटो मोड में शुरू की जा सकती है, लेकिन अनुभव बढ़ने के साथ मैनुअल मोड में बेहतर चित्र प्राप्त किए जा सकते हैं। मैनुअल फोटोग्राफी में तीन चीजों को समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है- शटर स्पीड, अपर्चर और आईएसओ।

शटर स्पीडः
शटर स्पीड यह व्यक्त करने का मापक है कि कैमरे को क्लिक करने के दौरान कैमरे का शटर की कैमरे की स्पीड कितनी देर के लिए खुलता है। इसे हम मैनुअली नियंत्रित कर सकते हैं। शटर स्पीड को सेकेंड में मापा जाता है और ‘1/सेकेंड’ में यानी 1/500, 1/1000 आदि में व्यक्त किया जाता है। इसे पता चलता हे कि शटर किसी चित्र को लेने के लिए एक सेकेंड के 500वें या 1000वें हिस्से के लिए खुलेगा। जैसे यदि हम एक सैकेंड के एक हजारवें हिस्से में कोई फोटो लेते हैं तो वो उस फोटो में आये उडते हुए जानवर या तेजी से भागते विमान आदि के चित्र को अच्छे से ले सकता है, या फिर गिरती हुई पानी की बूंदो को फ्रीज कर सकता है। पर अगर इस सैटिंग को बढ़ाकर एक सेकेंड, दो सेकेंड या पांच सैकेंड कर दिया जाए तो शटर इतने सेकेंड के लिए खुलेगा, और शटर के इतनी देर तक खुले रहने से उस दृश्य के लिए भरपूर रोशनी मिलेगी, और फलस्वरूप फोटो अधिक अच्छी आएगी, अलबत्ता कैमरे को उतनी देर के लिए स्थिर रखना होगा। ट्राइपौड का इस्तेमाल करना जरूरी होगा। शटर स्पीड घटाकर यानी शटर को काफी देर खोलकर अंधेरे में शहर की रोशनियों या चांद-तारों, बहते हुए झरने, पानी, बारिश की बूंदों व बर्फ के गिरने, उड़ते पक्षियों, तेजी से दौडती कारों व वाहन आदि चलायमान वस्तुओं की तस्वीरें भी कैद की जा सकती हैं।
ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि शटर स्पीड जितनी बढ़ाई जाती है, इसके उलट उतनी ही कम रोशनी मिलती है। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा 1/125 की शटर स्पीड 1/250 के मुकाबले अधिक होती है।

अपर्चरः

शटर स्पीड और अपर्चर में समझने के लिहाज से मामूली परंतु बड़ा अंतर है। वस्तुतः शटर स्पीड और अपर्चर दोनों चित्र लेने के लिए लेंस के भीतर जाने वाले प्रकाश का ही मापक होते हैं, और दोनों शटर से ही संबंधित होते हैं। परंतु अपर्चर में शटर स्पीड से अलग यह फर्क है कि अपर्चर शटर के खुलने-फैलने को प्रकट करता है, यानी शटर का कितना हिस्सा चित्र लेने के लिए खुलेगा। इसे ‘एफ/संख्या’ में प्रकट किया जाता है। एफ/1.2 का अर्थ होगा कि शटर अपने क्षेत्रफल का 1.2वां हिस्सा और एफ/5.6 में 5.6वां हिस्सा खुलेगा। साफ है कि अपर्चर जितना कम होगा, शटर उतना अधिक खुलेगा, फलस्वरूप उतनी ही अधिक रोशनी चित्र के लिए लेंस को उपलब्ध होगी। कम अपर्चर होने पर चित्र के मुख्य विषय के इतर बैकग्राउंड ब्लर आती है। बेहतर फोटो के लिए अपर्चर सामान्यतया एफ/5.6 रखा जाता है।

फोटो की गहराई (डेप्थ ऑफ फील्ड-डीओएफ):

फोटो की गहराई या डेप्थ ऑफ फील्ड फोटोग्राफी (डीओएफ) के क्षेत्र में एक ऐसा मानक है, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं, पर यह है बड़ा प्रभावी। किसी भी फोटो की गुणवत्ता, या तीखेपन (शार्पनेस) में इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है। डीओएफ एक तरह से किसी फोटो के फोकस में होने या बेहतर होने का मापक है। अधिक डीओएफ का अर्थ है कि फोटो का अधिकांश हिस्सा फोकस में है, चाहे उसमें दिखने वाला दृश्य का कोई हिस्सा कैमरे से करीब हो अथवा दूर, वहीं इसके उलट कम डीओएफ का अर्थ है फोटो के कम हिस्से का फोकस में होना। ऐसा सामान्यतया होता है, कभी पास तो कभी दूर का दृश्य ही फोकस में होता है, जैसा पहले एफ/22 अपर्चर में खींचे गए फूल और झील की फोटो में नजर आ रहा है, यह अधिक डीओएफ का उदाहरण है। जबकि दूसरा एफ/2.8 अपर्चर में खींचे गए फूल का धुंधली बैकग्राउंड का फोटो कम डीओएफ का उदाहरण है।

इस प्रकार से अपर्चर का डीओएफ से सीधा व गहरा नाता होता है। बड़ा अपर्चर (एफ के आगे कम संख्या वाला) फोटो डीओएफ को घटाता है, और छोटा अपर्चर (एफ के आगे छोटी संख्या) फोटो के डीओएफ को बढ़ाता है। इसे यदि हम यह इस तरह याद रख लें कि एफ/22, एफ/2.8 के मुकाबले छोटा अपर्चर होता है, तो याद करने में आसानी होगी कि यदि एफ के आगे संख्या बड़ी होगी तो डीओएफ बड़ा और संख्या छोटी होगी तो डीओएफ छोटा होगा।
इस प्रकार हम याद रख सकते हैं कि लैंडस्केप या नेचर फोटोग्राफी में बड़े डीओएफ यानी छोटे अपर्चर और मैक्रो और पोर्ट्रेट फोटोग्राफी में छोटे डीओएफ या बड़े अपर्चर का प्रयोग किया जाता है। ऐसा रखने से पूरा प्रकृति का चित्र बेहतर फोकस होगा, और पोर्ट्रेट में सामने की विषयवस्तु अच्छी फोकस होगी और पीछे की बैकग्राउंड ब्लर आएगी, और सुंदर लगेगी।

आईएसओः

आईएसओ का मतलब है कि कोई कैमरा रोशनी के प्रति कितना संवेदनशील है। किसी कैमरे की जितनी अधिक आईएसओ क्षमता होगी, उससे फोटो खींचने के लिए उतनी की कम रोशनी की जरूरत होगी, यानी वह उतनी कम रोशनी में भी फोटो खींचने में समर्थ होगा। अधिक आईएसओ पर कमरे के भीतर चल रही किसी खेल गतिविधि की गत्यात्मक फोटो भी खींची जा सकती है, अलबत्ता इसके लिए कैमरे को स्थिर रखने, ट्राइपौड का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ती है। कम व अधिक आईएसओ का फर्क इस चित्र में समझा जा सकता है।

लेकिन इसके साथ ही यह भी समझना पड़ेगा कि यदि आप शटर स्पीड को एक स्टेप बढ़ा कर उदाहरणार्थ 1/125 से घटाकर 1/250 कर रहे हैं तो इसका मतलब होगा कि आपके लैंस को आधी रोशनी ही प्राप्त होगी, और मौजूदा अपर्चर की सेटिंग पर आपका चित्र गहरा नजर आएगा। इस स्थिति को ठीक करने के लिए यानी लेंस को अधिक रोशनी देने के लिए आपको अपर्चर बढ़ाना यानी शटर को पहले के मुकाबले एक स्टेप अधिक खोलना होगा। इसके अलावा आईएसओ को भी अधिक रोशनी प्राप्त करने के लिए एक स्टेप बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।

बेहतर तीखेपन (शार्पनेस) की फोटो खींचने के 10 महत्वपूर्ण घटकः


कैमरे को अधिक मजबूती से पकड़ें, ध्यान रखें कैमरा हिले नहीं। संभव हो तो ट्राइपॉड का प्रयोग करें। खासकर अधिक जूम, कम शटर स्पीड, गतियुक्त एवं कम रोशनी में या रात्रि में फोटो खींचने के लिए ट्राइपौड का प्रयोग जरूर करना चाहिए।
शटर स्पीड का फोटो के तीखेपन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। शटर स्पीड जितनी अधिक होगी, उतना कैमरे के हिलने का प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं इसके उलट शटर स्पीड जितनी कम होगी, उतना ही कैमरा अधिक हिलेगा, और फोटो का तीखापन प्रभावित होगा। लेंस की फोकस दूरी (फोकल लेंथ) से अधिक ‘हर (एक/ (बट्टे)’ वाली शटर स्पीड पर ही फोटो खींचने की कोशिश करनी चाहिए। यानी यदि कैमरे की फोकल लेंथ 50 मिमी है तो 1/50 से अधिक यानी 1/60, 70 आदि शटर स्पीड पर ही फोटो खींचनी चाहिए। यह भी याद रखें कि अधिक शटर स्पीड पर फोटो खींचने के लिए आपको क्षतिपूर्ति के लिए अधिक अपर्चर यानी कम डीओएफ की फोटो ही खींचनी चाहिए।
फोटो खींचने के लिए सही अपर्चर का प्रयोग करें। कम शटर स्पीड के लिए छोटे अपर्चर का प्रयोग करें।
कम रोशनी में अधिक आईएसओ का प्रयोग करने की कोशिश करें। ऐसा करने से आप तेज शटर स्पीड और छोटे अपर्चर का प्रयोग कर पाएंगे। लेकिन यदि संभव हो यानी रोशनी अच्छी उपलब्ध हो तो कम आईएसओ के प्रयोग से बेहतर तीखी फोटो खींची जा सकती है।
बेहतर लैंस, बेहतर कैमरे का प्रयोग करें। आईएस लैंस और डीएसएलआर कैमरे बेहतर हो सकते हैं।
दृश्य को बेहतर तरीके से फोकस करें। फोटो खींचने से पहले देख लें कि कौन सा हिस्सा फोकस हो रहा है।
लैंस साफ होना चाहिए। कैमरे को बेहद सावधानी के साथ रखें व प्रयोग करें।


इनके अलावा फोटो की विषयवस्तु के लिए एंगल यानी दृष्टिकोण और जूम यानी दूर की विषयवस्तु को पास लाकर फोटो खींचना तथा फ्लैश का प्रयोग करना या ना करना भी फोटोग्राफी में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

फोटोग्राफी में कॅरियर की संभावनाएंः 
बहरहाल, फोटोग्राफी और खासकर डिजिटल फोटोग्राफी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, और यह एक विशेषज्ञता वाला कार्य भी बन गया है। फोटो जर्नलिस्ट, फैशन फोटोग्राफर, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर, माइक्रो फोटोग्राफी, नेचर फोटोग्राफर, पोर्ट्रेट फोटोग्राफी, फिल्म फोटोग्राफी इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर, प्रोडक्ट फोटोग्राफी, ट्रेवल एंड टूरिज्म फोटोग्राफी, एडिटोरियल फोटोग्राफी व ग्लैमर फोटोग्राफी आदि न जाने कितने विशेषज्ञता के क्षेत्र हैं, जो व्यक्ति के अंदर छुपी कला और रचनात्मकता की अभिव्यक्ति का जरिया बनते है, साथ ही बेहतर आय व व्यवसाय भी बन रहे हैं। अगर आपमें अपनी रचनात्मकता के दम पर कुछ अलग करने की क्षमता और जुनून हो तो इस करियर में धन और प्रसिद्धि की कोई कमी नहीं है।

प्रेस फोटोग्राफर- फोटो हमेशा से ही प्रेस के लिए अचूक हथियार रहा है। प्रेस फोटोग्राफर को फोटो जर्नलिस्ट के नाम से भी जाना जाता है। प्रेस फोटोग्राफर लोकल व राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों, चैनलों और एजेंसियों के लिए फोटो उपलब्ध कराते हैं। इनका क्षेत्र विविध होता है। इनका दिमाग भी पत्रकार की भाँति ही तेज व शातिर होता है। कम समय में अधिक से अधिक तस्वीरें कैद करना इनकी काबिलियत होती है। एक सफल प्रेस फोटोग्राफर बनने के लिए आपको खबर की अच्छी समझ, फोटो शीर्षक लिखने की कला और हर परिस्थिति में फोटो बनाने की कला आनी चाहिए।

फीचर फोटोग्राफर- किसी कहानी को तस्वीरों के माध्यम से प्रदर्शित करना फीचर फोटोग्राफी होती है। इस क्षेत्र में फोटोग्राफर को विषय के बारे में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। फीचर फोटोग्राफी में फोटोग्राफर तस्वीरों के माध्यम से विषय की पूरी कहानी बता देता है। इनका काम और विषय बदलता रहता है। फीचर फोटोग्राफी के क्षेत्र हैं- वन्य जीवन, खेल, यात्रा वृत्तांत, पर्यावरण इत्यादि। फीचर फोटोग्राफर किसी रिपोर्टर के साथ भी काम कर सकते हैं और स्वतंत्र होकर भी काम कर सकते हैं।

एडिटोरियल फोटोग्राफर- इनका काम सामान्यतया मैगजीन और पीरियोडिकल के लिए फोटो बनाना होता है। ज्यादातर एडिटोरियल फोटोग्राफर स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। एडिटोरियल फोटोग्राफर आर्टिकल या रिपोर्ट के विषय पर फोटो बनाते हैं। इनका क्षेत्र रिपोर्ट या आर्टिकल के अनुसार बदलता रहता है।

कमर्शियल या इंडस्ट्रियल फोटोग्राफर- इनका कार्य कंपनी की विवरणिका, रिपोर्ट व विज्ञापन के लिए कारखानों, मशीनों व कलपुर्जों की तस्वीरें बनाना है। कमर्शियल फोटोग्राफर किसी फर्म या कंपनी के लिए स्थायी होता है। इनका मुख्य उद्देश्य बाजार में कंपनी के उत्पाद व उसकी सेवाओं को बेहतर दिखाना होता है।

पोर्ट्रेट या वेडिंग फोटोग्राफर- यह फोटोग्राफर स्टूडियो में काम करते हैं और समूह या व्यक्ति विशेष की फोटो लेने में निपुण होते हैं। पोर्ट्रेट के विषय कुछ भी हो सकते हैं, जैसे पालतू जानवरों तस्वीर, बच्चे, परिवार, शादी, घरेलू कार्यक्रम और खेल इत्यादि। आज कल पोर्ट्रेट फोटोग्राफर की माँग लगातार बढ़ रही है। सामान्यतया प्रसिद्ध हस्तियां, सिने कलाकार अपने लिए निजी तौर पर फोटोग्राफरों को साथ रखते हैं।

विज्ञापन फोटोग्राफर- यह विज्ञापन एजेंसी, स्टूडियो या फ्रीलांस से संबंधित होते हैं। ज्यादातर विज्ञापन फोटोग्राफर कैटलॉग के लिए काम करते हैं जबकि कुछ स्टूडियो मेल ऑर्डर के लिए काम करते हैं। उपरोक्त सभी में विज्ञापन फोटोग्राफर का काम सबसे ज्यादा चुनौती भरा होता है।

फैशन और ग्लैमर फोटोग्राफर- देश में फैशन और ग्लैमर फोटोग्राफी का कॅरियर तेजी से उभर रहा है। क्रिएटिव और आमदनी दोनों रूपों में यह क्षेत्र सबसे बेहतर है। फैशन डिजाइनर के लिए अत्यधिक संभावनाएं है जहाँ वे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैं। विज्ञापन एजेंसी और फैशन स्टूडियो में कुशल फोटोग्राफर की हमेशा आवश्यकता रहती है साधारणतया फैशन फोटोग्राफर फैशन हाउस, डिजाइनर, फैशन जर्नल और समाचार पत्रों के लिए तथा मॉडलों, फिल्मी अभिनेत्रियों के पोर्टफोलियो तैयार करने जैसे अनेक आकर्षक कार्य करते हैं।

फाइन आर्ट्स फोटोग्राफर- फोटोग्राफी के क्षेत्र में इनका काम सबसे संजीदा व क्लिष्ट है। एक सफल फाइन आर्ट्स फोटोग्राफर के लिए आर्टिस्टिक व क्रिएटिव योग्यता अत्यावश्यक होती है। इनकी तस्वीरें फाइन आर्ट के रूप में भी बिकती हैं।

डिजिटल फोटोग्राफी- यह फोटोग्राफी डिजिटल कैमरे से की जाती है। इस माध्यम से तस्वीरें डिस्क, फ्लापी या कम्प्यूटर से ली जाती है। डिजिटल फोटोग्राफी से तस्वीर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जा सकता है। तस्वीर लेने का यह सबसे सुलभ, तेज और सस्ता साधन है। मीडिया में डिजिटल फोटोग्राफी का प्रयोग सबसे ज्यादा हो रहा है। इसका एकमात्र कारण ज्यादा से ज्यादा तस्वीरें एक स्टोरेज डिवाइस में एकत्र कर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलभर में भेज देना है।

नेचर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी- फोटोग्राफी के इस क्षेत्र में जानवरों, पक्षियों, जीव जंतुओं और लैंडस्केप की तस्वीरें ली जाती हैं। इस क्षेत्र में दुर्लभ जीव जंतुओं की तस्वीर बनाने वाले फोटोग्राफर की माँग हमेशा बनी रहती है। एक नेचर फोटोग्राफर ज्यादातर कैलेंडर, कवर, रिसर्च इत्यादि के लिए काम करता है। नेचर फोटोग्राफर के लिए रोमांटिक सनसेट, फूल, पेड़, झीलें, झरना इत्यादि जैसे कई आकर्षक विषय हैं।

फोरेंसिक फोटोग्राफी- किसी भी क्राइम घटना की जाँच करने के लिए और उसकी बेहतर पड़ताल करने के लिए घटनास्थल की हर एंगल से तस्वीरों की आवश्यकता पड़ती है। इन तस्वीरों की मदद से पुलिस घटना के कारणों का पता लगाती है जिससे अपराधी को खोजने में आसानी होती है। फोरेंसिक फोटोग्राफी से वारदात की वास्तविक स्थिति व अंजाम देने की दूरी का पता भी लगाया जा सकता है। एक कुशल फोरेंसिक फोटोग्राफर अन्वेषण ब्यूरो, पुलिस डिपार्टमेंट, लीगल सिस्टम या किसी भी प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी के लिए काम कर सकता है।                                                                                                                      
इसके अलावा भी खेल, अंतरिक्ष, फिल्म, यात्रा, ललित कला तथा मॉडलिंग सहित अनेक अन्य क्षेत्रों में भी फोटोग्राफी की अनेक संभावनाएं हैं। दुनिया में जितनी भी विविधताएं हैं सभी फोटोग्राफी के विषय हैं। कब, क्या और कहां फोटोग्राफी का विषय बन जाए, कहा नहीं जा सकता, इसलिए फोटोग्राफी का कार्यक्षेत्र भी किसी सीमा में बांधकर नहीं रखा जा सकता है। यह संभावनाएं कौशल और चुनौतियों में छिपी हुई हैं, जिसे होनहार तथा चुनौतियों का सामना करने वाले फोटोग्राफर ही खोज सकते हैं।

फोटोग्राफी का इतिहास :
सर्वप्रथम 1839 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 9 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ्रांस सरकार ने यह "डाग्युरे टाइप प्रोसेस" रिपोर्ट खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया और इस आविष्कार को ‘विश्व को मुफ्त’ मुहैया कराते हुए इसका पेटेंट खरीदा था। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। हालांकि इससे पूर्व 1826 में नाइसफोर ने हेलियोग्राफी के तौर पर पहले ज्ञात स्थायी इमेज को कैद किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूँढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई।

1839 में ही वैज्ञानिक सर जॉन एफ डब्ल्यू हश्रेल ने पहली बार 'फोटोग्राफी' शब्द का इस्तेमाल किया था. यह  एक ग्रीक शब्द है, जिसकी उत्पत्ति फोटोज (लाइट) और ग्राफीन यानी उसे खींचने से हुई है।

भारत में प्रोफेशनल फोटोग्राफी की शुरुआत व पहले फोटोग्राफरः 

भारत की प्रोफेशनल की शुरुआत 1840 में हुई थी। कई अंग्रेज फोटोग्राफर भारत में खूबसूरत जगहों और ऐतिहासिक स्मारकों को रिकॉर्ड करने के लिए भारत आए। 1847 में ब्रिटिश फोटोग्राफर विलियम आर्मस्ट्रांग ने भारत आकर अजंता एलोरा की गुफाओं और मंदिरों का सर्वे कर इन पर एक किताब प्रकाशित की थी।
कुछ भारतीय राजाओं और राजकुमारों ने भी फोटोग्राफी में हाथ आजमाए, इनमें चंबा के राजा, जयपुर के महाराजा रामसिंह व बनारस के महाराजा आदि प्रमुख थे। लेकिन अगर किसी ने भारतीय फोटोग्राफी को बड़े स्तर तक पहुंचाया है तो वह हैं लाला दीन दयाल, जिन्हें राजा दीन दयाल के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास सरधाना में 1844 में सुनार परिवार में हुआ था। उनका करियर 1870 के मध्य कमीशंड फोटोग्राफर के रूप में शुरू हुआ। बाद में उन्होंने अपने स्टूडियो मुंबई, हैदराबाद और इंदौर में खोले। हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान ने इन्हें मुसव्विर जंग राजा बहादुर का खिताब दिया था। 1885 में उनकी नियुक्ति भारत के वॉयसराय के फोटोग्राफर के तौर पर हुई थी, और 1897 में क्वीन विक्टोरिया से रॉयल वारंट प्राप्त हुआ था। उनके स्टूडियो के 2857 निगेटिव ग्लास प्लेट को 1989 में इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार ऑर्ट, नई दिल्ली के द्वारा खरीदा गया था, जो आज के समय में सबसे बड़ा पुराने फोटोग्राफ का भंडार है। 2010 में आइजीएनसीए में और 2006 में हैदराबाद फेस्टिवल के दौरान सालार जंग म्यूजियम में उनकी फोटोग्राफी को प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। नवंबर 2006 में संचार मंत्रालय, डाक विभाग द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था।

समाचार की पहचान

समाचार की पहचान
मनुष्य के आचार-व्यवहार, पसंद-नापसंद, रुचि-अभिरुचि आदि समाज, वातावरण, स्थिति, परिस्थिति और जरूरत के हिसाब से बदलते रहते हैं। उसकी पसंद बहुत ही व्यापक और परिवर्तनशील होती है, फिर भी उसकी एक पसंद ऐसी है, जो अपरिवर्तनीय, शाश्वत और अटल है। और वह है अपने आस-पास, देश-विदेश में घट रही घटनाओं के बारे में जानने की उसकी तीव्र इच्छा। मनुष्य की इस इच्छा को पूरा करने के माध्यम आधुनिक से आधुनिकतम होते रहे हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि उसकी यह इच्छा कम से कमचर होने की बजाय तीव्र से तीव्रतर होती जी रही है। आजकल मनुष्य की इस इच्छा को पूरा करने का प्रयास समाचार पत्र पूरे जोर-शोर से कर रहे हैं। कई प्रकार के दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं जो राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि कई विषयों को केन्द्र बिंदु बनाकर प्रकाशित होते हैं। इन सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों में बुनियादी तत्व मौजूद होते हैं, जो किसी भी समाचार को महत्व देने में विशेष योगदान देते हैं, जो पाठकों की सामान्य समाचार ग्राह्यता पर आधारित होते हैं और पाठकों की रुचि, आस्था, चेतना व स्वभाव को सीधे प्रभावित करते हैं तथा उसे बहुत गहरायी तक उद्वेलित कर कुछ करने के लिये प्रेरित करते हैं।

एक संवाददाता के लिये यह भी समझना बहुत जरूरी है कि समाचार पत्रों के पाठकों या समाचार चैनलों के दर्शक प्रत्येक दिन ऐसा कुछ पढना या देखना चाहते हैं, जो बीते हुए कल की अपेक्षा कुछ नया हो, उनकी रुचि के अनुरूप हो या वह सब कुछ बताने में समर्थ हो, जो उसके आस-पास के परिवेश में घट रहा है। संवाददाता जब तक अपने भीतर ऐसी क्षमता विकसित नहीं कर लेता कि समाचार की सही पहचान कर सके, तब तक वह अपने पाठकों या फिर दशर्कों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सकता।

समाचारों की सबही पहचान यानी न्यूज जजमेंट के लिये जरूरी है कि उन तत्वों को अच्छी तरह से समझ लिया जाए, जो किसी घटना, स्थिति, बयान, निर्णय, आदेश, व्यक्ति या उपलब्धि आदि को समाचार बनाते हैं। ये तत्व निम्नलिखित हैं-

१. प्रभाव

संवाददाता को हमेशा यह ध्यान में रखना होता है कि कौन – कौन से समाचार उसके पाठक समूह या आम आदमी के बहुत बड़े हिस्से को प्रभावित कर सकते हैं या फिर उससे सीधे – सीधे जुड़े होते हैं। कओई बार एक ही समाचार में कई – कई बातें ऐसी होती हैं, जो आम आदमी को सीधे प्रभावित करती हैं या उनकी सीधा जुड़ाव होता है। ऐसी स्थितियों में यह देखना जरूरी हो जाता है कि कौन सी बात व्यापकता के साथ जनमानस के बहुत बड़े हिस्से को प्रभावित कर रही है। इसी बात को ऊपर रखकर समाचार की संरचना की जाती है।

उदाहरण के लिये नगर पालिका या नगर निगम की बैठक में सदस्यों द्वारा गृहकर बढाने और शहर में एक हर सुविधा से सुसज्जित अनाथालय बनाने का निर्णय लिया जाता है। मानवीय संवेदनाओं को सर्वोपरि रखा जाए तो निश्चित ही अनाथालय बनाने का निर्णय महत्वपूर्ण लगता है और यह नगरवासियों के लिये एक नया समाचार भी हो सकती है, लेकिन गृहकर बढाने का निर्णय नगर के लगभग सभी निवासियों से जु़ड़ा है और उन्हें प्रभावित करने जा रहा है। इसलिये गृहकर बढने का समाचार प्रमुखता से देना होगा।

२. बात का वजन

समाचारों को प्रस्तुति देते समय यह देखना जरूरी हो जाता है कि किसी समाचार में कितना वजन है और वह उसकी तरह के अन्य समाचारों से किस तरह महत्वपूर्ण है। वजन की बात समझने के लिये संवाददाता को अपने विवेक का इस्तेमाल करना पड़ता है और यह विवेक उसके अनुभवों से प्रभावित होता है।

उदाहरण के लिये हत्याओं के समाचार में लूट के समाचार से अधिक वजन है और लूट के समाचार में छीना-झपटी के समाचार से अधिक वजन है। कई बार समाचारों का वजन इस आधार पर तय करना पड़ता है कि वह समाचार, जिस क्षेत्र में प्रकाशित या प्रसारित हो रहा है, उस क्षेत्र का सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक और आपराधिक ताना-बाना किस प्रकार का रहा है और रहेगा। स्थानीयता के आधार पर समाचारों को प्रस्तुत करके अपने समाचार पत्र या चैनल के लिये अधिक से अधिक पाठक व दर्शक तैयार किये जा सकते हैं।

३. विवाद

विवाद समाचारों का बहुत ही प्रिय शब्द रहा है। यदि किसी समाचार पत्र या चैनल पर प्रस्तुत होने वाले समाचारों पर ध्यान दें तो अधिकांश समाचार विवादों से उपजते दिखेंगे, विवाद लिये हुए होंगे या फिर विवाद को जन्म देते लगेंगे। आरोप – प्रत्यारोप, आंदोलन-समझौता, शिकायत-कार्यवाही, जांच-कार्रवाई, बैठक-बहिष्कार आदि सभी किसी न किसी विवाद से जुड़े होते हैं और समाचार को जन्म देते हैं। ऐसे समाचारों को प्रस्तुत करना इसलिये भी जरूरी रहता है कि इनसे समाज के कई वर्गों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ाव होता है।

४. विषमता

चार्ल्स डाना ने १८८२ में समाचार को परिभाषित करते हुए कहा था कि आदमी को कुत्ता काट ले तो यह सामान्य सी बात है, समाचार तो तब बनता है, जब आदमी कुत्ते को काट ले। कई मझे हुए पत्रकरों की धारणा रहती है कि जनता हैरान होने या चौंकने का पूरा आनन्द उठाती है। इसलिये कहीं कोई विषमता या फिर असामान्य दिखाई दे, तो उसे समाचार बनाने से नहीं चूकना चाहिए। संवाददाता अगर विषमताओं और असमान्य की खोज पर निकले तो उसे कुछ न कुछ मिल ही जाता है।

उदाहरण के लिये थानेदार के यहां चोरी का समाचार, जनता द्वारा शराबी पुलिस की जमकर धुनाई का समाचार, बहू द्वारा सास को जला डालने का समाचार, परीक्षा देते समय ही प्रसव पीड़ा उठने और बच्चा पैदा होने का समाचार, पुलिस संरक्षण में महिला से बलात्कार का समाचार आदि। वास्तव में समाज के हर पहलू से जुड़े तरह-तरह के विषयों में ऐसी विषमताएं मिल ही जाती हैं, जो समाचार का रूप ले सकती हैं। आवश्यकता है उन्हें परखने की क्षमता विकसित करने की।

५. नूतनता

पाठकों को असाधारण, नवीन, ताजा से ताजा समाचार आकर्षित करते हैं। समाचार प्रस्तुत करने में विलंब होने पर वे निस्तेज और निरर्थक हो जाते हैं। यही कारण है कि आकस्मिक रूप से घटित घटनाओं के समाचारों को समाचार पत्रों में अर्ध विकसित रूप में ही तुरंत ही दे दिया जाता है और बाद में समाचार संकलित कर उसे विकसित रूप में दिया जाता है।

६. सत्यता और यथार्थता

किसी घटना के यथार्थ, वास्तव्य और सत्य पर आधारित विश्लेषण, परीक्षण एवं पूर्वाग्रह या पक्षपातरहित परिशुद्ध एवं संतुलित विवरणों में स्पष्टता होती है, जो समाचार को मूल्यवान बनाती है और इन विवरणों पर दृढता, अटलता, दृढ प्रतिज्ञता और निश्चयात्मकता, जो समाज के हित में होती है, समाचार पत्र के हित अर्थात उसकी खपत बढाने में भी सहायक होती है।

७. निकटता या समीपता

पाठक के लिये निकटस्थ छोटी से छोटी घटना दूर बड़ी घटना से अधिक महत्वपूर्ण होती है। आत्मीय लगाव व अपनेपन के कारण वह अपनी निकटवर्ती या घनिष्ठ व्यक्ति, स्थान आदि से सम्बंधित घटना में अधिक रुचि लेता है, इसलिये जिस स्थान का समाचार दिया जा रहा हो और जिस स्थान पर समाचार पत्र प्रकाशित हो रहा हो उसमें भौगोलिक निकटता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

८. आत्मीयता

आत्मीयता अंतस्थ सहानुभूति को खोलती है और पाठकों को समाचारों से जोड़ती है। मानवीय गुणों जैसे – प्रेम, ईर्ष्या, दया, सहानुभूति, त्याग, भय, आतंक, घृणा, हर्ष से संबंधित समाचार आत्मीय होने के कारण पाठकों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।

९. उपयोगिता

जन-सामान्य के रहन – सहन, उनकी दिनचर्या, जीवनचर्या, लोक-व्यवहार, उद्योग व्यवसाय में आवश्यक, लाभदायक, सहयोगी व उपयोगी सभी सूचनाएं व जानकारियां समाचार पत्र की उपयोगिता को बढाती हैं, जो कि पाठकों को समाचार पत्र खरीदने के लिये बाध्य करती हैं।

१०. विचित्रता

मनुष्य की वृत्ति सदा ही जिज्ञासु रही है। संशय और रहस्य से पूर्ण समाचार पाठकों को आकर्षित करने के साथ उनकी जिज्ञासा को भी शांत करते हैं।

समाचार के साथ समाचार प्रस्तुत करने का अनोखापन, सुंदर ढंग पाठकों का मनोरंजन करने के साथ असाधारण सौंदर्यानुभूति व आनंदानुभूति कराते हैं।

११. वैयक्तिकता

आम और खास व्यक्ति के आधार पर समाचार भी विशेष और गौण महत्व रखते हैं। किसी विशेष व्यक्ति द्वारा किया गया साधारण काम और किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा किया गया विशेष काम या अप्रत्याशित उपलब्धि समाचार बन जाती है। इन समाचारों में साधारण – विशेष, अमीर – गरीब, छोटे-बड़े सभी पाठक अपना बिम्ब देखते हैं, इसीलिये इसे समाचार तत्व प्राप्त होता है।

१२. एकात्मता

एकता, अखण्डता, समानता, अभिन्नता हमारे देश, समाज और समुदाय की आत्मा है। ये हमारे आदर्श व जीवनमूल्य हैं। ये हमारे मन में एकत्व का भाव जगाते हैं। इनका अनुभव भौगोलिक सीमा के बाहर भी होता है इसलिये समाचार पत्रों में देश, समाज व धर्म से जुड़े इन आधारों को भी महत्व दिया जाता है।

१३. सुरुचिपूर्णता

पाठकों की रुचि को प्रभावित करने वाले समाचार अधिक पठनीय होते हैं। प्रत्येक पाठक की समाचार में रुचि उसकी शिक्षा, सामाजिक वातावरण, समाज में स्थिति, उद्योग-व्यवसाय, उम्र आदि पर निर्भर करती है। फिर भी, आम चुनाव, प्राकृतिक आपदा, वैज्ञानिक अविष्कार, दंगे, खेल आदि से संबंधित समाचारों में सभी की रुचि होती है।

१४. परिवर्तनशीलता

मनुष्य परिवर्तनशील प्राणी है। उसकी इच्छा-अनिच्छा, पसंद-नापसंद, रुचि-अभिरुचि सदा परिवर्तित होती रहती है। इस कारण समाज या व्यक्ति के कार्य में भी परिवर्तन होता रहता है। यही कारण है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि परिवर्तनों के सामयिक समाचार पाठकों का ध्यान खींचते हैं।

१५. रहस्यपूर्णता

मानवजीवन रहस्यों के पूर्ण है। मानव स्वाभाव है कि उसके मन में हर पल, क्या, कहां, क्यों, कब, कैसे, किसने जैसे प्रश्न उठते रहते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर के साथ गुप्त भेदों, गोपनीय विषयों के राज खुलते जाते हैं और पाठक को मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है।

१६. महत्वशीलता

यदि किसी घटना का परिणाम राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने वाला हो तब भी वह समाचार पाठकों के लिये अधिक महत्वपूर्ण होता है।

१७. भिन्नता

बहुधा एक ही तरह के समाचार एकरूपता के कारण पाठक को आकर्षित नहीं कर पाते। भिन्न – भिन्न तरह के तथा अलग – अलग ढंग से प्रस्तुत समाचार पाठकों को अधिक आकर्षित और प्रभावित करते हैं।

१८. संक्षिप्तता

आज की जिंदगी भाग-दौड़ की और तेज जिंदगी है। आज हर व्यक्ति अपने में, अपनी जिंदगी में और अपने घर-परिवार में व्यस्त है। उसके पास बड़े – बड़े व लम्बे समाचारों को पढने के लिये अतिरिक्त या खाली समय नहीं है इसलिये उचित, आवश्यक व योग्य समाचारों के साथ ही सरल, सुंदर, सही, लचीली, धारदार, रोचक भाषा शैली में दिये गये समाचारों का अपना महत्व होता है, जो कि समाचार का एक मुख्य तत्व है।

१९. स्पष्टवादिता

तथ्यों व जानकारियों के साथ विचारों और प्रस्तुतिकरण में स्पष्टवादिता का भी विशेष महत्व होता है, क्योंकि स्पष्टवादिता ही पाठकों में समाचारों के प्रति विश्वास पैदा करती है।

२०. आकार और संख्या

आकार और संख्या के आधार पर भी किसी घटना का समाचार मूल्य आंका जाता है। विमान या रेल दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा-बाढ, अकाल, महामारी आदि तथा दंगे में अधिक संख्या में मृत और घायल यात्रियों, लोगों से सम्बद्ध समाचारों को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि कम लोगों या यात्रियों की मौत के समाचार समाचार की दृष्टि से अपेक्षतया गौण होते हैं।

२१. समीक्षात्मकता

समाचार समीक्षा करने योग्य या समीक्ष्य हों तो पाठकों को उसका ठीक-ठीक मूल्यांकन करने, दृढता से प्रमाणित करने तथा अपनी राय या सम्मति प्रकट करने का अवसर मिलता है। यही कारण है कि समीक्षात्मकता समाचार का आवश्यक तत्व है।

२२. प्रतिफल

संवाददाता की यह जिम्मेदारी होती है कि वह पिछली घटनाओं, भुक्तभोगियों व विषय विशेषज्ञों की राय और अपने आकलन का सहारा लेकर अपने पाठकों व दर्शकों को किसी सूचना, स्थिति या घटना के प्रभाव, परिणाम या प्रतिफल के प्रति भी सचेत करता चले। सच्चाई यह है कि हर कोई यह जानना चाहता है कि अब क्या होगा? इससे क्या प्रभाव पड़ेगा? इससे बचा कैसे जाए? आदि – आदि। इसलिये लोगोंके साथ अपने समाचार पत्र या चैनल का सीधा सम्बंध बनाने के लिये यह जरूरी है कि संवाददाता सूचनाओं, स्थितियों व घटनाओं का विधिवत आकलन करे और विश्वसनीय तरीके से लोगों को आगे आने वाले समय के लिये जागरुक करे।

संवाददाता के गुण

संवाददाता के गुण

१. मूलभूत या बुनियादी जानकारी

संवाददाता में इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, विज्ञान, सैटेलाइट, इलेक्ट्रानिक्स आदि सभी विधाओं की मूलभूत या बुनियादी जानकारी आवश्यक है, ताकि संवाद इकट्ठा करते समय उसे कोई कठिनाई न हो और वह अपनी रिपोर्टिंग उचित तथा यथार्थ रूप में कर सके।

२. भाषाविद्

संवाददाता को अपनी मातृभाषा का ही नहीं, बल्कि राजभाषा, राष्ट्रभाषा, स्थानीय भाषा और देश – विदेश की कम से कम एक-दो भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि संवाददाता को कई भाषाओं का समन्वय उसे समाचार संकलन कर समाचार का रूप देना होता है और भाषा के अज्ञान के कारण आने वाली रुकावट को दूर करता है।

संवाददाता को विविध और विभन्न भाषाओं का ज्ञान होने पर वह किसी भी स्थान पर किसी भी समय, किसी भी व्यक्ति से अपने विचारों का आदान – प्रदान व साक्षात्कार आदि कर सकता है और घटना, समस्या, समाचार की गहरायी तक जा सकता है।

३. अच्छा साक्षात्कारकर्ता

साक्षात्कार लेने में निपुणता संवाददाता का महत्वपूर्ण गुण है। इस गुण के कारण संवाददाता को किसी घटना व विषय विशेष के बारे में वैयक्तिक साक्षात्कार, समूह साक्षात्कार, विशेष साक्षात्कार के माध्यम से आवश्यक, पूर्ण, ठोस व पुख्ता जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।

४. टंकण, आशुलेखन, मुद्रलेखन, कम्प्यूटर का ज्ञान

संवाददाता को टंकण, आशुलेखन, मुद्रलेखन, कम्प्यूटर के आवश्यक तकनीकी ज्ञान से कम से कम समय में समाचार तैयार करने और समाचार पत्र के मुद्रण की शैली व प्रस्तुतिकरण के ढंग के आधार पर समाचार प्रस्तुत करने में सहायता मिलती है।

५. संस्कृति का ज्ञान

भारतीय आदर्श व जीवनमूल्यों का निर्धारण संस्कृति करती है, जिससे हर भारतवासी किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जु़ड़ा हुआ है। संवाददाता को अपने देश की संस्कृति का भली-भांति ज्ञान होना एक आवश्यक गुण माना जाता है, क्योंकि इसके कारण पाठकों की भावनाओं, विचारों व आवश्यकताओं को समझकर उसके अनुरूप समाचारों को प्रस्तुत करना संभव हो पाता है, जिससे समाचार पत्र की विश्वसनीयता और न्यायप्रियता उभरकर सामने आने में मदद मिलती है और समाचार पत्र जन-साधारण से मानसिक व भावनात्मक स्तर पर जुड़ जाता है और सामूहिक कल्याण करना संभव हो पाता है।

६. पाठक की रुचि का ज्ञान

संवाददाता का समाचार की समसामयिकता के साथ पाठक की रुचि का भी ख्याल रखना उसकी विशेष योग्यता माना जाता है, क्योंकि पाठकों की रुचि के आधार पर संकलित समाचार समाचार पत्र की लोकप्रियता को बढाने में सहायक होते हैं।

कुशल संवाददाता अपने संवाद की प्रस्तुति इस प्रकार सरल व सुंदर ढंग से करते हैं कि पाठकों को उसे समझने में कठिनाई न हो और वे उसमें अधिकाधिक रुचि लें।

७. जिज्ञासु वृत्ति

हर व्यक्ति के मन में पल-पल कई प्रश्न जन्म लेते रहते हैं, जिनमें से कुछ का उत्तर तो उसे यहां-वहां से, अपने आस-पड़ोस से, अपने प्रयासों से और निजी स्त्रोतों से मिल जाता है, परंतु कुछ महत्वपूर्ण व ठोस प्रश्नों के उत्तर के लिये उसे जन-संचार के अन्य माध्यमों पर निर्भर रहना पड़ता है।

पाठकों की जिज्ञासा को शांत करने के लिये संवाददाता में किसी घटना, समस्या या समाचार को जानने की उत्सुकता का गुण होना अवश्यंभावी होता है, क्योंकि उसकी अपनी जिज्ञासु वृत्ति ही किसी घटना या समाचार की गहरायी तक पहुंचने और वास्तविक तथ्यों, आंकड़ों और सूचनाओं को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में सहायक हो सकती है।

८. साहस और सहनशीलता

साहसी होना संवाददाता का एक मुख्य गुण है। कभी-कभी संवाददाता को समाचार इकट्ठा करने के लिये युद्ध, उपद्रव, प्राकृतिक प्रकोप, जोखिम भरे व खोजपूर्ण स्थानों पर जाना पड़ता है। ऐसे स्थलों पर एक साहसी संवाददाता ही कार्य कर सकता है।

सहनशीलता भी संवाददाता का आवश्यक गुण है। कई बार समाचार संकलन के लिये उसे काफी कष्टों का सामना करना पड़ता है। बिना खाये-पीये, बिना सोये कई-कई दिनों तक उसे कार्य करना पड़ता है। साथ ही, कभी – कभी स्थानीय लोगों के दुर्व्यवहारों व यातनाओं का भी उसे सामना करना पड़ता है। ऐसे में सहनशीलता आवश्यक होती है, जिससे कि वह ऐसी स्थिति में भी अडिग रह सके।

९. सत्यनिष्ठा

सत्यनिष्ठा संवाददाता की एक बुनियादी आवश्यकता है। यदि वह सत्य निष्ठ होगा तो निष्पक्ष रूप से सच्चाई प्रस्तुत कर सकेगा। किसी भी घटना की सच्चाई का पाठकों के सामने लाना बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि उसके आधार पर जन-सामान्य की आम राय बनती है। गलत समाचार देने से सामाजिक और राजनैतिक हलचल या तोड़-फोड़ की नौबत आ सकती है।

१०. एकाग्रचित्तता

एकाग्रचित्तता विचारधारा को शक्तिशाली और कल्पना को स्पष्ट करती है। एकाग्रता से संकलित व प्रस्तुत समाचारों को पढने से पाठक की दृष्टि, मनन शक्ति और कार्य शक्ति तीनों शक्तियां सक्रिय हो उठती हैं, इसलिये संवाददाता की यह जिम्मेदारी होती है कि घटना स्थल पर जो नहीं है उसका प्रतिनिधित्व करे, जटिल घटनाओं व विविध समस्याओं को न्याय देने का एकाग्रचित्तता से प्रयत्न करे और पाठकों को शिक्षित प्रशिक्षित और सही रूप से मार्गदर्शित करने का प्रयत्न करे।

११. शंकालु, जागरुक, सतर्क

शंकालु प्रवृत्ति, सतर्कता और चौकन्नापन संवाददाता के महत्वपूर्ण और अनिवार्य गुण हैं, क्योंकि सतर्क रहने पर ही संवाददाता के मन में किसी घटना विशेष के बारे में क्या, क्यों, कौन, कब, कैसे और कहां जैसे संशयात्मक प्रश्न उठते हैं, जो उनके उत्तर पाने के लिये संवाददाता को उत्प्रेरित करते हैं और घटना की गहरायी और सत्यता को जानने के लिये संवाददाता को और अधिक चौकन्ना बनाते हैं।

१२. भूत, वर्तमान और भविष्य दृष्टा (पूर्वानुमान)

संवाददाता में वर्तमान में रहते हुए, इतिहास को तौलते हुए और भविष्य पर नजर रखकर काम करने की योग्यता आवश्यक होती है।

किसी भी समाचार को प्रस्तुत करते समय उस समाचार की पिछली रूपरेखा का उल्लेख करने के साथ भविष्य में पड़ने वाले उसके प्रभाव के विवेचन – विश्लेषण से पाठकों को उस समाचार की पूर्ण व सही ढंग से जानकारी मिलती है।

१३. संप्रेषणीयता

समाचार पत्रों का मुख्य तत्व विचारों का आदान – प्रदान करना और संवाददाता का प्रमुख कार्य समाचार संकलन कर अपने विचार और भावना के सधे व सशक्त शब्दों के साथ अभिव्यक्त करना है, जिसके लिये मौलिक भाषा, विशिष्ट भाषा शैली व विचार प्रकट करने के अनोखे ढंग की निहायत आवश्यकता होती है।

१४. अच्छा वक्ता

अच्छे संवाददाता को एक अच्छा वक्ता होना चाहिए. इसके बिना वह अपनी बात को लोगों के सामने रख पाने में समर्थ नहीं होगा। लोगों के विचार, भावनाएं आदि को अच्छी तरह जान पाने में वह तभी सफल होगा, जब वह अपनी बात लोगों के सामने सही ढंग से प्रस्तुत कर सके। ऐसा वह तभी कर पाएगा, जब उसमें वक्तृत्व की क्षमता होगी।

साक्षात्कार / इंटरव्यू

साक्षात्कार 
साक्षात्कार जनसंचार का अनिवार्य अंग है। प्रत्येक जनसंचारकर्मी को समाचार से संबद्ध व्यक्तियों का साक्षात्कार लेना आना चाहिए, चाहे वह टेलीविजन-रेडियो का प्रतिनिधि हो, किसी पत्र-पत्रिका का संपादक, उपसंपादक, संवाददाता। साक्षात्कार लेना एक कला है। इस विधा को जनसंचारकर्मियों के अतिरिक्त साहित्यकारों ने भी अपनाया है। विश्व के प्रत्येक क्षेत्र में, हर भाषा में साक्षात्कार लिए जाते हैं। पत्र-पत्रिका, आकाशवाणी, दूरदर्शन, टेलीविजन के अन्य चैनलों में साक्षात्कार देखे जा सकते हैं। फोन, ई-मेल, इंटरनेट और फैक्स के माध्यम से विश्व के किसी भी स्थान से साक्षात्कार लिया जा सकता है।

मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि वह दूसरों के विषय में सब कुछ जान लेना चाहता है और दूसरी यह कि वह अपने विषय में या अपने विचार दूसरों को बता देना चाहता है। अपने अनुभवों से दूसरों को लाभ पहुँचाना और दूसरों के अनुभवों से लाभ उठाना यह मनुष्य का स्वभाव है। अपने विचारों को प्रकट करने के लिए अनेक लिखित, अलिखित रूप अपनाए हैं। साक्षात्कार भी मानवीय अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। इसे भेंटवार्ता, इंटरव्यू, मुलाकात, बातचीत, भेंट आदि भी कहते हैं।

साक्षात्कार की परिभाषा साक्षात्कार या भेंटवार्ता किसे कहते हैं, इस संबंध में कोई निश्चित परिभाषा नहीं है, विषय-विशेषज्ञों ने इसे अलग-अलग परिभाषित किया है-

‘‘इंटरव्यू से अभिप्राय उस रचना से है, जिसमें लेखक व्यक्ति-विशेष के साथ साक्षात्कार करने के बाद प्रायः किसी निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करता है और फिर अपने मन पर पड़े प्रभाव को लिपिबद्ध कर डालता है।'' (डॉ. नगेन्द्र)

‘‘साक्षात्कार में किसी व्यक्ति से मिलकर किसी विशेष दृष्टि से प्रश्न पूछे जाते हैं।'' (डॉ. सत्येन्द्र)

‘मानक अंग्रेजी हिन्दी कोष' में भी इंटरव्यू शब्द कुछ इसी प्रकार से स्पष्ट किया गया है - विचार-विनिमय के उद्देश्य से प्रत्यक्ष दर्शन या मिलन, समाचार पत्र के संवाददाता और किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट या मुलाकात, जिससे वह वक्तव्य प्राप्त करने के लिए मिलता है। इसमें प्रत्यक्ष लाभ, अभिमुख-संवाद, किसी से उसके वक्तव्यों को प्रकाशित करने के विचार से मिलने को ‘इंटरव्यू' की संज्ञा दी गई है।' प्रमुख कोषकार डॉ० रघुवीर ने इंटरव्यू से तात्पर्य समक्षकार, समक्ष भेंट, वार्तालाप, आपस में मिलना बताया है।

ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी (लंदन) में किसी बिन्दु विशेष को औपचारिक विचार-विनिमय हेतु प्रत्यक्ष भेंट करने, परस्पर मिलने या विमर्श करने, किसी समाचार पत्र प्रतिनिधि द्वारा प्रकाशन हेतु वक्तव्य लेने के लिए, किसी से भेंट करने को साक्षात्कार कहा गया है। वास्तव में, साक्षात्कार पत्रकारिता और साहित्य की मिली-जुली विधा है। इसकी सफलता साक्षात्कार की कुशलता, साक्षात्कार पात्र के सहयोग तथा दोनों के सामंजस्य पर निर्भर करती है। टेलीविजन के लिए साक्षात्कार टेलीविजन-केन्द्र पर अथवा अन्यत्र उसके विशेष कैमरे के सामने आयोजित किये जाते हैं। रेडियो के लिए साक्षात्कार आकाशवाणी की ओर से रिकार्ड किये जाते हैं। अन्य साक्षात्कार समाचार पत्रों के लिए संवाददाता लेता है और उसे किसी समाचार पत्र-पत्रिका, पुस्तक में प्रकाशित किया जाता है।

साक्षात्कार के प्रकार साक्षात्कार किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है और इसका क्या स्वरूप है? इन बातों को जान लेने के बाद यह जानना जरूरी है कि साक्षात्कार कितने प्रकार के होते हैं। यही इसका वर्गीकरण कहलाता है। साक्षात्कार अनेक प्रकार से लिए गए हैं। कोई साक्षात्कार छोटा होता है, कोई बड़ा। किसी में बहुत सारी बातें पूछी जाती हैं, किसी में सीमित। कोई साक्षात्कार बड़े व्यक्ति का होता है तो कोई साधारण या गरीब अथवा पिछड़ा समझे जाने वाले व्यक्ति का। किसी में केवल सवाल-जवाब होते हैं, तो किसी में बहस होती है। किसी साक्षात्कार में हंसी-मजाक होता है तो कोई गंभीर चर्चा के लिए होता है। कुछ साक्षात्कार पत्रया फोन द्वारा भी आयोजित किए जाते हैं। कुछ विशेष उद्देश्य से पूर्णतः काल्पनिक ही लिखे जाते हैं। कोई साक्षात्कार पत्र-पत्रिका के लिए लिया जाता है तो कोई रेडियो या टेलीविजन के लिए।

 डॉ. विष्णु पंकज ने विभिन्न आधारों को लेकर साक्षात्कार को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा है - 
१. स्वरूप के आधार पर 
(क) व्यक्तिनिष्ठ
(ख) विषयनिष्ठ

२. विषय के आधार पर 
(क) साहित्यिक
(ख) साहित्येतर

३. शैली के आधार पर 
(क) विवरणात्मक
(ख) वर्णनात्मक
(ग) विचारात्मक
(घ) प्रभावात्मक
(च) हास्य-व्यंग्यात्मक
(छ) भावात्मक
(ज) प्रश्नोत्तरात्मक

‘व्यक्तिनिष्ठ' साक्षात्कार में व्यक्तित्व को अधिक महत्त्व दिया जाता है। उसके बचपन, शिक्षा, रुचियों, योजनाओं आदि पर विशेष रूप से चर्चा की जाती है। ‘विषयनिष्ठ साक्षात्कार में व्यक्ति के जीवन-परिचय के बजाय विषय पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ‘विवरणात्मक' साक्षात्कार में विवरण की प्रधानता होती है। ‘वर्णनात्मक' में निबंधात्मक वर्णन अधिक होते हैं। ‘विचारात्मक' साक्षात्कार बहसनुमा होते हैं। इनमें साक्षात्कार लेने देने वाले दोनों जमकर बहस करते हैं। ये साक्षात्कार नुकीले यानी तेजतर्रार होते है।

‘प्रभावात्मक' साक्षात्कार में साक्षात्कार लेने वाला साक्षात्कार-पात्र का जो प्रभाव अपने ऊपर महसूस करता है, उसका खासतौर पर जिक्र करता है। ‘हास्य-व्यंग्यात्मक' में हास्य-व्यंग्य का पुट या प्रधानता रहती है। ‘भावात्मक' साक्षात्कार भावपूर्ण होते हैं। ‘प्रश्नोत्तरात्मक' साक्षात्कार प्रश्नोत्तर-प्रधान अथवा मात्रप्रश्नोत्तर होते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में आजकल समाचार या संवाद के साथ जाने-माने व्यक्तियों के छोटे-बड़े साक्षात्कार प्रश्नोत्तर रूप में अधिक सामने आ रहे हैं। इनमें साक्षात्कार देने वाले का विस्तृत परिचय, साक्षात्कार लेने की परिस्थिति, परिवेश, साक्षात्कार-पात्रके कृतित्व की सूची, उसके हावभाव और साक्षात्कारकर्ता की प्रतिक्रियाओं आदि का समावेश नहीं होता या बहुत कम होता है।

४. वार्ताकारों के आधार पर 
(क) पत्रा-पत्रिका-प्रतिनिधि द्वारा
(ख) आकाशवाणी-प्रतिनिधि द्वारा
(ग) दूरदर्शन-प्रतिनिधि द्वारा
(घ) लेखकों द्वारा
(च) अन्य द्वारा

५. औपचारिकता के आधार पर 
(क) औपचारिक
 (ख) अनौपचारिक

‘औपचारिक' साक्षात्कार उसके पात्र से समय लेकर विधिवत्‌ लिए जाते हैं। ‘अनौपचारिक' साक्षात्कार अनौपचारिक बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं।

 ६. वार्ता-पात्रों के आधार पर 
क) विशिष्ट अथवा उच्चवर्गीय पात्रों के
(ख) साधारण अथवा निम्नवर्गीय पात्रों के
(ग) आत्म-साक्षात्कार

७. संपर्क के आधार पर 

(क) प्रत्यक्ष साक्षात्कार
(ख) पत्रव्यवहार द्वारा (पत्र-इंटरव्यू)
(ग) फोन वार्ता
(घ) काल्पनिक

 ‘प्रत्यक्ष भेंटात्मक' साक्षात्कार उसके पात्र के सामने बैठकर लिए जाते हैं। पत्र-व्यवहार द्वारा भी साक्षात्कार आयोजित किए जाते हैं। पत्र में प्रश्न लिखकर उसके पात्र के पास भेज दिए जाते हैं। उनका उत्तर आने पर साक्षात्कार तैयार कर लिया जाता है। ये ‘पत्र-इंटरव्यू' कहलाते हैं। ‘फोनवार्ता' में टेलीफोन पर बातचीत करके किसी खबर के खंडन-मंडन के लिए इंटरव्यू लिया जाता है। ‘काल्पनिक' साक्षात्कार में साक्षात्कार लेने वाला कल्पना के आधार पर या स्वप्न में उसके पात्र से मिलकर बातचीत करता है और प्रश्न व उत्तर दोनों स्वयं ही तैयार करता है। इसमें साक्षात्कार-पत्र द्वारा दिए गए उत्तर पूर्णतः काल्पनिक भी हो सकते हैं और उसकी रचनाओं, विचारों आदि के आधार पर भी।

८. प्रस्तुति के आधार पर 
(क) पत्र-पत्रिका में प्रकाशित
ख) रेडियो पर प्रसारित
(ग) टेलीविजन पर प्रसारित

९. आकार के आधार पर 
(क) लघु
(ख) दीर्घ

१०. अन्य आधारों पर 
(क) योजनाबद्ध
(ख) आकस्मिक
(ग) अन्य

साक्षात्कार लेते समय यह भी तय करना होता है कि साक्षात्कार-पत्रों से उसके जीवन, कृतित्व, प्रेरणास्रोतों, दिनचर्या, रुचियों, विचारों आदि सभी पर बात करनी है या विषय को ही केन्द्र में रखकर चलना है।
साक्षात्कार की अनुमति और समय पात्र और विषय निश्चित हो जाने पर आप साक्षात्कार-पात्र से भेंटवार्ता की अनुमति और समय माँगेंगे, साक्षात्कार का स्थान तय करेंगे, पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची बनाएँगे। कई बार साक्षात्कार अचानक लेने पड़ जाते हैं।

हवाई अड्डा, समारोह स्थल, रेलवे प्लेटफार्म आदि पर लिखित प्रश्नावली बनाने का अवकाश नहीं होता। पहले से सोचे हुए या अपने मन से तत्काल प्रश्न पूछे जाते हैं। संबंधित पूरक प्रश्न भी पूछे जाते हैं, जिससे बात साफ हो सके, आगे बढ़ सके। ऐसी स्थिति में भी एक रूपरेखा तो दिमाग में रखनी ही पड़ती है। प्रस्तावित प्रश्न एवं पूरक प्रश्न योजना या रूपरेखा बन जाने पर साक्षात्कार के पात्रसे प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रस्तावित प्रश्नों व पूरक प्रश्नों से वांछित सूचना, तथ्य, विचार निकलवाने का प्रयास किया जाता है।
कटुता उत्पन्न न हो और साक्षात्कार-पात्र का मान-भंग न हो, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है।

टेपरिकार्डर का उपयोग 
पत्रकार शीघ्रलिपि (शॉर्टहैंड) जानता हो, यह जरूरी नहीं। इसलिए साक्षात्कार-पात्रद्वारा प्रकट किए गए विचार, उसके द्वारा दिए गए उत्तर उसी रूप में साथ ही साथ नहीं लिखे जा सकते। आशु-लिपिक की व्यवस्था भी कोई सहज नहीं है। यदि आप पात्रके कथन श्रुतिलेख की भाँति लिखते रहेंगे तो वह उसे अखरेगा और उसकी विचार-श्रृंखला भंग हो सकती है। समय भी अधिक लगेगा। फिर भी तेज गति से कुछ वाक्यांश और मुख्य बातें अंकित की जा सकती हैं, जिन्हें साक्षात्कार समाप्त होने पर अपने घर या कार्यालय में बैठकर विकसित किया जा सकता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई महत्त्वपूर्ण बात लिखने से न रह जाए। तिथियों, व्यक्तियों-संस्थाओं के नाम, रचनाओं की सूची, स्थानों के नाम, उद्धरण, घटनाएँ, सिद्धांत-वाक्य आदि ठीक तरह लिख लेने चाहिए। जल्दी लिखने का अभ्यास अच्छा रहता है। पात्र के व्यक्तित्व, परिवेश, उसके हावभाव, अपनी प्रतिक्रिया आदि को भी यथासंभव संक्षेप में या संकेत रूप में लिख लेना चाहिए। इन्हीं बिन्दुओं और अपनी स्मृति की मदद से साक्षात्कार लिख लिया जाता है।

साक्षात्कार के समय यदि आपके साथ टेपरिकॉर्डर हो तो आपको बड़ी सुविधा रहेगी। टेप सुनकर साक्षात्कार लिख सकते हैं। इस साक्षात्कार में प्रामाणिकता भी अधिक रहती है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के साक्षात्कार में रिकार्डिंग की अच्छी व्यवस्था रहती है। साक्षात्कार लेकर साक्षात्कारकर्ता लौट आता है। वह दर्ज की गई बातों और बातचीत की स्मृति के आधार पर साक्षात्कार लिखता है। यदि बातचीत टेप की गई है तो उसे पुनः सुनकर साक्षात्कार लिख लिया जाता है। साक्षात्कार लिखते समय उन बातों को छोड़ देना चाहिए जिनके बारे में साक्षात्कार-पात्र ने अनुरोध किया हो (ऑफ द रिकॉर्ड बताया हो) अथवा उनका लिखा जाना समाज व देश के हित में न हो।

संक्षिप्त परिचय 
साक्षात्कार के आरम्भ में पात्र का आवश्यकतानुसार संक्षिप्त या बड़ा परिचय भी दिया जा सकता है। परिचय, टिप्पणी आदि का आकार इस बात पर निर्भर करता है कि साक्षात्कार का क्या उपयोग किया जा रहा है। अगर समाचार के साथ बॉक्स में भेंटवार्ता प्रकाशित की जा रही है तो विषय से संबंधित प्रश्न और उत्तर एक के बाद एक जमा दिए जाते हैं। इनमें पात्र के हावभाव, वातावरण-चित्राण, अपनी प्रतिक्रियाएँ, पात्र के कृतित्व की सूची आदि का साक्षात्कार में समावेश होता भी है तो नहीं के बराबर। इसके विपरीत दूसरे अवसरों पर कुछ साक्षात्कारकर्ता इन सब बातों का भी साक्षात्कार में समावेश करते हैं। साक्षात्कार तैयार होने पर उसे पत्रया पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेज दिया जाता है। कुछ साक्षात्कार बाद में पुस्तकाकार भी प्रकाशित होते हैं। कुछ साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार तैयार करके उसे पात्र को दिखा देते हैं और उससे स्वीकृति प्राप्त कर लेते हैं। इस समय पात्र साक्षात्कार में कुछ संशोधन भी सुझा सकता है। साधारणतः साक्षात्कार तैयार होने के बाद उसे पात्र को दिखाने और उसकी स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं है। यदि पात्र का आग्रह हो तो उसे जरूर दिखाया जाना चाहिए।

साक्षात्कार में ध्यान रखने योग्य बातें 

साक्षात्कार के समय अन्य बहुत-सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है। यद्यपि यह संभव नहीं है कि प्रत्येक साक्षात्कार लेने वाले में वांछित विशिष्ट योग्यताएँ हों, फिर भी कुछ बातों का ध्यान रखकर साक्षात्कार को सफल बनाया जा सकता है।

१. यदि साक्षात्कार लेने से पहले उसके पात्र और विषय से संबंधित कुछ जानकारी प्राप्त कर ली जाए तो काफी सुविधा रहेगी। अचानक लिए जाने वाले साक्षात्कार में यह संभव नहीं होता। यदि संगीत के विषय में साक्षात्कारकर्ता शून्य है तो संगीतज्ञ से साक्षात्कार को आगे बढ़ाने में उसे कठिनाई आएगी। हर साक्षात्कारकर्ता सभी विषयों में पारंगत हो, यह संभव नहीं; फिर भी आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। पुस्तकालयों और विषय से संबंधित अन्य व्यक्तियों से मदद ली जा सकती है।

२. साक्षात्कार का पात्र चाहे साधारण सामाजिक हैसियत का ही क्यों न हो, उसके सम्मान की रक्षा हो और उसकी अभिव्यक्ति को महत्त्व मिले, यह जरूरी है। उसके व्यक्तित्व, परिधान, भाषा की कमजोरी, शिक्षा की कमी, गरीबी आदि के कारण उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। किसी क्षेत्र विशेष का विशिष्ट व्यक्ति तो आदर का पात्र है ही।

३. साक्षात्कार करने वाले में घमंड, रूखापन, अपनी बात थोपना, वाचालता, कटुता, सुस्ती जैसी चीजें नहीं होनी चाहिए।

४. उसमें जिज्ञासा, बोलने की शक्ति, भाषा पर अधिकार, बातें निकालने की कला, पात्र की बात सुनने का धैर्य, तटस्थता, मनोविज्ञान की जानकारी, नम्रता, लेखन-शक्ति, बदलती हुई परिस्थिति के अनुसार बातचीत को अवसरानुकूल मोड़ देना जैसे गुण होने चाहिए। कई बार पात्र किसी प्रश्न को टाल देता है, कोई बात छिपा लेता है, तब घुमा-फिराकर वह बात बाद में निकलवाने की कोशिश होती है। यदि पात्र किसी बात को न बताने के लिए अडिग है तो ज्यादा जिद या बहस करके कटुता पैदा नहीं करनी चाहिए।

५. साक्षात्कार के समय, हो सकता है कि आपके विचार किसी मामले में पात्र से न मिलते हों, तब अपनी विचारधारा उस पर मत थोपिए।

६. साक्षात्कार में पात्रके विचार, उसकी जानकारी निकलवाने का मुख्य उद्देश्य होता है। साक्षात्कारकर्ता उसमें सहायक होता है। यदि वह स्वयं भाषण देने लगेगा और पात्र के कथन को महत्त्व नहीं देगा तो साक्षात्कार सफल नहीं होगा। साक्षात्कार में प्रश्न पूछने का बड़ा महत्त्व है। यदि दो व्यक्ति किसी मुद्दे पर बराबर के विचार प्रकट करने लगते हैं तो वह साक्षात्कार नहीं रह जाता, परिचर्चा बन जाती है। साक्षात्कारकर्ता को अपने पूर्वाग्रह छोड़कर पात्र के पास जाना चाहिए। साक्षात्कार मित्र-शत्रु-भाव से न लिया जाए, बल्कि तटस्थ होकर लिया जाए।

७. साक्षात्कार में सच्चाई होनी चाहिए। पात्र के कथन और उसके द्वारा दी गई जानकारी को तोड़-मरोड़कर पेश नहीं किया जाना चाहिए, यह हर तरह से अनैतिक है। कई पात्रों की यह शिकायत रही है कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़कर साक्षात्कार तैयार कर लिया गया है। कई बार ऐसा भी होता है कि राजनेता साक्षात्कार के समय कोई बात कह जाता है मगर बाद में एतराज होने पर मुकर जाता है और कहता है कि मैंने यह बात इस तरह नहीं कही थी। कई बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें साक्षात्कारकर्ता जानता है, फिर भी उन्हें साक्षात्कार में पूछता है, क्योंकि वे बातें पात्रके मुँह से कहलवाकर जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत करनी होती हैं। साक्षात्कार कोई व्यक्तिगत चीज नहीं है, वह जनता की जानकारी के लिए लिया जाता है। निजी रूप से लिए गए साक्षात्कार, यदि उनका प्रकाशन प्रसारण नहीं होता, फाइलों में सिमटकर रह जाते हैं।

८. साक्षात्कार में ऐसे मामलों को तूल न दें, जिनसे देश-हित पर विपरीत असर पड़े, सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़े, किसी का चरित्र-हनन हो, वर्ग-विशेष में कटुता फैले या पात्रका अपमान हो। साक्षात्कार के आरम्भ और अन्त में हल्के तथा मध्य में मुख्य प्रश्न पूछे जाने चाहिए। प्रश्न और उत्तर दोनों स्पष्ट हों। यदि उत्तर स्पष्ट नहीं है तो पुनः प्रश्न पूछकर उत्तर को स्पष्ट करा लेना चाहिए।

९. साक्षात्कार यथासंभव निर्धारित समय में पूरा किया जाना चाहिए। साक्षात्कार पूरा होने पर पात्र को धन्यवाद देना न भूलिए। साक्षात्कार स्वतंत्रविधा साक्षात्कार में निबंध, रेखाचित्र, जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, नाटक (संवाद) आदि विधाओं के तत्त्व शामिल हो सकते हैं, पर सीमित और सहायक रूप में ही ऐसा हो सकता है। साक्षात्कार पत्रकारिता और साहित्य दोनों क्षेत्रों की प्रमुख स्वतंत्रऔर महत्त्वपूर्ण विधा है। साक्षात्कार में नाटक का ‘संवाद' तत्त्व बातचीत या प्रश्नोत्तर के रूप में खासतौर पर होता है। इसमें साक्षात्कार लेने-देने वाले दोनों व्यक्तियों के संवादों का महत्त्व है, पर देने वाले को ही प्रधानता दी जाती है और साक्षात्कार लेने वाले के संवाद देने वाले से बात निकलवाने के निमित्त होते हैं, यद्यपि वह उससे बहस भी कर सकता है। जब साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार की परिस्थिति, पात्र का परिचय या वातावरण का वर्णन करता है तो वह निबंधात्मक हो जाता है। साक्षात्कार में यह निबंध-तत्त्व होता है। साक्षात्कार में कहीं-कहीं संस्मरण के तत्त्व भी होते हैं, जब साक्षात्कार-पात्र अपने जीवन के प्रसंग या घटना सुनाने लगता है। जब साक्षात्कारकर्ता पात्रके व्यक्तित्व का, वेशभूषा का चित्रण करने लगता है तो वह रेखाचित्रात्मक होता है। कोई-कोई साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार के आरम्भ में पात्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय जोड़ देता है। यह जीवनी का ही तत्त्व है। कभी पात्र स्वयं अपने जीवन के विषय में बताने लगता है, जो आत्मकथा का संक्षिप्त रूप होता है।

साक्षात्कार रिपोर्ताज, फैंटेसी, सर्वेक्षण, पत्र, केरीकेचर आदि विधाओं से एक अलग विधा है। ‘परिचर्चा' एक स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित हो रही है। इसे ‘समूह-साक्षात्कार' (ग्रुप-इंटरव्यू) कहा जा सकता है। इसमें सभी विचार प्रकट करने वालों का पूरा महत्त्व होता है। कुछ लोगों ने ‘साक्षात्कार' के लिए चर्चा, विशेष परिचर्चा आदि शब्दों का प्रयोग किया है। परिचर्चा को साक्षात्कार से एक अलग विधा माना जाना चाहिए।

संवाददाता-सम्मेलन भी साक्षात्कार की तरह ही होता है। कोई विशिष्ट व्यक्ति अपनी निजी या संस्थागत नीतियों, उपलब्धियों, योजनाओं, विचारों आदि की जानकारी देने के लिए संवाददाताओं को बुलाता है। वह आरम्भ में अपने विचार प्रकट करता है अथवा मुद्रित सामग्री वितरित करता है। उसके आधार पर संवाददाता उससे प्रश्न पूछते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी विशिष्ट व्यक्ति के आगमन पर विभिन्न संवाददाता उसे जा घेरते हैं और उससे प्रश्न पूछने लगते हैं। किसी विशिष्ट व्यक्ति के विदेश-गमन पर भी उससे इस प्रकार प्रश्न पूछे जाते हैं। संवाददाता-सम्मेलन आयोजित और अनौपचारिक दोनों प्रकार के होते हैं। साक्षात्कार का मुख्य उद्देश्य तो साक्षात्कार के पात्रकी अभिव्यक्ति को जनता के सामने लाना होता है, लेकिन इसमें साक्षात्कारकर्ता का भी काफी महत्त्व होता है। यदि साक्षात्कारकर्ता सूत्राधार है तो सामने वाला व्यक्ति साक्षात्कार-नायक होता है।
सन्दर्भ
१. कॉम्प्रिहेंसिव इंग्लिश - हिन्दी डिक्शनरी
पृ०-८२० २. जनसंचार की विधा - साक्षात्कार
पृ०-६१ ३. वही, पृ०-४८

Tuesday 22 November 2016

न्यूज सोर्स (समाचार स्त्रोत)

न्यूज सोर्स (समाचार स्त्रोत)

समाचार किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका या चैनल की आत्मा होती है। जिस समाचार पत्र को ज्यादा पढ़ा जाता है या जो समाचार पत्र लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय होता है उसे ही कोई भी कंपनी विज्ञापन देना पसंद करती है। लोग उसी समाचार पत्र को पढ़ते हैं जिसकी खबरें विश्वसनीय होती हैं। अत: विश्वसनीय खबरों के लिए अच्छे NEWS SOURCE (समाचार स्त्रोत)भी होने चाहिए।
जिस समय हमारे पास इंटरनेट नहीं था उस समय समाचार स्त्रोत 3 प्रकार के होते थे। ये तीनों प्रकार निम्न है।

1. ज्ञात स्त्रोत- समाचार प्राप्त करने के लिए ऐसे स्त्रोत जिनकी आशा, अपेक्षा या अनुमान हमे पहले से ही होता है इस प्रकार के स्त्रोत ज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।
उदाहरण- पुलिस स्टेशन, ग्राम पालिका, नगर पालिका, अस्पताल, न्यायालय, मंत्रालय, श्मशान, विविध समितियों की बैठकें, सार्वजनिक वक्तव्य, पत्रकार सम्मेलन, सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के सम्मेलन, सभा-स्थल पर कार्यक्रम आदि समाचार के ज्ञात स्त्रोत हैं।
मान लीजिए आपको किसी क्राइम की खबर की रिपोर्टिंग करनी है तो उसके लिए आपको पहले से ही पता है कि क्राइम की खबर पुलिस स्टेशन में मिलेगी। अथार्त हमें पहले से ही ज्ञात है कि कौन सी खबर कहां मिलेगी इसे ही ज्ञात स्त्रोत कहेंगे।

2.अज्ञात स्त्रोत- समाचार प्राप्त करने के लिए ऐसे स्त्रोत जिनकी आशा व अपेक्षा नहीं होती और जहां से समाचार अचनाक प्राप्त होते हैं समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं। सरल भाषा में हम कह सकते हैं कि वैसे स्त्रोत जिनके बारे में हमें पता नहीं होता। उदाहरण के लिए अचानक से कहीं सड़क हादसा हो गया।

3.पूर्वानुमानित स्त्रोत- समाचार प्राप्त करने के वैसे स्त्रोत जिनके बारे में पहले से अनुमान लगाया गया हो पूर्वानुमानित स्त्रोत कहलाते हैं।
उदाहरण के लिए हम मौसम का पुर्वानुमान लगा सकते हैं और पुर्वानुमान पर ही ज्यादातर मौसम की खबरें प्रकाशित होती हैं।
अगर किसी मोहल्ले में गंदगी है तो हम ये अनुमान लगाकर स्टोरी कर सकते हैं कि यहां कोई बीमार होगा या होने वाला है।
जब हम किसी नेता से मिलने जाते हैं तो हम ये अनुमान लगा सकते हैं कि महोदय किस विषय पर विचार रखेंगे या कौन सा विवादीत बयान दे सकते हैं।
हम यह कह सकते हैं कि पूर्वानुमानित स्त्रोत ऐसे स्त्रोत हैं जो हमें अलर्ट रखते हैं।

समाचार के अन्य स्त्रोत-

इंटरनेट के आने के बाद सूचना के क्षेत्र में गजब की क्रांति आई। इसमें कोई दोराय नहीं कि इक्कीसवीं सदी में सूचना क्रांति की धमक के साथ पाठक या दर्शक भी इतना जिज्ञासु हो चुका है कि समय बीतने से पहले वह सब कुछ जान लेना चाहता है, जो उससे जुड़ा है और उसकी रुचि के अनुरूप है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि समाचारों के परम्परागत स्त्रोतों और नये उभरते स्त्रोतों के बीच सार्थक समन्वय स्थापित करके वह सब कुछ समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए, जो डिमांड में है। कुछ ऐसे ही महत्वपुर्ण समाचार स्त्रोत निम्न हैं।

1. REPORTER (संवाददाता)
किसी भी मीडिया संस्थान के लिये सबसे सटिक समाचार स्त्रोत उसका अपना रिपोर्टर ही होता है। रिपोर्टर द्वारा दी गई जानकारी या खबर पर ही संस्थान को सबसे ज्यादा विश्वास होता है। इसलिये किसी कवरेज पर गये संवाददाता की रिपोर्ट को प्राथमिकता दी जाती है और उस कवरेज से जुड़ी विज्ञप्तियों को नकार दिया जाता है।
बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों में रिपोर्टरों की एक लंबी टीम होती है। समाचारों में विषयवस्तु के हिसाब से ही संवाददाताओं को तैनात किया जाता है। आज कल राजनीतिक दलों के लिये अलग – अलग रिपोर्टर, शिक्षा-संस्कृति, साहित्य, खेल, अर्थ, विज्ञान, फैशन, न्यायालय, सरकारी कार्यालयों के लिए अलग रिपोर्टर या पुलिस और अपराध आदि विषयों व विभागों की खबरों के लिये क्राइम रिपोर्टर रखना हर संस्थान के लिए जरुरी हो गया है । आजकल लगभग हर मीडिया संस्थान समाचार के बाजार में अपना कब्जा बनाने के लिये छोटे – छोटे गांवों और पिछड़े बाजारों में भी अपना रिपोर्टर तैनात करता है।

2. NEWS AGENCY
रिपोटर्स के बाद समाचार प्राप्त करने का दूसरा स्त्रो न्यूज एजेंसियां हैं। देश – विदेश की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिये मीडिया संस्थान को इन्हीं पर निर्भर रहना पड़ता है। छोटे और कुछ मझोले संस्थान तो पूरी तरह इन्हीं पर निर्भर होते हैं। देश के दूरदराज इलाकों व विदेशों के विश्वसनीय समाचार प्राप्त करने का यह सस्ता व सुलभ साधन है।
अपने देश में मुख्य रुप से चार राष्ट्रीय न्यूज एजेंसियां काम कर रही हैं। ये हैं यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया (यूएनआई), प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई), यूनीवार्ता और भाषा। यूएनआई और पीटीआई अंग्रेजी की न्यूज एजेंसी हैं, जबकि यूनीवार्ता व भाषा इन्हीं की हिन्दी समाचार सेवाएं हैं। इनके अलावा समाचार चैनलों के लिए एएनआई है जो वीडियो सेवा उपलब्ध करवाता है।

3. INTERNET
आज के समय में समाचारा प्राप्त करने का इंटरनेट एक महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। दफ्तर में बैठे-बैठे एक क्लीक से हम देश भर के तमाम सामाचार जान सकते हैं और उनका प्रयोग कर सकते हैं। सच कहा जाये तो इंटरनेट और इंट्रानेट ने समाचार पत्रों व उनके कार्यालयों की शक्ल ही बदलकर रख दी है। बहुतेरे समाचारों के इंटरनेट संस्करण भी निकाले जा रहे हैं। कई समाचार पत्र तो इंटरनेट के भरोसे ही देश – विदेश का पूरा पृष्ठ प्रकाशित करते हैं। इंटरनेट पर फोटो के साथ-साथ समाचारों के विजुअल भी आसानी से प्राप्त हो जाते हैं।कई लोग तो अपने द्वारा ली गई वीडियो या समाचार इंटरनेट के माध्यम से वायरल कर रहे हैं। आज के समय में फेसबुक और ट्वीटर जैसी साइटों से भी समाचार मिलने लगे हैं। आजकल नेता समचार चैनलों पर बयान देने के बजाय ट्वीटर पर ट्वीट करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।

4. PRESS RELEASE (विज्ञप्तियां)
विज्ञप्तियां समाचारों की बहुत बड़ी स्त्रोत होती हैं। कई बार समाचार पत्र के पृष्ठों को भरने के लिये ताजा समाचार उपलब्ध ही नहीं होते, ऐसे में ऑफिस में आईं विज्ञप्तियां यानी प्रेस नोट मह्तवपुर्ण भूमिका निभाती हैं। प्राय: विज्ञप्तियां दो प्रकार की होती हैं – सामान्य और सरकारी विज्ञप्तियां।
प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्टान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर समाचार-पत्र के कार्यालयों में प्रकाशन के लिए भेजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
 (अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस  कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवष्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ और सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की  तिथि अंकित होती है।
 (ब) प्रेस रिलीज- शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र के कार्यालयों को प्रकाषनार्थ भेजे जाते हैं। जैसे रेल भाड़ा अथवा  ब्याज-दरों में वृद्धि।
 (स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट    के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
 (द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी  गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है।

5. जनसंपर्क
हम जानते हैं कि वही संवाददाता सफल हो पाता है, जो नित्य एक नये आदमी से मिलता है या उससे संपर्क बनाता है। यह सच है कि बहुत से समाचार आम आदमी के माध्यम से ही संवाददाता तक पहुंचते हैं। भले ही आम आदमी संवाददाता को मात्र एक सूत्र पकड़ाते हैं और पूरे समाचार का ताना-बाना स्वयं संवाददाता को ही बुनना पड़ता है, लेकिन आम आदमी का संवाद सूत्र में कार्य कर देना ही समाचार पत्र या समाचार चैनल के प्रचार – प्रसार के लिये काफी होता है। सच्चाई यह भी है कि यदि किसी समाचार पत्र या चैनल के लिये आम आदमी सूत्र की तरह काम करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि अमुक समाचार पत्र या चैनल की लोकप्रियता बहुत अधिक बढ रही है।
हम यह कह सकते हैं कि कुशल संवाददाता वही होता है, जिसके पास काफी सूत्र होते हैं। ऐसे संवाददाताओं से समाचार छूट जाने का प्रश्न ही नहीं उठता।

6. RADIO OR TV (रेडियो व टीवी)
समाचार प्राप्ति के लिए टीवी और रेडियो भी एक महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। घर बैठे आम आदमी इन्हीं माध्यमों के जरिए देश-विदेश की तमाम समाचारों को जान पाता है। ऐसे समाचार पत्र जिनके संवाददाता किस जगह नहीं है तो उन समाचार पत्रों को टीवी चैनल के माध्यम से ही उस जगह की खबर मिलती है। कई बार समाचार चैनल एक दूसरे की खबरों को देखकर चलाते हैं। हम यह कह सकते हैं कि सभी समाचार चैनल एक-दूसरे के पुरक हैं और एक दूसरे के लिए एक अच्छे स्त्रोत भी हैं। यही कारण है कि सभी मीडिया संस्थानों में टीवी चैनल लगे होते हैं।

7. INTERVIEW OR PRESS CONFRENCE(साक्षात्कार और प्रेस वार्ताएं)
साक्षात्कार और प्रेस वार्तायें भी समाचार प्राप्त करने के अच्छे स्त्रोत हैं। इनसे कभी – कभी ऐसे समाचार भी मिल जाते हैं जो समाचार पत्रों व समाचार चैनलों की लीड यानी मुख्य समाचार बन जाते हैं। कई बार किसी राजनीतिक दल या कंपनी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया जाता है जिसमें सभी मीडिया संस्थानों के संवाददाताओं को आमंत्रित किया जाता है। प्रेस कांफ्रेंस का विषय पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है जिसके बाद उसके संबंध में संवाददाताओं को जानकारी दी जाती है। संवाददात उस विषय से संबंधित प्रश्न भी उस दौरान कर सकते हैं।

पत्रकारिता के क्षेत्र

पत्रकारिता के क्षेत्र
आज हमारे जीवन में विविधता आ गयी है साथ ही संचार साधनों की भी बहुलता हो गयी है। इसने पत्रकारिता को भी बहुआयामी बना दिया है। जीवन जगत के हर क्षेत्र में आज पत्रकारिता की घुसपैठ है। उसका विस्तार हर ओर है।

आर्थिक पत्रकारिता – आर्थिक जगत से जुड़ी खबरें इसके तहत आती हैं। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत व्यापारिक सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए ही हुई थी। 29 जनवरी 1780 को कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले भारत के पहले अखबार हिक्की गजट ने अपने पत्र के उद्देष्य के विषय में लिखा था- राजनीतिक और व्यापारिक साप्ताहिक, सभी पार्टियों के लिए खुला है लेकिन किसी से प्रभावित नहीं है। इससे स्पष्ट है कि अखबार का उद्देश्य व्यापारिक गतिविधियों की सूचना देना भी था।
आज आर्थिक मुद्दे लोगों के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पाठक और दर्शक भी आर्थिक गतिविधियों संबंधित खबरों में अत्यंत रूचि लेते है। इसलिए न सिर्फ अंग्रेजी बल्कि हिंदी में भी आर्थिक परिशिष्टों का प्रकाशन हो रहा है। देश के विभिन्न भागों से आज इकोनाॅमिक टाईम्स, बिजिनेस इंडिया, बिजनेस टूडे, दलाल, आदि जैसे आर्थिक दैनिक, साप्ताहिक अथवा मासिक का प्रकाशन होता हैं। खासकर व्यापार जगत की खबरों के लिए टाइम्स नाउ , जी बिजनेस आदि समाचार चैनल हैं। इसके अलावा नियमित खबरों में चाहे वे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक सबमें आर्थिक जगत से जुड़ी खबरों के लिए विशेष स्थान होता है।

अपराध पत्रकारिता- अपराध जगत से जुड़ी खबरों के बारे में लिखना अपराध पत्रकारिता के तहत आता है। जो पत्रकार पुलिस बीट, आपराधिक मामलों को देखता है क्राइम रिपोर्टर कहलाता है। हत्या, चोरी -डकैती, लूटपाट की घटनाओं की खबर अपराध पत्रकारिता के तहत आती है।

संसदीय पत्रकारिता- संसद के दोनों सदनों, प्रादेशिक विधान सभाओं, परिषदों की कार्यवाही की खबर इसके तहत आते हैं। संसदीय पत्रकारिता करते हुए काफी सावधानी बरती जाती है, ताकि अवमानना का कोई प्रश्न न उठे। अधिकतर अनुभवी पत्रकारों को ही यह जिम्मेदारी दी जाती है। संसद की पत्रकार दीर्घा में देश के प्रतिष्ठित पत्रकार मौजूद रहते हैं।

महिला पत्रकारिता – महिलाओं से संबंधित सूचना, शिक्षा, एवं मनोरंजन या उनके हित से जुड़ी कोई खबर महिला पत्रकारिता है। आज नारी जगत से संबंधित पत्र पत्रिकाएं हैं। अखबारों मे भी उनके लिए अलग से परिषिष्ट दिए जाते हैं। लेकिन अक्सर यह समय काटने या मनोरंजन का साधन ही बनकर रह जाता है। क्योंकि इनमें श्रृंगार, फैशन, घर सजाने, पतियों को खुश रखने की कला आदि पर ही जोर रहता है। लेकिन इन सबके अलावा विज्ञान, खेल, राजनीति, साहित्य आदि में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उनसे संबंधित कुप्रथाओं, उनके उत्पीड़न, शोषण आदि की खबर रखना ही सही मायने में महिला पत्रकारिता है।

बाल पत्रकारिता – बच्चों से जुड़ी गतिविधिओं की पत्रकारिता बाल पत्रकारिता है। उनकी जिज्ञासाओं की शांति के लिए रंग बिरंगे मनोरंजक रूप में, उन्हीं की भाषा में पत्र पत्रिकाएं होनी चाहिए। बच्चों के लिए हमेशा से पत्रिकाएं निकलती रहीं हैं। बालक, सुमन सौरभ चंपक, नन्दन, चन्दामामा, पराग, बालभारती आदि कई पत्रिकाएं विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों की रूचि को ध्यान में रखते हुए निकाली जाती रहीं हैं। लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में इनके लिए साप्ताहिक /मासिक परिशिष्ट निकाले जाते हैं।

स्वास्थ्य पत्रकारिता - जन स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे लोगों के लिए अहम होते हैं। स्वास्थ्य पत्रकारिता केवल मेडिकल की ही नहीं बल्कि मेडिको सोशल पत्रकारिता भी कही जाती है। यहो सिर्फ समाचार ही नहीं बल्कि विचार और पुनर्विचार का भी काफी महत्व होता है। स्वास्थ्य पत्रकारिता के लिए तकनीकी और सही जानकारी बहुत जरूरी है। चिकित्सा क्षेत्र की कोई भी अधूरी या गलत जानकारी जानलेवा या भयावह साबित हो सकती है।

खेल पत्रकारिता - खेल जगत में लोगो की रूचि रहती है। इसके अद्यतन जानकारी के लिए लोग मीडिया पर नजर गड़ाए रहते हैं। राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर के खेल और खिलाड़ियों की खबर देने के साथ साथ इस क्षेत्र में चल रहे पहल, परिवर्तन, वाद विवाद की खबर देना भी खेल पत्रकारों का काम है। यही नहीं खेल से जुड़े संगठनों आदि की खबर पर भी खेल पत्रकारों की नजर होती है। अधिकांश पत्र पत्रिकाओं में खेल के लिए अलग स्थान सुनिश्चित होता है।

विज्ञान पत्रकारिता – विज्ञान मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसलिए विज्ञान पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हुआ है। लोगों के विकास से जुटकर यह पत्रकारिता मानव जीवन को उन्नत बनाने को प्रयासरत है। थल, जल और वायु और इसमे होने वाली नित नई खोजों, हलचलों की खबरें देना विज्ञान पत्रकारिता के तहत आता है।

कला, संस्कृति और साहित्यिक पत्रकारिता – कला संस्कृति और सहित्य जगत से जुड़ी खबरे इसके तहत आती हैं। साहित्य और पत्रकारिता का सबंध पुराना है। सभी मीडिया इनके लिए स्थान सुनिश्चित रखती है। मनोरंजन जगत के लिए ढेर सारी पत्र पत्रिकाएं निकलती हैं।

ग्राम्य पत्रकारिता – हमारा देश गांवों का देश कहा जाता है। गांव की और गांव के लिए खबर हमारे पूरे देश के लिए मायने रखता है। उनकी जरूरतों और विकास से जुड़े मुद्दे सबके लिए महत्वपूर्ण हैं। गांवो से जुड़ी खबरों की जरूरत के बावजूद आज के बाजारवाद में ग्राम्य पत्रकारिता का स्थान मीडिया में धीरे धीरे कम गया है।

राजनीतिक पत्रकारिता – हमारा देश लोकतंत्र है और इसका चौथा खंभा कहा जाता है पत्रकारिता। राजनीति से जुड़ी खबरें आम लोगों के लिए भी काफी मायने रखती हैं। आज मीडिया की घुसपैठ हर राजनीतिक दल में है। हर मीडिया हाउस में न सिर्फ राजनीति एक अलग बीट होता है, बल्कि बड़े प्रकाशनों में तो महत्वपूर्ण दलों के अलग अलग बीट होते हैं। इनसे जुड़ी खबरें देना और उससे जुड़ी बातों का विश्लेषण करना भी पालिटिकल रिपोर्टर का काम होता है।