सबसे अधिक पढ़ी गई पोस्ट

Wednesday 4 May 2016

संपादन

संपादन के निम्नलिखित चरण माने जा सकते हैं –

1. सामग्री चयन व सामग्री विश्लेषण
2. सामग्री का भाषा संपादन
3. प्रस्तुतिकरण

अच्छे संपादन के लिए यह भी बहुत जरूरी है कि अपने विचारों‚ उनके स्रोतों और उनके निर्माण की प्रक्रिया के बारे में सजगता हो।

उल्टा पिरामिड सिद्धांत : 
समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन।

मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक-दो ककार दिये जा सकते हैं।

बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।

निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।

 समाचार आकर्षक होना चाहिए।
भाषा सहज और सरल हो।
समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास  हो जाए।
2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5.  अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या   उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो  उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से  शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।

2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।

3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।
 समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
  1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
  2.  समाचार नीति के अनुरूप हो।
  3.  समाचार तथ्याधारित हो।
  4.  समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
  5.  समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे   पुष्ट बनाएँ।
  6.  समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस   कर दें।
  7.  समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
  8.  अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
  9.  ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
 13.  समाचार की भाषा में एकरूपता होना चाहिए।
 14.    समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।

सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द

सम्पादन की आवश्यकताएँ
1. व्यापक अध्ययन व अभिरुचि: राजनीति‚ समाज‚ इतिहास‚ संस्कृति‚ सिनेमा‚ खेल‚ साहित्य आदि जीवन और समाज से जुड़ी ढेरों चीजों का अध्ययन करना और उनमें रुचि लेना ही बेहतर संपादन के लिए तैयार कर सकता है‚ यही वह कच्चा माल है‚ जिससे संपादन के कौशल को विकसित किया जाता है। इसे और सरल ढंग से समझ लें। कोई भी कॉपी किसी न किसी विषय से संबंधित होती है‚ वह कॉपी समाचार के रूप में हो या फीचर के रूप में आलेख के रूप में हो या साक्षात्मकार के रूप में। उस विषय की जानकारी ही यह बता पाएगी कि तथ्य कितने सही हैं‚ उनका विश्लेषण या प्रस्तुतीकरण कितना संगत है।

2. भाषा का समुचित ज्ञान: जिस भाषा में संपादन किया जाना है‚ उसके समुचित ज्ञान का मतलब है कि उसके विराम चिंहों‚ व्याकरण‚ वाक्यरचना‚ मुहावरों‚ शब्द-संपदा‚ अभिव्यक्ति शैली तथा भाषा व संप्रेषण के विविध रूपों व स्तरों का ठीक ज्ञान‚ अनुभव और अभ्यास ही वह दक्षता विकसित कर सकता है कि अच्छा संपादन किया जा सके

3. विधा की समझ: समाचार‚ फीचर‚ आलेख‚ इंटरव्यू ऐसी ही अनेक विधाएं या रूप हैं जिनमें पत्रकारिता संबंधी लेखन होता है‚ हर विधा की अपनी विशिष्टता है। कोई समाचार आलेख की तरह नहीं लिखा जा सकता‚ न ही कोई फीचर समाचार की शैली में लिखा जा सकता है। विधा की जरूरत के अनुसार कॉपी होनी चाहिए। यदि नहीं है तो कितने और किस तरह के परिवर्तन से वह वैसी हो सकती है‚ यह समझ होनी चाहिए।

4. प्रस्तुति का विवेक: इसमें हेडिंग‚ सबहेडिंग लगाना‚ पैराग्राफस में कॉपी को बांटना‚ कौन सा पैरा पहले आना चाहिए कौन सा बाद में‚ कौन से वाक्य पहले आने चाहिए कौन से बाद में‚ शब्दों‚ वाक्यों‚ पैरा का परस्पर संबद्ध होना। इंट्रो‚ हाइलाइटर‚ कैप्शन आदि से कॉपी को सज्जित करना‚ और आकर्षक बनाना यह आज बहुत महत्व रखता है। यह सारा काम भी विधा के अनुरूप होना चाहिए‚ यानी समाचार‚ फीचर‚ आलेख…. आदि की प्रस्तुति में भिन्नता होगी‚ फिर यह प्रस्तुति अखबार‚ पत्रिका आदि के अपने विशिष्ट स्वरूप और पाठक वर्ग के अनुसार होगी। संपादन के लिए सबसे जरूरी चीज है – अभिरुचि का विकास। यह अभिरुचि भाषा, कंटेंट‚ विचार‚ समाज‚ पत्रकारिता के विविध माध्यम और विधा के अनेक रूपों में में गतिशील होनी चाहिए।

7 comments:

Unknown said...

Bhai dil se thnks

Shahid Khan said...

सर मुझे वीडियो संपादन के सिध्दांत और एडिटिंग के प्रकार चाहिए!! प्लीज़ हेल्प

News Umesh said...

धन्यवाद भाई

Unknown said...

समाचार पत्रों की प्रस्तुति और प्रक्रिया???

Unknown said...

👍 good information

Unknown said...

👍

Vinay kumar jha said...

मैं जर्नलिज्म का छात्र हूं आपके द्वारा दी गई जानकारी वाकई काफ़ी मददगार साबित हुई हैं मेरे लिए, मैं चाहता हूं आप से और अधिक विषयों पर भी ज्ञान प्राप्त करूं। आपसे संपर्क हो जायेगा तो बहुत अच्छा होगा ।
मेरा पता - thevinaykumarjha@gmail.com