मनुष्य मात्र की भाषायी अथवा
कलात्मक अभिव्यक्ति को एक से अधिक व्यक्तियों तथा स्थानों तक पहुँचाने की व्यवस्था
को ही मीडिया का नाम दिया गया है। पिछली कई सदियों से प्रिंट मीडिया इस संदर्भ में
अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है, जहाँ
हमारी लिखित अभिव्यक्ति पहले तो पाठ्य रूप में प्रसारित होती रही तथा बाद में
छायाचित्रों का समावेश संभव होने पर दृश्य अभिव्यक्ति भी प्रिंट मीडिया के द्वारा
संभव हो सकी। यह मीडिया बहुरंगी कलेवर में और भी प्रभावी हुई। बाद में
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी साथ-साथ अपनी जगह बनाई, जहाँ पहले
तो श्रव्य अभिव्यक्ति को रेडियो के माध्यम से प्रसारित करना संभव हुआ तथा बाद में
टेलीविजन के माध्यम से श्रव्य-दृश्य दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रसारण संभव हो
सका। प्रिंट मीडिया की अपेक्षा यहाँ की दृश्य अभिव्यक्ति अधिक प्रभावी हुई,
क्योंकि यहाँ चलायमान दृश्य अभिव्यक्ति भी संभव हुई। बीसवीं सदी में
कंप्यूटर के विकास के साथ-साथ एक नए माध्यम ने जन्म लिया, जो
डिजिटल है। प्रारंभ में डाटा के सुविधाजनक आदान-प्रदान के लिए शुरू की गई कंप्यूटर
आधारित सीमित इंटरनेट सेवा ने आज विश्वव्यापी रूप अख्तियार कर लिया है। इंटरनेट के
प्रचार-प्रसार और निरंतर तकनीकी विकास ने एक ऐसी वेब मीडिया को जन्म दिया, जहाँ अभिव्यक्ति के पाठ्य, दृश्य, श्रव्य एवं दृश्य-श्रव्य सभी रूपों का एक साथ क्षणमात्र में प्रसारण संभव
हुआ।
यह वेब मीडिया ही ‘न्यू मीडिया’ है, जो एक कंपोजिट मीडिया है, जहाँ
संपूर्ण और तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहाँ एक शीर्षक अथवा
विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्यिों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह
साथ-साथ देख पाना भी संभव है। इतना ही नहीं, यह मीडिया
लोकतंत्र में नागरिकों के वोट के अधिकार के समान ही हरेक व्यक्ति की भागीदारी के
लिए हर क्षण उपलब्ध और खुली हुई है।
‘न्यू मीडिया’ पर अपनी अभिव्यक्ति के
प्रकाशन-प्रसारण के अनेक रूप हैं। कोई अपनी स्वतंत्र ‘वेबसाइट’
निर्मित कर वेब मीडिया पर अपना एक निश्चित पता आौर स्थान निर्धारित
कर अपनी अभिव्यक्तियों को प्रकाशित-प्रसारित कर सकता है। अन्यथा बहुत-सी ऐसी
वेबसाइटें उपलब्ध हैं, जहाँ कोई भी अपने लिए पता और स्थान
आरक्षित कर सकता है। अपने निर्धारित पते के माध्यम से कोई भी इन वेबसाइटों पर अपने
लिए उपलब्ध स्थान का उपयोग करते हुए अपनी सूचनात्मक, रचनात्मक,
कलात्मक अभिव्यक्ति के पाठ्य अथवा ऑडियो/वीडियो डिजिटल रूप को अपलोड
कर सकता है, जो तत्क्षण दुनिया में कहीं भी देखे-सुने जाने
के लिए उपलब्ध हो जाती है।
बहुत-सी वेबसाइटें संवाद के लिए समूह-निर्माण की सुविधा देती हैं,
जहाँ समान विचारों अथवा उद्देश्यों वाले लोग एक-दूसरे से जुड़कर
संवाद कायम कर सकें। ‘वेबग्रुप’ की इस
अवधारणा से कई कदम आगे बढ़कर फेसबुक और ट्विटर जैसी ऐसी वेबसाइटें भी मौजूद हैं,
जो प्रायः पूरी तरह समूह-संवाद केन्द्रित हैं। इनसे जुड़कर कोई भी
अपनी मित्रता का दायरा दुनिया के किसी भी कोने तक बढ़ा सकता है और मित्रों के बीच
जीवंत, विचारोत्तेजक, जरूरी
विचार-विमर्श को अंजाम दे सकता है। इसे सोशल नेटवर्किंग का नाम दिया गया है।
‘न्यू मीडिया’ से जो एक अन्य सर्वाधिक
लोकप्रिय उपक्रम जुड़ा है, वह है ‘ब्लॉगिंग’
का। कई वेबसाइटें ऐसी हैं, जहाँ कोई भी अपना
पता और स्थान आरक्षित कर अपनी रुचि और अभिव्यक्ति के अनुरूप अपनी एक मिनी वेबसाइट
का निर्माण बिना किसी शुल्क के कर सकता है। प्रारंभ में ‘वेब
लॉग’ के नाम से जाना जानेवाला यह उपक्रम अब ‘ब्लॉग’ के नाम से सुपरिचित है। अभिव्यक्ति के अनुसार
ही ब्लॉग पाठ्य ब्लॉग, फोटो ब्लॉग, वीडियो
ब्लॉग (वोडकास्ट), म्यूजिक ब्लॉग, रेडियो
ब्लॉग (पोडकास्ट), कार्टून ब्लॉग आदि किसी भी तरह के हो सकते
हैं। यहाँ आप नियमित रूप से उपस्थित होकर अपनी अभिव्यक्ति अपलोड कर सकते हैं और उस
पर प्राप्त प्रतिक्रियाओं को इंटरैक्ट कर सकते हैं। ‘ब्लॉग’
निजी और सामूहिक दोनों तरह के हो सकते हैं। यहाँ अपनी मौलिक
अभिव्यक्ति के अलावा दूसरों की अभिव्यक्तियों को भी एक-दूसरे के साथ शेयर करने के
लिए रखा जा सकता है।
बहुत से लोग ‘ब्लॉग’ को
एक डायरी के रूप में देखते हैं, जो नियमित रूप से वेब पर
लिखी जा रही है, एक ऐसी डायरी, जो लिखे
जाने के साथ ही सार्वजनिक भी है, सबके लिए उपलब्ध है,
सबकी प्रतिक्रिया के लिए भी। एक नजरिये से ‘ब्लॉग’
नियमित रूप से लिखी जानेवाली चिट्ठी है, जो
हरेक वेबपाठक को संबोधित है, पढ़े जाने के लिए, देखे-सुने जाने के लिए और उचित हो तो समुचित प्रत्युत्तर के लिए भी।
वास्तव में ‘न्यू मीडिया’ मीडिया के क्षेत्र में एक नई चीज है। यह चीज यूं तो अब बहुत नई नहीं रह गई
है लेकिन यह क्षेत्र पूर्णतः तकनीक पर आधारित होने के कारण इस क्षेत्र में
प्रतिदिन कुछ ना कुछ नया जुड़ता ही जा रहा है। शुरुआत में जब टेलीविजन और रेडियो
नए-नए आए थे तब इनको न्यू मीडिया कहा जाता था। बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब
पत्रकारिता के विद्यार्थी न्यू मीडिया के रूप में टेलीविजन और रेडियो को पढ़ा और
लिखा करते थे, तकनीक में धीरे-धीरे उन्नति हुई और न्यू
मीडिया का स्वरूप भी बदलता चला गया और आज हम न्यू मीडिया के रूप में वह सभी चीजें
देखते हैं जो कि डिजिटल रूप में हमारे आस-पास मौजूद हैं। न्यू मीडिया को समझाने की
बहुत से लोगों ने अपने-अपने तरीके से कोशिश की है। न्यू मीडिया के क्षेत्र में
जाने पहचाने नाम हैं प्रभासाक्षी डॉट कॉम के बालेन्दु शर्मा दाधीच। वे कहते हैं
कि-
यूं तो दो-ढाई दशक की जीवनयात्रा के बाद शायद ‘न्यू मीडिया’ का नाम ‘न्यू
मीडिया’ नहीं रह जाना चाहिए क्योंकि वह सुपरिचित, सुप्रचलित और परिपक्व सेक्टर का रूप ले चुका है। लेकिन शायद वह हमेशा ‘न्यू मीडिया’ ही बना रहे क्योंकि पुरानापन उसकी
प्रवृत्ति ही नहीं है। वह जेट युग की रफ्तार के अनुरूप अचंभित कर देने वाली तेजी
के साथ निरंतर विकसित भी हो रहा है और नए पहलुओं, नए
स्वरूपों, नए माध्यमों, नए प्रयोगों और
नई अभिव्यक्तियों से संपन्न भी होता जा रहा है। नवीनता और सृजनात्मकता नए जमाने के
इस नए मीडिया की स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं। यह कल्पनाओं की गति से बढ़ने वाला
मीडिया है जो संभवतः निरंतर बदलाव और नएपन से गुजरता रहेगा, और
नया बना रहेगा। फिर भी न्यू मीडिया को लेकर भ्रम की स्थिति आज भी कायम है। अधिकांश
लोग न्यू मीडिया का अर्थ इंटरनेट के जरिए होने वाली पत्रकारिता से लगाते हैं।
लेकिन न्यू मीडिया समाचारों, लेखों, सृजनात्मक
लेखन या पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वास्तव में न्यू मीडिया की परिभाषा पारंपरिक
मीडिया की तर्ज पर दी ही नहीं जा सकती। न सिर्फ समाचार पत्रों की वेबसाइटें और
पोर्टल न्यू मीडिया के दायरे में आते हैं बल्कि नौकरी ढूंढने वाली वेबसाइट,
रिश्ते तलाशने वाले पोर्टल, ब्लॉग, स्ट्रीमिंग ऑडियो-वीडियो, ईमेल, चैटिंग, इंटरनेट-फोन, इंटरनेट
पर होने वाली खरीददारी, नीलामी, फिल्मों
की सीडी-डीवीडी, डिजिटल कैमरे से लिए फोटोग्राफ, इंटरनेट सर्वेक्षण, इंटरनेट आधारित चर्चा के मंच,
दोस्त बनाने वाली वेबसाइटें और सॉफ्टवेयर तक न्यू मीडिया का हिस्सा
हैं। न्यू मीडिया को पत्रकारिता का एक स्वरूप भर समझने वालों को अचंभित करने के
लिए शायद इतना काफी है, लेकिन न्यू मीडिया इन तक भी सीमित
नहीं है। ये तो उसके अनुप्रयोगों की एक छोटी सी सूची भर है और ये अनुप्रयोग निरंतर
बढ़ रहे हैं। जब आप यह लेख पढ़ रहे होंगे, तब कहीं न कहीं,
कोई न कोई व्यक्ति न्यू मीडिया का कोई और रचनात्मक अनुप्रयोग शुरू
कर रहा होगा।
न्यू मीडिया अपने स्वरूप, आकार और संयोजन में
मीडिया के पारंपरिक रूपों से भिन्न और उनकी तुलना में काफी व्यापक है। पारंपरिक
रूप से मीडिया या मास मीडिया शब्दों का इस्तेमाल किसी एक माध्यम पर आश्रित मीडिया
के लिए किया जाता है, जैसे कि कागज पर मुद्रित विषयवस्तु का
प्रतिनिधित्व करने वाला प्रिंट मीडिया, टेलीविजन या रेडियो
जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दर्शक या श्रोता तक पहुंचने वाला इलेक्ट्रॉनिक
मीडिया। न्यू मीडिया इस सीमा से काफी हद तक मुक्त तो है ही, पारंपरिक
मीडिया की तुलना में अधिक व्यापक भी है।
पत्रकारिता ही क्या, न्यू मीडिया तो इंटरनेट
की सीमाओं में बंधकर रहने को भी तैयार नहीं है। और तो और, यह
कंप्यूटर आधारित मीडिया भर भी नहीं रह गया है। न्यू मीडिया का दायरा इन सब सीमाओं
से कहीं आगे तक है। हां, 1995 के बाद इंटरनेट के लोकप्रिय
होने पर न्यू मीडिया को अपने विकास और प्रसार के लिए अभूतपूर्व क्षमताओं से युक्त
एक स्वाभाविक माध्यम जरूर मिल गया।
न्यू मीडिया किसी भी आंकिक (डिजिटल) माध्यम से प्राप्त की, प्रसंस्कृत की या प्रदान की जाने वाली सेवाओं का समग्र रूप है। इस मीडिया
की विषयवस्तु की रचना या प्रयोग के लिए किसी न किसी तरह के कंप्यूटिंग माध्यम की
जरूरत पड़ती है। जरूरी नहीं कि वह माध्यम कंप्यूटर ही हो। वह किसी भी किस्म की
इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल युक्ति हो सकती है जिसमें आंकिक गणनाओं या प्रोसेसिंग की
क्षमता मौजूद हो, जैसे कि मोबाइल फोन, पर्सनल
डिजिटल असिस्टेंट (पीडीए), आई-पॉड, सोनी
पीएसपी, ई-बुक रीडर जैसी युक्तियां और यहां तक कि बैंक एटीएम
मशीन तक। न्यू मीडिया के अधिकांश माध्यमों में उनके उपभोक्ताओं के साथ संदेशों या
संकेतों के आदान-प्रदान की क्षमता होती है जिसे हम ‘इंटरएक्टिविटी’
के रूप में जानते हैं।
न्यू मीडिया के क्षेत्र में हिन्दी की पहली वेब पत्रिका भारत दर्शन
को शुरु करने वाले न्यूजीलैण्ड के अप्रवासी भारतीय रोहित हैप्पी का कहना है किः-
‘न्यू मीडिया’ संचार का वह संवादात्मक स्वरूप
है जिसमें इंटरनेट का उपयोग करते हुए हम पॉडकास्ट, आर एस एस
फीड, सोशल नेटवर्क (फेसबुक, माई स्पेस,
ट्विटर), ब्लाग्स, विक्किस,
टैक्सट मैसेजिंग इत्यादि का उपयोग करते हुए पारस्परिक संवाद स्थापित
करते हैं। यह संवाद माध्यम बहु-संचार संवाद का रूप धारण कर लेता है जिसमें
पाठक/दर्शक/श्रोता तुरंत अपनी टिप्पणी न केवल लेखक/प्रकाशक से साझा कर सकते हैं,
बल्कि अन्य लोग भी प्रकाशित/प्रसारित/संचारित विषय-वस्तु पर अपनी
टिप्पणी दे सकते हैं। यह टिप्पणियां एक से अधिक भी हो सकती हैं। बहुधा सशक्त
टिप्पणियां परिचर्चा में परिवर्तित हो जाती हैं।
वे फेसबुक का उदाहरण देकर समझाते हैं कि- यदि आप कोई संदेश प्रकाशित
करते हैं और बहुत से लोग आपकी विषय-वस्तु पर टिप्पणी करते हैं तो कई बार पाठक वर्ग
परस्पर परिचर्चा आरम्भ कर देते हैं और लेखक एक से अधिक टिप्पणियों का उत्तर देता
है। वे कहते हैं कि न्यू मीडिया वास्तव में परम्परागत मीडिया का संशोधित रूप है जिसमें
तकनीकी क्रांतिकारी परिवर्तन व इसका नया रूप सम्मिलित है। न्यू मीडिया का उपयोग
करने हेतु कम्प्यूटर, मोबाइल जैसे उपकरण जिनमें इंटरनेट की
सुविधा हो, की आवश्यकता होती है। न्यू मीडिया प्रत्येक
व्यक्ति को विषय-वस्तु का सृजन, परिवर्धन, विषय-वस्तु का अन्य लोगों से साझा करने का अवसर समान रूप से प्रदान करता
है। न्यू मीडिया के लिए उपयोग किए जाने वाले संसाधन अधिकतर निशुल्क या काफी सस्ते
उपलब्ध हो जाते हैं।
संक्षेप में कह सकते हैं कि न्यू मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसमें
लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी है। यह ऐसा माध्यम है जो भौगोलिक सीमाओं से
पूरी तरह मुक्त, और राजनैतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग
स्वतंत्र है। जहां अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है, न अल कायदा से डरने को। इस माध्यम में न समय की कोई समस्या है, न सर्कुलेशन की कमी, न महीने भर तक पाठकीय
प्रतिक्रियाओं का इंतजार करने की जरूरत। त्वरित अभिव्यक्ति, त्वरित
प्रसारण, त्वरित प्रतिक्रिया और विश्वव्यापी प्रसार के चलते
ही न्यू मीडिया का स्वरूप अद्वितीय रूप से लोकप्रिय हो गया है।