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Wednesday 17 December 2014

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

उपभोक्ता कौन है?
वस्तुओं या सेवाओं का उपभोग करता हो, और इन वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य चुकाता हो या चु्काने का वादा करता हो या आधा चुकाता हो या आधा चुकाने का वादा करता हो।
उपभोक्ता संरक्षण कानून अधिनियम 1986
उपभोक्ता के अधिकार

1-जीवन एवं संपत्ति के लिए घातक पदार्थों या सेवाओं की बिक्री से बचाव का अधिकार ।
2-उपभोक्ता पदार्थों एवं सेवाओं का मूल्य , उनका स्तर , गुणवत्ता , शुद्धता , मात्रा व प्रभाव के संबंध में सूचना पाने का अधिकार ।
3-जहां भी संभव हो , प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उपभोक्ता पदर्थों एवं सेवाओं की उपलब्धि के भरोसे का अधिकार।
4-अपने पक्ष की सुनवाई का अधिकार व साथ ही इस आश्वासन का भी अधिकार कि सभी उपयुक्त मंचों पर उपभोक्त हितों को ध्यान में रखा जायेगा।
5-अनुचति व्यापार प्रक्रिया अथवा अनियंत्रित उपभोक्ता शोषण से संबंधित शिकायत की सुनवाई का अधिकार ।
6-उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण कानून का विषय क्षेत्र
1-केंद्र सरकार द्वारा खास तौर से छोड़ी गई कुछ वस्तुओं और सेवाओं को छोड़कर , यह कानून सभी उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है ।
2-इस कानून के अंतर्गत - निजी , सरकारी और सहकारी सभी क्षेत्र आ जाते हैं ।
इस अधिकार का प्रयोग कब किया जाता है
 जब किसी उपभोक्ता को लगे कि वस्तु या सेवा में कोई अनुचित या खराब है, जिसके कारण उसे हानि पहुंचती है ।  तब वह इस कानून का प्रयोग कर उचित उपभोक्ता फोरम में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है ।
उपभोक्ता अदालतों में शिकायत का अधिकार 
1-उपभोक्ता शिकायत कर सकता है
2-उपभोक्तताओं की पंजीकृत स्वयंसेवी संस्थाएं शिकायत कर सकती हैं ।
3-केंद्र सरकार शिकायत कर सकती है ।
4-राज्य सरकार शिकायत कर सकती है ।
5-समान हित वाले उपभोक्ता-समूह की ओर से एक अथवा अनेक उपभोक्ता शिकायत कर सकते हैं ।
शिकायतें दूर करने की व्यवस्था
1-जिला उपभोक्ता मंच या डिस्ट्रिक्ट उपभोक्ता फोरम
जिला उपभोक्ता फोरम की शक्तियां
उपभोक्ता फोरम को एक दीवानी अदालत की तरह मामले को निपटाने का अधिकार है ।
1-किसी गवाह या विपक्षी को सम्मन करने व उसकी उपस्थिति को बाध्य करने और गवाह को शपथ दिलाकर उसका परीक्षण करने के मामले,
2-किसी दस्तावेज या समाग्री , जो साक्ष्य के लिए उपलब्ध होने योग्य है, की खोज एवं उसकी प्रस्तुति के मामले,
3-साक्ष्यों को शपथ पत्र से साथ ग्रहण कनरे के मामले,
4-प्रयोगशाला या किसी अन्य उपयुक्त स्रोत से रिपोर्ट मंगवाने के मामले,
5-किसी गवाह के परीक्षण के लिए कमीशन नियुक्त करने के मामले,
6-अन्य किसी मामले में , जिसका प्रावधान किया जाये।
कौन सी शिकायत कर सकते हैं
1-जिसमें वस्तुओं अथवा सेवाओं का मूल्य या मुआवजा , यदि मांगा गया हो, उसकी कीमत बीस लाख  रुपए से अधिक ना हो।
2-जो शिकायत किए जाने वाले उपभोक्ता फोरम के स्थानीय क्षेत्राधिकार में आती हो। अर्थात या तो शिकायत का कारण उस जिला फोरम सीमा में उत्पन्न हुआ हो या विपक्षी वहां रहता हो ।
शिकायत को स्वीकार या अस्वीकार करने की समय सीमा
जिला फोरम को किसी उपभोक्ता की शिकायत को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने का निर्णय शिकायत दर्ज करने के 21 दिन अंदर करना चाहिए।
शिकायत पर निर्णय देने की समय सीमा
विपक्षी के द्वारा नोटिस प्राप्त होने के तीन महीने के अंदर उपभोक्ता फोरम को किसी उपभोक्ता की शिकायत पर अपनी निर्णय करना चाहिए। यदि शिकायत से संबंधित वस्तु या सामग्री का प्रयोगशाला में परीक्षण होना है तो ऐसी शिकायत पर उपभोक्ता फोरम को पांच महीने में अपना निर्णय ले लेना चाहिए ।
आदेश का पालन ना करने पर दण्ड
1-उपभोक्ता फोरम के आदेश का पालन ना करने पर दोषी को कम से एक माह का कारावास का दण्ड हो सकता है , जिसे बढ़कर तीन साल किया जा सकता है ।
2-अथवा कम से कम दो हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है , जो बढ़ाकर दस हजार रुपए तक किया जा सकता है , अथवा दोनों सजाएं मिल सकती हैं ।
जिला उपभोक्ता फोरम के अपील
1-जिला उपभोक्ता फोरम के खिलाफ संबंधित राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की जा सकती है ।
2-30 दिन की समय सीमा खत्म होने के बाद भी राज्य उपभोक्ता आयोग अपील को स्वीकार कर सकता है , अगर अपील ना कर पाने का कोई संतोषजनक कारण हो।
3-अगर जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश के अंतर्गत अपीलकर्ता को विपक्षी को कोई रकम अदा करनी है तो उसे उस रकम का पचास फीसदी या पचीस हजार रुपए, जो भी कम हो , अपील करने से पहले जमा कराना होगा। तब राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील कर सकते हैं ।
2- जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद
    जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद के उद्देश्य
1-उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण एवं प्रोत्साहन करना ।
2-हर जिले आवश्यक रुप से गठित इस परिषद से देहाती अंचल में उपभोक्ताओं के हित के लिए काम करना संभव होगा।
3-उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग या राज्य आयोग
राज्य सरकार राज्य उपभोक्ता आयोग हर राज्य में राज्य के अंदर उत्पन्न होने वाले या अन्य तरह से अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले उपभोक्ता विवादों का निवारण करने के लिए गठित करती है ।
1- हर राज्य में राज्य उपभोक्ता आयोग संबंधित राज्य की राजधानी में स्थित होता है ।
2-राज्य सरकार आवश्यकता पड़ने पर उपयुक्त स्थानों पर राज्य उपभोक्ता आयोग की क्षेत्रीय पीठों का गठन कर सकती है ।


राज्य उपभोक्ता आयोग में शिकायतें

1-ऐसी शिकायतें जिनमें वस्तुओं या सेवाओं या शिकायतकर्ता द्वारा मांगे गये मुआवजे की कीमत बीस लाख रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक हो,

2-ऐसी शिकायतें जिनमें जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय के खिलाफ अपील की गयी हो ।
राज्य उपभोक्ता आयोग की शक्तियां


1-उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करने के लिए राज्य उपभोक्ता आयोग के पास जिला उपभोक्ता फोरम की सभी शक्तियां होती हैं।

2-उपभोक्ताओं की शिकायतों का स्थानांतरण करने व अभिलेखों को मंगाने आदि की शक्तियां होती हैं ।

3-राज्य उपभोक्ता आयोग चाहे तो प्रक्रिया में जरुरी बदलाव कर सकता है ।

4-राज्य उपभोक्ता आयोग संबंधित राज्य के एक जिला उपभोक्ता फोरम से अपने ही राज्य के किसी अन्य जिला फोरम में उपभोक्ता शिकायत स्थानांतरित कर सकता है ।

5-राज्य उपभोक्ता आयोग को किसी भी संबंधित जिला उपभोक्ता फोरम में उपभोक्ता शिकायत के अभिलेखों को मंगाकर उनके विषय में उपयुक्त आदेश पारित करने का अधिकार होता है ।
राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश के खिलाफ अपील


1-राज्य उपभोक्ता आयोग के निर्णय के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में अपील की जा सकती है ।

2-अपील राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश पारित होने के 30 दिन के अंदर कर देनी चाहिए।

3-अगर अपीलकर्ता के पास 30 दिन की निश्चित समय सीमा के अंदर अपीन ना कर पाने का कोई संतोषजनक कारण है, तब राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की समयावधि समाप्ति के बाद भी ऐसी अपील स्वीकार कर सकता है ।

4-अगर राज्य उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में विपक्षी को क्षतिपूर्ति के लिये कोई रकम अदा करने का आदेश पारित किया है, तब ऐसे आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता को उस रकम का 50 प्रतिशत या 35 हजार रुपए , जो भी हो, अपील करने से पहले जमा कराना होगा।
राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद
राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद का उद्देश्य
1-राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद का प्रमुख उद्देश्य संबंधित राज्य के उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण व प्रोत्साहन करना है।

4-राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग या राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग 
1-उपभोक्ताओं के शिकायत निवारण के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग राष्ट्रीय स्तर पर गठित सर्वोच्च सस्था है ।
2-राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग दिल्ली में स्थित है ।
3-आवश्यकता होने पर केंद्र सरकार राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की पीठों का गठन कर सकती है ।
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में शिकायतें
1-ऐसी शिकायतें जिनमें वस्तुओं या सेवाओं की कीमत अथवा मांगे गये मुआवजे की रकम एक करोड़ रुपए से अधिक हो  ।
2-राज्य उपभोक्ता आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील ।
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की शक्तियां 


1-उपभोक्ता की शिकायतों के निवारण के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के पास वे सभी शक्तियां हैं, जो जिला उपभोक्ता फोरम को प्राप्त हैं ।

2-राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को शिकायत स्थानांतरित करने , अभिलेखों को मंगाने , अपने निर्णय की समीक्षा करने आदि की शक्तियां प्राप्त हैं ।
शिकायतों का स्थानांतरण
1-राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग एक जिला फोरम में दायर उपभोक्ता शिकायत को दूसरे राज्य के जिला फोरम में व एक राज्य उपभोक्ता आयोग में दायर याचिका को किसी दूसरे राज्य उपभोक्ता आयोग में स्थानांतरित कर सकता है ।
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को अभिलेखों को मंगाने की शक्ति 
1-अगर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को यह प्रतीत होता है कि राज्य आयोग ने ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया जो उसमें विधि द्वारा निहित नहीं है , अथवा
2-राज्य आयोग ने अपने में विधि द्वारा निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग ना किया हो ।
3-राज्य आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग अवैधानिक रुप से किया हो या उसमें अनियमितता बरती हो ।
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील 
1-राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है ।
2-जिस निर्णय या आदेश के खिलाफ अपील करनी है , उसके पारित होने के 30 दिन के अंदर इस तरह की अपील की जानी चाहिए।
3-अगर अपीलकर्ता के पास 30 दिन की निश्चित समय सीमा के अंदर अपील ना कर पाने का कोई संतोषजनक कारण है तो अपील इस समय सीमा के बाद भी स्वीकार की जा सकती है ।
4-राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील दायर करने के लिए अपीलकर्ता को , यदि राष्ट्रीय आयोग के आदेश के अनुसार कुछ रकम अदा करनी है, या तो पचास हजार रुपये या उस रकम का पचास प्रतिशत, जो भी कम हो , पहले जमा करना होगा।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद
1-केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद का उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों का प्रोत्साहन व संरक्षण करना है।
2-इसका कार्यकाल 3 साल का होता है ।

कौन सी शिकायत कर सकते हैं
1-वस्तुओं अथवा सेवाओं अथवा सेवाओं की गुणवत्ता , मानक अथवा ग्रेड के बारे में (मौखिक या लिखित रुप से ) गलत  जानकारी देना ।
2-पुरानी चीजों को नई चीज बताकर बेचने के लिए पेश करना ।
3-किसी वस्तु और सेवा के प्रायोजक , उसके इस्तेमाल के प्रति सहमति देने वाले , वस्तु की कार्यकुशलता अथवा फायदों के बारे में झूठे दावे करना ।
4-किसी वस्तु के विक्रेता या सप्लायर द्वारा उसके प्रायोजक, उसके इस्तेमाल की सिफारिश करने वाले विशेषज्ञ या संबंद्धता के बारे में गलत जानकारी देना।
5-किसी उत्पात का समुचित परीक्षण किए बगैर उसकी कार्यकुशलता के बारे में गारंटी या वारंटी देना ।
6-जिस वस्तु को बेचा जा रहा है , उससे मिलती-जुलती वस्तुओं की सामान्य तौर पर बाजार में कीमत के बारे में गलत जानकारियां देना।
7-किसी अन्य उत्पादक की वस्तुओं, सेवाओं अथवा व्यापारिक तरीके के बारे में झूठी नकारात्मक बातों का प्रचार।
8-किसी वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए कोई प्रतियोगिता या लाटरी आयोजित करना
9-किसी खरीद पर उपहार , पुरस्कार तथा अन्य वस्तुओं की पेशकश इस तरह करना जैसे ये चीजें मुफ्त में दी जा रही हों, जबकि सौदे में कुल मिलाकर इन चीजों की पूरी या आंशिक कीमत वसूल कर ली गयी हो।
10-चीजों या सेवाओं की कीमतें बढ़ाने के लिए उनकी जमाखोरी करना/ चीजों को नष्ट कर देना । वस्तुओं या सेवाओं को बेचने से मना कर देना ।
11-चीजों में खराबी या गड़बड़ी होना।
12-जो सेवाएं ली गयी हों या जिनके लेने पर सहमति हुई हो, उनमें खऱाबी होना।
13-कोई व्यापारी अपने सामान की कानून द्वारा निर्धारित कीमत, सामान पर लिखी कीमत, अथवा सामान की पैकिंग पर लिखी कीमत से ज्यादा वसूल करे।
14-जीवन तथा सुरक्षा को जोखिम में डालने वाली वस्तुओं को व्यापारी गैरकानूनी तरीके  से बेचे।
 शिकायत दर्ज कराने का तरीका 
1-किसी भी फोरम/ आयोग में शिकायत  मुफ्त दर्ज की जाती है । शिकायत दर्ज कराने के लिए स्टैंप पेपर की भी जरुरत नहीं होती है।
2-आप उपयुक्त फोरम/ आयोग को पंजीकृत डाक से भी शिकायत भेज सकते हैं ।
3-आपका अधिकृत एजेंट भी शिकायत दर्ज करा सकता है । वह आपकी ओर से शिकायत पर दस्तखत भी कर सकता है।
4-शिकायत साफ-साफ और स्पष्ट लिखी होनी चाहिए। टाइप कराकर भी भेज सकते हैं ।
5-शिकायत करने वाले का नाम, पता तथा अन्य ब्यौरा हो,
6-जहां तक हो सके , विरोधी पक्ष का नाम , पता तथा अन्य बातें हों,
7-शिकायत संबंधी तथ्य जिसमें यह भी शामिल हो कि शिकायत वाली खरीद-बिक्री कब और कहां हुई ,
8-अपने आरोप के प्रमाण में कागजात (रसीदें आदि) रखें,
9-कितनी रकम या किस तरह का मुआवजा मांगा गया है ।
शिकायत करने वाले को क्या मिल सकता है
1-वस्तुओ/सेवाओं की खराबियां/कमियां दूर किया जाना।
2-खराब वस्तु को बदलकर नई वस्तु दिया जाना।
3-चुकाई गयी कीमत की उपभोक्ता को वापसी ।
4-विरोधी पक्ष की किसी लापरवाही से शिकायतकर्ता को पहुंची चोट या नुकसान का मुआवजा ।
5-शिकायतकर्ता के हुए खर्चे का समुचित भुगतान।
6-विरोधी पक्ष को यह निर्देश दिया जाना कि वह नाजायज अथवा बाधाएं पहुंचाने वाले व्यापारिक तौर-तरीके बंद कर दे।
7-विरोधी पक्ष को यह निर्देश दिया जाना कि वह जोखिम वाली वस्तुओं की बिक्री बंद कर दे।

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