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Friday 29 July 2016

नेतृत्व (leadership)

नेतृत्व (leadership)
"नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति सामाजिक प्रभाव के द्वारा अन्य लोगों की सहायता लेते हुए एक सर्वनिष्ट (कॉमन) कार्य सिद्ध करता है।
शासन करना, निर्णय लेना, निर्देशन करना आज्ञा देना आदि सब एक कला है, एककठिन तकनीक है। परन्तु अन्य कलाओं की तरह यह भी एक नैसर्गिक गुण है।प्रत्येक व्यक्ति में यह गुण या कला समान नहीं होती है। उद्योग में व्यक्तिके समायोजन के लिए पर्यवेक्षण (supervision), प्रबंध तथा शासन का बहुतमहत्व होता है। उद्योग में असंतुलन बहुधा कर्मचारियों के स्वभाव दोष से हीनहीं होता बल्कि गलत और बुद्धिहीन नेतृत्व के कारण भी होता है। प्रबंधकअपने नीचे काम करने वाले कर्मचारियों से अपने निर्देशानुसार ही कार्यकरवाता है। जैसा प्रबंधक का व्यवहार होता है, जैसे उसके आदर्श होते हो, कर्मचारी भी वैसा ही व्यवहार निर्धारित करते हैं। इसलिए प्रबंधक का नेतृत्व जैसा होगा, कर्मचारी भी उसी के अनुरूप कार्य करेंगे।
नेतृत्व संगठनात्मक संदर्भों के सबसे प्रमुख पहलुओं में से एक है। हालांकि, नेतृत्व को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण रहा है।

नेतृत्व का अर्थ

कभी-कभी यदि कोई व्यक्ति शक्ति के आधार परदूसरों से मनचाहा व्यवहार करवा लेने की क्षमता रखते हो तो उसे भी नेतृत्वके अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। वास्तविकता यह है कि नेतृत्व कातात्पर्य इनमें से किसी एक व्यवहार से नहीं है बल्कि नेतृत्व व्यवहार का वहढंग होता है जिसमें एक व्यक्ति दूसरों के व्यवहार से प्रभावित न होकर अपनेव्यवहार से दूसरों को अधिक प्रभावित करता है। भले ही यह कार्य दबाव द्वाराकिया गया है अथवा व्यक्तिगत सम्बंधी गुणों को प्रदर्शित करके किया गया हो।

नेतृत्व की विशेषताएं

नेतृत्व की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
  • 1. नेतृत्व वह विशेष व्यवहार है जिसमें प्रभुत्व, सुझाव तथा आग्रह का सम्मिश्रण होता है।
  • 2. नेतृत्व के लिए दो पक्ष नेता और अनुयायी का होना अनिवार्य है। नेता अनुयायियों के व्यवहार को अधिक सीमा तक प्रभावित करता है।
  • 3. नेतृत्व सम्बंधित प्रभाव दबाव युक्त नहीं होता। इसे साधारण तथास्वेच्छापूर्वक ग्रहण किया जाता है। दबाव केवल नेता के नैतिक प्रभाव काहोता है।
  • 4. नेतृत्व अनियोजित न होकर विचारपूर्वक अनुयायियों के व्यवहारों को निश्चित दिशा में मोड़ दिया जाता है।
  • 5 नेतृत्व के द्वारा व्यवहारों में किया जाने वाला परिवर्तन उत्तेजना से प्रभावित होता है।
  • 6. नेतृत्व की एक विशेष परिस्थिति (क्षेत्र) होती है। इस प्रकार एक हीव्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से नेतृत्व से प्रभावित हो सकताहै।

नेतृत्व का महत्त्व

प्रत्येक समूह के लिए नेतृत्व की आवश्यकता होती है। चाहे वह राजनैतिक होया सामाजिक, धार्मिक हो या औद्योगिक। कोई भी समूह बिना नेतृत्व केआस्तित्वहीन होता है। औद्योगिक क्षेत्र में मालिक या कर्मचारी ही नेता काचयन करते है। होना यह चाहिए कि मालिक और कर्मचारी दोनों मिलकर नेता काचुनाव करें। इस प्रकार की आदर्श चयन प्रणाली के द्वारा मालिक और कर्मचारीके बीच के छोटे-छोटे झगड़ों को रोका जा सकता है। इससे समस्याओं का समाधानभी जल्दी हो सकता है। मालिकों तथा प्रबंधकों द्वारा चुना व्यक्ति अधिकस्वामि-भक्ति रखता है और कर्मचारियों के हितों को उपेक्षित कर सकता है।इसके विपरीत कर्मचारियों द्वारा चुना व्यक्ति कर्मचारियों के प्रतिउत्तरदायी होता है। इस प्रकार नीति संघर्ष बढ़ने लगता है। इसलिए प्रभावशालीनेतृत्व के लिए आवश्यक है कि मालिक और कर्मचारी दोनों मिलकर योग्य, अनुभवीऔर व्यवहार कुशल व्यक्ति को नेता चुनें। नेतृत्व को तीन स्तर पर तीन वर्गोमें बांटा गया है-
() उच्चतम स्तर का प्रबंध (Top management),
() मध्यम स्तर का प्रबंध (Middle management),
() सम्मुख व्यक्ति का प्रबंध (Front line management)
प्रथम स्तर के प्रबंध में उच्च श्रेणी के बिग बॉस (Big Boss), मध्यमस्तर में केवल बॉस (Boss) तथा तीसरी श्रेणी में फोरमैन या सुपरवाइजर आतेहै। ये तीनों प्रकार के नेता भिन्न-भिन्न स्तरों पर कार्य करते है। इनकेउत्तरदायित्व व कर्त्तव्य भी भिन्न होते है। नेता को अपने पद पर बने रहनेके लिए आवश्यक होता है कि वह अपने समूह के प्रत्येक पक्ष पर संबंध बनाएरखने में समर्थ हो। इसलिए सुचारू कार्य के लिए यह आवश्यक होता है कि नेताअपने समूह के कर्मचारियों से हमेशा निकट के संबंध बनाए रखें, इससे नेता औरकर्मचारियों के बीच तनाव की स्थिति नहीं आएगी और न ही कोई अन्य समस्याएंउत्पादन को प्रभावित करेंगी।

नेतृत्व-प्रशिक्षण

यदि निरीक्षक प्रशिक्षित होता है तो कर्मचारियों से समायोजन स्थापितकरने में आसानी होती है। इसलिए नियुक्ति पद निरीक्षक को प्रशिक्षित कियाजाना चाहिए। प्रशिक्षित और अनुभवी निरीक्षक एक कुशल नेता ही नहीं वरन् वहकठिन परिस्थितियों में भी समस्या का समाधान किर सकता है। ऐसा कुशलजनतांत्रिक नेता कर्मचारियों के साथ समझौते या मन-मुटाव के समय अपनीप्रतिष्ठा को आगे नहीं आने देता। वह अपने संवेगों पर नियंत्रण करता है औरनिष्पक्ष व्यवहार करता है। सज्जन, ईमानदार व मेहनती कर्मचारियों को महत्वदेता है, उन कर्मचारियों को उत्पीड़न से बचाता है। कर्मचारियों को अधिक सेअधिक सुविधाएं प्रदान करता है तथा
  • उसे आवश्यकता से अधिक भावुक, संवेदनशील और संवेगात्मक नहीं होना चाहिए।
  • विचार-विमर्श में निपुणता तथा तर्कपूर्ण ढंग से कर्मचारियों से अपने विचारों को स्वीकार करा लेने की क्षमता हो।
  • कर्मचारी और मालिक के बीच तनाव की स्थिति पैदा होने पर उसे दोनों कीमध्यस्थता करते हुए समस्याओं के समाधान हेतु पर्याप्त योग्यता होनी चाहिए।
  • कर्मचारियों के विचारों में तालमेल बिठाने की योग्यता हो।
  • अधीनस्थ कर्मचारियों को यह महसूस कराने में सक्षम हो कि कर्मचारी उसे अपना ही एक भाग समझे।

उद्योग में सफल नेता के गुण

क्रेग एवं चार्ट्स ने एक सफल नेता ने निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक माना है-
1. समर्थता अर्थात् नेता में यह कौशल हो कि वह कर्मचारी से काम ले सके।
2. नेता में ऐसे गुण होने चाहिए जिससे कर्मचारी उसको सम्मान दे सके।
3. नेता का कर्मचारियों से पक्षपात रहित व्यवहार होना चाहिए।
4. नेता को प्रशिक्षित होना चाहिए, अनुभवी होना चाहिए जिससे वह कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित कर सके।
5. कर्मचारियों के साथ वादिता रखने वाला हो तथा किसी भी कर्मचारी से दूसरे कर्मचारी की बुराई न करें।
6. उसमें सरल आत्मविश्वास होना चाहिए, ताकि विषय प्रतिस्थितियों में भी वह अपने को कमजोर न समझे।
7. नेता में अपने क्रोध को नियंत्रित करने की क्षमता होनी चाहिए।
8. उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कर्मचारी उसके आदेशों का पालन कर रहे है या नहीं।
9. अथीनस्थ कर्मचारियों के उचित को भी मानने वाला तथा अपनी योग्यता और सुझावों द्वारा कर्मचारियों से कार्य लेने की क्षमता हो।
10. बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से कर्मचारियों को डांटने की क्षमता तथा समय आने पर उनकी प्रशंसा करने की योग्यता हो।
11. परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता हो।
ब्लम (Blum) ने पांच सिद्धातों का वर्णन किया है। उनके अनुसार सफल नेता को निम्न पाँच सिद्धातों अन्तर्गत कार्य करना चाहिए-
1. कार्य का उचित मूल्याकंन
2. अधिकारियों का पर्याप्त मात्रा में प्रतिनिधित्व।
3. समस्त कर्मचारियों के साथ समान व उचित व्यवहार।
4. जब कभी कर्मचारी मिलना चाहे तो उसे अपना समय देना।
5. कर्मचारियों की समस्याओं का प्रबंधकों और मालिकों से विस्तार में विचार-विमर्श करना।

नेतृत्व के नियम

उद्योग में नेता की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने व्यवहारमें कुछ मूलभूत नियमों को भी शामिल करे। इससे कर्मचारी और नेता के बीचसन्तुलन बना रहता है। कुछ नियम इस प्रकार हैं-
समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुनना- कर्मचारियों की अपनी समस्याएंहोती हैं जिन्हें नेता के सम्मुख रखते हैं। ऐसे में यदि नेता उत्तेजित होजाता है तो कर्मचारी अपनी बात को पूरा नहीं बता पाता है। इससे कर्मचारीहतोत्साहित हो जाता है। इसलिए कर्मचारी को बात करते समय बीच में भी नहींटोकना चाहिए या उसे रोकना नहीं चाहिए। इससे कर्मचारी के मन में उपेक्षा काभाव पैदा होता है। इसके विपरीत कर्मचारी की बातों को शांतिपूर्वक एवंधैर्यता से सुनना चाहिए। इससे कर्मचारी का विश्वास अपने नेता के प्रति बनारहता है। वे नेता की अवहेलना भी नहीं करते हैं।
सोच समझकर निर्णय लेना - नेता को चाहिए कि वह कोई भी निर्णय लेनेमें जल्दबाजी न करे। सोच-समझकर लिया हुआ निर्णय बाधक नहीं बनता है। इससेकई समस्याओं को उचित तरीके से सुलझाया जा सकता है।
कर्मचारियों को हतोत्साहित न करना - यदि नेता कर्मचारियों कोहतोत्साहित करेगा तो निश्चित ही उसका प्रभाव उद्योग में पड़ेगा।कर्मचारियों को समय-समय पर उत्साहित करना चाहिए ताकि कर्मचारी अपने कार्यके प्रति जागरूक रह सकें। यदि कर्मचारी अपनी समस्या लेकर आता है तो भी उसेडांट-फटकार नहीं देनी चाहिए। वरन् उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए।
नेता कम से कम संवेदनशील व संवेगशील हो - उद्योग में प्रायः नेताके सामने सम तथा विषम परिस्थिति आती रहती है। यदि नेता इन परिस्थितियोंमें ही अपने को समाहित कर ले तो वह उद्योग के लिए अच्छा नहीं होगा। नेता कीशिकायत अधिकतर संवेगपूर्ण होती है। ऐसे में यदि नेता स्वयं पर नियंत्रण नरखकर कर्मचारियों के साथ संवेगपूर्ण ढंग से व्यवहार करे तो समस्या और भीउलझ सकती है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी पर आवश्यकता से अधिक संवेदना करताहै तो भी कर्मचारी इसका लाभ उठा सकते हैं। इसलिए नेता को विवेकपूर्णव्यवहार करना चाहिए।
नेता स्वयं वाद-विवाद से बचा रहे - प्रायः देखा जाता है किवाद-विवाद वैमनस्यता पैदा करता है। इसलिए नेता को कर्मचारियों के साथवाद-विवाद से बचना चाहिए। अधिक वाद-विवाद से कर्मचारी भी अपने को असुरक्षितमहसूस करने लगते हैं। कर्मचारियों को आज्ञाएं दी जा सकती हैं। उन्हेंथोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इससे कर्मचारी एक अतिरिक्त बोझ समझनेलगता है।

कर्मचारियों की प्रशंसा करना- कर्मचारी उद्योग में अपनीमहत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। नेता को चाहिए कि वह समय आने पर उसकीप्रशंसा करे। प्रशंसा सबके सामने हो। इससे कर्मचारी प्रसन्नता का अनुभवकरता है। उसका मनोबल इससे बढ़ता है। वह अपने कार्य को मेहनत तथा लगन सेकरने लगता है। इसके विपरीत यदि कर्मचारी की बुराइयों को सबके सामने कहा जायतो कर्मचारी की स्थिति तनावपूर्ण होगी। उसका प्रभाव उद्योग पर पड़ेगा।इसलिए नेता कर्मचारी की बुराइयों को एकान्त में कहे इससे कर्मचारी का अहमसुरक्षित रहता है।

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