फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (एफटीपी) एक नेटवर्क प्रोटोकॉल होता है जिसके द्वारा इंटरनेट आधारित टीसीपी/आईपी नेटवर्क पर फाइलों का आदान-प्रदान किया जाता है। इसे यूजर बेस्ड पासवर्ड या अनॉनिमस यूजर एक्सेस के जरिए काम में लाया जाता है।
फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल या एफटीपी अपने मौजूदा रूप में विभिन्न चरणों से होता हुआ पहुंचा है। सर्वप्रथम 1971 में इसे आरएफसी 114 के नाम से तैयार किया गया था जिसे बाद में आरएफसी 765 से बदला गया जिसे 1985 में आरएफसी 959 से परिवर्तित किया गया। उसके बाद अनेक सुरक्षा संबंधी बदलाव इसमें आए।
सुरक्षा संबंधी यह बदलाव इसलिए लाए गए थे क्योंकि शुरुआत में फाइलें भेजने का यह तरीका बहुत असुरक्षित था। इसका कारण यह था कि फाइल भेजने की प्रक्रिया में कोई भी उसी नेटवर्क पर उस फाइल को चुरा सकता था। एचटीटीपी, एसएमटीपी और टेलनेट से पूर्व यह इंटरनेट प्रोटोकॉल के कार्यक्षेत्र में आने वाली एक आम समस्या थी। इस समस्या का निवारण एसएफटीपी (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) के जरिए ही हो सकता था।
एफटीपी मेल: जहां एफटीपी एक्सेस इस्तेमाल में नहीं आता, वहां रिमोट एफटीपी या एफटीपी मेल इस्तेमाल में लाया जाता है। इसमें एक ईमेल दूसरे एफटीपी सर्वर पर भेजा जाता है जो एफटीपी कमांड पूरी करता है और डाउनलोड फाइल वाली अटैचमेंट वापस भेजता है।
चूंकि अब लगभग हर संस्थान में एफटीपी सर्वर है, इसलिए यह व्यवस्था काम में नहीं आती। अनेक हालिया वेब ब्राउजर और फाइल मैनेजर्स एफटीपी सर्वरों से जुड़ सकते हैं। इससे दूर-दराज से आने वाली फाइलों पर लोकल फाइलों जैसा ही कार्य हो सकता है। इसमें एफटीपी यूआरएल इस्तेमाल में लाया जाता है। फाइल भेजने के अन्य तरीके जैसे एसएफटीपी और एससीपी एफटीपी से नहीं जुड़े होते। इनकी पूरी प्रक्रिया में एसएसएच का इस्तेमाल होता है।
उपयोग
आरएफसी द्वारा प्रस्तुत रूपरेखा के अनुसार, एफटीपी का प्रयोग निम्न के लिए किया जाता है:
फ़ाइलों की साझेदारी को बढ़ावा देना (कंप्यूटर प्रोग्राम और/या डाटा),
दूरवर्ती कंप्यूटरों के परोक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोग को प्रोत्साहन देने में,
विभिन्न होस्ट के बीच फ़ाइल संग्रहण प्रणालियों में परिवर्तनों से प्रयोक्ता का परिरक्षण
विश्वसनीय तरीक़े से, तथा दक्षता के साथ डाटा अंतरण करना।
एफटीपी को सक्रिय मोड, निष्क्रिय मोड और विस्तृत निष्क्रिय मोड में संचालित किया जा सकता है। आरएफसी २४२८ द्वारा सितंबर १९९८ में, विस्तृत निष्क्रिय मोड जोड़ा गया था।
फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल या एफटीपी अपने मौजूदा रूप में विभिन्न चरणों से होता हुआ पहुंचा है। सर्वप्रथम 1971 में इसे आरएफसी 114 के नाम से तैयार किया गया था जिसे बाद में आरएफसी 765 से बदला गया जिसे 1985 में आरएफसी 959 से परिवर्तित किया गया। उसके बाद अनेक सुरक्षा संबंधी बदलाव इसमें आए।
सुरक्षा संबंधी यह बदलाव इसलिए लाए गए थे क्योंकि शुरुआत में फाइलें भेजने का यह तरीका बहुत असुरक्षित था। इसका कारण यह था कि फाइल भेजने की प्रक्रिया में कोई भी उसी नेटवर्क पर उस फाइल को चुरा सकता था। एचटीटीपी, एसएमटीपी और टेलनेट से पूर्व यह इंटरनेट प्रोटोकॉल के कार्यक्षेत्र में आने वाली एक आम समस्या थी। इस समस्या का निवारण एसएफटीपी (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) के जरिए ही हो सकता था।
एफटीपी मेल: जहां एफटीपी एक्सेस इस्तेमाल में नहीं आता, वहां रिमोट एफटीपी या एफटीपी मेल इस्तेमाल में लाया जाता है। इसमें एक ईमेल दूसरे एफटीपी सर्वर पर भेजा जाता है जो एफटीपी कमांड पूरी करता है और डाउनलोड फाइल वाली अटैचमेंट वापस भेजता है।
चूंकि अब लगभग हर संस्थान में एफटीपी सर्वर है, इसलिए यह व्यवस्था काम में नहीं आती। अनेक हालिया वेब ब्राउजर और फाइल मैनेजर्स एफटीपी सर्वरों से जुड़ सकते हैं। इससे दूर-दराज से आने वाली फाइलों पर लोकल फाइलों जैसा ही कार्य हो सकता है। इसमें एफटीपी यूआरएल इस्तेमाल में लाया जाता है। फाइल भेजने के अन्य तरीके जैसे एसएफटीपी और एससीपी एफटीपी से नहीं जुड़े होते। इनकी पूरी प्रक्रिया में एसएसएच का इस्तेमाल होता है।
उपयोग
आरएफसी द्वारा प्रस्तुत रूपरेखा के अनुसार, एफटीपी का प्रयोग निम्न के लिए किया जाता है:
फ़ाइलों की साझेदारी को बढ़ावा देना (कंप्यूटर प्रोग्राम और/या डाटा),
दूरवर्ती कंप्यूटरों के परोक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोग को प्रोत्साहन देने में,
विभिन्न होस्ट के बीच फ़ाइल संग्रहण प्रणालियों में परिवर्तनों से प्रयोक्ता का परिरक्षण
विश्वसनीय तरीक़े से, तथा दक्षता के साथ डाटा अंतरण करना।
एफटीपी को सक्रिय मोड, निष्क्रिय मोड और विस्तृत निष्क्रिय मोड में संचालित किया जा सकता है। आरएफसी २४२८ द्वारा सितंबर १९९८ में, विस्तृत निष्क्रिय मोड जोड़ा गया था।
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