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Sunday, 28 February 2016

फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (एफटीपी)

फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (एफटीपी) एक नेटवर्क प्रोटोकॉल होता है जिसके द्वारा इंटरनेट आधारित टीसीपी/आईपी नेटवर्क पर फाइलों का आदान-प्रदान किया जाता है। इसे यूजर बेस्ड पासवर्ड या अनॉनिमस यूजर एक्सेस के जरिए काम में लाया जाता है।

फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल या एफटीपी अपने मौजूदा रूप में विभिन्न चरणों से होता हुआ पहुंचा है। सर्वप्रथम 1971 में इसे आरएफसी 114 के नाम से तैयार किया गया था जिसे बाद में आरएफसी 765 से बदला गया जिसे 1985 में आरएफसी 959 से परिवर्तित किया गया। उसके बाद अनेक सुरक्षा संबंधी बदलाव इसमें आए।

सुरक्षा संबंधी यह बदलाव इसलिए लाए गए थे क्योंकि शुरुआत में फाइलें भेजने का यह तरीका बहुत असुरक्षित था। इसका कारण यह था कि फाइल भेजने की प्रक्रिया में कोई भी उसी नेटवर्क पर उस फाइल को चुरा सकता था। एचटीटीपी, एसएमटीपी और टेलनेट से पूर्व यह इंटरनेट प्रोटोकॉल के कार्यक्षेत्र में आने वाली एक आम समस्या थी। इस समस्या का निवारण एसएफटीपी (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) के जरिए ही हो सकता था।

एफटीपी मेल: जहां एफटीपी एक्सेस इस्तेमाल में नहीं आता, वहां रिमोट एफटीपी या एफटीपी मेल इस्तेमाल में लाया जाता है। इसमें एक ईमेल दूसरे एफटीपी सर्वर पर भेजा जाता है जो एफटीपी कमांड पूरी करता है और डाउनलोड फाइल वाली अटैचमेंट वापस भेजता है।

चूंकि अब लगभग हर संस्थान में एफटीपी सर्वर है, इसलिए यह व्यवस्था काम में नहीं आती। अनेक हालिया वेब ब्राउजर और फाइल मैनेजर्स एफटीपी सर्वरों से जुड़ सकते हैं। इससे दूर-दराज से आने वाली फाइलों पर लोकल फाइलों जैसा ही कार्य हो सकता है। इसमें एफटीपी यूआरएल इस्तेमाल में लाया जाता है। फाइल भेजने के अन्य तरीके जैसे एसएफटीपी और एससीपी एफटीपी से नहीं जुड़े होते। इनकी पूरी प्रक्रिया में एसएसएच का इस्तेमाल होता है।


उपयोग
आरएफसी द्वारा प्रस्तुत रूपरेखा के अनुसार, एफटीपी का प्रयोग निम्न के लिए किया जाता है:
फ़ाइलों की साझेदारी को बढ़ावा देना (कंप्यूटर प्रोग्राम और/या डाटा),
दूरवर्ती कंप्यूटरों के परोक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोग को प्रोत्साहन देने में,
विभिन्न होस्ट के बीच फ़ाइल संग्रहण प्रणालियों में परिवर्तनों से प्रयोक्ता का परिरक्षण
विश्वसनीय तरीक़े से, तथा दक्षता के साथ डाटा अंतरण करना।
एफटीपी को सक्रिय मोड, निष्क्रिय मोड और विस्तृत निष्क्रिय मोड में संचालित किया जा सकता है। आरएफसी २४२८ द्वारा सितंबर १९९८ में, विस्तृत निष्क्रिय मोड जोड़ा गया था।

Thursday, 25 February 2016

हाइपरलिंक्स




हाइपरलिंक्स (hyperlinks), जिन्हें आमतौर पर "लिंक्स" (links) कहा जाता है, इंटरनेट और वेबसाइट्स का महत्वपूर्ण भाग होती हैं। लिंक्स की मदद से उपयोगकर्ता किसी भी फोटो या टेक्सट पर क्लिक करके दूसरे वेब पेज पर पहुँच सकते हैं। इसलिए वह वेबसाइट्स के लिए आवश्यक होती हैं। हाइपरलिंक्स का निर्माण करने के लिए आपको छोटे से एचटीऍमएल" (HTML) कोड की ज़रूरत पड़ेगी। इस कोड का इस्तेमाल करके आप तुरंत एक लिंक का निर्माण कर पाएँगे। इस बारे में और अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

भारत में साइबर पत्रकारिता का विकास




सूचना से अधिक महत्वपूर्ण सूचनातंत्र है। माध्यम ही संदेश है नामक पुस्तक में प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैक्लूहन की लिखी उक्त उक्ति आज के दौर में नितान्त प्रासंगिक और समसामयिक है। यह सार्वकालिक सत्य है कि सूचना में शक्ति है। पत्रकारिता तो सूचनाओं का जाल है, जिसमें पत्रकार सूचनाएँ देने के साथ-साथ सामान्य जनता को दिशा निर्देश देता है। उनका पथ प्रदर्शन करता है। एक प्रकार से कहा जाए तो पत्रकारिता वह ज्ञान चक्षु है जिसके माध्यम से पत्रकार अपने विचारों को व्यक्त करता है।
 
प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों के बारे में जानने की खास दिलचस्पी होती है और इसके लिए माध्यम सदा ही उपलब्ध रहे हैं। पहले अखबार, फिर टी. वी. और अब इंटरनेट। आज खबरों को जानने का टेस्ट बदल गया है। पहले सिर्फ खबरें जान लेना महत्वपूर्ण होता था, बाद में उनके बहुआयामी पक्ष को जानने की ललक बढ़ी और आज तो खबरों का पोस्टमार्टम ही शुरु हो गया है। निश्चित रुप से इस प्रवृत्ति ने कहीं न कहीं लीक से हटकर कुछ नया करने को बाध्य किया है। इसका एक ताजातरीन उदाहरण है- वेब पत्रकारिता। एक उंगली की क्लिक और पूरी दुनिया आपके सामने। वह भी आपकी अपनी क्षेत्रीय भाषा में। एक जिज्ञासु मन को और क्या चाहिए। उसमें भी अगर टी. वी. और अखबार का आनंद बिना रिमोट का बटन दबाए मिल जाए या फिर अखबारों के पन्ने पलटकर शेष अगले पृष्ठ पर देखने से मुक्ति मिल जाए तो उपभोगवादी समाज के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। शायद आरामतलबी के आदी हो चुके अभिजात्य वर्ग के लिए यह एक वरदान है। वेब पत्रकारिता आज मीडिया का सबसे तेजी से विकसित होने वाला माध्यम बन गया है। अखबारों की तरह वेब पत्र और पत्रिकाओं का जाल अंतर्जाल पर पूरी तरह बिछ चुका है। छोटे बड़े हर शहर से वेब पत्रकारिता संचालित हो रही है। छोटे बड़े सभी शहरों के प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी वेब पर हैं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है। हालांकि इसे अभी और आगे जाना है।
 
आज मीडिया के पूरे बाजार की नजर हिंदी वेब पत्रकारिता पर है। एक अध्ययन के अनुसार योरोप के लोग सही खबरों के लिए समाचार चैनलों और समाचार पत्रों पर कम, ब्लॉगरों पर अधिक विश्वास करते हैं क्योंकि ब्लॉग के माध्यम से आप न सिर्फ दूसरों की विचारधारा से परिचित होते हैं वरन उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं और अपने ब्लॉग के माध्यम से विश्व के कोने-कोने तक अपनी विचारधारा और लेखनी से लोगों को परिचित करा सकते हैं।
इसमें दोराय नहीं कि जितना अधिक पढ़ा जाए उतनी ही बहतर लेखन क्षमता का विकास होता जाता है। अंतरजाल और चिट्ठे इसमें भरपूर योगदान कर रहे हैं। हर विषय पर सामग्री प्राय: मुफ्त में उपलब्ध है।
 
मुद्रित पत्रिकाओं और साहित्य का दायरा आज अंतरजाल के सामने बहुत सीमित हो गया है क्योंकि इनका एक विशिष्ट पाठक वर्ग है किंतु अंतरजाल की कोई भौगोलिक सीमाएँ नहीं हैं और यह विश्व के कोने कोने में लगभग छपते ही तुरंत उपलब्ध हो जाता है। शायद यही इसकी जीत का मार्ग भी प्रशस्त कर रहा है। हर क्षण कुछ न कुछ नया जुड़ रहा है। अनेक पत्रिकाएँ हैं जो एक स्तरीय सामग्री संयोजित कर पठकों तक ला रही हैं। अंतरजाल पर हिंदी सामग्रियों की संख्या और स्तर दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं। हिंदी साहित्य में सूचनाओं का यह माघ्यम प्राण फूँक सकता है। इस भागती दौड़ती दुनिया में सभी के पास समय का अभाव है। किसी को इतनी फुर्सत नहीं कि वह पहले बाजार जाकर पसंद की पत्रिका जगह जगह ढूँढे और फिर उसे खरीदे। आज इंटरनेट पर अभिव्यक्ति, अनुभूति, प्रवक्ता और सृजन गाथा जैसी ऑनलाइन पत्रिकाएँ हैं जिनसे कविताएँ, गज़लें, काहानियाँ आदि सभी विषयों पर प्रचीनतम और नवीनतम दोनों प्रकार की सामग्री बहुतायत में मिल जाती है।
तेजी से बदलती दुनिया, तेज होते शहरीकरण और जड़ों से उखड़ते लोगों व टूटते सामाजिक ताने बाने ने इंटरनेट को तेजी से लोकप्रिय किया है। कभी किताबें, अखबार और पत्रिकाएँ दोस्त हुआ करती थीं किन्तु आज का दोस्त इंटरनेट है क्योंकि यह दुतरफा संवाद का भी माध्यम है। लिखे हुए की तत्काल प्रक्रिया ने इसे लोकप्रिय बना दिया है। आज का पाठक सब कुछ इंन्स्टेंट चाहता है। इंटरनेट ने उसकी इस भूख को पूरा किया है। वेबसाइट्स ने दुनिया की तमाम भाषाओं में हो रहे काम और सूचनाओं का रिश्ता और संपर्क भी आसान बना दिया है। एक क्लिक पर हमें साहित्य और सूचना की एक वैश्विक दुनिया की उपलब्धता क्या आश्चर्य नहीं है। नयी पीढ़ी आज ज्यादातर सूचना या पाठय सामग्री की तलाश में वेबसाइट्स पर विचरण करती है।
 
भारत जैसे देश में जहाँ साहित्यिक पत्रिकाओं का संचालन बहुत कठिन और श्रमसाध्य काम है वहीं वेब पर पत्र-पत्रिका का प्रकाशन सिर्फ आपकी तकनीकी दक्षता और कुछ आर्थिक संसाधनों के माध्यम से जीवित रह सकता है। यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि वेब पत्रिका का टिका रहना उसकी सामग्री की गुणवत्ता पर निर्भर करता है, न कि विपड़न रणनीति पर। जबकि मुद्रित पत्रिकाएँ और अखबार अपनी विपड़न रणनीति और अर्थ प्रबंधन के बल पर ही जीवित रह पाते हैं।
अखबारों के प्रकाशन में लगने वाली बड़ी पूंजी के कारण उसके हित और सरोकार निरंतर बदल रहे हैं। इस दृष्टिकोण से भी इंटरनेट ज्यादा लोकतांत्रिक दिखता है। वेबसाइट बनाने और चलाने का खर्चा भी कम है और ब्लॉग तो नि:शुल्क है ही। यहाँ एक पाठक खुद संपादक और लेखक बनकर इस मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। स्वभाव से ही लोकतांत्रिक माध्यम होने के नाते संवाद यहाँ सीधा और सुगम है। भारतीय समाज में तकनीक को लेकर हिचक के कारण वेब माध्यम अभी इतने प्रभावी नहीं दिखाई देते परंतु यह तकनीक सही अर्थों में निर्बल का बल है। इस तकनीक के इस्तमाल ने एक अंजाने से लेखक को भी ताकत दी है जो अपनी रचनाशीलता के माध्यम से अपने दूरस्थ दोस्तों को भी उससे जोड़ सकता है। वेब पत्रकारिता करने वालों का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है। उनकी खबर एक पल में सारी दुनिया में पहुंच जाती है, जो कि अन्य समाचार माध्यमों के द्वारा संभव नहीं है। मीडिया का लोकतंत्रीकरण करने में वेब पत्रकारिता की मुख्य भूमिका दिखई देती है। विकसित तकनीक की उपलब्धता के कारण वेब पत्रकारिता को नित नये नये आयाम मिल रहे हैं। पहले केवल टेक्स्ट ही उपलब्ध हो पाता था परंतु अब चित्र, वीडियो व ऑडियो आदि भी बड़ी आसानी से विश्व के किसी भी कोने में भेजे जा सकते हैं।
 
एक सीमित संसाधन वाला व्यक्ति भी हाई स्पीड सेवाओं को आसानी से प्राप्त कर लेता है। अंतर्जाल पर उपलब्ध साहित्य और पत्रिकाओं को कहीं भी देखा जा सकता है। यहाँ तक कि काम के बीच बचे खाली समय का इस्तेमाल भी इस तरह से बखूबी हो सकता है जबकि मुद्रित पत्रिकाओं को साथ में लेकर चलना हर वक्त संभव नहीं होता।
 
जहाँ तक वेब पत्रकारिता में चुनौतियाँ और संभावनाओं का सवाल है, तो इसका भविष्य उज्ज्वल है और इसमें विकास की प्रबल संभावनाएँ हैं। देश में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है और शहरीकरण तेजी से हो रहा है। साथ ही तकनीक के विकास ने आज शहरों में हर घर में अपनी पहुंच बना ली है। तकनीक के लिए रोने वाला देश अब भारत नहीं रहा। कंप्यूटर, लैपटॉप, पामटौप घर घर की मूल आवश्यकता हो गयी है। तकनीक का रोना कहीं नहीं है। रोना उस पहल का है जहाँ अंतर्जाल भी हिंदी पत्रकारिता का इस्तंभ बन कर निकले।
 
आज अखबारों की तरह वेब पत्र और पत्रिकाओं का जाल अंतर्जाल पर पूरी तरह बिछ चुका है। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता हे कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है, हालांकि समय अभी शेष है और इसे अभी बहुत दूर जाना है। भारत में अभी भी वेब पत्रकारिता की पहुंच प्रथम पंक्ति में खड़े लोगों तक ही सीमित है। धीरे धीरे मध्यम वर्ग भी इसमें शामिल हो रहा है। जहाँ तक अंतिम कतार में खड़े लोगों तक पहुंचने की बात है तो अभी यह बहुत दूर है।
भारत में वेब पत्रकारिता का विकास तो हो रहा है लेकिन कुछ समस्याएँ इसके तेजी से विकसित होने में आड़े आ रही हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके लिए एक कंप्यूटर और इंटरनेट सेवा का होना आवश्यक है और इन पर कए अच्छी खासी लागत आती है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गाँवों में रहता है। शहरी बाजार की तुलना में ग्रामीण बाजार बहुत बड़ा है लेकिन गाँवों के समुचित विकास और पिछड़ेपन की वजह यहाँ का आर्थिक संकट है। साथ ही भारत में बिजली की समस्या गंभीर है। इसकी वजह से साइबर कैफे ठीक से कार्य नहीं कर पाते और लोग इसका समुचित लाभ नहीं ले पाते। वेब पत्रकारिता का सबसे ज्यादा फायदा विदेशों में रहने वाले लोग उठा रहे हैं। हिंदी फॉन्ट की समस्या भी हिंदी वेब पत्रकारिता के विकास को धीमा कर रही है। इसी समस्या की वजह से हिंदी ऑनलाइन वेब पत्रकारिता देर से शुरु हो पायी। हालांकि अब लगभग सभी ई अखबार अपने अपने संसकरण के साथ डाउनलोड करने के लिए फॉन्ट भी देने लगे हैं।
 
वेब पत्रकारिता के मार्ग में एक समस्या अलग से टीम न होने की भी है जिसकी वजह से मौलिकता का ईभाव रहता है और खबरें अपडेट नहीं हो पातीं। वेब पत्रकारिता को व्यापक बनाने के लिए आवश्यक है कि इसके लिए अलग से रिपोर्टर रखे जाएँ जो ऑनलाइन रिपोर्ट फाइल तैयार करें। वेब पत्रकारिता को स्थायी रूप से स्थापित करने के लिए इसमें मौलिकता का होना अति आवश्यक है।
इन कतिपय कमियों के बावजूद इतना निश्चित है कि आने वाले दिनों में वेब पत्रकारिता को वह सम्‍मान हासिल होगा जो प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने पाया है। वेब पत्रकारिता जो व्यवहार में प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक दोनों पत्रकारिताओं को समेटे हुए है और जिसकी गति के आगे बाकी सारी तकनीकें कहीं नहीं ठहरतीं, अन्य पत्रकारिताओं के लिए एक चुनौती से कम नहीं है। इसके विकास की गति बताती है कि जल्दी ही यह बाकी माध्यमों को पीछे छोड़ देगी। हाँ, इतना अवश्य है कि जहाँ कंप्यूटर या इंटरनेट की सुविधा ही न हो, बिजली या वैसी उर्जा की व्यवस्था न हो, मॉडम न हो वहाँ यह प्रणाली नहीं जा सकती। पर जहाँ ये सुविधाएँ हैं वहाँ वेब पत्रकारिता के लिए अलग से कुछ ज्यादा करने की जरुरत नहीं होती। एक बार ये सुविधाएँ मिल जाने पर काम इतना सस्ता, सुविधाजनक ओर तेज होता है कि अन्य माध्यमों पर जाने की इच्छा ही नहीं होती।

 वेब पत्रकारिता में संभावनाएँ इस दृष्टि से और भी प्रबल हो जाती हैं कि प्रिन्ट मीडिया की किसी भी खबर के लिए अखबार में कम से कम आठ घन्टे तक समाचारों के लिए इंतजार करना पड़ता है, दूसरी ओर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में समय को लेकर कोइ पाबंदी नहीं है। ऐसे में समय और उपलब्धता के साथ ही तात्कालिकता के लिहाज से मीडिया का यह माध्यम ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।
 
और, अभी चाहे मात्र प्रसार पाने की अभिलाषा हो या इस नये धंधे में उतरने की संभावनाएँ परखने की इच्छा हो, आज शायद ही कोइ अखबार, पत्रिका, रेडियो या टी. वी. चैनल होगा जो वेब पर उपलब्ध न हो और वह भी लगभग मुफ्त। टी. वी. पर विचार पक्ष कमजोर पड़ जाता है और प्रिन्ट में दृश्य श्रव्य की अनुपस्थिति जैसी कमियाँ खटकती हैं लेकिन वेब माध्यम इन दोनों ही कमियों को एक साथ पूरा करता है। यह पढ़ने की सामग्री भी दे सकता है और चलती तस्वीरें और आवाज भी। इसमें पाठक या दर्शक की भगीदारी किसी भी अन्य माध्यम की तुलना में ज्यादा होती है। इसमें काइ संदेह नहीं कि वेब पत्रकारिता समाचार माध्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आ रही है, खासकर मुद्रित माध्यमों के लिए। हो सकता है कि इलेक्ट्रोनिक माध्यम मुद्रित माध्यमों को बहुत अधिक नुकसान न पहुंचा पाये हों लेकिन यह माध्यम मुद्रित व इलेक्ट्रोनिक दोनों के लिए चुनौती साबित हो रहा है। जिस तरह से वेब पत्रकारिता में राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ निवेश कर रही हैं और वेब पत्रकारिता ने जिस तरह अपनी प्ररंभिक अवस्था में ही अपनी खबरों को विशिष्ट रूप देना प्ररंभ कर दिया है वह परंपरागत माध्यमों के लिए खतरे की घंटी है। इसका उदाहरण तहलका डॉट कॉम की मैच फिक्सिंग और रक्षा सौदों में घूसखोरी की कवरेज को कहा जा सकता है। अभी तक विशिष्ट समाचारों के लिए इलेक्ट्रोनिक माध्यम भी अखबारों आदि पर निर्भर थे लेकिन अब विशेष खबरों के लिए आम पाठक वर्ग तथा परंपरागत माध्यम वेब पत्रकारिता के मोहताज हो जायेंगे।
 
संक्षेप में आज के आपाधापी के युग में रफ्तार का बहुत महत्व है और वेब पत्रकारिता उस पैमाने पर खरी उतर रही है। वो पाठकों को हर जानकारी उस जगह और उस वक्त सुलभ कराती है जिस जगह और जिस वक्त वे उसकी मांग करते हैं। इस प्रकार वेब पत्रकारिता अन्य माध्यमों को सशक्त चुनौती दे रही है। उसके विकास की अपार संभावनाएँ हैं। वस्तुत: वेब पत्रकारिता ने वसुधैव कुटुम्बकम्के नारे को चरितार्थ कर दिया है।

Friday, 12 February 2016

सर्च इंजन



वेब सर्च इंजन

वेब सर्च इंजन एक सॉफ्टवेयर है, जो वर्ल्ड वाइड वेब पर कुछ भी key word की खोज करता हैं और जो वेब पेजेस में वे कीवर्ड होते हैं उनके परिणाम देता है| हर सर्च इंजन का सर्च करने का अलग तरीका होता हैं और हर एक का रिज़ल्ट उत्पन्न करने के लिए विभिन्न जटिल गणितीय सूत्र होता है|

 
सर्च इंजन, वेबपेज पर टेक्स्ट, इमेज, वीडिओ, कीवर्ड और लिंकिंग आदी सभी को स्कैन करता है| लाखों वेबपेजेस पर इन्फार्मेशन को सर्च करने के लिए सर्च इंजन स्पेशल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हे रोबोट, स्पाइडर कहा जाता है| जब स्पाइडर लिस्ट बना रहा होता है तो इस प्रोसेस को क्रॉलिंग कहा जाता है| इसके बाद वे क्रॉल से डाटा को इकट्ठा करते है और इसे अपने डाटाबेस में डाल देते है और इस प्रोसेस को इंडेक्सिंग कहा जाता हैं| इंडेक्सिंग का उद्देश्य जानकारी को जितनी जल्दी संभव हो पाया जा सके होता हैं| जब आप सर्च इंजन में कोइ कीवर्ड एंटर करते हैं, तो सर्च इंजन, आप जिस वेबपेज को ढूंढ़ रहे हैं उसे पाने के लिए अरबों वेबपेजेस को सर्च करता है|
क्योंकि टॉप सर्च इंजन अरबों वेबपेजेस को सर्च करता हैं, कई सर्च इंजन न केवल सिर्फ सर्च किए जाने वाले वेबपेजेस के रिजल्ट को दखाता हैं, बल्कि उन्हे उनके महत्व के आधार पर परिणाम प्रदर्शित भी करता हैं। इस महत्व को आमतौर पर विभिन्न रैंकिंग एल्गोरिदम का उपयोग करके निर्धारित किया जाता है और फिर सर्च रिजल्ट की लिस्ट के टॉप पर सबसे अधिक उपयोगी पेजेस को पेश करने की कोशिश करता है|

विभिन्न कंपनियों द्वारा बनाए गए कई अलग अलग प्रकार के सर्च इंजन होते हैं, सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन में गूगल, याहू और बिंग हैं।
सर्च इंजन के प्रकार
1) Crawler-Based Search Engines
जैसा कि ऊपर एक्सप्लेन किया है, क्रॉलर बेस सर्च इंजन ऑटोमेटिक लिस्टिंग को कम्पाइल करते हैं|
क्रॉलर बेस्ड सर्च इंजन गूगल, याहू और बिंग हैं|

2) Directories:
डिरेक्टरी अपनी लिस्टिंग को कम्पाइल करने के लिए ह्यूमन एडिटर का उपयोग करता हैं और वेब साइट को डाटाबेस में विशिष्ट कैटेगरी में रखते हैं| ह्यूमन एडिटर व्यापक नियमों का एक पूर्व निर्धारित सेट का उपयोग कर और  सूचना के आधार पर वे वेबसाइट की जाँच करते हैं और उसकी रैंक निर्धारित करते हैं| परन्तु एक बार वेबसाइट की रैंक निर्धारित हो जाती हैं तो फिर आमतौर पर उसकी रैंक को बदलना आसान नही होता|
आज याहू और ओपन डिरेक्टरी का नाम सबसे उपर हैं|

3) Hybrid Search Engines
हाइब्रिड सर्च इंजन क्रॉलर बेस्ड और डिरेक्टरी बेस्ड रिजल्ट दोनो के कॉंबिनेशन का इस्तेमाल करता है| अधिक से अधिक सर्च इंजन इन दिनों हाइब्रिड सर्च इंजन बनते जा रहे हैं|
याहू और गूगल हाइब्रिड सर्च इंजन हैं|

4) Meta Search Engines:
मेटा सर्च इंजन अन्य सर्च इंजन के लिए क्वेरि को भेजता हैं और उनके प्राप्त रिजल्ट को कलेक्ट करता हैं और फिर उनको इकट्ठा करके इनकी एक बड़ी लिस्ट बनाता हैं..
Metacrawler, HotBot और Dogpile Metasearch मेटा सर्च इंजन हैं।

सर्च इंजन का इतिहास
सर्च इंजनों के इस्तेमाल को 26 साल हो गए हैं। पहला इंटरनेट सर्च इंजन आर्चीथा जिसे 1990 में एलन एमटेज नामक छात्र ने विकसित किया था। आर्ची के आगमन के समय विश्व व्यापी वेबका नामो-निशान भी नहीं था। चूंकि उस समय वेब पेज जैसी कोई चीज नहीं थी, इसलिए आर्ची एफटीपी सर्वरों में मौजूद सामग्री को इन्डेक्स कर उसकी सूची उपलब्ध कराता था।
आर्चीइसी नाम वाली प्रसिद्ध कॉमिक स्ट्रिप से कोई संबंध नहीं है। यह नाम अंग्रेजी के आर्काइवशब्द से लिया गया था, जिसका अर्थ है क्रमानुसार सहेजी हुई सूचनाएं। आर्ची के बाद मार्क मैककैहिल का गोफर’ (1991), ‘वेरोनिकाऔर जगहेडआए। 1997 में आया गूगलजो सबसे सफल और सबसे विशाल सर्च इंजन माना जाता है। याहू’ ‘बिंग’ (पिछला नाम एमएसएन सर्च), एक्साइट, लाइकोस, अल्टा विस्टा, गो, इंकटोमी आदि सर्च इंजन भी बहुत प्रसिद्ध हैं।
इन्टरनेट पर खोज के लिए दो तरह की वेबसाइटें उपलब्ध हैं - डायरेक्टरी या निर्देशिका और सर्च इंजन। दोनों के काम करने के तरीके अलग-अलग हैं। डायरेक्टरी यलो पेजेज की तरह है। जिस तरह यलो पेजेज में अलग-अलग कंपनियों, फर्मो आदि से संबंधित सूचनाओं को श्रेणियों और सूचियों में बांटकर रखा जाता है, उसी तरह निर्देशिकाओं में भी श्रेणियां होती हैं।
शिक्षा, विज्ञान, कला, भूगोल आदि ऐसी ही श्रेणियां हैं। इन्हें आगे भी उप श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। याहू डायरेक्टरी (dir.yahoo.com), डीमोज (dmoz.com) आदि ऐसी ही निर्देशिकाएं हैं। इनमें हम श्रेणियों, उप श्रेणियों से होते हुए संबंधित जानकारी तक पहुंचते हैं। चूंकि निर्देशिकाओं के बंधक खुद इन श्रेणियों और सूचियों को संपादित करते रहते हैं, इसलिए इनमें अनावश्यक सामग्री मिलने की आशंका कम होती है। इनमें प्राय: बहुत देखभाल कर उन्हीं वेबसाइटों की सामग्री ली जाती है जो वहां विधिवत पंजीकृत होती हैं।

निर्देशिका के विपरीत, सर्च इंजनों का काम स्वचालित ढंग से होता है। इनके सॉफ्टवेयर टूल जिन्हें वेब क्रॉलर’ ‘स्पाइडर’ ‘रोबोटया बोटकहा जाता है, इंटरनेट पर मौजूद वेब पेजों की खोजबीन करता रहता है। ये क्रॉलर वेबसाइटों में दिए गए लिंक्स के जरिए एक से दूसरे पेज पर पहुंचते रहते हैं और जब भी कोई नई सामग्री मिलती है, उससे संबंधित जानकारी अपने सर्च इंजन में डाल देते हैं।

जिन वेबसाइटों में निरंतर सामग्री डाली जाती है (जैसे समाचार वेबसाइटें), उनमें ये बार-बार आते हैं। इस तरह उनकी सूचनाएं लगातार ताजा होती रहती हैं। लेकिन चूंकि ज्यादातर काम मशीनी ढंग से होता है, इसलिए सर्च इंजनों में कई अनावश्यक वेबपेज भी शामिल हो जाते हैं। इसलिए सर्च नतीजों को निखारने की क्रिया लगातार चलती है।


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