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Friday 12 February 2016

इंटरनेट का संक्षिप्त इतिहास

इंटरनेट का संक्षिप्त इतिहास
 
•    1969 इंटरनेट अमेरिकी रक्षा विभाग के द्वारा UCLA के तथा स्टैनफोर्ड अनुसंधान संस्थान कंप्यूटर्स का नेटवर्किंग करके इंटरनेट की संरचना की गई।
•    1979' ब्रिटिश डाकघर पहला अंतरराष्ट्रीय कंप्यूटर नेटवर्क बना कर नये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आरम्भ किया।
•    1980 बिल गेट्स का आईबीएम के कंप्यूटर्स पर एक माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम लगाने के लिए सौदा हुआ।
•    1984 एप्पल ने पहली बार फ़ाइलों और फ़ोल्डरों, ड्रॉप डाउन मेनू, माउस, ग्राफिक्स का प्रयोग आदि से युक्त "आधुनिक सफल कम्प्यूटर" लांच किया।
•    1989 टिम बेर्नर ली ने इंटरनेट पर संचार को सरल बनाने के लिए ब्राउज़रों, पन्नों और लिंक का उपयोग कर के वर्ल्ड वाइड वेब बनाया।
•    1996 गूगल ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक अनुसंधान परियोजना शुरू किया जो कि दो साल बाद औपचारिक रूप से काम करने लगा।
•    2009 डॉ स्टीफन वोल्फरैम ने "वोल्फरैम अल्फा" लांच किया
•    इंटरनेट का सफर, १९७० के दशक में, विंट सर्फ (Vint Cerf) और बाब काहन् (Bob Kanh) ने शुरू किया गया। उन्होनें एक ऐसे तरीके का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कंप्यूटर पर किसी सूचना को छोटे-छोटे पैकेट में तोड़ा जा सकता था और दूसरे कम्प्यूटर में इस प्रकार से भेजा जा सकता था कि वे पैकेट दूसरे कम्प्यूटर पर पहुंच कर पुनः उस सूचना कि प्रतिलिपी बना सकें – अथार्त कंप्यूटरों के बीच संवाद करने का तरीका निकाला। इस तरीके को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल {Transmission Control Protocol (TCP)} कहा गया।
•    सूचना का इस तरह से आदान प्रदान करना तब भी दुहराया जा सकता है जब किसी भी नेटवर्क में दो से अधिक कंप्यूटर हों। क्योंकि किसी भी नेटवर्क में हर कम्प्यूटर का खास पता होता है। इस पते को इण्टरनेट प्रोटोकॉल पता {Internet Protocol (I.P.) address} कहा जाता है। इण्टरनेट प्रोटोकॉल (I.P.) पता वास्तव में कुछ नम्बर होते हैं जो एक दूसरे से एक बिंदु के द्वारा अलग-अलग किए गए हैं।
•    सूचना को जब छोटे-छोटे पैकेटों में तोड़ कर दूसरे कम्प्यूटर में भेजा जाता है तो यह पैकेट एक तरह से एक चिट्ठी होती है जिसमें भेजने वाले कम्प्यूटर का पता और पाने वाले कम्प्यूटर का पता लिखा होता है। जब वह पैकेट किसी भी नेटवर्क कम्प्यूटर के पास पहुंचता है तो कम्प्यूटर देखता है कि वह पैकेट उसके लिए भेजा गया है या नहीं। यदि वह पैकेट उसके लिए नहीं भेजा गया है तो वह उसे आगे उस दिशा में बढ़ा देता है जिस दिशा में वह कंप्यूटर है जिसके लिये वह पैकेट भेजा गया है। इस तरह से पैकेट को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को इण्टरनेट प्रोटोकॉल {Internet Protocol (I.P.)} कहा जाता है।
•    अक्सर कार्यालयों के सारे कम्प्यूटर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं। इसको Local Area Network (LAN) लैन कहते हैं। लैन में जुड़ा कोई कंप्यूटर या कोई अकेला कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटरों के साथ टेलीफोन लाइन या सेटेलाइट से जुड़ा रहता है। अर्थात, दुनिया भर के कम्प्यूटर एक दूसरे से जुड़े हैं। इण्टरनेट, दुनिया भर के कम्प्यूटर का ऎसा नेटवर्क है जो एक दूसरे से संवाद कर सकता है।

29 अक्टूबर 1969 का दिन सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नव प्रांति का दिन था जब पहली बार कैलिफोर्निया के रिसर्च ग्रुप ने आर्पानेट के माध्यम से पहला इंटरनेट मैसेज भेजा था। इस पहली सफलता के बाद तो जैसे विश्व में नये युग की शुरूआत हो गई। इसके बाद इंटरनेट के धीरे-धीरे हुये प्रमिक विकास ने सारी दुनिया का नक्शा ही बदल दिया। आज हालत यह है कि इंटरनेट की वजह से ही यह कहा जाने लगा है कि हम एक `ग्लोबल विलेज' में रहते हैं। जहाँ हजारों कि.मी. दूर बैठे व्यक्ति भी एक दूसरे से हमेशा संपर्क में बने रहते हैं। भारत में इंटरनेट की व्यावसायिक शुरूआत 15 अगस्त 1995 को विदेश संचार निगम लिमिटेड द्वारा उपलब्ध कराई गई थी, जिसकी सेवायें शुरूआती दौर में महानगरों में दी गई। लेकिन जल्द ही इसकी लोकप्रियता देश के अन्य राज्यों से होते हुये कस्बों तक फैल गई। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इंटरनेट ने नये आयाम स्थापित किये। सभी क्षेत्रों में भारत की विकास यात्रा को सफल बनाने में इंटरनेट ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। अब 15 अगस्त 2010 को जब भारत में इंटरनेट को आये 15 साल पूरे हो गये हैं। तब इसकी दीवानगी का आलम यह है कि करीब 81 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता इसका दैनिक जीवन में उपयोग कर रहे हैं। यह संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। विशेषज्ञों का मत है कि भारत में अभी भी इंटरनेट शैशवास्था में ही है जो भविष्य में अपनी सफलता के कई नये आयाम स्थापित करेगा।

भारत में इंटरनेट शब्द सन् 1994 के दौरान ही प्रचलन में आया। सबसे पहले भारत में इंटरनेट की सुविधा कुछ समय तक एजुकेशन एंड रिसर्च नेटवर्क द्वारा उपलब्ध करवाई गई थी परंतु अगस्त 1995 से व्यावसायिक प्रयोग के लिए यह सुविधा विदेश संचार निगम लिमिटेड (वी.एस.एन.एल.) द्वारा उपलब्ध करवाई जाने लगी। फलत मात्र राजधानी दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्रों के 32,000 लोग इस सुविधा का लाभ उठाने लगे। अगस्त 1995 से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चैन्नई महानगरों से प्रारंभ की गई& इंटरनेट सुविधा से बैंगलौर, पुणे, कानपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर, हैदराबाद, पटना तथा गोवा भी इससे जुड़ गए। आज हजा& का विजाय है कि इंटरनेट के बढ़ते जाल के कारण सम्पूर्ण भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में तेजी से वफद्धि हो रही है, यहाँ तक कि गाँव-गाँव में जहाँ भरोसेमंद मीडिया उपलब्ध है, इंटरनेट का उपयोग किया जा रहा है।

आरंभ में इंटरनेट सुविधा के विस्तार के लिए वी.एस.एन.एल. दूरसंचार विभाग का सहयोग ले रहा था, ताकि अधिकाधिक उपभोक्ताओं को सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। तब सभी नए नोड दूरसंचार विभाग द्वारा ही संचालित किए जा रहे थे। वी.एस.एन.एल. की जी.आई.ए.एस. (गेटवे इंटरनेट एक्सेस सर्विस) विश्व की न्यूनतम दरों पर इंटरनेट की सम्पूर्ण सेवाएँ उपलब्ध कराती थी। वी.एस.एन.एल. ने इंटरनेट की सम्पूर्ण सेवाएं पूरे देश को उपलब्ध कराने के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई थी। इसके अन्तर्गत इसका मुख्य इंटरनेट एक्सेस नोड मुंबई मेंस्थापित किया गया जिसका संपर्क अमेरिका के इंटरनेट नोड से उपग्रह के माध्यम से तथा यूरोप के इंटरनेट नोड से समुद्र के अंदर बिछाए गए केबलों के माध्यम से किया गया।

आज इंटरनेट भारत में अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। इंटरनेट ने भारतीय कंपनियों के लिए नई-नई सेवाओं के साथ असीमित अवसर प्रदान करके नए युग की शुरुआत की है। अभीतक इसमें ई-मेल, डाटा बेस, वेब होस्टिंग सेवाएँ, विज्ञापन, इंटरनेट प्रकाशन तथा इंटरनेट कारोबार शामिल है। आज कई भारतीय समाचार पत्रों, मंत्रालयों, कार्यालयों एवं संस्थाओं आदि ने अपनी अपनी वेबसाइटें खोली हैं, जिनके द्वारा समाचार पत्रों को इंटरनेट पर भी पढ़ा जा सकता है तथा मंत्रालयों एवं कार्यालयों के बारे में विस्तफत जानकारी उनकी वेबसाइटों द्वारा इंटरनेट पर ही ली जा सकती है। इंटरनेट के आगमन से हमारे देश में सूचना क्रांति के नए युग का सूत्रपात हुआ और इसकी तीव्रगति से अभिवफद्धि हुई है। सन् 1998 में इंटरनेट को घर-घर तक पहुँचाने के लिये नेशनल इंफार्मेटिक पॉलिसी बनाई गई थी। आज भारत में इंटरनेट की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंटरनेट उपभोक्ताओं के मामलों में विश्व में भारत का तीसरा स्थान है। भारत में लगभग 81 मिलियन लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं तथा 8 मिलियन से भी अधिक ब्रॉडबैंड कनेक्शन भारत में है.

फिनलैंड ने तमाम देशों से कम से कम एक मामले में तो बाजी मार ही ली और वह है इंटरनेट कनेक्शन को मूलभूत अधिकार बनाने का। फिनलैंड ने ब्राडबैंड सर्विस पाने को कानूनी अधिकार बनाकर इसके लिये वहाँ काम कर रही सभी 26 टेलीकॉम कंपनियों को भी सतर्क रहने को कहा है। फिनलैंड अब एकमात्र ऐसा देश है जहाँ हर व्यक्ति को 1 एमबीपीस (मेगाबाइट पर सेकंड) की डाउनलोड स्पीड देना हर प्रदाता कंपनी के लिए कानूनी तौर पर जरूरी होगा। फिनलैंड की मिनिस्टर ऑफ कम्युनिकेशन सुवि लिंडेन का कहना है कि हमने काम कर रहे सभी 26 इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को भी इस बारे में बता दिया है कि अब हमारे देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन बेसिक राइट्स में शामिल है और उन्हें इसी के अनुरूप काम करना होगा। वैसे कमाल की बात यह भी है 53 लाख से ज्यादा की आबादी वाले इस देश में 99 प्रतिशत घरों में 1 एमबीपीएस की गति से इंटरनेट कनेक्शन पहले ही उपलब्ध है और इस कायदे के आने के बाद तुंत ही बाकी लोगों को भी यह सुविधा होगी। पिछले ही साल यहाँ कम्युनिकेशन मार्केट एक्ट में बदलाव कर लोगों को पोस्टल और फोन सुविधाओं की ही तरह नेट सुविधा भी देने का प्रण किया गया था। सुवि लिंडेन का कहना है कि हाई-क्वालिटी और उचित दर वाला ब्रॉडबैंड कनेक्शन हमारे हर नागरिक का मूलभूत अधिकार होना ही चाहिये। कम्युनिकेशन नेटवर्क्स यूनिट देख रहीं ओली-पेक्का रेंटाला का कहना है कि जहॉं एक एमबीपीएस की स्पीड के लिये कई देश जद्दोजहद कर रहे हैं तब हमारा इसे अधिकार के रूप में शामिल करना वाकई खुशी की बात है।

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