मीडिया द्वारा एजेंडा सेटिंग
एजेंडा सेटिंग
एजेंडा सेटिंग की
परिकल्पना का व्यवस्थित
अध्ययन सर्वप्रथम मैक्सवेल
ई. मैकाम्ब एवं
डोनाल्ड एलशा ने
1972 में किया. उन्होंने
अमेरिका में हुए
राष्ट्रपति के चुनाव
के सम्बन्ध में
एक अध्ययन किया.
इस अध्ययन में
उन्होंने यह सिद्ध
किया कि समाज
में सभी मुद्दों
का अलग-अलग
महत्व होता है
किन्तु मुद्दों के
महत्व का निर्धारण
बहुमत द्वारा किया
जाता है और
मीडिया इस प्रक्रिया
का एक सूत्र
होता है. इसे
ही एजेंडा सेटिंग
कहा जाता है.
इस सिद्धांत के
अनुसार जन माध्यम
समाज के मुद्दों
को प्रभावित करते
है. अवधारणा:- एजेंडा
सेटिंग की अवधारणा
यह है कि
मीडिया द्वारा मुद्दों
का निर्माण किया
जाता है. वह
लोगों को बताता
है कि आज
कौन सा मुद्दा
सबसे महत्वपूर्ण है
तथा कौन सा
मुद्दा गौण है.
चुकि मीडिया के
भी कई रूप
है और हर
मीडिया का अपना
एक उद्देश्य और
अपना हित-लाभ
जुड़ा होता है.
इस प्रकार हम
कह सकते हैं
कि एक ही
समय पर मीडिया
के विभिन्न रूप
एजेंडा सेटिंग के
अलग -अलग मुद्दे
उठाते रहते है
और अपने तरीके
से जनमत को
प्रभावित करने का
प्रयास करते रहते
है. कभी - कभी
यह मुद्दे समाज
और सरकार दोनों
को प्रभावित करते
है तथा कभी-कभी
बौने भी साबित
होते है. कुछ
मीडिया संस्थानों को
छोड़ दे तो
प्रायः हर मीडिया
अपने हित लाभ
को देखते हुए
मुद्दे को उठाने
कि प्राथमिकता तय
करती है, भले
ही राष्ट्र के
सामने कोई बड़ा
मुद्दा ही क्यूं
न हो. इस
प्रकार हम कह
सकते है कि
मीडिया द्वारा उठाये
जाने वाले मुद्दे
प्रमुख होते हैं
और हम उन्हें
प्राथमिकता के आधार
पर अपना मुद्दा
बना सकते हैं.
एजेंडा सेटिंग सिद्धांत
के एतिहासिक संदर्भ:-
एतिहासिक संदर्भ के
अनुसार एजेंडा सेटिंग
सिद्धांत का विचार
सर्वप्रथम अमेरिकी पत्रकार
वाल्टर लिपमैन ने
1922 में अपनी चर्चित
पुस्तक ‘पब्लिक ओपिनियन’
में दिया, जो
इस प्रकार है-
“ लोग वास्तविक जगत
की घटनाओं पर
नहीं, बल्कि उस
मिथ्या छवि के
आधार पर प्रतिक्रिया
जाहिर करते है,
जो हमारे मस्तिक
में बनाई गई
है. मीडिया हमारे
मस्तिष्क में ऐसी
छवि बनाने तथा
एक मिथ्या- परिवेश
निर्मित करने में
एक महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है.” सन्
1944 में लेजर्सफेल्ड ने
‘पॉवर टू स्ट्रक्चर
इश्यूज’ के आधार
पर एजेंडा सेटिंग
की अवधारणा प्रस्तुत
की है. मैक्सवेल
ई. मैकाम्ब एवं
डोनाल्ड एलशा ने
1972 में किया. उन्होंने
1968 में अमेरिका में
हुए राष्ट्रपति के
चुनाव के सम्बन्ध
में एक अध्ययन
किया. इस अध्ययन
में उन्होंने यह
सिद्ध किया कि
समाज में सभी
मुद्दों का अलग-अलग
महत्व होता है
किन्तु मुद्दों के
महत्व का निर्धारण
बहुमत द्वारा किया
जाता है और
मीडिया इस प्रक्रिया
का एक सूत्र
होता है. इसे
ही एजेंडा सेटिंग
कहा जाता है.
इस सिद्धांत के
अनुसार जन माध्यम
समाज के मुद्दों
को प्रभावित करते
है. यह एजेंडा
सेटिंग के सिद्धांत
को समझने का
पहला सुव्यवस्थित अध्ययन
था जो नॉर्थ
कैरोलिना के चैपलहिल
में मतदाताओं के
बीच किया गया
था. इसीलिए इसे
चैपलहिल स्टडी के
नाम से भी
जाना जाता है.
इस अध्ययन में
सौ मतदाताओं से
अमेरिका के प्रमुख
मुद्दों एवं समस्याओं
के बारे में
जानकारी ली गई
थी तथा इसके
साथ ही पांच
समाचारपत्रों, दो
पत्रिकाओं और दो
टेलीविजन नेटवर्क के
समाचारों का अंतर्वस्तु
विश्लेषण किया गया
था. इसमें मीडिया
एजेंडा तथा पब्लिक
एजेंडा में जबरदस्त
सह संबंध पाया
गया. इनके लिखे
‘दी एजेंडा सेटिंग
फंक्शन ऑफ मास
मीडिया’ (1972) और
‘स्ट्रक्चरिंग दी अनसीन
एनवायरनमेंट’ (1976) शीर्षक
निबन्धों में इस
सिद्धांत का विस्तृत
विवेचन दिया गया.
इस सिद्धांत के
अनुसार मैक्सवेल ई.
मैकाम्ब एवं डोनाल्ड
एलशा ने बताया
कि मीडिया लोगों
को यह बताने
में उतना सफल
नहीं होता कि
‘क्या सोचना है
(what to think)’ किन्तु वह यह
बताने में बहुत
सफल है कि
‘किस बारे में
सोचना है
(what to think about)’. मैक्सवेल ई.
मैकाम्ब एवं डोनाल्ड
एलशा के अनुसार
जनसंचार का एजेंडा
निर्धारण कार्य है
श्रोताओं की सोच
शक्ति को निर्धारित
करना. विशेषतः यह
सिद्धांत राजनीतिक अभियानों
पर लागू होता
है. एजेंडा निर्धारण
परिक्रिया पर शोध
अधिकतर इन्हीं अभियानों
को लेकर किया
गया है. इन
सिद्धांतों के अध्ययन
से हमे यह
जानकारी होती है
कि मीडिया द्वारा
जिन मुद्दों को,
जिस क्रम में
महत्व दिया जाता
है, लगभग वही
क्रम जनता द्वारा
भी दिया जाता
है. इस प्रकार
मीडिया जिन मुद्दों
को प्राथमिकता देती
है वही जनता
की प्राथमिकतायें बन
जाती है. एजेंडा
सेटिंग सिद्धांत के
कुछ प्रयोग और
उदहारण:- एजेंडा
सेटिंग सिद्धांत पर
आधारित सन् 1980
में हुए अमेरिकी
राष्ट्रपति पद के
चुनाव में मीडिया
की एजेंडा सेटिंग
सिद्धांत की भूमिका
काफी प्रभावशाली साबित
हुई. मुख्य संघर्ष
उस समय के
राष्ट्रपति जिमी कार्टर
और रोनाल्ड रीगन
के बीच था
अधिकतर लोगों का
मत था कि
यह मुकाबला काफी
नजदीकी होगा जीत-हार
का फैसला बहुत
कम मतों के
अंतर से होगा.
मतदान की तिथि
के दो दिन
पूर्व समाचार माध्यमों
ने एक समाचार
प्रसारित किया कि
ईरान द्वारा बंधक
बनाये गये अमेरिकी
बंधक मुक्त हो
चुके होते परन्तु
वह मुक्त नहीं
कराये गये. जब
चुनाव परिणाम घोषित
हुआ तो पता
चला कि रीगन
ने भरी मतों
से विजय हासिल
की है. वह
छः राज्यों एवं
कोलम्बिया में जीते.
बाद में जब
इस चुनाव परिणाम
का विश्लेषण और
विवेचन किया गया
तो यह तथ्य
सामने उभर कर
आया कि इस
परिणाम का कारण
एजेंडा सेटिंग था.
बंधकों की रिहाई
के सम्बन्ध में
समाचार प्रसारित कर
जन माध्यमों ने
ईरानी बंधकों के
मुद्दे के प्रति
लोगों की जागरूकता
को बढ़ा दिया.
अधिकांश मतदातओं के
लिए बंधकों का
मुद्दा, चुनावी मुद्दों
की सूची में
निम्न स्थान से
उच्च स्थान पर
आ गया. एजेंडा
सेटिंग का एक
परिकल्पनात्मक केस तो
इस प्रकार उपर
दिये गये चित्र
को देखकर यह
स्पष्ट हो जाता
है कि मीडिया
द्वारा प्रमुखता से
उभारने पर कोई
गौण मुद्दा भी
अत्यधिक प्रभावी हो
जाता है. चुनाव
परिणाम का अध्ययन
करने पर यह
पाया गया कि
बंधकों की रिहाई
के मुद्दे जोर
पकड़ने से स्थितियां
और परिणाम कार्टर
के विरुद्ध हो
गये क्यूंकि कई
लोगों का मानना
था कि यह
मुद्दा तात्कालिक राष्ट्रपति
कार्टर के प्रशासन
की बड़ी असफलताओं
में से एक
था. जिसे मीडिया
ने एक एजेंडा
के रूप में
पेश किया था.
इस स्थिति को
संभावित स्थिति के
रूप में सामाजिक
मनोवैज्ञानिक डोनल्ड किंडर
तथा प्रसिद्ध राजनीति
विशेषज्ञ सांतो आयंगर
ने भी प्रस्तुत
किया. एजेंडा सेटिंग,
जन माध्यमों द्वारा
जन समुदाय को
प्रभावित करने का
एक तरीका है.
एजेंडा सेटिंग की
विधि समाचार माध्यमों
द्वारा समाचारों के
प्रस्तुतिकरण से लोगों
में विचार एवं
बहस के मुद्दे
स्पष्ट करती है.
इसी प्रकार नॉर्टन
लॉन्ग और ग्लेडिस
एंगल लॉन्ग
(1959) के अनुसार - मास
मीडिया कुछ खास
मुद्दों की और
ध्यान खींचता है.
वह राजनेतओं की
सार्वजनिकछवि बनाता है.
मीडिया निरंतर ऐसी
चीजें प्रस्तुत करता
रहता है जिनसे
पता चलता है
की जनमानस के
बीच हर आदमी
को किं मुद्दों
को सोचना और
जानना चाहिए तथा
किन मुद्दों के
प्रति संवेदनशील होना
चाहिए. अमेरिका में
एजेंडा सेटिंग का
प्रभावी रूप:- एजेंडा
सेटिंग का सिद्धांत
अमेरिका पत्रकारिता के
उस दौर में
उभरा जिसे अमेरिकी
पत्रकारिता के इतिहास
में चरित्रहीन पत्रकारिता
का दौर कहा
जा सकता है.
इसे लिकन स्टीफेंस
ने अपनी आत्मकथा
में ‘मैं एक
अपराध लहर बनाता
हूं’ नामक अध्याय
में लिखा है.
स्टीफेंस न्यूयार्क से
प्रकाशित समाचार पत्र
‘इवनिंग पोस्ट’ में
कार्यरत थे. उसने
कहा कि पुलिस
स्टेशन में हर
समय अपराध से
सम्बंधित समाचार सामग्री
रहती हा पर
उन्हें समाचार पत्रों
में प्रकाशित नहीं
किया जाता. एक
दिन उन्होंने उन
समाचारों में से
एक समाचार की
रिपोर्टिंग करने का
निर्णय लिया क्योंकि
उसमें एक नामी
परिवार शामिल था.
जब यह समाचार
‘इवनिंग पोस्ट’ में
प्रकाशित हुई तो
अन्य समाचार पत्रों
के संपादको ने
अपने पुलिस रिपोर्टर
से पूछा की
उन्होंने यह समाचार
क्यों नहीं प्राप्त
किया? इसका परिणाम
यह हुआ कि
कुछ ही समय
में न्यूयार्क के
सभी अखबार अपनी
श्रेष्ठता स्थापित करने
के लिए ऐसे
ही अपराध समाचारों
कीखोज में लग
गये. यहां तक
वह एक दूसरे
समाचार पत्रों की
खबरों को काट-छांट
कर या उसमें
कुछ मिर्च-मसाला
लगाकर प्रकाशित करने
लगे. इसका परिणाम
यह हुआ कि
समाचार पत्रों में
अपराध समाचारों की
संख्या और स्थान
बढ़ने लगा. इसे
‘अपराध लहर’ की
संज्ञा दी गई.
उपरोक्त दृष्टान्त पर
जब हम दृष्टिपात
करते हैं तो
हमारे समक्ष यह
बात स्पष्ट रूप
में उभर कर
आती है कि
जनता और जन
अधिकारियों कि दृष्टि
में अपराध एक
महत्वपूर्ण मुद्दा बन
कर उभरा. इसका
प्रमुख कारण यह
था कि समाचार
पत्रों में अपराध
से सम्बंधित समाचार
सामग्री अधिक मात्रा
में प्रकाशित हुई
और इससे अपराध
एक महत्वपूर्ण मुद्दा
बन गया. भारत
में एजेंडा सेटिंग
से जुड़े कुछ
प्रमुख उदहारण:- एजेंडा
सेटिंग सिद्धांत का
प्रयोग भारत में
भी मीडिया ने
समय-समय पर
प्रयोग किया है.
भारत के प्रसिद्ध
चित्रकार मकबुल फ़िदा
हुसैन पर देवी-देवताओं
की आपत्तिजनक पेन्टिंग
बनाने के आरोप
सम्बन्धी विवाद में
देखा जा सकता
है. भोपाल की
एक पत्रिका विचार
मीमांसा ने 1995
में इस पर
एक कवर स्टोरी
निकाली और देखते
ही देखते यह
राष्ट्र का एक
बड़ा मुद्दा बन
गया. चुकिं मीडिया
समाज का आइना
होता है जिसमें
समाज की वास्तविक
प्रतिबिम्ब होनी चाहिए
लेकिन एजेंडा सेटिंग
सम्बन्धी अध्ययन करने
वाले संचार विशेषज्ञों
ने यह बात
प्रमाणित कर दी
है कि इस
प्रतिबिम्ब में वास्तविकता
कुछ खास तरीकों
एवं रूपों में
ही नजर आता
है तथा उसके
तरीके और रूप
कुछ विशेष हित
समूहों द्वारा निर्धारित
होते हैं. मुद्दों
को सामने लाने
तथा उन पर
सार्वजनिक चर्चा का
माहौल तैयार करने
का भौतिक मंच
मास मीडिया ही
है, इसलिए मीडिया
प्रायः अपने मुद्दों
को सर्वोपरि करने
की कोशिश करता
है. कई बार
यह सवाल भी
उठता है कि
मुद्दे जन-मुद्दों
को प्रभावित करते
हैं या जनता
के मुद्दों का
प्रभाव मीडिया पर
पड़ता है. भारत
में एजेंडा सेटिंग
के हाल ही
के उदहारण:- आज
के समय में
भारत की अगर
बात की जाए
तो निर्मल बाबा
से लेकर अन्ना
हजारे तक में
मीडिया ने एजेंडा
निर्धारित करने का
कार्य किया है.
यह सारे प्रमुख
समाचार चैनेल की
ही देन है
कि एक व्यक्ति
घर-घर में
निर्मल बाबा के
नाम से पूजा
जाने लगा मगर
उसी चैनेल्स ने
जब उनके ढोंग
को मुद्दा बनाकर
दिखाना शुरू किया
तो आज निर्मल
बाबा कहीं दिखाई
ही नहीं पड़ते
हैं. इस प्रकरण
को देख कर
बखूबी यह समझ
में आ जाता
है कि किस
तरह मीडिया किसी
मुद्दे को सेट
करता है और
एजेंडा सेट करने
का कार्य करती
है जिससे एक
व्यक्ति को घर-घर
में जाना-जाने
लगता है तो
वहीं जमे हुए
कारोबार को भी
उखड़वा फेंकवाती है.
वहीं अन्ना हजारे
के आंदोलन कि
बात कि जाए
तो मीडिया ने
यहां भी एजेंडा
सेट करने का
कार्य किया, यह
मीडिया कि ही
देन थी कि
एक आंदोलन जन
आंदोलन के रूप
में परिवर्तित हो
गया. इस मुद्दे
को मीडिया ने
इतना दिखाया की
लोग इससे खुद
ही जुड़ते चले
गये. अभी हाल
ही का उदहारण
लिया जाए तो
मीडिया द्वारा अन्ना
और केजरीवाल के
भूख हड़ताल को
जब शुरूआती दो
दिन प्रमुखता नहीं
दी गई तो
जंतरमंतर से भीड़
भी नदारद रही
मगर वहीं जब
मीडिया का उसे
कवरेज मिला तो
भीड़ बहुत बढ़
गई. और अभी
हाल ही का
उदहारण लिया जाए
कानून मंत्री सलमान
खुर्शीद और उनकी
पत्नी के एनजीओ
पर अपाहिजों के
पैसा खाने का
आरोप लगा और
मीडिया के प्रमुखता
के ही कारण
इस मुद्दे को
आज लोग जान
पाए और खुद
कानून मंत्री को
इसपर प्रेस कांफ्रेंस
बुलानी पड़ी. तो
इस प्रकार हम
देखते है की
मीडिया किस तरह
एजेंडा सेटिंग का
कार्य करती है.
यह एजेंडा सेटिंग
का ही कमाल
है कि आज
हमारे यहां विधानसभा
हो या लोकसभा
का चुनाव, चुनाव
को त्यौहार के
रूप में देखा
जाता है. यह
मीडिया का ही
कमाल है कि
लोग चुनाव में
एक खास रूचि
रखते हैं. एजेंडा
सेटिंग के प्रमुख
तत्व:- मैकाम्ब
एवं शा ने
एजेंडा सेटिंग सिद्धांत
का जो अध्ययन
किया उसके आधार
पर एजेंडा सेटिंग
सिद्धांत के प्रमुख
तत्व निम्नलिखित है.
1. किसी मुद्दे पर
सार्वजनिक बहस संचालित
करना 2. कुछ
खास मुद्दों को
ज्यादा प्राथमिकता देना
3. अन्य मुद्दों को
गौण समझना या
नकारना 4. किसी
खास मुद्दे को
जानबूझकर नकारना एजेंडा
सेटिंग सिद्धांत के
अनुसार मीडिया जनमत
के उपर एक
खास प्रभाव छोड़ता
है. लोगों को
मुद्दों कि जानकारी
मीडिया द्वारा ही
होता है. मीडिया
में किस मुद्दे
को किस क्रम
में रखा जा
रहा है, कितना
महत्व दिया जा
रहा है यह
सब महत्पूर्ण होता
है. मीडिया जनमत
निर्माण एवं जनमत
परिवर्तन में भी
महत्वपूर्ण भूमिका का
निर्वहन करता है.
आज हम अगर
हम समाचार चैनेल
की बात करें
तो आज हर
चैनेल अपने प्राइम
समय में किसी
खास मुद्दे को
उठाने की कोशिश
करता है, यह
एजेंडा सेटिंग का
एक प्रमुख रूप
है. एजेंडा सेटिंग
सिद्धांत की कमियां:-
एजेंडा सेटिंग सिद्धांत
की अपनी कुछ
कमियां भी है.
1. मीडिया के प्रभावों
के संदर्भ में
हमें व्यक्तिगत तौर
पर सुनिश्चित किये
गये एजेंडा अथवा
समुदाए द्वारा तय
किये गये एजेंडे,
संस्थान, राजनीतिक दल,
अथवा सरकार के
द्वारा तय किये
गये एजेंडे में
से किस का
प्रभाव ज्यादा हुआ
है इसे तय
करने में असुविधा
का सामना करना
पड़ता है. 2. भिन्न-भिन्न
किस्म के एजेंडे
के संदर्भ में
व्यक्तिगत, सामुदायिक, राजनीतिक
दल और सरकार
आदि के लिए
एजेंडे के प्रश्न
पर भिन्नता हो
सकती है. व्यक्तिगत
एजेंडा और संस्थागत
एजेंडा इन दोनों
में गुणात्मक रूप
से अंतर है.
इन दोनों का
राजनीतिक दलों पर
भी प्रभाव भिन्न
रूप में पड़ता
है. 3. तीसरी
कमी यह है
कि ‘मंशा’ के
प्रश्न को हल
करना बेहद मुश्किल
है. मीडिया की
विश्वसनीयता अब उतनी
नहीं रही जो
हुआ करती थी
इसलिए यह समझना
काफी मुश्किल है
कि किसी खास
मुद्दे को उठाने
के प्रति मीडिया
कि क्या मंशा
है. खास कर
ऐसे समय में
जब माध्यमों के
द्वारा एजेंडा सेटिंग
को सचेत एवं
सुव्यवस्थित ढंग से
किया जाता है.
निष्कर्ष:- इस
सिद्धांत को और
अधिक विश्वसनीय बनाने
के लिए इसे
ज्यादा प्रासंगिक, सामाजिक
और ज्ञान ग्रहण
की प्रक्रिया के
साथ-साथ सूचना
स्रोत की विशेषज्ञता
को देना जरुरी
होगा. राजनीतिक और
सामजिक रूप से
मीडिया की धारणा
को हम यह
कह सकते है
कि मीडिया एजेंडे
तय करने के
विभिन्न मुद्दे देने
का कार्य करता
है अब उनमें
से कौन प्रमुख
मुद्दा एजेंडा सेटिंग
सिद्धांत पर प्रभावी
हो सकता है
वह समय और
समाज सापेक्षता पर
भी निर्भर करता
है.
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