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Friday, 13 June 2014

communication process/संचार प्रक्रिया

संचार प्रक्रिया (Communication Process)


आदिकाल में आज की तरह संचार माध्यम नहीं थे, तब भी मानव संचार करता था। वर्तमान युग में संचार माध्यमों की विविधता के कारण संचार प्रक्रिया में तेजी आयी है, लेकिन उसके सिद्धांतों में कोई परिवर्तन नहीं आया है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्राचीन संचार माध्यमों और आधुनिक संचार माध्यमों में संचार प्रक्रिया का सैद्धांतिक स्वरूप एक जैसा ही है। सामान्यत: संचार पांच प्रक्रियाओं में सम्पन्न होता है, जो निम्नवत् है :- 

पहली प्रक्रिया : संचार की पहली प्रक्रिया में मुख्यत: तीन तत्व भाग लेते हैं- संचारक, संदेश और प्रापक। इसके अंतर्गत् संचार एक-मार्गीय होता है। संचारक द्वारा सम्प्रेषित संदेश सीधे प्रापक तक पहुंचता है। 
  

उपरोक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि संचार की पहली प्रक्रिया में संचारक और प्रापक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। संचार को तभी प्रभावी या सार्थक कहा जा सकता है, जब संचारक और प्रापक, मानसिक व भावनात्मक दृष्टि से  एक ही धरातल पर हो तथा संचारक द्वारा सम्प्रेषित संदेश के अर्थो को प्रापक समझता हो।

दूसरी प्रक्रिया : संचार की दूसरी प्रक्रिया के अंतर्गत् संचारक और प्रापक को क्रमश: एक-दूसरे की भूमिका निभानी पड़ती है। इसके परिणाम स्वरूप दोनों के मध्य एक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित होता है। 




 

     उपरोक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि संचार प्रक्रिया द्वि-मार्गीय होने के कारण निरंतर चलती रहती है। इसके अंतर्गत् संचारक से संदेश ग्रहण करने के उपरांत प्रापक जैसे ही कुछ कहना शुरू करता है, वैसे ही संचारक की भूमिका में आ जाता है। उसकी बातों को सुनते समय संचारक की भूमिका बदलकर प्रापक जैसी हो जाती है। 

तीसरी प्रक्रिया : संचार की तीसरी प्रक्रिया के अंतर्गत् संचारक निर्णय लेता है कि उसे कब, क्या, किसे और किस माध्यम (Channel) से सम्प्रेषित करना है। अर्थात् संचारक संदेश सम्प्रेषित करने के लिए संचार माध्यम का चुनाव करता है। 



 
उपरोक्त रेखाचित्र के माध्यम से स्पष्ट है कि संचारक अपने संदेश और प्रापक की स्थिति के अनुसार संचार माध्यम का चुनाव करता है। संचारक अपने संदेश को बोलकर, लिखकर, रेखाचित्र बनाकर या शारीरिक क्रिया द्वारा सम्प्रेषित कर सकता है। प्रापक सुनकर, पढक़र, देखकर या छूकर संदेश को ग्रहण कर सकता है।

चौथी प्रक्रिया : संचार की चौथी प्रक्रिया के अंतर्गत् प्रापक किसी माध्यम से प्राप्त संचारक के संदेश को ग्रहण करने के उपरान्त अपने ज्ञान के स्तर के आधार पर व्याख्या करता है। तदोपरान्त बोलकर, लिखकर या अपनी भाव-भंगिमाओं से प्रतिक्रिया (Feedback) व्यक्त करता है।

उपरोक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि संचार प्रक्रिया के दौरान प्रापक से फीडबैक प्राप्त करते हुए एक कुशल संचारक अपनी बात को आगे बढ़ाता है तथा संदेश में आवश्यकतानुसार बदलाव भी करता है। फीडबैक न मिलने की स्थिति में संचारक का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।

पांचवी प्रक्रिया : संचार प्रक्रिया में संचारक अपने संदेश को गुप्त भाषा में कूट (Encode) करता है और किसी माध्यम से सम्प्रेषित करता है। प्रापक संदेश को प्राप्त करने के बाद गुप्त भाषा को समझ (Decode) लेता है तथा अपना फीडबैक व्यक्त कर देता है, तो संचार प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इस प्रक्रिया में कई तरह की बाधाएं आती है, जिससे संदेश कमजोर, विकृत और अप्रभावी हो जाता है। 

 


उपरोक्त रेखाचित्र में संचारक (Encoder) वह व्यक्ति है जो संचार प्रक्रिया को प्रारंभ करता है। संदेश शाब्दिक और अशाब्दिक दोनों तरह का हो सकता है। किसी माध्यम से संदेश प्रापक तक पहुंचता है। प्रापक संदेश को प्राप्त करने के बाद व्याख्या (Decode) करता है, फिर प्रतिक्रिया  (Feecback) व्यक्त करता है। तब प्रापक ष्ठद्गष्शस्रद्गह्म् कहलाता है। इस प्रक्रिया में कुछ बाधा  (Noise) उत्पन्न होती है, जिससे संचार का प्रवाह/प्रभाव कम हो जाता है।

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