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Friday, 13 June 2014

बुलेट सिद्धांत (Bullet Theory)

बुलेट सिद्धांत (Bullet Theory)

         जब संचारक पूर्व नियोजित तरीके से अपने संदेश को सम्प्रेषित कर प्रापक में मनचाहा प्रभाव उत्पन्न करने का प्रयास करता है, तो इस प्रक्रिया को बुटेल सिद्धांत कहते हैं। इसमें संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है प्रापक की नहीं। संचारक सूचना का स्वरूप, आकार, प्रकार, माध्यम इत्यादि का निर्धारण करता है। जबकि प्रापक एक अक्रियाशील प्राणी होता है तथा सोचने-समझने की क्षमता न होने के कारण संचारक के संदेश को ज्यों का त्यों ग्रहण कर लेता है। 

          संचार के इस सिद्धांत का प्रतिपादन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में हुआ। उस समय अमेरिकी समाज आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक आधार पर तेजी से बदल रहा था, जिसके चलते लोगों में आपसी तालमेल व सहयोग की भावना कम होने लगी थी। अमेरिकी समाज में जनमाध्यमों का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा था। लोग एक-दूसरे पर कम तथा जनमाध्यमों पर अधिक भरोसा करने लगे थे। इस परिवेश में समाजशास्त्री ने महसूस किया कि- जनमाध्यम एक शक्तिशाली हथियार है, क्योंकि इसके संदेश का लोगों पर प्रत्यक्ष तथा सीधा असर हो रहा है। इसका उपयोग कर जनता के विचार, व्यवहार व आदत को परिवर्तित करने में किया जा सकता है।

         ऐसी स्थिति में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जनमाध्यम इतने शक्तिशाली क्यों हैं? इसका जवाब तलाशने के लिए तत्कालीन समाज में कई अध्ययन हुआ। संचार विशेषज्ञ मकॉबी एवं फरक्यूहर ने जनमाध्यमों के प्रभाव को जानने के लिए तीन शहरों में आठ महीने तक अध्ययन किया। एक शहर में हृदय रोग के नियंत्रण सम्बन्धी संदेशों का प्रचार-प्रसार जनमाध्यमों से किया। दूसरे शहर में जनमाध्यमों के साथ-साथ समूह संचार का भी सहारा लिया तथा तीसरे शहर में कुछ नहीं किया। परिणामत: तीनों शहरों के लोगों की आदतों में काफी अंतर देखने को मिला। जनमाध्यमों से हृदय रोग के नियंत्रण सम्बन्धी संदेशों से परिचित होने के कारण पहले व दूसरे शहर के लोगों के खानपान व जीवन शैली में काफी अंतर आ गया। लोग नियमित व्यायाम करने लगे। यह असर पहले शहर की अपेक्षा दूसरे शहर के लोगों पर कुछ ज्यादा ही था, क्योंकि वहां जनमाध्यम के साथ-साथ समूह संचार का भी उपयोग किया गया था। तीसरे शहर के लोगों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। अत: बुलेट सिद्धांत के तहत सम्प्रेषित संदेश एक-चरणीय होता है, जिसे ग्रहण करने वाले प्रापकों का अपना कोई विवेक नहीं होता है।

विशेषताएं : बुलेट सिद्धांत में...

  1.  संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, प्रापक की नहीं।
  2.  संचारक का लक्ष्य स्पष्ट होने पर सकारात्मक परिणाम मिलता है।
  3.  प्रापक की न तो कोई स्वतंत्र विचारधारा होती है और न तो कोई अवधारणा। 
  4.  प्रापक की आवश्यकता को जाने बगैर ही संदेश का निर्माण किया जाता है।
  5.  जनमाध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। 

आलोचना : मनोवैज्ञानिक हैडले कैंटरिल ने बुलेट सिद्धांत की आलोचना की है। इनका कहना है कि बुलेट सिद्धांत से सम्प्रेषित संदेश भले ही समान रूप से सभी प्रापकों के पास पहुंचता है, लेकिन समान रूप से सभी प्रापकों पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं करता है। इसकी पुष्टि के लिए अपने अध्ययन के दौरान कैंटरिल ने च्दी वार आफ द वल्र्डजज् नामक रेडियो नाटक को समाचार शैली पर सम्प्रेषित किया। इसे सुनने वालों ने माना कि उनके देश पर दूसरे ग्रहों के प्राणियों का हमला होने वाला है, लेकिन इसका प्रभाव सभी स्रोताओं पर एक समान नहीं था। कैंटरिल ने अपने अध्ययन के दौरान श्रोताओं के विभिन्न व्यक्तित्व जैसे- शैक्षणिक स्तर, तर्क शक्ति की क्षमता आदि का विशेषण किया तो पाया कि व्यक्तित्व में अंतर के कारण जनमाध्यमों के प्रति श्रोताओं की प्रतिक्रियाएं भिन्न-भिन्न होती है। प्रोफेसर पॉल ए$फ.लेजर्सफेल्ड ने भी बुलेट सिद्धांत की आलोचना की है। इनके अनुसार- समाज में कई ऐसे सामाजिक व  मनोवैज्ञानिक कारक मौजूद हैं जो जनमाध्यमों व प्रापकों के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कारकों का उल्लेख प्रो. लेजर्सफेल्ड ने अपने व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत के अंतर्गत् उल्लेख किया है। 

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