समूह
संचार (Group Communication)
यह अंतर
वैयक्तिक संचार का
विस्तार है, जिसमें
सम्बन्धों की जटिलता
होती है। समूह
संचार की प्रक्रिया
को समझने के
लिए समूह के
बारे में जानना
आवश्यक है। मानव
अपने जीवन काल
में किसी-न-किसी
समूह का सदस्य
अवश्य होता है।
अपनी आवश्यकतओं की
पूर्ति के लिए
नये समूहों का
निर्माण भी करता
है। समूहों से
पृथक होकर मानव
अलग-थलग पड़
जाता है। समूह
में जहां व्यक्तित्व
का विकास होता
है, वहीं सामाजिक
प्रतिष्ठा बनती है।
समूह के माध्यम
से एक पीढ़ी
के विचार दूसरे
पीढ़ी तक स्थानांतरित
होता है। समाजशास्त्री
चार्ल्स एच. कूले
के अनुसार, समाज
में दो प्रकार
के समूह होते
हैं। पहला, प्राथमिक
समूह (Primary Group)- जिसके
सदस्यों के बीच
आत्मीयता, निकटता एवं
टिकाऊ सम्बन्ध होते
हैं। परिवार, मित्र
मंडली व सामाजिक
संस्था आदि प्राथमिक
समूह के उदाहरण
हैं। दूसरा, द्वितीयक
समूह (Secondary Group)- जिसका
निर्माण संयोग व
परिस्थितिवश या स्थान
विशेष के कारण
कुछ समय के
लिए होता है।
ट्रेन व बस
के यात्री, क्रिकेट
मैच के दर्शक,
जो आपस में
विचार-विमर्श करते
हंै, द्वितीयक समूह
के सदस्य कहलाते
हैं।
सामाजिक कार्य
व्यवहार के अनुसार
समूह को हित
समूह और दबाव
समूह में बांटा
गया है। जब
कोई समूह अपने
उद्देश्यों की पूर्ति
के लिए कार्य
करता है, तो
उसे हित समूह
कहा जाता है।
इसके विपरीत जब
अपने उद्देश्यों की
पूर्ति के लिए
अन्य समूहों या
प्रशासन के ऊपर
दबाव डालता है,
तब वह स्वत:
ही दबाव समूह
में परिवर्तित हो
जाता है। व्यक्ति
समूह बनाकर विचार-विमर्श,
संगोष्ठी, भाषण, सभा
के माध्यम से
विचारों, जानकारियों व
अनुभवाओं का आदान-प्रदान
करता है, तो
उसे समूह संचार
कहा जाता है।
इसमें फीडबैक तुरंत
मिलता है, लेकिन
अंतर-वैयक्तिक संचार
की तरह नहीं।
फिर भी, यह
बहुत ही प्रभावी
संचार है, क्योंकि
इसमें व्यक्तित्व खुलकर
सामने आता है।
समूह के सदस्यों
को अपनी बात
कहने का पर्याप्त
अवसर मिलता है।
समूह संचार कई
सामाजिक परिवेशों में
पाया जाता है।
जैसे- कक्षा, रंगमंच,
कमेटी हॉल, बैठक
इत्यादि। कई संचार
विशेषज्ञों ने समूह
संचार में सदस्यों
की संख्या 20 तक
मानते हैं, जबकि
कई संख्यात्मक की
बजाय गुणात्मक विभाजन
पर जोर देते
हैं। लिण्डग्रेन के
अनुसार- दो या
दो से अधिक
व्यक्तियों का एक
दूसरे के साथ
कार्यात्मक सम्बन्ध में
व्यस्त होने पर
एक समूह का
निर्माण होता है।
समूह संचार
और अंतर वैयक्तिक
संचार के कई
गुण आपस में
मिलते हैं। समूह
संचार कितना बेहतर
होगा, फीडबैक कितना
अधिक मिलेगा, यह
समूह के प्रधान
और उसके सदस्यों
के परस्पर सम्बन्धों
पर निर्भर करता
है। संचार कौशल
में प्रधान जितना
अधिक निपुण व
ज्ञानवान होगा। उसके
समूह के सदस्यों
के बीच आपसी
सम्बन्ध जितना अधिक
होगा, संचार उतना
ही अधिक बेहतर
होगा। छोटे समूहों
में अंतर-वैयक्तिक
संचार के गुण
ज्यादा मिलने की
संभावना होती है।
समूह संचार प्रक्रिया
में निम्न पांच
घटक भाग लेते
हैं।
विशेषताएं : समूह संचार
में ...
1. प्रापकों
की संख्या निश्चित
होती है, सभी
अपनी इच्छा व
सामर्थ के अनुसार
सहयोग करते हैं,
2. सदस्यों
के बीच समान
रूप से विचारों,
भावनाओं का आदान-प्रदान
होता है,
3. संचारक
और प्रापक के
बीच निकटता होती
है,
4. विचार-विमर्श
के माध्यम से
समस्याओं का समाधान
किया जाता है,
5. संचारक
का उद्देश्य सदस्यों
के बीच चेतना
विकसित कर दायित्व
बोध कराना होता
है,
6. फीडबैक
समय-समय पर
सदस्यों से प्राप्त
होता रहता है,
और
7. समस्या
के मूल उद्देश्यों
के अनुरूप संदेश
सम्प्रेषित किया जाता
है।
4 comments:
मार्गदर्शक है आप👍
मैं आपका आभारी हूं।।
बहुत बहुत धन्यवाद for information
Muskan barman
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