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Friday 13 June 2014

संचार के प्रकार (Types of Communication)

संचार के प्रकार (Types of Communication)

संचार मानव जीवन की बुनियादी जरूरतों में से एक है, जिसके न होने की स्थिति में मानव अधूरा होता है। अपने समाज में मानव कहीं संचारक के रूप में संदेश सम्प्रेषित करता है, तो कहीं प्रापक के रूप में संदेश ग्रहण करता है। संचार प्रक्रिया में संचारक शब्दिक संकेतों के रूप में उद्दीपकों को सम्प्रेषित कर प्रापक के व्यवहार को बदलने का प्रयास करता है। संचार केवल शाब्दिक नहीं होता है, बल्कि इसमें उन सभी क्रियाएं भी सम्मलित किया गया है, जिनसे प्रापक प्रभावित होता है। संचार प्रक्रिया में संदेश का प्रवाह संचारक से प्रापक तक होता है। इस प्रक्रिया में शामिल लोगों की संख्या के आधार पर संचार के प्रकारों का वर्गीकरण किया जाता है, क्योंकि मानव एक-दो लोगों से एक किस्म का तथा किसी समूह/समूदाय के साथ अन्य किस्म का व्यवहार करता है। संचार प्रक्रिया में शामिल लोगों की संख्या के आधार पर संचार मुख्यत: चार प्रकार का होता है :- 
1. अंत: वैयक्तिक संचार,
2. अंतर वैयक्तिक संचार,
3. समूह संचार, और
4. जनसंचार।
1. अंत: वैयक्तिक संचार
(Intrapersonal Communication)

        यह एक मनोवैज्ञानिक क्रिया तथा मानव का व्यक्तिगत चिंतन-मनन है। इसमें संचारक और प्रापक दोनों की भूमिका एक ही व्यक्ति को निभानी पड़ती है। अंत: वैयक्तिक संचार मानव की भावना, स्मरण, चिंतन या उलझन के रूप में हो सकती है। कुछ विद्वान स्वप्न को भी अंत: वैयक्तिक संचार मानते हैं। इसके अंतर्गत् मानव अपनी केंद्रीय स्नायु-तंत्र (Central Nervous Systemतथा बाह्य स्नायु-तंत्र (Perpheral Nervous System) का प्रयोग करता है। केंद्रीय स्नायु-तंत्र में मस्तिष्क आता है, जबकि बाह्य स्नायु-तंत्र में शरीर के अन्य अंग। इस पर मनोविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान में पर्याप्त अध्ययन हुए हंै। जिस व्यक्ति का अंत: वैयक्तिक संचार केंद्रित नहीं होता है, उसे समाज में च्पागलज् कहा जाता है। मनुष्य के मस्तिष्क का उसके अन्य अंगों से सीधा सम्बन्ध होता है। मस्तिष्क अन्य अंगों से न केवल संदेश ग्रहण करता है, बल्कि संदेश सम्प्रेषित भी करता है। जैसे, पांव में चोट लगने का संदेश मस्तिष्क ग्रहण करता है और मरहम लगाने का संदेश हाथ को सम्प्रेषित करता है। 
यह एक स्व-चालित संचार प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मानव अपना तथा अन्य दूसरों का मूल्यांकन करता है। सामाजिक विज्ञान के अध्ययन की जितनी भी प्रणालियां हैं, उन सभी का आधार अंत: वैयक्तिक संचार ही है। इसे आभ्यांतर, स्वगत या अंतरा वैयक्तिक संचार भी कहा जाता है। यह समस्त संचारों का आधार है। इसकी प्रक्रिया व्यापक होने के साथ-साथ बड़ी रहस्यवादी होती हैं। भारतीय मनीषियों ने अंत: वैयक्तिक संचार प्रक्रिया को सुधारने तथा विकास की राह पर ले जाने का लगातार प्रयास किया है, परिणामस्वरूप योग व साधना की उत्पत्ति व विकास हुआ। समाज में अंत: वैयक्तिक संचार के कई उदाहरण मौजूद हैं-
(1) शारीरिक रूप में मजबूत व्यक्ति अपनी भौतिक शक्ति के कारण सदैव दूसरों पर प्रभुत्व जमाने के लिए स्वयं से संचार करता है। 
(2) निर्धन व्यक्ति सदैव अपनी भूख मिटाने के लिए स्वयं से संचार करता है।  
(3) विद्यार्थी सदैव अच्छे अंक पाने के लिए स्वयं से संचार करता है।
(4) बेरोजगार व्यक्ति नौकरी पाने के लिए संचार करता है... इत्यादि।
इसी क्रम में मैथिली शरण गुप्त की रचना काफी प्रासंगिक हैै :- 
कोई पास न रहने पर भी जनमन मौन नहीं रहता।
आप-आप से ही कहता है, आप-आप की ही सुनता है।। 
अंत: वैयक्तिक संचार एक शरीरतांत्रिक क्रिया है, जिसके चलते मानव में मूल्य, अभिवृत्ति, विश्वास, अपनापन इत्यादि का जन्म होता है। व्यावहारिक प्रक्रिया के आधार पर इसको भौतिक-अभौतिक अथवा अंत:-वाह्य रूपों में विभाजित किया जा सकता है। 

विशेषताएं : अंत: वैयक्तिक संचार की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :-  
1. इससे मानव स्वयं को संचालित करता है तथा अपने जीवन की योजनाओं को तैयार करता है।
2. मानव सुख-द:ुख का एहसास करता है। 
3. अपने जीवन के लिए उपयोगी तथा आवश्यक आयामों का आविष्कार करता है, 
4. दिल और दिमाग पर नियंत्रण रखता है, और
5. फीडबैक व्यक्त करता है। 
2. अंतर वैयक्तिक संचार
(Interpersonal Communication)
      अंतर वैयक्तिक संचार से तात्पर्य दो व्यक्तियों के बीच विचारों, भावनाओं और जानकारियों के आदान-प्रदान से है। यह आमने-सामने होता है। इसके लिए दो व्यक्तियों के बीच सम्पर्क का होना जरूरी है। अत: अंतर वैयक्तिक संचार दो-तरफा (Two-way प्रक्रिया है। यह कहीं भी स्वर, संकेत, शब्द, ध्वनि, संगीत, चित्र, नाटक इत्यादि के रूप में हो सकता है। इसमें फीडबैक तुुरंत और सबसे बेहतर मिलता है। संचारक जैसे ही किसी विषय पर अपनी बात कहना शुरू करता है, वैसे ही फीडबैक मिलने लगता है। अंतर वैयक्तिक संचार का उदाहरण मासूम बच्चा है, जो बाल्यावस्था से जैसे-जैसे बाहर निकलता है, वैसे-वैसे समाज के सम्पर्क में आता है और अंतर वैयक्तिक संचार को अपनाने लगता है। माता-पिता के बुलाने पर उसका हंसना, बोलना या भागना अंतर वैयक्तिक संचार का प्रारंभिक उदाहरण है। इसके बाद वह ज्यों-ज्यों किशोरावस्था की ओर बढ़ता है, त्यों-त्यों भाषा, परम्परा, अभिवादन आदि अंतर वैयक्तिक संचार प्रक्रिया से सीखने लगता है। पास-पड़ोस के लोगों से जुडऩे में भी अंतर वैयक्तिक संचार की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।
       अंतर वैयक्तिक संचार में फीडबैक का महत्वपूर्ण स्थान है। इसी के आधार पर संचार प्रक्रिया आगे बढ़ती है। साक्षात्कार, कार्यालयी वार्तालॉप, समाचार संकलन इत्यादि अंतर वैयक्तिक संचार का उदाहरण है। अंतर वैयक्तिक संचार सामाजिक सम्बन्धों का आधार है। इसके लिए मात्र दो लोगों का मौजूद होना जरूरी नहीं है, बल्कि दोनों के बीच परस्पर अंत:क्रिया का होना भी जरूरी है। वह चाहे जिस रूप में हो। टेलीफोन पर वार्तालॉप, ई-मेल या सोशल नेटवर्किग साइट्स पर चैटिंग अंतर वैयक्तिक संचार के अंतर्गत् आते हैं। सामान्यत: दो व्यक्तियों के बीच वार्तालॉप को ही अंतर वैयक्तिक संचार की श्रेणी में रखा जाता है, परंतु कुछ संचार वैज्ञानिक तीन से पांच व्यक्तियों के बीच होने वाले वार्तालॉप को भी इसी श्रेणी में मानते हैं, बशर्ते संख्या के कारण अंतर वैयक्तिक संचार के मौलिक गुण प्रभावित न हो। संचार वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, वैसे-वैसे अंतर वैयक्तिकता का गुण कम होगा और समूह का निर्माण होगा।
विशेषताएं : अंतर वैयक्तिक संचार बेहद आंतरिक संचार है, जिसके कारण  
(1)  फीडबैक तुरंत तथा बेहतर मिलता है।
(2)  बाधा आने की संभावना कम रहती है।
(3)  संचारक और प्रापक के मध्य सीधा सम्पर्क और सम्बन्ध स्थापित होता है।
(4)  संचारक के पास प्रापक को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त अवसर होता है।
(5)  संचारक और प्रापक शारीरिक व भावनात्मक दृष्टि से एक-दूसरे के करीब होते हैं।
(6)  किसी बात पर असहमति की स्थिति में प्रापक को हस्तक्षेप करने का मौका मिलता है।
(7)  प्रापक के बारे में संचारक पहले से बहुत कुछ जानता है।
(8)  संदेश भेजने के अनेक तरीके होते हैं। जैसे- भाषा, शब्द, चेहरे की प्रतिक्रिया, भावभंगिमा, हाथ पटकना, आगे-पीछे हटना, सिर झटकना इत्यादि।
3. समूह संचार
(Group Communication)
       यह अंतर वैयक्तिक संचार का विस्तार है, जिसमें सम्बन्धों की जटिलता होती है। समूह संचार की प्रक्रिया को समझने के लिए समूह के बारे में जानना आवश्यक है। समूह संचार को जानने के लिए समूह से परिचित होना अनिवार्य है। मानव अपने जीवन काल में किसी-न-किसी समूह का सदस्य अवश्य होता है। अपनी आवश्यकतओं की पूर्ति के लिए नये समूहों का निर्माण भी करता है। समूहों से पृथक होकर मानव अलग-थलग पड़ जाता है। समूह में जहां व्यक्तित्व का विकास होता है, वहीं सामाजिक प्रतिष्ठा बनती है। समूह के माध्यम से एक पीढ़ी के विचार दूसरे पीढ़ी तक स्थानांतरित होता है। समूह को समाज शास्त्रियों और संचार शास्त्रियों ने अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं :-  

  • मैकाइवर एवं पेज के अनुसार- समूह से तात्पर्य व्यक्तियों के किसी ऐसे संग्रह से है जो एक दूसरे के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं।
  • ऑगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार- जब कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ मिलते हैं और एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं तो वे एक समूह का निर्माण करते हैं।
      अत: जब कुछ लोग एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक-दूसरे से पारस्परिक सम्पर्क बनाते हैं तथा एक दूसरे के अस्तित्व को पहचानते हैं तो उसे एक समूह कहते हैं। इस प्रकार से निर्मित समूह की सबसे प्रमुख विशेषता यह होती है कि सभी लोग स्वयं को समूह का सदस्य मानते हैं। समाजशास्त्री चाल्र्स एच. कूले के अनुसार- समाज में दो प्रकार के समूह होते हैं। पहला, प्राथमिक समूह (Primary Group)-  जिसके सदस्यों के बीच आत्मीयता, निकटता एवं टिकाऊ सम्बन्ध होते हैं। परिवार, मित्र मंडली व सामाजिक संस्था आदि प्राथमिक समूह के उदाहरण हैं। दूसरा, द्वितीयक समूह (Secondary Group)- जिसका निर्माण संयोग व परिस्थितिवश या स्थान विशेष के कारण कुछ समय के लिए होता है। ट्रेन व बस के यात्री, क्रिकेट मैच के दर्शक, जो आपस में विचार-विमर्श करते हंै, द्वितीयक समूह के सदस्य कहलाते हैं।
       सामाजिक कार्य व्यवहार के अनुसार समूह को हित समूह और दबाव समूह में बांटा गया है। जब कोई समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करता है, तो उसे हित समूह कहा जाता है। इसके विपरीत जब अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अन्य समूहों या प्रशासन के ऊपर दबाव डालता है, तब वह स्वत: ही दबाव समूह में परिवर्तित हो जाता है। व्यक्ति समूह बनाकर विचार-विमर्श, संगोष्ठी, भाषण, सभा के माध्यम से विचारों, जानकारियों व अनुभवाओं का आदान-प्रदान करता है, तो उसे समूह संचार कहा जाता है। इसमें फीडबैक तुरंत मिलता है, लेकिन अंतर वैयक्तिक संचार की तरह नहीं। फिर भी, यह बहुत ही प्रभावी संचार है, क्योंकि इसमें व्यक्तित्व खुलकर सामने आता है। समूह के सदस्यों को अपनी बात कहने का पर्याप्त अवसर मिलता है। समूह संचार कई सामाजिक परिवेशों में पाया जाता है। जैसे- कक्षा, रंगमंच, कमेटी हॉल, बैठक इत्यादि। कई संचार विशेषज्ञों ने समूह संचार में सदस्यों की संख्या २० तक मानते हंै, जबकि कई संख्यात्मक की बजाय गुणात्मक विभाजन पर जोर देते हैं। लिण्डग्रेन (१९६९) के अनुसार, दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक दूसरे के साथ कार्यात्मक सम्बन्ध में व्यस्त होने पर एक समूह का निर्माण होता है।
       
         समूह संचार और अंतर वैयक्तिक संचार के कई गुण आपस में मिलते हैं। समूह संचार कितना बेहतर होगा, फीडबैक कितना अधिक मिलेगा, यह समूह के प्रधान और उसके सदस्यों के परस्पर सम्बन्धों पर निर्भर करता है। समूह का प्रधान संचार कौशल में जितना अधिक निपुण तथा ज्ञानवान होगा। उसके समूह के सदस्यों के बीच आपसी सम्बन्ध व सामन्जस्य जितना अधिक होगा, संचार भी उतना ही अधिक बेहतर होगा। छोटे समूहों में अंतर वैयक्तिक संचार के गुण ज्यादा मिलने की संभावना होती है। बड़े समह की अपेक्षा छोटे समूह में संचार अधिक प्रभावशाली होता है, क्योंकि छोटे समूह के अधिकांश सदस्य एक-दूसरे से पूर्व परिचित होते हैं। सभी आपस में बगैर किसी मध्यस्थ के विचार-विमर्श करते हैं। सदस्यों को अपनी बात कहने का मौका भी अधिक मिलता है। समूह के सदस्यों के हित और उद्देश्य में काफी समानता होती है तथा सभी संदेश ग्रहण करने के लिए एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। प्रापक पर संदेश का सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है, जिसे फीडबैक के रूप में संचारक ग्रहण करता है। 

विशेषताएं : समूह संचार में :- 
१. प्रापकों की संख्या निश्चित होती है, सभी अपनी इच्छा व सामर्थ के अनुसार सहयोग करते हैं,
२. सदस्यों के बीच समान रूप से विचारों, भावनाओं का आदान-प्रदान होता है,
३. संचारक और प्रापक के बीच निकटता होती है,
४. विचार-विमर्श के माध्यम से समस्याओं का समाधान किया जाता है,  
५. संचारक का उद्देश्य सदस्यों के बीच चेतना विकसित कर दायित्व बोध कराना होता है, 
६. फीडबैक समय-समय पर सदस्यों से प्राप्त होता रहता है, और
७. समस्या के मूल उद्देश्यों के अनुरूप संदेश सम्प्रेषित किया जाता है।

4. जनसंचार
(Mass Communication)
       आधुनिक युग में जनसंचार  काफी प्रचलित शब्द है। इसका निर्माण दो शब्दों जन+संचार के योग से हुआ है। च्जनज् का अर्थ नता अर्थात् भीड़ होता है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, जन का अर्थ पूर्ण रूप से व्यक्तिवादिता का अंत है। गिन्सवर्ग के अनुसार, जनता असंगठित और अनाकार व्यक्तियों का समूह है जिसके सदस्य सामान्य इच्छाओं एवं मतों के आधार पर एक दूसरे से बंधे रहते हैं, परंतु इसकी संख्या इतनी बड़ी होती है कि वे एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये नहीं रख सकते हैं। समूह संचार का वृहद रूप है- जनसंचार। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग १९वीं सदी के तीसरे दशक के अंतिम दौर में संदेश सम्प्रेषण के लिए किया गया। संचार क्रांति के क्षेत्र में तरक्की के कारण जैसे-जैसे समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, केबल, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि का प्रयोग बढ़ता गया, वैसे-वैसे जनसंचार के क्षेत्र का विस्तार होता गया। इसमें फीडबैक देर से तथा बेहद कमजोर मिला है। आमतौर पर जनसंचार और जनमाध्यम को एक ही समझा जाता है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। जनसंचार एक प्रक्रिया है, जबकि जनमाध्यम इसका साधन। जनसंचार माध्यमों के विकास के शुरूआती दौर में जनमाध्यम मनुष्य को सूचना अवश्य देते थे, परंतु उसमें जनता की सहभागिता नहीं होती थी। इस समस्या को संचार विशेषज्ञ जल्दी समझ गये और समाधान के लिए लगातार प्रयासरत रहे। इंटरनेट के आविष्कार के बाद लोगों की सूचना के प्रति भागीदारी बढ़ी है तथा मनचाहा सूचना प्राप्त करना और दूसरों को सम्प्रेषित करना संभव हो सका।   

       जनसंचार को अंग्रेजी भाषा में Mass Communication कहते हैं, जिसका अभिप्राय बिखरी हुई जनता तक संचार माध्यमों की मदद से सूचना को पहुंचाना है। समाचार पत्र, टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, केबल, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि अत्याधुनिक संचार माध्यम हैं। जनसंचार का अर्थ विशाल जनसमूह के साथ संचार करने से है। दूसरे शब्दों में, जनसंचार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बहुल रूप में प्रस्तुत किए गए संदेशों को जन माध्यमों के जरिए एक-दूसरे से अंजान तथा विषम जातीय जनसमूह तक सम्प्रेषित किया जाता है। संचार विशेषज्ञों ने जनसंचार की निम्नलिखित परिभाषा दी है :-

  • लेक्सीकॉन यूनिवर्सल इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार- कोई भी संचार, जो लोगों के महत्वपूर्ण रूप से व्यापक समूह तक पहुंचता हो, जनसंचार है। 
  • बार्कर के अनुसार- जनसंचार श्रोताओं के लिए अपेक्षाकृत कम खर्च में पुनर्उत्पादन तथा वितरण के विभिन्न साधनों का इस्तेमाल करके किसी संदेश को व्यापक लोगों तक, दूर-दूर तक फैले हुए श्रोताओं तक रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र जैसे किसी चैनल द्वारा पहुंचाया जाता है। 
  • कार्नर के अनुसार- जनसंचार संदेश के बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा वृहद स्तर पर विषमवर्गीय जनसमूहों में द्रुतगामी वितरण करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में जिन उपकरणों अथवा तकनीक का उपयोग किया जाता है उन्हें जनसंचार माध्यम कहते हैं। 
  • कुप्पूस्वामी के अनुसार- जनसंचार तकनीकी आधार पर विशाल अथवा व्यापक रूप से लोगों तक सूचना के संग्रह एवं प्रेषण पर आधारित प्रक्रिया है। आधुनिक समाज में जनसंचार का कार्य सूचना प्रेषण, विश्लेषण, ज्ञान एवं मूल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है। 
  • जोसेफ डिविटों के अनुसार- जनसंचार बहुत से व्यक्तियों में एक मशीन के माध्यम से सूचनाओं, विचारों और दृष्टिकोणों को रूपांतरित करने की प्रक्रिया है।
  • जॉर्ज ए.मिलर के अनुसार- जनसंचार का अर्थ सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाना है।
  • डी.एस. मेहता के अनुसार- जनसंचार का अर्थ जनसंचार माध्यमों जैसे- रेडियो, टेलीविजन, प्रेस और चलचित्र द्वारा सूचना, विचार और मनोरंजन का प्रचार-प्रसार करना है। 
  • रिवर्स पिटरसन और जॉनसन के अनुसार-
          - जनसंचार एक-तरफा होता है।
          - इसमें संदेश का प्रसार अधिक होता है। 
          - सामाजिक परिवेश जनसंचार को प्रभावित करता है तथा जनसंचार का असर सामाजिक परिवेश पर
            पड़ता है।
          - इसमें दो-तरफा चयन की प्रक्रिया होती है।
          - जनसंचार जनता के अधिकांश हिस्सों तक पहुंचने के लिए उपर्युक्त समय का चयन करता है। 
          - जनसंचार जन अर्थात् लोगों तक संदेशों का प्रवाह सुनिश्चित करता है।
  • डेनिस मैकवेल के अनुसार- 
        - जनसंचार के लिए औपचारिक तथा व्यस्थित संगठन जरूरी है, क्योंकि संदेश को किसी माध्यम द्वारा      
          विशाल जनसमूह तक पहुंचाना होता है।
        - जनसंचार विशाल, अपरिचित जनसमह के लिए किया जाता है।
        - जनसंचार माध्यम सार्वजनिक होते हैं। इसमें भाषा व वर्ग के लिए कोई भेद नहीं होता है। 
        - श्रोताओं की रचना विजातीय होती है तथा वे विभिन्न संस्कृति, वर्ग, भाषा से सम्बन्धित होते हैं।
        - जनसंचार द्वारा दूर-दराज के क्षेत्रों में एक ही समय पर सम्पर्क संभव है।
        - इसमें संदेश का यांत्रिक रूप में बहुल संख्या में प्रस्तुतिकरण या सम्प्रेषण होता है। 

           उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि जनसंचार यंत्र संचालित है, जिसमें संदेश को तीब्र गति से भेजने की क्षमता होती है। जनसंचार माध्यमों में टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र, पत्रिका, फिल्म, वीडियो, सीडी, इंटरनेट, वेब पोर्टल्स इत्यादि आते हैं, जो संदेश को प्रसारित एवं प्रकाशित करते हंै। जनमाध्यमों के संदर्भ में मार्शल मैक्लूहान ने लिखा है कि- च्माध्यम ही संदेश हैट्ट। माध्यम का अर्थ मध्यस्थता करने वाला या दो बिन्दुओं को जोडऩे से है। व्यावहारिक दृष्टि से संचार माध्यम एक ऐसा सेतु है जो संचारक और प्रापक के मध्य ट्यूब, वायर, प्रवाह इत्यादि से पहुंचता है।
विशेषताएं : जनसंचार की विशेषताएं काफी हद तक संदेश सम्प्रेषण के लिए प्रयोग किये गये माध्यम पर निर्भर करती हंै। जनसंचार माध्यमों की अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं। प्रिंट माध्यम के संदेश को जहां संदर्भ के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है, भविष्य में पढ़ा जा सकता है, दूसरों को ज्यों का त्यों दिखाया व पढ़ाया जा सकता है, वहीं इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के संदेश को न तो सुरक्षित रखा जा सकता है, न तो भविष्य में ज्यों का त्यों देखा तथा दूसरों को दिखाया जा सकता है। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक  माध्यम के संदेश को अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी ग्रहण कर सकता है, लेकिन प्रिंट माध्यम के संदेश को ग्रहण करने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की मदद से संदेश को एक साथ हजारों किलोमीटर दूर फैले प्रापकों के पास एक ही समय में पहुंचाया जा सकता है, किन्तु प्रिंट माध्यम से नहीं। वेब द्रुतगति का जनसंचार माध्यम है। इसकी तीव्र गति के कारण देश की सीमाएं टूट चुकी हैं। इसी आधार पर मार्शल मैकलुहान ने च्विश्वग्रामज् की कल्पना की। इंटरनेट आधारित वेब माध्यम की मदद से सम्प्रेषित संदेश को प्रिंट माध्यम की तरह पढ़ा, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की तरह देखा व सुना जा सकता है। कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर Ctrl S (कीज) की मदद से भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। जनसंचार की निम्नलिखित विशेषताएं निम्नलिखित हैं :- 
1. विशाल भू-भाग में रहने वाले प्रापकों से एक साथ सम्पर्क स्थापित होता है,
2. समस्त प्रापकों के लिए संदेश समान रूप से खुला होता है,
3. संचार माध्यम की मदद से संदेश का सम्प्रेषण किया जाता है,
4. सम्प्रेषण के लिए औपचारिक व व्यवस्थित संगठन होता है,
5. संदेश सम्प्रेषण के लिए सार्वजनिक संचार माध्यम का उपयोग किया जाता है, 
6. प्रापकों के विजातीय होने के बावजूद एक ही समय में सम्पर्क स्थापित करना संभव होता है,
7. संदेश का यांत्रिक रूप से बहुल संख्या में प्रस्तुतिकरण या सम्प्रेषण होता है, तथा
8. फीडबैक संचारक के पास विलम्ब से या कई बार नहीं भी पहुंचता है।

1 comment:

Unknown said...

महोदय, मैंने सीनियर पत्रकार और पत्रकारिता विषय का अध्ययन-अध्यापन भी करता हूं। नेट पर आपका ब्लॉग सर्च करने के दौरान मिला तो अतीव प्रसन्नता हुई। जिस उद्देश्य से ब्लॉग बनाया उस उद्देश्य की अपेक्षा भी की, मगर अफसोस आप अपने उद्देश्य से भटक गए। ब्लॉग की एक-दो पोस्ट को छोड़कर शेष में कंटेंट स्तरीय नहीं है। मेरा सुझाव है कि उसे समृद्ध करें, जिससे ब्लॉग की उपादेयता सार्थक हो। विभावसु तिवारी, ग्वालियर