कोर्ट की कानूनी प्रक्रिया को अवरूद्ध करने का प्रयास व कोर्ट परिसर में इस प्रकार की हिंसा न्यायालय की अवमानना के दायरे में आती है।
अभिलेख न्यायालय का अर्थ
-न्यायालय की कार्यवाही तथा निर्णय को दूसरे न्यायालय मे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा
- न्यायालय को अधिकार है कि वो अवमानना करने वाले व्यक्ति को दण्ड दे सके यह शक्ति अधीनस्थ न्यायालय को प्राप्त नही है इस शक्ति को नियमित करने हेतु संसद ने न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 पारित किया है अवमानना के दो भेद है
सिविल और आपराधिक।
जब कोई व्यक्ति आदेश निर्देश का पालन न करे या उल्लंघन करे तो यह सिविल अवमानना है परंतु यदि कोई व्यक्ति न्यायालय को बदनाम करे जजों को बदनाम तथा विवादित बताने का प्रयास करे तो यह आपराधिक अवमानना होगी जिसके लिए कारावास जुर्माना दोनों को देना पडेग़ा वही सिविल अवमानना में कारावास संभव नहीं है यह शक्ति भारत में काफी विवादस्पद है।
कोर्ट की अवमानना के लिए सजा का प्रावधान
न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 के अनुसार दोषी के लिए 151 दिन की जेल का प्रावधान है। जो छह महीने तक बढ़ाई भी जा सकती है। या फिर 2000 हजार रूपए की जुर्माना राशि अदा करनी पडती है। किसी-किसी मामले में दोषी को सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
-इसके अलावा कोर्ट की अवमानना के दोषी व्यक्ति को क्षमा याचना करने की छूट होती है। जिसके द्वारा वह इस आरोप से मुक्ति पा सकता है। इस क्षमा याचिका में कोर्ट की अवमानना के कारण की व्याख्या की जाती है। कोर्ट बिना किसी मजबूत आधार के इस याचिका को ठुकरा नहीं सकती।
-सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी को भी इस सजा को बढाने का कोई विशेषाधिकार नहीं दिया गया है।
-कोर्ट की अवमानना के लिए यदि कोई कंपनी दोषी पाई जाती है तो सिविल अवमानना के दायरे में आती है। इस केस में सजा का हकदार वह व्यक्ति होगा, जिसके हाथ में उस वक्त कंपनी का चार्ज होगा। इस स्थिति में जो व्यक्ति केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद होगा उसे कस्टडी में रखा जाएगा। उक्त व्यक्ति को अपने बचाव में कार्य करने का पूरा मौका दि जाने का प्रावधान है। इस अधिनियम एक विशेष बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ यथार्थ विषयों पर कोर्ट की आलोचना करता है तो उसे न्यायालय अवमानना की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इसके तहत हाइकोर्ट को अपनी सहायक अदालतों की अवमानना के मामले में सजा देने का अधिकार प्राप्त है। उसी प्रकार उच्च न्यायालय को समान न्यायिक प्रकिया अपनाते हुए सहायक अदालतों की अवमानना के मामले में फैसला देने का अधिकार प्राप्त है।
अभिलेख न्यायालय का अर्थ
-न्यायालय की कार्यवाही तथा निर्णय को दूसरे न्यायालय मे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा
- न्यायालय को अधिकार है कि वो अवमानना करने वाले व्यक्ति को दण्ड दे सके यह शक्ति अधीनस्थ न्यायालय को प्राप्त नही है इस शक्ति को नियमित करने हेतु संसद ने न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 पारित किया है अवमानना के दो भेद है
सिविल और आपराधिक।
जब कोई व्यक्ति आदेश निर्देश का पालन न करे या उल्लंघन करे तो यह सिविल अवमानना है परंतु यदि कोई व्यक्ति न्यायालय को बदनाम करे जजों को बदनाम तथा विवादित बताने का प्रयास करे तो यह आपराधिक अवमानना होगी जिसके लिए कारावास जुर्माना दोनों को देना पडेग़ा वही सिविल अवमानना में कारावास संभव नहीं है यह शक्ति भारत में काफी विवादस्पद है।
कोर्ट की अवमानना के लिए सजा का प्रावधान
न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 के अनुसार दोषी के लिए 151 दिन की जेल का प्रावधान है। जो छह महीने तक बढ़ाई भी जा सकती है। या फिर 2000 हजार रूपए की जुर्माना राशि अदा करनी पडती है। किसी-किसी मामले में दोषी को सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
-इसके अलावा कोर्ट की अवमानना के दोषी व्यक्ति को क्षमा याचना करने की छूट होती है। जिसके द्वारा वह इस आरोप से मुक्ति पा सकता है। इस क्षमा याचिका में कोर्ट की अवमानना के कारण की व्याख्या की जाती है। कोर्ट बिना किसी मजबूत आधार के इस याचिका को ठुकरा नहीं सकती।
-सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी को भी इस सजा को बढाने का कोई विशेषाधिकार नहीं दिया गया है।
-कोर्ट की अवमानना के लिए यदि कोई कंपनी दोषी पाई जाती है तो सिविल अवमानना के दायरे में आती है। इस केस में सजा का हकदार वह व्यक्ति होगा, जिसके हाथ में उस वक्त कंपनी का चार्ज होगा। इस स्थिति में जो व्यक्ति केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद होगा उसे कस्टडी में रखा जाएगा। उक्त व्यक्ति को अपने बचाव में कार्य करने का पूरा मौका दि जाने का प्रावधान है। इस अधिनियम एक विशेष बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ यथार्थ विषयों पर कोर्ट की आलोचना करता है तो उसे न्यायालय अवमानना की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इसके तहत हाइकोर्ट को अपनी सहायक अदालतों की अवमानना के मामले में सजा देने का अधिकार प्राप्त है। उसी प्रकार उच्च न्यायालय को समान न्यायिक प्रकिया अपनाते हुए सहायक अदालतों की अवमानना के मामले में फैसला देने का अधिकार प्राप्त है।
1 comment:
sir is m kuch nahi dekh reha hai hai prass kanonn adhiniyamm
Post a Comment