(१) राजनीतिक पत्रकारिता
समाचार पत्रों में सबसे
अधिक पढे जाने वाले और चैनलों पर सर्वाधिक देखे-सुने जाने वाले समाचार राजनीति से
जुड़े होते हैं। राजनीति की उठा-पटक, लटके-झटके, आरोप – प्रत्यरोप, रोचक-रोमांचक, झूठ-सच, आना-जाना, आदि से जुड़े समाचार
सुर्खियों में होते हैं। भारत जैसे देश में, जहां का आम आदमी साल के ३६५ दिनों में से लगभग दो दिन वोटर के रूप में बर्ताव
करता है, राजनीति से जुड़े समाचारों का पूरा का पूरा
बाजार विकसित हो चुका है। इस राजनीतिक समाचारों के बाजार में समाचार पत्र और
समाचार चैनल अपने उपभोक्ताओं को रिझाने के लिये नित नये प्रयोग करते नजर आ रहे
हैं। चुनाव के मौसम में इन प्रयोगों की झड़ी लग जाती है और हर कोई एक दूसरे को
पछाड़ कर आगे निकल जाने की होड़ में शामिल हो जाता है।
राजनीतिक समाचारों के बाजार
में अपनी पैठ को मजबूत करने और उपभोक्ताओं को चटपटे उत्पाद देने की जुगत में
समाचार पत्रों व चैनलों ने राजनीतिक पार्टियों के लिये अलग – अलग संवाददाता नियुक्त कर रखे हैं। राजनीतिक पार्टियां अब
बहुत सचेत हो चुकी हैं और अब मात्र पार्टी प्रवक्ता नियुक्त करके या फिर मीडिया
प्रकोष्ठ स्थापित करके काम नहीं चलाया जाता, बल्कि सुव्यवस्थित ढंग से मीडिया मैनेजमेंट कोर स्थापित किये जा रहे हैं।
सूचना क्रांति के बाद घटी इस घटना को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए कि सन्
२००४ के आम चुनावों में कुछ पार्टियों ने देश भर से अपने पार्टी प्रवक्ताओं और
मीडिया प्रभारियों को बुलाकर विधिवत प्रशिक्षण दिया कि किस तरह वे समाचार पत्रों
और चैनलों को मैनेज करें और मीडिया फ्रैंडली नजर आयें।
सच्चाई यह है कि किसी भी
लोकसभा – विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी समाचार पत्रों व
चैनलों में अधिक से अधिक प्रचार पाना चाहते हैं और इसके लिये वे तरह – तरह से स्थानीय संवाददाताओं को प्रभावित करने की कोशिश करते
हैं। कभी अपनी जाति-धर्म-रिश्ते-क्षेत्र का हवाला देकर तो कभी धन का प्रलोभन व
धमकियों का डर बैठाकर। ऐसे में जो समाचार पत्र या चैनल लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय
होते हैं, उन पर दवाब अधिक होता है। यही वजह है कि इनसे
जुड़े संवाददाताओं के सामने यह चुनौती होती है कि वे किस तरह अपनी व अपने संस्थान
की शुचिता और निष्पक्षता को बचाये रख सकें।
राजनीतिक समाचारों की
प्रस्तुति में पहले से अधिक बेबाकी आयी है। रोचक ढंग से राजनीति पर मार करने की
रणनीति को लोगों द्वारा सराहा भी जा रहा है। सच यह है कि अपने देश में लोकतंत्र की
दुहाई के साथ जीवन के लगभग हर क्षेत्र में राजनीति की दखल बढा है और इसी कारण
राजनीतिक समाचारों की भी संख्या बढी है। ऐसे में इन समाचारों को नजरअंदाज कर जाना
संभव नहीं है। राजनीतिक समाचारों की आकर्षक प्रस्तुति लोकप्रियता हासिल करने का
बहुत बड़ा साधन बन चुकी है।
२. अपराध पत्रकारिता
राजनीतिक समाचारों के बाद
अपराध समाचार ही महत्वपूर्ण होते हैं। बहुतेरे पाठकों व दर्शकों को अपराध समाचार
जानने की भूख होती है। इसी भूख को शांत करने के लिये ही समाचार पत्रों में अपराध
डायरी व चैनलों पर सनसनी, वारदात, क्राइम फाइल जैसे समाचार कार्यक्रम प्रकाशित-प्रसारित किये
जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार किसी समाचार पत्र में लगभग पैंतीस प्रतिशत समाचार
अपराध से जुड़े होते हैं। सच तो यह है कि अपराध के समाचार सामने आ जाने के बाद कुछ
महत्वपूर्ण समाचारों को छोड़कर सभी बेमानी लगने लगते हैं।
हर संवाददाता के लिये यह
समझना जरूरी है कि अपराधिक घटनाओं का सीधा सम्बंध व्यक्ति, समाज, सम्प्रदाय, समुदाय, धर्म और देश से होता है।
अपराधिक घटनाओं का प्रभाव यदि व्यापक होता है तो यह जरूरी हो जाता है कि एक बड़े
पाठक-दर्शक वर्ग का ख्याल रखा जाये तथा घटना से जुड़ी हर संभावित खबर, फोटो और खबर के पीछे की खबर को प्रकाशित व प्रसारित किया
जाए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि अपराधिक समाचारों को संकलित, लिखते या प्रकाशित-प्रसारित करते समय उसकी कानूनी प्रक्रिया
और सामाजिक पहलुओं की सारी जानकारी प्राप्त की जाए। संवाददाता की विश्वसनीयता का
भी पूरा का पूरा ख्याल रखा जाये। वास्तव में अपराध समाचार लिखते समय अपनी
जवाब-देही व उत्तरदायित्वों का पूरा का पूरा ख्याल करना जरूरी होता है। यह बहुत
महत्वपूर्ण है कि अपराध संवाददाता बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जिसे
यह जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, उसे पत्रकारिता के हर पहलू
की जिम्मेदारी है भी या नहीं।
३. साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता
समाचार पत्रों व चैनलों पर
सांस्कृतिक, साहित्यिक समाचारों का चलन
बढा है। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है कि हिन्दी के समाचार चैनलों ने साहित्य व
संस्कृति के समाचारों को न केवल प्रमुखता से देना शुरू किया है, बल्कि साहित्य व संस्कृति के कुछ विशेष समाचार कार्यक्रम
ठीक उसी तर्ज पर शुरु किये हैं, जैसा कि समाचार पत्र अपने
यहां नियमित साहित्यिक व सांस्कृतिक कालम के रूप में करते आये हैं। एक अध्ययन के
अनुसार दर्शकों के एक वर्ग ने अपराध व राजनीति के समाचार कार्यक्रमों से कहीं अधिक
अपनी संस्कृति से जुड़े समाचारों व समाचार कार्यक्रमों से जुड़ना पसंद किया है।
समाचार पत्रों ने भले ही
व्यंग्य के नियमित कालमों को अब लगभग बंद कर दिया हो, लेकिन साहित्य-संस्कृति के नियमित पृष्ठ दिया जाना नहीं रुका है। इधर कई
समाचार पत्रों ने अभियान चला कर दूर-दराज के इलाकों की साहित्यिक व सांस्कृतिक
विभूतियों व धराहरों को सामने लाने का अभिनव प्रयास किया और यह पाठकों द्वारा
सराहा भी गया है। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि कई समाचार पत्रों ने
साहित्यिक-सांस्कृतिक संवाददाता रखने और इन्हीं विषयों से जुड़ी डेस्क बनाने की
पहल की है। वास्तव में यह कवायद करनी इसलिये भी जरूरी हो गयी है कि साहित्य व
संस्कृति पर उपभोक्तावादी संस्कृति व बाजार का प्रहार दिखाकर केन्द्र व प्रदेश की
सरकारें बहुत बड़ा बजट इन्हें संरक्षित करने व प्रचारित-प्रसारित करने में खर्च कर
रही हैं। साहित्य व संस्कृति के नाम पर चलने वाली बड़ी – बड़ी साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाएं आयोजनों, प्रकाशन व पुरस्कारों के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं। ये संस्थाएं
सरकारी, अर्धसरकारी व निजी यानी सभी तरह की हैं।
यही नहीं, साहित्य व संस्कृति के नाम पर विवादों के बढने की घटनाएं
बढी हैं। वाद – प्रतिवाद, आरोप – प्रत्यारोप और गुटबाजी ने
साहित्य – संस्कृति में मसाला समाचारों की संभावनाओं को
बहुत बढाया है। साहित्यिक, सांस्कृतिक उठा-पटक को
मिर्च-मसाला लगाकर समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का चलन बढा है। इस चलन को
स्वीकारने वालों की फौज भी तैयार हो गई है। इसीलिये समाचार पत्र, चैनल व पत्रिकायें इन विषयों को छोडकर स्वयं के होने की
कल्पना करना ही नहीं चाहते।
४. खेल-कूद पत्रकारिता
पाठकों व दर्शकों की एक
बहुत बड़ी संख्या खेल समाचारों को पढना, देखना, सुनना चाहती है। हर समाचार संस्थान में खेल संवाददाताओं और
खेल डेस्क होना निश्चित है। बहुत से संस्थान के खेल संवाददाता व खेल सम्पादक के
रूप में ऐसे ही लोगों की नियुक्ति करते हैं, जो खिला़ड़ी भी हों या पूर्व में रहे हों।
वास्तव में प्रत्येक खेल के
अपने तकनीकी शब्द होते हैं और एक निश्चित भाषा भी। खेल के जानकार लोगों को किसी
समाचार पत्र व चैनल से यह अपेक्षा होती है कि वह खेल की ताजा व मुकम्मल खबर दे।
रोचक – रोमांचक ढंग से खेल समाचारों की प्रस्तुति देते
समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि खेल शब्दावली का अतिशय प्रयोग करके समाचार
को बोझिल न बना दिया जाए। निहायत अजनबी खेल शब्द का प्रयोग करते समय एक बार उसका
सामान्य बोलचाल में अर्थ दे देना उचित होता है।
खेल समाचारों के लिये
आंकड़े व रिकार्ड प्राण की तरह होते हैं। खेलों की दुनिया में लगातार आंकड़े और
रिकार्ड जुड़ते रहते हैं। इसलिये जरूरी है कि खेल संवाददाता व खेल सम्पादक के पास
अपनी एक ऐसी कम्प्यूटर फाइल हो, जिसमें आंकड़ों व रिकार्डों
को निरंतर दर्ज किया जाता रहे। एक सच यह भी है कि आंकड़े जहां एक तरफ किसी समाचार
को रोचक बनाते हैं वहीं अधिकता में बोझिल भी बना देते हैं। आंकड़ों को यदि समाचार
के साथ विशेष रूप से पृष्ठ सज्जा के अनुसार प्रस्तुत किया जाए तो अच्छा होता है।
खेल समाचारों को यदि रनिंग कमेंट्री यानी आंखों देखा हाल की तरह लिखा जाये तो वह
पाठकों के लिये अत्यधिक रुचिकर होता है, लेकिन इसका
संक्षिप्त होना बहुत जरूरी है। समाचार चैनलों के सामने खेल प्रस्तुति की बहुत अधिक
चुनौतियां नहीं होती। मात्र रोचक प्रस्तुति से ही काम चल जाता है। वहां दृश्य की
गुणवत्ता ही दर्शकों के बीच लोकप्रियता तय करती है।
५. विधि पत्रकारिता
न्यालाय से जुड़े समाचार भी
अपनी अलग अहमियत रखते हैं। नये कानूनों, उनके अनुपालन और
उसके प्रभाव से लोगों को परिचित कराना बहुत जरूरी होता है। बहुत से ऐसे लोग होते
हैं, जो किसी विशेष मुकदमें की न्यायालयी प्रक्रिया व
निर्णय से अवगत होना चाहते हैं। ऐसे मुकदमों की जानकारी देना तो और भी जरूरी होता
है, जिनका प्रभाव समाज, सम्प्रदाय, प्रदेश व देश पर पड़ता हो।
यही वजह है कि न्याय के हर पक्ष को सही व सार्थक ढंग से रखने के लिये हर समाचार
संस्थान में विधि संवाददाताओं की नियुक्ति होती है। इसके लिये विधि की शिक्षा
प्राप्त होना जरूरी होता है। कुछ समाचार पत्रों ने अपने यहां कार्यरत अधिवक्ताओं
को संवाददाता नियुक्त कर रखा है, जो समय पर विभिन्न
न्यायालयों से जुड़ी खबरों को लिखते हैं।
अन्य समाचार
इसी तरह विकास कार्यों से
जुड़े विकास समाचार, जन समस्याओं की परत दर परत
खोलते समाचार, नये शैक्षिक आयामों व तरह –
तरह की शैक्षिक गतिविधियों को प्रस्तुत करते शैक्षिक समाचार,
आर्थिक व व्यापार जगत की उठापटक से परिचित कराते समाचार,
स्वास्थ्य के हर पहलू से जु़ड़े समाचार, विज्ञान समाचार, पर्यावरण समाचार,
मनोरंजन से जुड़े समाचार, फैशन समाचार व सैक्स समाचार भी किसी समाचार पत्र या चैनल के लिये महत्वपूर्ण
होते हैं। यहां यह बताते चलें कि सैक्स समाचारों में बलात्कार से जुड़े समाचार
नहीं रखे जाते। वास्तव में बड़े – बड़े राष्ट्रीय – अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सैक्स स्केण्डलों व प्रमुख
व्यक्तियों की निजी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को खास से आम कर देने की ललक ने ही
सैक्स समाचारों को समाचारों की फेहरिस्त में शामिल कराया है। सैक्स भ्रांतियों को
दूर करने और जनसंख्या नियंत्रण करने के बहाने तरह – तरह के समाचार प्रस्तुत करने का भी दौर आन पड़ा है।
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बहुत सुंदर एवं उपयोगी
Thank you sir aapke blogs bahot acchhe hai
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