सबसे अधिक पढ़ी गई पोस्ट

Monday, 22 December 2014

समाचार के स्त्रोत



समाचार संकलन
समाचार समाचार पत्र के प्राण होते हैं। समाचार पत्रों की आर्थिक स्थिति समाचारों पर ही निर्भर करती है क्योंकि जिन समाचार पत्रों की बाजार में मांग होती है उन्हीं समाचार पत्रों को विज्ञापनदाता अपने विज्ञापन देना पसंद करते हैं। विज्ञापनों का उद्देश्य ही होता है विज्ञापित वस्तु के विक्रय के लिये ग्राहकों का ध्यान खींचना, उन्हें आकर्षित करना, वस्तु के प्रति दिलचस्पी जगाना तथा उसे खरीदने के लिये उत्प्रेरित करना, जो कि एक अच्छे, सफल और लोकप्रिय समाचार पत्र द्वारा ही संभव हो सकता है। इस प्रकार जहां एक ओर समाचार पत्र विज्ञापित वस्तु के प्रचार के लिये महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, वहीं दूसरी ओर विज्ञापन के प्रकाशन से समाचार पत्रों की भी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। यही कारण है कि समाचार पत्र अपने समाचार पत्रों के लिये सही, सामयिक, भावनात्मक, निष्पक्ष, प्रामाणिक, परिणामदर्शी समाचारों के संकलन के लिये प्रयासरत रहते हैं और इस कार्य के लिये शिक्षित, अनुभवी, प्रवीणता प्राप्त संवाददाताओं को नियुक्त किया जाता है। जो समाचार समाचार पत्रों के सामर्थ्य से परे होते हैं उनकों, समाचारों का संकलन, प्रेषण व वितरण से जुड़ी, व्यावसायिक समाचार समितियों से एकत्रित किया जाता है।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में हुए सूचना विस्फोट ने समाचार स्त्रोतों का जखीरा ला खड़ा किया है। पुराने प्रचलित स्त्रोतों पर से निर्भरता हटती चली गयी और इंटरनेट के माध्यम से वह सब कुछ कम्प्यूटर स्क्रीन पर प्रस्तुत होने लगा, जिसके लिये संवाददाताओं को लम्बे समय तक चलने वाली कवायद करनी पड़ती थी। इंटरनेट के आगमन के पूर्व समाचार पत्रों के लिये समाचार प्राप्ति के निम्नलिखित ३ स्त्रोत होते थे -
१. ज्ञात स्त्रोत
समाचार प्राप्ति के वे स्त्रोत जिनकी आशा, अपेक्षा, अनुमान पहले से होता है समाचार प्राप्ति के ज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।
पुलिस स्टेशन, ग्राम पालिका, नगर पालिका, अस्पताल, न्यायालय, मंत्रालय, श्मशान, विविध समितियों की बैठकें, सार्वजनिक वक्तव्य, पत्रकार सम्मेलन, सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के सम्मेलन, सभा-स्थल पर कार्यक्रम आदि समाचार के ज्ञात स्त्रोत हैं।
२. अज्ञात स्त्रोत
समाचारों के वे स्त्रोत जिनकी आशा व अपेक्षा नहीं होती और जहां से समाचार आकस्मिक रूप से प्राप्त होते हैं समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत कहलाते हैं।
संवाददाता द्वारा सामाजिक चेतना, तर्कशक्ति, ज्ञान, अनुभव और दूरदृष्टि के बल पर एकत्रित किये जाने वाले असंगत, अप्रतीक्षित, आकस्मिक घटनाओं आदि से सम्बंधित समाचार, समाचार प्राप्ति के अज्ञात स्त्रोत हैं।
३. पूर्वानुमानित स्त्रोत
समाचार प्राप्ति के वे स्त्रोत जिनके सम्बंध में पहले से अनुमान लगाया गया हो समाचार के पूर्वानुमानित स्त्रोत कहलाते हैं।
गंदी बस्तियों में फैलने वाली बीमारियों, महामारियों, शिक्षा संस्थानों में होने वाली घपलेबाजियों, कल-कारखानों में मजदूरों द्वारा अपनी मांगों को लेकर होने वाली हड़तालों, तालेबंदियों, निकट भविष्य में होने वाली मूसलाधार बरसातों में धाराशायी होने वाली बहुमंजिली जीर्ण-शीर्ण इमारतों, फसलों व मौसम से सम्बंधित समाचार पूर्वानुमानित होते हैं।
इक्कीसवीं सदी में दिख रहा है सब कुछ संस्कृति के विकसित होने और आम आदमी के बीच साक्षरता बढने के साथ बढी जानने के अधिकार के प्रति जागरुकता ने न केवल संवाददाताओं के मानसिक बोझ को हल्का कर दिया बल्कि वह सब कुछ आसानी से उपलब्ध कराना शुरू कर दिया, जिसके लिये खोजी पत्रकारिता का सहारा लेना शुरू कर दिया गया था।
यह अनायास हुआ नहीं कहा जाएगा कि भ्रष्टाचार के वे मामले भी चुटकियों में प्रकाश में आने लगे, जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर अदने से अधिकारी भी लिप्त होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री को कटघरे में ला खड़ा करने और घोटाले का पर्दाफाश होने पर कई मंत्रियों को त्यागपत्र देने की खबरें अब आम हो चुकी हैं। इलेक्ट्रानिक चैनलों के छिपे कैमरे ने वह सब कुछ दिखाना शुरू कर दिया है, जिसकी शिकायत को हवा में उड़ा देने की तरकीवों में लोग माहिर हो चुके थे। ऐसी खबरों का प्रकाशन होने लगा है, जिन्हें कभी राष्ट्रहित में प्रकाशित न करने की दुहाई देकर संवाददाताओं को लाचार कर दिया जाता था। तहलका द्वारा किया गया सेना में भ्रष्टाचारके मामलों का उजागर होना इसी का उदाहरण है।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इक्कीसवीं सदी में सूचना क्रांति की धमक के साथ प्रवेश करने वाला पाठक या दर्शक इतना अधिक जिज्ञासु हो चुका है कि समय बीतने से पहले वह सब कुछ जान लेना चाहता है, जो उससे जुड़ा है और उसकी रुचि के अनुरूप है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि समाचारों के परम्परागत स्त्रोतों और नये उभरते स्त्रोतों के बीच सार्थक समन्वय स्थापित करके वह सब कुछ समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए, जो डिमांड में है। यहां कुछ समाचार स्त्रोतों की चर्चा की जा रही है।
१. संवाददाता
किसी भी समाचार पत्र या चैनल के लिये सबसे महत्वपूर्ण व कारगर समाचार स्त्रोत उसका संवाददाता होता है। स्वयं द्वारा नियुक्त संवाददाताओं द्वारा संग्रहित जानकारियों पर समाचार पत्र या चैनल को अधिक विश्वास होता है। इसलिये किसी कवरेज पर गये संवाददाता की रिपोर्ट को प्राथमिकता दी जाती है और उस कवरेज से जुड़ी जारी होने वाली विज्ञप्ति को नकार दिया जाता है।
कई बड़े समाचार पत्रों और चैनलों में संवाददाताओं की वैविध्यपूर्ण लम्बी चौड़ी फौज होती है। समाचारों की विविधता के हिसाब के ही संवाददाताओं को नियुक्त किया जाता है। राजनीतिक दलों के लिये अलग अलग संवाददाताओं का होना, शिक्षा-संस्कृति, साहित्य, खेल, अर्थ, विज्ञान, फैशन, न्यायालय, सरकारी कार्यालयों, पुलिस और अपराध आदि विषयों व विभागों की खबरों के लिये अलग-अलग संवाददाताओं का होना अब अपरिहार्य सा हो गया है। एक ओर जहां भूमण्डलीकरण और नई बाजार व्यवस्था में स्वयं को फिट करने के लिये प्रमुख देशों के प्रमुख नगरों में संवाददाता रखे जा रहे हैं, वहीं निरंतर बढ रही साक्षरता के चलते समाचारों के बाजार में अपना कब्जा बनाने के लिये छोटे छोटे गांवों और पिछड़े बाजारों में भी संवाददाता नियुक्त किये जा रहे हैं।
ऐसे में संवाददाताओं की यह जिम्मेदारी हो गयी है कि वे स्वयं को सौंपे गये स्त्रोतों यानी राजीनीतिक दल, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी संस्थान, अस्पताल, सरकारी कार्यालयों, न्यायालय, बाजार, पुलिस आदि को खंगालते रहें और लागातार समाचारों को विविधता के साथ प्रस्तुत करते रहें। एक अच्छे अखबार व चैनल में अस्सी प्रतिशत समाचार उसके अपने संवाददाताओं द्वारा खोजे गये, तैयार किये गये और प्रस्तुत किये गये होते हैं।
यहीं यह भी बताते चलें कि समाचारों की गुणवत्ता और महत्व के अनुसार कई स्तर बना दिये गये हैं।
समाचार संकलन की दृष्टि से संवाददाताओं स्तर
समाचार उपलब्ध कराने के लिये समाचार पत्र द्वारा अपने संवाददाता नियुक्त किये जाते हैं, जिन्हें निम्नलिखित ३ श्रेणियों में बांटा जा सकता है -
१. कार्यालय संवाददाता
समाचार पत्र के प्रकाशन स्थान या कार्यालय में ही रहकर स्थानीय समाचारों के संकलन का कार्य कार्यालय संवाददाता करते हैं। ये पूर्णकालिक होते हैं। इनके कार्यक्षेत्र आमतौर पर बंटे होते हैं। ये संवाददाता अपने क्षेत्र की घटनाओं, संवाददाता सम्मेलनों और विज्ञप्तियों के जरिये समाचार संकलन का कार्य करते हैं। साथ ही साथ विशेष खोजपूर्ण समाचार के कार्य में भी निरंतर लगे रहते हैं।
२. मुख्य संवाददाता
समाचार पत्र के कार्यालय में कार्यालय संवाददाताओं को कार्य का वितरण और उन्हें उस कार्यदिन में होने वाली प्रेस कांफ्रेंस, सम्मेलन, समारोहों आदि में भेजने की जिम्मेदारी निभानेवाला मुख्य संवाददाता कहलाता है। सभी तरह के प्रेस नोट, प्रेस विज्ञप्तियां आदि मुख्य संवाददाता को ही प्रेषित की जाती हैं। मुख्य संवाददाता पूर्णकालिक होते हैं।
३. विशेष संवाददाता
विशेष संवाददाता देश एवं राष्ट्र के मुख्य स्थानों पर नियुक्त होते हैं और वे राष्ट्रीय महत्व के समाचारों के संकलन के साथ उनके विश्लेषण, विवेचन आदि का कार्य भी करते हैं। ये संवाददाता पूर्णकालिक होते हैं।
४. अंशकालिक संवाददाता
छोटे स्थानों के समाचार संकलित करने वाले संवाददाता अंशकालिक होते हैं। ऐसे संवाददाता आवश्यकतानुसार तार, टेलीफोन, फैक्स अथवा ईमेल के जरिये समाचार प्रेषित करते हैं। अंशकालिक संवादाता समाचार कार्यालय से दूर केंद्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द स्थित छोटे छोटे स्थानों से समाचार प्राप्ति के अन्य स्त्रोतों से अलग भिन्न छोटे मोटे किन्तु महत्वपूर्ण समाचार एकत्रित करके भेजते हैं। ये संवाददाता पूर्णकालिक नहीं होते हैं। इन्हें इनके कार्य के लिये निश्चित अथवा समाचार के आकार के आधार पर पारिश्रमिक दिया जाता है। ये या तो समाचार पत्रों और संवाद समितियों के लिये कार्य करते हैं या उनका मूल व्यवसाय कोई और होता है।

२. न्यूज एजेंसी
संवाददाताओं के बाद सबसे अधिक प्रयोग में आने वाला समाचार स्त्रोत न्यूज एजेंसियां हैं। देश विदेश की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिये समाचार पत्र व चैनलों को इन्हीं पर निर्भर रहना पड़ता है। छोटे और कुछ मझोले समाचार पत्र तो पूरी तरह इन्हीं पर निर्भर होते हैं। देश के दूरदराज इलाकों व विदेशों के विश्वसनीय समाचार प्राप्त करने का यह सस्ता व सुलभ साधन है।
अपने देश में प्रमुख रूप से चार राष्ट्रीय न्यूज एजेंसियां काम कर रही हैं। ये हैं यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया (यूएनआई), प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई), यूनीवार्ता और भाषा। यूएनआई और पीटीआई अंग्रेजी की न्यूज एजेंसी हैं, जबकि यूनीवार्ता व भाषा इन्हीं की हिन्दी समाचार सेवाएं हैं। इनके अतिरिक्त कई अन्य समाचार, विचार और फीचर एजेंसियां हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से समाचार पत्रों द्वारा किया जा रहा है। बढती प्रतिद्वंदिता के चलते अब विदेशों के समाचारों के लिये विभिन्न विदेशी भाषाओं की न्यूज व फोटो एजेंसियों का भी सहारा लिया जा रहा है।
३. इंटरनेट
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में कम्प्यूटर के प्रयोग और नये नये साफ्टवेयरों के कमाल ने समाचार पत्रों को ही नहीं, बल्कि समाचार पत्रों के दफ्तरों तथा समाचार को एकत्र करने वालों, सम्पादन करने वालों और उन्हें सजा-संवारकर कर प्रस्तुत करने वालों व उनकी सोच को भी बदल डाला। दूसरी ओर पाठकों की अपनी अभिरुचि व उनकी अपनी सोच में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है। इसके चलते समाचार पत्र निरंतर बदलते रहने पर मजबूर हुए हैं। इस बदलाव को गति देने का कार्य किया है इंटरनेट ने, जिसने समाचारों को न केवल अद्यतन बनाने में सहयोग किया है, बल्कि देश विदेश के ताजातरीन समाचारों को सहजता से उपलब्ध कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सच कहा जाये तो इंटरनेट और इंट्रानेट ने समाचार पत्रों व उनके कार्यालयों की शक्ल ही बदलकर रख दी है। एक ही यूनिट से कई कई ताजा संस्करण निकलना और वह भी रंगीन पृष्ठों के साथ, बहुत ही आसान हो गया है। बहुतेरे समाचारों के इंटरनेट संस्करण भी निकाले जा रहे हैं। वेब दुनिया में विचरते इन समाचार पत्रों के संस्करणों ने न केवल दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है, बल्कि पूरी दुनिया को सोलह से बीस पृष्ठों वाले समाचार पत्र में प्रस्तुत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
जहां तक इंटरनेट के समाचार स्त्रोत के रूप में प्रयोग होने की बात है, तो यहां कहा ही जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के प्रारम्भ में ही कई समाचार पत्रों ने इंटरनेट के भरोसे ही देश विदेश का पूरा पृष्ठ ही देना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ी बात यह कि जिन विजुअल्स के लिये समाचार पत्र व पाठक तरसते रहते थे, वे सब अब बहुत ही आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं। इंटरनेट ने विदेशी समाचारों व फोटो के लिये अब एजेंसियों पर निर्भरता लगभग समाप्त कर दी है। देश विदेश के कई स्वतंत्र पत्रकार व फोटोग्राफर अपने द्वारा तैयार समाचारों और फोटों को एजेंसियों की अपेक्षा इंटरनेट के माध्यम से अधिक त्वरित गति से उपलब्ध करा रहे हैं। आज जिस संवाददाता व फोटोग्राफर की अपनी वेबसाइट नहीं है, उसे बहुत पिछड़ा हुआ माना जा रहा है। यही वजह है कि अब पत्रकारों के लिये कम्प्यूटर साक्षरता के साथ-साथ नेटवर्क साक्षरता अनिवार्य होती जा रही है।
४. विज्ञप्तियां
समाचारों का बहुत बड़ा स्त्रोत विज्ञप्तियां ही होती हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि समाचार पत्र के पृष्ठों को भरने के लिये ताजा समाचार उपलब्ध ही नहीं होते, ऐसे में कार्यालय में पहुंची विज्ञप्तियां यानी प्रेस नोट ही वरदान साबित होती हैं। प्राय: विज्ञप्तियां दो प्रकार की होती हैं सामान्य और सरकारी विज्ञप्तियां।
सामान्य विज्ञप्तियां किसी शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, खेल, आर्थिक, तकनीकी आदि के संस्थान, स्वयंसेवी संगठन, क्लब और संस्थाओं, राजनीतिक दल, श्रमिक-कर्मचारी संगठन, सामान्य जन आदि से भेजी जाती हैं। समाचार पत्रों में उपलब्ध स्थान का बहुत बड़ा हिस्सा इन्ही विज्ञप्तियों से भरा जाता है। समाचार पत्रों के कार्यालय में बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो अथ विज्ञप्ति दाता तेरी जय हो कथन के ही पोषक होते हैं।
सरकारी विज्ञप्तियां विभिन्न सरकारी कार्यालयों द्वारा या तो सीधे या फिर सूचना कार्यालय के माध्यम से कार्यालयों में पहुंचायी जाती हैं। केन्द्र व प्रदेश सरकार के मंत्रियों के कार्यक्रमों व उनके वक्तव्यों से जुड़े समाचारों की विज्ञप्तियां सूचना विभाग के माध्यम से ही प्राप्त होती है। समाचार पत्रों में एक चलन सा है कि सरकारी संस्थानों या अर्धसरकारी उपक्रमों द्वारा सीधे या फिर सूचना विभाग द्वारा जारी विज्ञप्तियों को जस का तस छाप दिया जाता है।
होना यह चाहिए कि विज्ञप्तियों से अपने समाचार पत्र की भाषा, शैली व प्रस्तुतिकरण के आधार पर समाचार तैयार किये जाएं। यह मानकर चलना चाहिए कि अच्छे पाठक हमेशा संवाददाताओं द्वारा लिखे व प्रस्तुत किये गये समाचारों को ही पढना चाहते हैं। विज्ञप्तियों को सिरे से खारिज कर देने की प्रवृत्ति बहुतों में देखने को मिलती है। कई संवाददाता विज्ञप्तियों की एक लाइन पकड़कर पूरा का पूरा एक्सक्लूसिव समाचार तैयार कर लेने में कामयाब हो जाते हैं और उन्हें बाइलाइन यानी समाचार पर नाम भी मिल जाता है। कुशल संवाददाता विज्ञप्तियों को सतर्क होकर पढता है और न केवल रुचिकर समाचार बनाता है, बल्कि इनसेट और बाक्स भी तलाश लेता है।
५. लोक सम्पर्क
यह एक सामान्य का नियम है कि वही संवाददाता सफल हो पाता है, जो नित्य एक नये आदमी से मिलता है या उससे सम्पर्क साधता है। वास्तव में बहुत से समाचार आम आदमी के माध्यम से ही संवाददाता तक पहुंचते हैं। भले ही आम आदमी संवाददाता को मात्र एक सूत्र पकड़ाते हैं और पूरे समाचार का ताना-बाना स्वयं संवाददाता को ही बुनना पड़ता है, लेकिन आम आदमी का संवाद सूत्र में कार्य कर देना ही समाचार पत्र या समाचार चैनल के प्रचार प्रसार के लिये काफी होता है। सच्चाई यह भी है कि यदि किसी समाचार पत्र या चैनल के लिये आम आदमी सूत्र की तरह काम करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि अमुक समाचार पत्र या चैनल की लोकप्रियता बहुत अधिक बढ रही है।
कुशल संवाददाता वही होता है, जो अपने समाचार क्षेत्र से सम्बंधित सूत्रों को तैयार किये रहता है। ऐसे संवाददाताओं से समाचार छूट जाने का प्रश्न ही नहीं उठता। वास्तव में सूत्र यदि सजग हों तो किसी महत्वपूर्ण घटना-दुर्घटना, भ्रष्टाचार, दुराचार आदि की सूचना सूत्र से सम्बंधित संवाददाता या समाचार पत्र को पहले मिलती है, पुलिस प्रशासन को बाद में। वास्तव में सूत्रों का जाल बिछाने की कवायद समाचार पत्र प्रबंधन की ओर से भी होती है। बीसवीं सदी के अंत से थोड़े से मानदेय पर संवादसूत्र रखने की परम्परा प्रारम्भ हो गयी थी। वर्तमान में यह परम्परा आगे ही बढी है। फिर भी इन मानदेय वाले संवाद सूत्रों से कहीं अधिक सतर्क, सचेत व तत्पर संवाददाता द्वारा तैयार स्वयं के अवैतनिक सूत्र होते हैं।
६. रेडियो व टीवी
समाचार के परम्परागत स्त्रोतों में आज भी रेडियो व टीवी का प्रमुख स्थान बना हुआ है। बहुत पहले से रेडियो का इस्तेमाल स्त्रोत के रूप में होता आया है। रेडियो से मिले एक या दो पंक्तियों के समाचार पाकर उसे विस्तृत रूप से प्राप्त कर समाचार पत्र में प्रस्तुत कर देने की कवायद बहुत दिनों से होती आई है।
खबरिया चैनल भी समाचार पत्रों के लिये स्त्रोत का कार्य करते हैं। कभी कभी तो दूर-दराज के समाचारों को टीवी से प्राप्त करके उसे स्थानीयता से जोड़ा जाता है। छोटे समाचार पत्र टीवी के समाचारों और फोटो को प्राप्त करके ही खुद के पृष्ठ भरा करते हैं। वास्तव में जहां समाचार पत्र के संवाददाता नहीं हैं, वहां का टीवी ही सबसे बड़ा स्त्रोत तो है ही, वहां भी महत्वपूर्ण है जहां संवाददाताओं की फौज है। ऐसा इसलिये कि कभी कभी समाचार टीवी से ही पता चलते हैं और तब समाचार पत्रों के संवाददाता घटना स्थल पर पहुंचते हैं या फिर येन केन प्रकारेण उस समाचार का विस्तृत रूप प्राप्त करते हैं। सच यह भी है कि कभी कभी समाचार पत्रों से मिली खबर पर टीवी संवाददाता सक्रिय होते हैं और सजीव विजुअल्स की सहायता से उसे प्रस्तुत करते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मी़डिया एक दूसरे के पूरक हैं।
७. साक्षात्कार व प्रेस वार्तायें
साक्षात्कार और प्रेस वार्तायें भी समाचारों के अच्छे स्त्रोत हैं। इनसे कभी कभी ऐसे समाचार भी मिल जाते हैं जो समाचार पत्रों व समाचार चैनलों की लीड यानी मुख्य समाचार बन जाते हैं। स्त्रोत के रूप में प्रेस ब्रीफिंग और प्रेस से मिलिये का भी उपयोग किया जाता है। 

No comments: