जिस समय भारत में भगवान महावीर और बुद्ध धर्म के संबध में नए विचार रख रहें थे, चीन में भी एक सुधारक का जन्म हुआ, जिसका नाम कन्फ़्यूशियस था। उस समय चीन में झोऊ राजवंश का बसंत और शरद काल चल रहा था। समय के साथ झोऊ राजवंश की शक्ति शिथिल पड़ने के कारण चीन में बहुत से राज्य कायम हो गये, जो सदा आपस में लड़ते रहते थे, जिसे झगड़ते राज्यों का काल कहा जाने लगा. अतः चीन की प्रजा बहुत ही कष्ट झेल रही थी। ऐसे समय में चीन वासियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने हेतु महात्मा कन्फ्यूशियस का आविर्भाव हुआ।
कनफ़ूशस् के मतानुसार भलाई मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। मनुष्य को यह स्वाभाविक गुण ईश्वर से प्राप्त हुआ है। अत: इस स्वभाव के अनुसार कार्य करना ईश्वर की इच्छा का आदर करना है और उसके अनुसार कार्य न करना ईश्वर की अवज्ञा करना है।
कन्फ्यूशियस धर्म के संस्थापककन्फ्यूशियस का समय 511 से 469 ई.पू. माना गया है। कन्फ्यूशियस एक महान दार्शनिक एवं विचारक थे। इन्होंने अपनी धार्मिक व्याख्याओं के द्वारा सबसे पहले आम जनता को सद्ज्ञान, नैतिकता एवं सदाचरण का मार्ग दिखाया। अर्थात् सदाचार की प्रेरणा प्रदान की। कन्फ्यूशियस धर्म ने शांति, मानवता, ज्ञान, साहस एवं विश्वास में अटूट श्रद्धा व निष्ठा पर आधारित नैतिक और सामाजिक दर्शन तथा आचार संहिता पर बल दिया।
प्रेम, भाईचारा सिखाता है कन्फ्यूशियस धर्मकन्फ्यूशियस धर्म के मानने वालों ने ईश्वर के सवाल पर विचार करने से इंकार कर दिया। किंतु वे यह अवश्य मानते है कि मनुष्य अपने सत्कर्मों से स्वर्ग जैसे उस स्थान को अवश्य प्राप्त कर सकता है। जहां शांति, भाईचारा, प्रेम, अहिंसा एवं पवित्रतापूर्ण वातावरण रहता है। अत: हम कह सकते हैं कि कन्फ्यूशियस धर्म के मानने वाले सतकर्म, सदाचार एवं नैतिक आचरण को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। उनकी मान्यता के अनुसार एक ईमानदार, आज्ञाकारी, सहिष्णु, ज्ञानवान तथा दूसरों द्वारा किए गए उपकारों का आभार मानने वाला मनुष्य ही स्वर्ग जैसे श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त कर सकता है।महान धार्मिक एवं दार्शनिक कन्फ्यूशियस के अनुसार ज्ञान और चिंतन दोनों साथ-साथ होने चाहिए। क्योंकि बिना ज्ञान के चिंतन करना पूर्णत: व्यर्थ एवं अत्यंत हानिकारक है उन्होंने अपने उपदेशों में निम्नलिखित बातों का भी उल्लेख किया है।1. विचित्र वस्तुएं2. अति प्राकृतिक वस्तु3. भूत, प्रेत एवं देवता इत्यादि।
ताओ धर्म से संबंध कन्फ्यूशियस धर्म में जहां धार्मिक रीति-रिवाजों, आचार-विचारों, परिवार एवं समाज से संबंधित शिक्षाओं पर बल दिया गया है। जबकि चीन के दूसरे प्रमुख धर्म ताओ में व्यक्तिवाद, ईश्वर की अलौकिकता आदि में दृढ़ आस्था एवं विश्वास है। इन दोनों ही धर्मों ने एक लंबे समय तक चीन निवासियों की धार्मिक आस्थाओं को प्रभावित किया। किंतु बाद में इनकी शिक्षाएं चीन से लुप्त हो गई और उनके स्थान पर अनेक अंध विश्वासों, बहुदेवतावाद एवं जादू-टोना आदि का प्रचलन हो गया। किंतु चीन में आज भी इन दोनों महान दार्शनिकों (ताओ और कन्फ्यूशियस) के स्मारक चिह्न एवं मान्यताओं और सिद्धांत से संबंधित ग्रंथ उपलब्ध है।
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