रेडियो और दूरदर्शन को स्वायत्त देने वाले वर्तमान प्रसार भारती कानून का मूल नाम प्रसार भारती (भारती प्रसारण निगम) विधान 1990 था। इसमें कुल चार अध्याय थे जो कुल 35 धाराओं – उपधाराओं में बंटे थे। अधिनियम के अनुसार रेडियो – दूरदर्शन का प्रबंधन एक निगम द्वारा किया जायेगा और यह निगम एक 15 सदस्यीय बोर्ड (परिषद) द्वारा संचालित होगा। परिषद में एक अध्यक्ष, एक कार्यकारी सदस्य, एक कार्मिक सदस्य, छह अंशकालिक सदस्य, एक – एक पदेन महानिदेशक (आकाशवाणी और दूरदर्शन), सूचना और प्रसारण मंत्रालय का एक प्रतिनिधि और कर्मचारियों के दो प्रतिनिधियों का प्रावधान था। अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी।
प्रावधानों के अनुसार यह प्रसार भारती बोर्ड सीधे संसद के प्रति उत्तरदायी होगा और साल में एक बार यह अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करेगा। अधिनियम में प्रसार भारती बोर्ड की स्वायत्ता के लिये दो समितियों का भी प्रावधान था - संसद समिति और प्रसार परिषद। संसदीय समिति में लोक सभा के 15 और राज्य सभा के 7 सदस्य होंगे जबकि प्रसार भारती परिषद में 11 सदस्य होंगे जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे।
अधिनियम के अनुसार प्रसार भारती के निम्न उद्देश्य
1 देश की एकता और अखंडता तथा संविधान में वर्णित लोकतंत्रात्मक मुल्यों को बनाये रखना।
2 सार्वजनिक हित के सभी मामलों की सत्य व निष्पक्ष जानकारी, उचित तथा संतुलित रुप में जनता को देना।
3 शिक्षा तथा साक्षरता की भावना का प्रचार – प्रसार करना।
4 विभिन्न भारतीय संस्कृतियों व भाषाओं के पर्याप्त समाचार प्रसारित करना।
5 स्पर्धा बढ़ाने के लिये खेल – कूद के समाचारों को भी पर्याप्त स्थान देना।
6 महिलाओं की वास्तविक स्थिति तथा समस्याओं को उजागर करना।
7 युवा वर्ग की आवश्यकताओं पर ध्यान देना।
8 छुआछूत – असमानता तथा शोषण जैसी सामाजिक बुराईयों का विरोध करना और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन देना।
9 श्रमिकों के अधिकार की रक्षा करना।
10 बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना।
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