मीडिया भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। यह केवल बाजार में बिकने वाला माल न होकर बल्कि जनता की राय भी बदलता है। पिछले कुछ वर्षों में २४ घंटे के न्यूज़ चैनलों के प्रसारण के बाद टी आर पी की होड़ में चैंनलों के स्वरूप,चरित्र व गुणवत्ता में काफी परिवर्तन आया है। पहले जो समाचार पत्र या न्यूज़ चैनेल निष्पक्ष पत्रकारिता में विश्वास रखते थे आज उनमें से अधिकतर स्वार्थवश या अपने आकाओं को खुश रखने के प्रयासों में पत्रकारिता की मर्यादाएं भी लांघ रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनमानष का विश्वास दिन प्रतिदिन मीडिया चैनलों पर कम होता जा रहा है।
मीडिया की तुलना सीधे तौर पर बाजार में बिकने वाली औषधि से की जा सकती है जिसकी गुणवत्ता पर रोगी का स्वस्थ होना या न होना निर्भर करता है।
जब औषधि की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगें तो बाजार में नई औषधि की आवश्यकता उठना लाजमी है। अभी हाल के कुछ वर्षों में सुचना क्रांति व इंटरनेट क्रांति के प्रसार के बाद एक बहुत बड़ी संख्या में युवा वर्ग सोशल मीडिया से जुड़ा है। यह युवा वर्ग स्वतन्त्र विचारों का समर्थक है और हर एक विषय पर बेबाकी से अपनी राय रखता है। सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव से पहले जनता को न्यूज़ चैनलों व अखबारों की खबरों पर पूर्ण रूपेण निर्भर रहना पड़ता था जिनकी तटस्थता पर भी सवाल उठते रहे हैं। सोशल मीडिया हर व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपनी बात बेबाकी से रखने का मौका देता है।
अगर बात 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रचार अभियान व उनकी विजय में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। मुख्यधारा मीडिया द्वारा कई बार सोशल मीडिया पर प्रश्नचिह्न लगाने का भी प्रयास किया गया परन्तु येसे सारे प्रयास विफल हुए आज सोशल मीडिया लोकतंत्र के पाँचवे स्तम्भ के रूप में अपनी जगह मजबूत कर चूका है।
विगत वर्षों में चाहे अकबरुद्दीन ओवैसी द्वारा हिन्दुओं के प्रति घ्रणित भाषण का मामला हो या देश के विभिन्न हिस्सों जैसे कि असाम, केरल व पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार का मामला हो सोशल मीडिया नें मजबूती के साथ सच्चाई सामने लेन का प्रयास किया और मुख्यधरा मीडिया को उन खबरों को दिखाने व उनपर चर्चा करने को मजबूर कर दिया। संगठित रूप से सोशल मीडिया पर अनेक ग्रुप कार्य कर रहे हैं जिनमें से प्रमुख नाम हिन्दू डिफेंस लीग, शंखनाद, नीति सेंट्रल, बीइंग हिन्दू, अखिल भारतीय नवयुवक संघ,आई बी टी एल,राष्ट्रिय रक्षा दल, हिन्दू सेना हैं। सोशल मीडिया के इन धुरंधरों को कई बार मुख्यधारा मीडिया व तथाकथित सेक्युलर ताकतों द्वारा ‘इन्टरनेट हिन्दू’ की संज्ञा भी दी गयी। तमाम आलोचनाओं को स्वीकार करते हुए ये इन्टरनेट हिन्दू अपनी बातों को निष्पक्ष रूप से रख रहे हैं जिससे भारतीय जनमानस पर भी पड़ रहा है।
सोशल मीडिया की उपयोगिता को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सभी मंत्रालयों को सोशल मीडिया के माध्यम से जनता से सीधे जुड़ने का निर्देश दिया। आज भारत के दूर-दराज के गाँव का व्यक्ति भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश में कहीं भी संपर्क साध सकता है और अपनी बात रख सकता है।
अभी हाल की कुछ घटनाओं जैसे कि मुजफ्फरनगर दंगे व मेरठ कांड पर नजर डालें तो मुख्यधारा मीडिया नें बिना सत्य की प्रमाणिकता किये दंगों का आरोप भी सोशल मीडिया के मत्थे मढ़ दिया। सोशल मीडिया की गलती यह थी कि उसने निष्पक्षता से व तथ्यात्मक रूप से दंगों की सच्चाई जनता के सामने लायी और दंगा के कारणों लव जिहाद व जबरन धर्म परिवर्तन को उजागर किया। ज्यादातर दंगों के कारक एक”विशेष समुदाय” के व्यक्ति होते हैं यह बात जगजाहिर है। मेरठ में हिन्दू लड़की के मदरसे में किये गए धर्म परिवर्तन की बात सोशल मीडिया के माध्यम से उजागर होने पर मुख्यधारा मीडिया द्वारा सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक उन्माद फ़ैलाने का आरोप लगाया गया। हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में ओसामा सलमान नामक व्यक्ति नें लेख लिखकर हिन्दू डिफेंस लीग सहित सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने का आरोप लगाया। आई बी एन सेवेन चैनेल ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मदरसों की सच्चाई सामने लाने वाले हिन्दू डिफेंस लीग सहित सोशल मीडिया पर दंगा भड़काने व तथ्यों को गलत रूप में पेश करने का आरोप लगा डाला।
आखिर मुख्यधारा मीडिया इस बात को क्यों नहीं समझना चाहता कि निष्पक्षता व विचारों की स्वतंत्रता के चलते युवा वर्ग सोशल मीडिया से जुड़ा है और हर एक नागरिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुए अपनी बात को रखने के लिए स्वतन्त्र है।
निश्चित तौर पर यह माना जा सकता है की सोशल मीडिया के उपयोग हेतु कुछ दिशानिर्देश हो सकते हैं परन्तु उसकी व्यापकता और प्रसार को देखते हुए नियंत्रण असंभव है और न ही नागरिकों के विचारों पर पाबन्दी लोकतंत्र के लिए श्रेयस्कर है। सोशल मीडिया जिस प्रकार समाज के हर वर्ग को जोड़ते हुए जागरूकता, ज्ञानवर्धन, पारस्परिक संवाद व परामर्श का कार्य कर रहा है वह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए अत्यंत हितकर है।
मीडिया की तुलना सीधे तौर पर बाजार में बिकने वाली औषधि से की जा सकती है जिसकी गुणवत्ता पर रोगी का स्वस्थ होना या न होना निर्भर करता है।
जब औषधि की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगें तो बाजार में नई औषधि की आवश्यकता उठना लाजमी है। अभी हाल के कुछ वर्षों में सुचना क्रांति व इंटरनेट क्रांति के प्रसार के बाद एक बहुत बड़ी संख्या में युवा वर्ग सोशल मीडिया से जुड़ा है। यह युवा वर्ग स्वतन्त्र विचारों का समर्थक है और हर एक विषय पर बेबाकी से अपनी राय रखता है। सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव से पहले जनता को न्यूज़ चैनलों व अखबारों की खबरों पर पूर्ण रूपेण निर्भर रहना पड़ता था जिनकी तटस्थता पर भी सवाल उठते रहे हैं। सोशल मीडिया हर व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपनी बात बेबाकी से रखने का मौका देता है।
अगर बात 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रचार अभियान व उनकी विजय में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। मुख्यधारा मीडिया द्वारा कई बार सोशल मीडिया पर प्रश्नचिह्न लगाने का भी प्रयास किया गया परन्तु येसे सारे प्रयास विफल हुए आज सोशल मीडिया लोकतंत्र के पाँचवे स्तम्भ के रूप में अपनी जगह मजबूत कर चूका है।
विगत वर्षों में चाहे अकबरुद्दीन ओवैसी द्वारा हिन्दुओं के प्रति घ्रणित भाषण का मामला हो या देश के विभिन्न हिस्सों जैसे कि असाम, केरल व पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार का मामला हो सोशल मीडिया नें मजबूती के साथ सच्चाई सामने लेन का प्रयास किया और मुख्यधरा मीडिया को उन खबरों को दिखाने व उनपर चर्चा करने को मजबूर कर दिया। संगठित रूप से सोशल मीडिया पर अनेक ग्रुप कार्य कर रहे हैं जिनमें से प्रमुख नाम हिन्दू डिफेंस लीग, शंखनाद, नीति सेंट्रल, बीइंग हिन्दू, अखिल भारतीय नवयुवक संघ,आई बी टी एल,राष्ट्रिय रक्षा दल, हिन्दू सेना हैं। सोशल मीडिया के इन धुरंधरों को कई बार मुख्यधारा मीडिया व तथाकथित सेक्युलर ताकतों द्वारा ‘इन्टरनेट हिन्दू’ की संज्ञा भी दी गयी। तमाम आलोचनाओं को स्वीकार करते हुए ये इन्टरनेट हिन्दू अपनी बातों को निष्पक्ष रूप से रख रहे हैं जिससे भारतीय जनमानस पर भी पड़ रहा है।
सोशल मीडिया की उपयोगिता को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सभी मंत्रालयों को सोशल मीडिया के माध्यम से जनता से सीधे जुड़ने का निर्देश दिया। आज भारत के दूर-दराज के गाँव का व्यक्ति भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश में कहीं भी संपर्क साध सकता है और अपनी बात रख सकता है।
अभी हाल की कुछ घटनाओं जैसे कि मुजफ्फरनगर दंगे व मेरठ कांड पर नजर डालें तो मुख्यधारा मीडिया नें बिना सत्य की प्रमाणिकता किये दंगों का आरोप भी सोशल मीडिया के मत्थे मढ़ दिया। सोशल मीडिया की गलती यह थी कि उसने निष्पक्षता से व तथ्यात्मक रूप से दंगों की सच्चाई जनता के सामने लायी और दंगा के कारणों लव जिहाद व जबरन धर्म परिवर्तन को उजागर किया। ज्यादातर दंगों के कारक एक”विशेष समुदाय” के व्यक्ति होते हैं यह बात जगजाहिर है। मेरठ में हिन्दू लड़की के मदरसे में किये गए धर्म परिवर्तन की बात सोशल मीडिया के माध्यम से उजागर होने पर मुख्यधारा मीडिया द्वारा सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक उन्माद फ़ैलाने का आरोप लगाया गया। हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में ओसामा सलमान नामक व्यक्ति नें लेख लिखकर हिन्दू डिफेंस लीग सहित सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने का आरोप लगाया। आई बी एन सेवेन चैनेल ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मदरसों की सच्चाई सामने लाने वाले हिन्दू डिफेंस लीग सहित सोशल मीडिया पर दंगा भड़काने व तथ्यों को गलत रूप में पेश करने का आरोप लगा डाला।
आखिर मुख्यधारा मीडिया इस बात को क्यों नहीं समझना चाहता कि निष्पक्षता व विचारों की स्वतंत्रता के चलते युवा वर्ग सोशल मीडिया से जुड़ा है और हर एक नागरिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुए अपनी बात को रखने के लिए स्वतन्त्र है।
निश्चित तौर पर यह माना जा सकता है की सोशल मीडिया के उपयोग हेतु कुछ दिशानिर्देश हो सकते हैं परन्तु उसकी व्यापकता और प्रसार को देखते हुए नियंत्रण असंभव है और न ही नागरिकों के विचारों पर पाबन्दी लोकतंत्र के लिए श्रेयस्कर है। सोशल मीडिया जिस प्रकार समाज के हर वर्ग को जोड़ते हुए जागरूकता, ज्ञानवर्धन, पारस्परिक संवाद व परामर्श का कार्य कर रहा है वह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए अत्यंत हितकर है।
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